आकलन | Q 1 | Page 7
लिखिए :
दावत में होने वाली अन्न की बरबादी पर उषा की प्रतिक्रिया
Solution :
देवताओं में मेहमान प्लेट भर-भर कर खाना लेते हैं और जरा-जरा सा टूँग कर जूठे खाने से भरी प्लेट कचरे के डिब्बे में डाल देते हैं। दूसरी ओर अनेक ऐसे लोग हैं, जो दानेदाने के लिए तरसते हैं और वे भूखे-पेट सो जाते हैं। यह सोच कर उसकी आँखों में आँसू आ जाते हैं।
आकलन | Q 2 | Page 7
लिखिए :
संवादों का उचित घटनाक्रम
(१) "रुपये खर्च हो गए मालिक"
(२) "स्कूल नहीं जाता तू? अजीब है...!"
(३) “अरे क्या हुआ ! जाता क्यों नहीं?"
(४) “माँ, बाल मजदूरी अपराध है न?"
Solution :
"स्कूल नहीं जाता तू? अजीब है...!"
“माँ, बाल मजदूरी अपराध है न?"
“अरे क्या हुआ! जाता क्यों नहीं?"
"रुपये खर्च हो गए मालिक"
शब्द संपदा [PAGES 7 - 8]
शब्द संपदा | Q 1.1 | Page 7
समूह में से विसंगति दर्शाने वाला कृदंत/तद्धित शब्द चुनकर लिखिए -
मानवता, हिंदुस्तानी, ईमानदारी, पढ़ाई
Solution :
पढ़ाई : (पढ़ + आई - कृत प्रत्यय) कृदंत
शब्द संपदा | Q 1.2 | Page 7
समूह में से विसंगति दर्शाने वाला कृदंत/तद्धित शब्द चुनकर लिखिए -
थकान, लिखावट, सरकारी, मुस्कुराहट
Solution :
सरकारी: (सरकार +ई - तदूधित प्रत्यय) तदूधित
शब्द संपदा | Q 1.3 | Page 7
समूह में से विसंगति दर्शाने वाला कृदंत/तद्धित शब्द चुनकर लिखिए -
बुढ़ापा, पितृत्व, हंसी, आतिथ्य
Solution :
हंसी: (हंस + ई - कृत प्रत्यय) कृदंत
शब्द संपदा | Q 1.4 | Page 7
समूह में से विसंगति दर्शाने वाला कृदंत/तद्धित शब्द चुनकर लिखिए -
कमाई, अच्छाई, सिलाई, चढ़ाई
Solution :
अच्छाई: (अच्छा + आई - तद्धित प्रत्यय) तद्धित
शब्द संपदा | Q 2.1 | Page 7
निम्नलिखित वाक्य में आए हुए शब्दों के वचन परिवर्तन करके वाक्य फिर से लिखिए
पेड़ पर सुंदर फूल खिला है।
Solution :
पेड़ों पर सुंदर फूल खिले हैं
शब्द संपदा | Q 2.2 | Page 7
निम्नलिखित वाक्य में आए हुए शब्दों के वचन परिवर्तन करके वाक्य फिर से लिखिए
कला के बारे में उनकी भावना उदात्त थी।
Solution :
कलाओं के बारे में उनकी भावना उदात्त थी
शब्द संपदा | Q 2.3 | Page 7
निम्नलिखित वाक्य में आए हुए शब्दों के वचन परिवर्तन करके वाक्य फिर से लिखिए
दीवारों पर टांगे हुए विशाल चित्र देखे।
Solution :
दीवार पर टांगा हुआ विशाल चित्र देखा
शब्द संपदा | Q 2.4 | Page 7
निम्नलिखित वाक्य में आए हुए शब्दों के वचन परिवर्तन करके वाक्य फिर से लिखिए
वे बहुत प्रसन्न हो जाते थे।
Solution :
वह बहुत प्रसन् हो जाती है
शब्द संपदा | Q 2.5 | Page 7
निम्नलिखित वाक्य में आए हुए शब्दों के वचन परिवर्तन करके वाक्य फिर से लिखिए
हमारी-तुम्हारी तरह इनमें जड़े नहीं होती।
Solution :
मेरी तुम्हारी तरह इनमें से जड़ नहीं होती
शब्द संपदा | Q 2.6 | Page 7
निम्नलिखित वाक्य में आए हुए शब्दों के वचन परिवर्तन करके वाक्य फिर से लिखिए
