सहर्ष स्वीकारा है कविता 11वी हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ ]
जिंदगी में जो कुछ है, जो भी है
सहर्ष स्वीकारा है;
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा है।
गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब
यह विचार-वैभव सब
दृढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनव सब
मौलिक है, मौलिक है
इसलिए कि पल-पल में
जो कुछ भी जाग्रत है, अपलक है -
संवेदन तुम्हारा है!!
जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है
जितना भी उँड़ेलता हूँ, भर-भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है
भीतर वह, ऊपर तुम
मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है!
सचमुच मुझे दंड दो कि भूलूँ मैं, भूलँू मैं
तुम्हें भूल जाने की
दक्षिण ध्रुवी अंधकार-अमावस्या
शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं
झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं
इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित, आच्छादित
रहने का रमणीय यह उजेला अब
सहा नहीं जाता है।
ममता के बादल की मँड़राती कोमलता-
भीतर पिराती है
कमजोर और अक्षम अब हो गई है आत्मा यह
छटपटाती छाती को भवितव्यता डराती है
बहलाती-सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है!!
सचमुच मुझे दंड दो कि हो जाऊँ
पाताली अँधेरे की गुहाओं में विवरों में
धुएँ के बादलों में
बिलकुल मैं लापता!!
लापता कि वहाँ भी तो तुम्हारा ही सहारा है!!
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
या मेरा जो होता-सा लगता है, होता-सा संभव है
सभी वह तुम्हारे ही कारण के कार्यों का घेरा है, कार्यों का वैभव है
अब तक तो जिंदगी में जो कुछ था, जो कुछ है
सहर्ष स्वीकारा है;
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा है।
(‘प्रतिनिधि कविताएँ’ संग्रह से)
सहर्ष स्वीकारा है कविता 11वी हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ ]
- गरबीली = स्वाभिमानी
- सोता = झरना
- मौलिक = मूलभूत
- परिवेष्टित = चारों ओर से घिरा हुआ, ढका हुआ
- अपलक = एकटक पाताली
- अंधेरा = धरती की गहराई में पाई जाने वाली धुँध
- संवेदन = अनुभूति
- विवर = बिल, गड्ढा
कवि परिचय -
गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’ जी का जन्म १३ नवंबर १९१७ को मुरैना (मध्य प्रदेश) में हुआ ।
आपकी प्रारंभिक शिक्षा मध्य प्रदेश में तथा स्नातकोत्तर शिक्षा नागपुर में हुई। आपने अध्यापन कार्य के साथ ‘हंस’ तथा
‘नया खून’ पत्रिका का संपादन भी किया। आप नई कविता के सर्वाधिक चर्चित कवि रहे हैं। प्रकृति प्रेम, सौंदर्य, कल्पनाप्रियता
के साथ सर्वहारा वर्ग के आक्रोश तथा विद्रोह के विविध रूपों का यथार्थ चित्रण आपके काव्य की विशेषता है।
मुक्तिबोध जी की मृत्यु १९६4 में हुई।
प्रमुख कृतियाँ -
‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’,‘भूरी-भूरी खाक धूल’ प्रतिनिधि कविताएँ (काव्यसंग्रह), ‘सतह से उठता आदमी’
(कहानी संग्रह), ‘विपात्र’ (उपन्यास), ‘कामायनी-एक पुनर्विचार’ (आलोचना) आदि।
काव्य प्रकार -
‘नई कविता’ मानव विशिष्टता से उपजी उस मानव के लघु परिवेश को दर्शाती है जो आज की तिक्तता और
विषमता को भोग रहा है। इन सबके बीच वह अपने व्यक्तित्व को भी सुरक्षित रखना चाहता है। हिंदी साहित्य में समय के
अनुसार बदलाव आए और नई कविता प्रमुखता से लिखी जाने लगी। इन कविताओं में जीवन की विसंगतियों का चित्रण,
जीवन के संघर्ष, तत्कालीन समस्या को सशक्त रूप में अभिव्यक्त किया है।
काव्य परिचय -
प्रस्तुत नई कविता में कवि ने जिंदगी में जो कुछ भी मिले उसे सानंद स्वीकारने की बात कही है। दुख, संघर्ष,
गरीबी, अभाव, अवसाद, संदिग्धता सभी को स्वीकार करने से ही व्यक्ति परिपक्व बनता है। आत्मीयता, भविष्य की चिंता,
ममता की कोमलता मनुष्य को कमजोर बनाती है, डराती है। इसलिए कवि कभी-कभी अंधकार में लुप्त होना चाहता है।
प्रकृति को जो कुछ भी प्यारा है, वह उसने हमें सौंपा है। इसलिए जो कुछ भी मिला है या मिलने की संभावना है, उसे सहज
अपनाना चाहिए। आपकी परिष्कृत भाषा भावाभिव्यक्ति में सक्षम है
सहर्ष स्वीकारा है कविता 11वी हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ ]
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