मध्ययुगीन काव्य बाल लीला 11वी हिंदी

मध्ययुगीन काव्य बाल लीला 11वी हिंदी

बार बार जसुमति सुत बोधति, आउ चंद तोहिंलाल बुलावै ।
मधु मेवा पकवान मिठाई, आपुन खैहै, तोहिं खवावै ।।
हाथहिं पर तोहिंलीन्हे खेलै, नैंकु नहीं धरनी बैठावै ।
जल-बासन कर लै जु उठावति, याही मैं तू तन धरि आवै ।।
जलपुट आनि धरनि पर राख्यौ, गहि आन्यौ वह चंद दिखावै।
सूरदास प्रभु हँसि मुसक्याने, बार बार दोऊ कर नावैं ।।


उठिएे स्याम कलेऊ कीजै । मनमोहन मुख निरखत जी जै ।।
खारिक दाख खोपरा खीरा । केरा आम ऊख रस सीरा ।।
श्रीफल मधुर चिरौंजी आनी । सफरी चिउरा अरुन खुबानी ।।
घेवर फेनी और सुहारी । खोवा सहित खाहु बलिहारी ।।
रचि पिराक लड्डू दधि आनौं । तुमकौं भावत पुरी सँधानौं ।।
तब तमोल रचि तुमहिं खवावौं । सूरदास पनवारौ पावौं ।।

 मध्ययुगीन काव्य बाल लीला  शब्दार्थ ः

बोधति = समझाती है जी जै = जी रही हूँ
खैहे = खाएगा खारिक = छुहारा
तोहिं = तुम्हें दाख = किशमिश
बासन = पात्र, बर्तन सफरी = अमरूद
गहि = पकड़ खुबानी = जरदालू
नावैं = डालते हैं सुहारी = पूड़ी
कलेऊ = जलपान, कलेवा पिराक = गुझिया जैसा एक पकवान
सँधानौं = अचार पनवारौ = पान खिलाई

मध्ययुगीन काव्य बाल लीला 11वी हिंदी

मध्ययुगीन काव्य बाल लीला 12वी हिंदी


कवि परिचय -

 संत सूरदास का जन्म १4७8 को दिल्ली के पास सीही नामक गाँव में हुआ। आरंभ में आप आगरा और 
मथुरा के बीच यमुना के किनारे गऊघाट पर रहे। वहीं आप की भेंट गुरु वल्लभाचार्य से हुई। अष्टछाप कवियों की सगुण 
भक्ति काव्य धारा के आप एकमात्र ऐसे कवि हैं जिनकी भक्ति में साख्य, वात्सल्य और माधुर्य भाव निहित हैं। कृष्ण की 
बाल लीलाओं तथा वात्सल्य भाव का सजीव चित्रण आपके पदों की विशेषता है। संत सूरदास की मृत्यु१58० में हुई ।
प्रमुख कृतियाँ ः ‘सूरसागर’, ‘सूरसारावली’ तथा ‘साहित्यलहरी’ आदि।

काव्य प्रकार -

 ‘पद’ काव्य की एक गेय शैली है। हिंदी साहित्य में ‘पद शैली’ की दो निश्चित परंपराएँ मिलती हैं, 
एक संतों के ‘सबद’ की और दूसरी परंपरा कृष्णभक्तों की ‘पद शैली’ है, जिसका आधार लोकगीतों की शैली है। 
भक्ति भावना की अभिव्यक्ति के लिए पद शैली का प्रयोग किया जाता है।

काव्य परिचय -

प्रस्तुत पदों में कवि ने कृष्ण के बाल हठ एवं यशोदा की ममतामयी छबि को प्रस्तुत किया है। प्रथम पद में 
अपने लाल की हर इच्छा पूरी करने को आतुर यशोदा चाँद पाने के कृष्ण हठ को चाँद की छबि दिखाकर बहला लेती 
है। चाँद को देखने पर कृष्ण की मोहक मुस्कान देख माँ यशोदा बलिहारी हो जाती है। द्‌वितीय पद में माँ यशोदा कृष्ण को 
कलेवा करने के लिए दुलार रही है। उनकी पसंद के विभिन्न स्वादिष्ट व्यंजन सामने रख वह मनुहार कर रही है।

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