ये आदमी किसी भयानक वन की बात कर रहे थे।
Solution :
यह आदमी किसी भयानक वन की बात कर रहा था
शब्द संपदा | Q 2.7 | Page 7
निम्नलिखित वाक्य में आए हुए शब्दों के वचन परिवर्तन करके वाक्य फिर से लिखिए
वह कोई बनावटी सतह की चीज है।
Solution :
वे कोई बनावटी सतह की चीजें हैं
शब्द संपदा | Q 3 | Page 8
निम्नलिखित शब्दों का लिंग परिवर्तन करके प्रत्येक का वाक्य में प्रयोग कीजिए –
अध्यापक, रानी, नायि का, देवर, पंडित, यक्ष , बुद् धि मान, श्रीमती, दुखियारा, विद्वान्
अनु क्रमांक | परिवर्तित शब्द | वाक्य में प्रयोग |
1 | ||
2 | ||
3 | ||
4 | ||
5 | ||
6 | ||
7 | ||
8 | ||
9 | ||
10 |
Solution :
अनु क्रमांक | परिवर्तित शब्द | वाक्य में प्रयोग |
1 | अध्यापिका | अध्यापिका विद्यार्थियों को पढ़ाती हैं। |
2 | राजा | दशरथ प्रतापी राजा थे। |
3 | नायक | नाटकों में नायक की भूमिका निभानासबके वश की बात नहीं होती। |
4 | देवरानि | उर्मिला सीता जी की देवरानी थीं। |
5 | पंडिताइन | पंडित जी की गृहस्थी का दारोमदार पंडिताइन के कंधों पर था। |
6 | यश | यक्ष की स्त्री को यक्षिणी कहते हैं। |
7 | बृद्धिमान | हमारे देश में हर क्षेत्र में बुद्धिमान महिलाओं की कमी नहीं हैं। |
8 | श्रीमती | श्रीमान शब्द पुरुषों के नाम के पहले आदरसूचक शब्द के रूप में लगाया जाता है। |
9 | दुखियारा | पति की मृत्यु के पश्चात उस दुखियारी के दुख का परिवार नहीं रहा। |
10 | विद्वान | गार्गी एक विदुषी महिला थी। |
अभिव्यक्ति [PAGE 8]
अभिव्यक्ति | Q 1 | Page 8
‘अन्न बैंक की आवश्यकता’, इसपर अपने विचार लिखिए।
Solution :
अन्न बैंक अलाभकर धर्मादाय संस्थाएँ होती हैं। ये जरूरतमंद लोगों तथा गरीबों को सीधे-सीधे भोजन वितरित करती हैं। विश्व की सबसे पहली अन्न बैंक की स्थापना 1967 में अमेरिका में हुई थी, जिसका नाम था सेंट मेरी फूड बैंक।
हमारे देश के बड़े-बड़े शहरों में भी अनेक अन्य बैंक काम कर रहे हैं, जो गरीबों और जरूरतमंद लोगों को भोजन वितरित करते हैं।
शहरों में बड़े-बड़े समारोहों और पार्टियों में बड़े पैमाने पर मेहमानों के लिए खाने-पीने की व्यवस्था की जाती है। ऐसी पार्टियों में अक्सर काफी खाद्य पदार्थ बच जाता है। देर रात तक चलने वाली इन पार्टियों में इस भोजन को मजबूर कचरे के डिब्बों में फेंकना पड़ता है। अन्न बैंकें समारोहों और पार्टियों से संपर्क स्थापित कर बचे हुए खाद्य पदार्थों को एकत्र करती हैं और गरीबों और जरूरतमंद लोगों में उन्हें मुफ्त वितरित करती हैं। इस तरह अन्न बैंक सराहनीय कार्य करती हैं।
'हमारे देश में अनेक ऐसे लोग हैं, जिन्हें भूखे सो जाना पड़ता है। इस स्थिति को देखते हुए अन्न बैंकों के विस्तार की बहुत आवश्यकता है। छोटे-छोटे शहरों तथा बड़े गाँवों तक इसका विस्तार होना चाहिए। अन्न को बरबाद होने से बचाने और भूखे लोगों को भोजन कराने से दूसरे पुण्य का काम क्या हो सकता है!
