पंद्रह अगस्त कविता 11वी हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ ]
आज जीत की रात
पहरुए, सावधान रहना !
खुले देश के द्वार
अचल दीपक समान रहना ।
प्रथम चरण है नये स्वर्ग का
है मंजिल का छोर,
इस जनमंथन से उठ आई
पहली रतन हिलोर,
अभी शेष है पूरी होना
जीवन मुक्ता डोर,
क्योंकि नहीं मिट पाई दुख की
विगत साँवली कोर,
ले युग की पतवार
बने अंबुधि महान रहना,
पहरुए, सावधान रहना !
विषम श्रृंखलाएँ टूटी हैं
खुलीं समस्त दिशाएँ,
आज प्रभंजन बनकर चलतीं
युग बंदिनी हवाएँ,
प्रश्नचिह्न बन खड़ी हो गईं
ये सिमटी सीमाएँ,
आज पुराने सिंहासन की
टूट रहीं प्रतिमाएँ,
उठता है तूफान
इंदु, तुम दीप्तिमान रहना,
पहरुए, सावधान रहना !
ऊँची हुई मशाल हमारी
आगे कठिन डगर है,
शत्रु हट गया लेकिन उसकी
छायाओं का डर है,
शोषण से मृत है समाज
कमजोर हमारा घर है,
किंतु आ रही नई जिंदगी
यह विश्वास अमर है,
जनगंगा में ज्वार
लहर तुम प्रवहमान रहना,
पहरुए, सावधान रहना!
पंद्रह अगस्त कविता शब्दार्थ
पहरुए = पहरेदार,
प्रहरी प्रभंजन = आँधी, तूफान
पतवार = नाव खेने का साधन
इंदु = चंद्रमा
अंबुधि = सागर, समुद्र
दीप्तिमान = प्रकाशमान, कांतिमान, प्रभायुक्त
पंद्रह अगस्त कविता 11वी हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ ]
कवि परिचय
- गिरिजाकुमार माथुर जी का जन्म २२ अगस्त १९१९ को अशोक नगर (मध्य प्रदेश) में हुआ।
- आपकी आरंभिक शिक्षा झाँसी में तथा स्नातकोत्तर शिक्षा लखनऊ में हुई। आपने आॅल इंडिया रेडियो, दिल्ली तथा आकाशवाणी लखनऊ में सेवा प्रदान की। संयुक्त राष्ट्र संघ, न्यूयार्क में सूचनाधिकारी का पदभार भी सँभाला।
- आपके काव्य में राष्ट्रीय चेतना के स्वर मुखरित होने के कारण प्रत्येक भारतीय के मन में जोश भर देते हैं। माथुर जी की मृत्यु १९९4 में हुई ।
प्रमुख कृतियाँ -
- ‘मंजीर’,‘नाशऔरनिर्माण’,‘धूपकेधान’,‘शिलापंख चमकीले’,‘जो बँध नहीं सका’, ‘साक्षी रहे वर्तमान’, ‘मैं वक्त के हूँ सामने’ (काव्य संग्रह) आदि।
- काव्य प्रकार ः यह ‘गीत’ विधा है जिसमें एक मुखड़ा और दो या तीन अंतरे होते हैं। इसमें परंपरागत भावबोध तथा शिल्प प्रस्तुत किया जाता है ।
- कवि अपने कथ्य की अभिव्यक्ति हेतु प्रतीकों, बिंबों तथा उपमानों को लोक जीवन से लेकर उनका प्रयोग करता है।
- ‘तार सप्तक’ के कवियों में अज्ञेय, मुक्तिबोध, प्रभाकर माचवे, गिरिजाकुमार माथुर, नेमिचंद्र जैन, भारतभूषण अग्रवाल, रामविलास शर्मा का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
काव्य परिचय -
- प्रस्तुत गीत में कवि ने स्वतंत्रता के उत्साह को अभिव्यक्त किया है। स्वतंत्रता के पश्चात विदेशी शासकों से मुक्ति का उल्लास देश में चारों ओर छलक रहा है। इस नवउल्लास के साथ-साथ कवि देशवासियों तथा सैनिकों को सजग और जागरूक रहने का आवाहन कर रहा है।
- समस्त भारतवासियों का लक्ष्य यही होना चाहिए कि भारत की स्वतंत्रता पर अब कोई आँच न आने पाए क्योंकि दुखों की काली छाया अभी पूर्ण रूप से हटी नहीं है।
- जब शोषित, पीड़ित और मृतप्राय समाज का पुनरुत्थान होगा तभी सही मायने में भारत आजाद कहलाएगा।
पंद्रह अगस्त कविता 11वी हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ ]
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