अन्न बैंकों समय की माँग हैं। अधिक-से-अधिक संस्थाओं को इस दिशा में आगे आने की आवश्यकता है।
अभिव्यक्ति | Q 2 | Page 8
‘शिक्षा से वंचित बालकों की समस्याएँ’, इस विषय पर अपना मत लिखिए।
Solution :
आज के जमाने में जहाँ शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए
हर दिशा में सार्थक प्रयास किए जा रहे हैं, वहीं किसी-न-किसी कारण से कुछ बच्चों को शिक्षा से वंचित रहने की घटनाएँ भी सामने आती हैं।
शिक्षा से वंचित बालकों को जीवन में तरह-तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अशिक्षा के कारण ऐसे बच्चों का मानसिक विकास नहीं हो पाता। इसलिए उनमें उचित और अनुचित का निर्णय लेने की क्षमता नहीं होती। कुछ बच्चे बुरी आदतवाले बच्चों के संपर्क में आकर असामाजिक कार्यों में लिप्त हो सकते हैं। ऐसे बच्चों को सामाजिक अवहेलना सहनी पड़ती है। इससे उनमें हीन भावना पनपती है और उनमें समाज के प्रति विद्रोह की भावना का जन्म होता है।
अशिक्षित बच्चों में आत्मविश्वास की कमी होती है। इसलिए उन्हें अधिकतर दूसरों की सलाह से काम करना पड़ता है। अत: उन्हें धोखेबाजी का शिकार होना पड़ता है।
अशिक्षित होने के कारण इन बच्चों को छोटा-मोटा काम मिल भी जाता है तो उससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं होता। वैसे भी बाल मजदूरी को अपराध माना जाता है। इसलिए उन्हें काम भी नहीं मिलता। अंत में ऐसे बच्चे निराशा के शिकार हो जाते हैं। यह स्थिति अत्यंत भयानक होती है।
इस तरह शिक्षा से वंचित बच्चों के जीवन में समस्याएँ ही
समस्याएँ होती है।
पाठ पर आधारित लघूत्तरी प्रशन [PAGE 8]
पाठ पर आधारित लघूत्तरी प्रशन | Q 1 | Page 8
‘उषा की दीपावली’ लघुकथा द्वारा प्राप्त संदेश लिखिए।
Solution :
'उषा की दीपावली एक शिक्षाप्रद लघुकथा है। इस कथा में कई ऐसे प्रसंग हैं, जिनमें अनेक संदेश छुपे हुए हैं। बालिका उषा के घर में दीपावली के अवसर पर तरह-तरह के पकवान बनाए गए हैं, पर उषा की पसंद बाजारू चीजें हैं। इससे उसके मन में घर में बनी चीजों के प्रति अरुचि और बाजारू चीजों के प्रति आकर्षण के भाव दिखाई देते हैं, जो उचित नहीं हैं।
बालिकाउषा सफाई करने वाले बबन को आटे के बुझे हुए दीप कचरे के डिब्बे में न डालकर उन्हें सेंक कर खाने के लिए अपनी जेब में रखते हुए देखती है, तो उसकी आँखें ताज्जुब से भर उठती हैं। उसे लगता है कि एक ओर ऐसे लोग हैं, जो अनाज के एक-एक कौर को तरस रहे हैं और दूसरी ओर दावतों में भरी-भरी प्लेटें कचरे डिब्बें के हवाले कर दी जाती हैं, जिनसे कितने भूखे लोगों का पेट भर सकता था। इससे अन्न का सदुपयोग करने और उसकी बरबादी न करने का संदेश मिलता है।
बालिका उषा बहन के आटे के दीपक बटोरते हुए देख कर द्रवित हो उठती है और उससे रहा नहीं जाता। वह अपने घर जाती है और पकवानों से भरी थैली लेकर बहन के हाथ में रख देती है। इससे उसके मन में गरीबों के प्रति सहानुभूति और अपने आनंद में गरीबों को शामिल की प्रवृत्ति की झलक मिलती है।
इसके अलावा कहानी में आतिशबाजी पर पैसे बरबाद न करने और वातावरण को प्रदूषित न करने की ओर भी इशारा किया गया है।
पाठ पर आधारित लघूत्तरी प्रशन | Q 2 | Page 8
‘मुस्कुराती चोट’ शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
Solution :
बालक बबलू के घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण उसकी पढ़ाई बीच में ही छूट गई है, पर पढ़ाई की लालसा उसके मन में बनी रहती है। बबलू माँ को सहारा देने के लिए घर घर जा कर रद्दी इकट्ठा करता है और रद्दी पेपर के दुकानदार को बेच देता है। पर उसे अपनी पढ़ाई के लिए स्कूल की पुस्तकें खरीदने के लिए पैसे नहीं बच पाते। एक बार उसके पास रद्दी पेपर के दुकानदार के कुछ पैसे बचे थे। वह एक घर से रद्दी पेपर के साथ-साथ स्कूल की किताबें भी खरीद लाता है। अब उसे विश्वास हो जाता है कि वह अब पढ़ने स्कूल जा सकेगा, क्योंकि उसके
पास किताबें आ गई हैं। वह रद्दी पेपर लेकर दुकानदार के पास बेचने जाता है। दुकानदार पेपर तौल कर एक तरफ रखता है। वह उससे अपने बचे हुए पैसों से सामने से बड़ा पाव और चाय लाने के लिए कहता है। पर बबलू सिर झुकाए खड़ा रहता है और टस-से-मस नहीं होता। दुकानदार बबलू पर झल्लाता है तो वह कहता है, रुपए तो खर्च हो गए। इस पर दुकानदार उसे बुरी तरह डांटता है। पर डांट खाने के बावजूद बबलू मुस्कराता रहता है। वह खुश है कि अब वह स्कूल जा सकेगा। उसके पास भी किताबें है। वह घर की ओर लौट पड़ता है। दुकानदार की फटकार का उस पर कोई असर नहीं होता। वह मुस्कराता रहता है,
साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान [PAGE 8]
साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान | Q 1 | Page 8
जानकारी दीजिए
संतोष श्रीवास्तव जी लिखित साहित्यिक विधाएँ- ________________________
Solution :
(1) संतोष श्रीवास्तव जी ने साहित्य की विभिन्न विधाओं
पर उल्लेखनीय कार्य किया है।
(2) उन्होंने कहानियाँ, उपन्यास, ललित निबंध तथा यात्रा
संस्मरण आदि विधाओं पर अनेक पुस्तकें लिखी हैं।
इसके अलावा आपने कुछ लघुकथाएँ भी लिखी है।
साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान | Q 2 | Page 8
जानकारी दीजिए
अन्य लघुकथाकारों के नाम - ______________________________
Solution :
लघुकथा हिंदी साहित्य में प्रचलित विधा है। हिंदी साहित्य में प्रमुख लघुकथाकार इस प्रकार हैं : डॉ. कमल किशोर गोयनका, डॉ. सतीश दुबे, संतोष सुपेकर और कमल चोपड़ा।
Chapter 2: लघुकथाएँ (उषा की दीपावली, मुस्कु राती चोट)
लेखक परिचय ः संतोष श्रीवास्तव जी का जन्म २३ नवंबर १९5२ को मंडला (मध्य प्रदेश) में हुआ । आपने एम.ए.
(इतिहास, हिंदी), बी.एड तथा पत्रकारिता की उपाधियाँ प्राप्त कीं । नारी जागरूकता और उसकी अस्मिता की पहचान
आपकी लेखनी के विषय हैं। आपकी रचनाओं में एक ओर वर्तमान स्थितियों तथा सामाजिक विसंगतियों का चित्रण
दृष्टिगोचर होता है तो वहीं दूसरी ओर जीवन जीने की छटपटाहट और परिस्थितियों से लड़ने की सार्थक सोच भी है।
प्रमुख कृतियाँ ः ‘बहके बसंत तुम’, ‘बहते ग्लेशियर’ (कहानी संग्रह) ‘दबे पाँव प्यार’, ‘टेम्स की सरगम’, ‘ख्वाबों के पैरहन’
(उपन्यास), ‘फागुन का मन’ (ललित निबंध संग्रह), ‘नीली पत्तियों की शायराना हरारत’ (यात्रा संस्मरण) आदि।
विधा परिचय ः ‘लघुकथा’ हिंदी साहित्य में प्रचलित विधा है। यह गद्य की ऐसी विधा है जो आकार में लघु है पर कथा के
तत्त्वों से परिपूर्ण है। कम शब्दों में जीवन की संवेदना, पीड़ा, आनंद को सघनता तथा गहराई से प्रस्तुत करने की क्षमता इसमें
होती है। किसी परिस्थिति या घटना को लेखक अपनी कल्पना का पुट देकर रचता है। हिंदी साहित्य में डॉ. कमल किशोर
गोयनका, डॉ. सतीश दुबे, संतोष सुपेकर और कमल चोपड़ा आदि प्रमुख लघुकथाकार हैं ।
पाठ परिचय ः ‘उषा की दीपावली’ लघुकथा अनाज की बरबादी पर बालमन की संवेदनशीलता और संस्कारों को जाग्रत
कराती है। एक ओर थालियाँ भर-भरकर जूठन छोड़ने वाले लोग हैं तो दूसरी ओर अनाज के एक-एक कौर को तरसते और
विभिन्न तरीकों से रोटी का जुगाड़ करते लोग हैं। ‘मुस्कुराती चोट’ लघुकथा आर्थिक अभाव के कारण पढ़ाई न कर पाने की
विवशता तथा मजदूरी करके अपनी पढ़ाई जारी रखने की अदम्य इच्छा को दर्शाती है। यह बाल मजदूरी जैसी समस्या को
इंगित करते हुए हौसला देती, आशावाद को बढ़ाती सकारात्मक और संवेदनशील लघुकथा है।
(अ) उषा की दीपा
दादी ने नरक चौदस के दिन आटे के दीप बनाकर
मुख्य द्वार से लेकर हर कमरे की देहरी जगमगा दी थी। घर
पकवान की खुशबू से तरबतर था। गुझिया, पपड़ी, चकली
आदि सब कुछ था। मगर दस वर्षीय उषा को तो चॉकलेट
और बंगाली मिठाइयाँ ही पसंद थीं। दादी कहती हैं कि -
‘‘तेरे लिए तेरी पसंद की मिठाई ही आएगी । यह सब तो
पड़ोसियों, नाते-रिश्तेदारों, घर आए मेहमानों के लिए हैं।’’
आटे के दीपक कंपाउंड की मुंडेर पर जलकर सुबह
तक बुझ गए थे।
उषा जॉगिंग के लिए फ्लैट से नीचे उतरी
तो उसने देखा पूरा कंपाउंड पटाखों के कचरे से भरा हुआ
था । उसने देखा, सफाई करने वाला बबन उन दीपों को
कचरे के डिब्बेमें न डाल अपनी जेब में रख रहा था ।
कृशकाय बबन कंपाउंड में झाडू लगाते हुए हर रोज उसे
सलाम करता था। ‘‘तुमने दीपक जेब में क्यों रख लिए?’’
उषा ने पूछा । ‘‘घर जाकर अच्छे से सेंककर खा लेंगे, अन्न
देवता हैं न।’’ बबन ने खीसे निपोरे।
उषा की आँखें विस्मय से भर उठीं।
तमाम दावतों में
भरी प्लेटों में से जरा-सा टूँगने वाले मेहमान और कचरे के डिब्बे के हवाले प्लेटों का अंबार उसकी आँखों में सैलाब
बनकर उमड़ आया। वह दौड़ती हुई घर गई। जल्दी-जल्दी
पकवानों से थैली भरी और दौड़ती हुई एक सॉंस में सीढ़ियॉं
उतर गई........ अब वह थी और बबन की काँपती
हथेलियों पर पकवान की थैली। उषा की आँखों में हजारों
दीप जल उठे और पकवानों की थैली देख बबन की आँखों
में खुशी के आँसू छलक आए ।
(आ) मुस्कुराती चोट
घर में बाबा बीमार थे । उनकी दवाई, राशन के लिए
पैसे चाहिए थे । माँ चार घर में चौका-बर्तन करके जितना
लाती वह सब बाबा की दवाई और घर में ही लग जाता ।
बबलू की पढ़ाई बीच में ही छूट गई । माँ को सहारा देने के
लिए बबलू ने घर-घर जाकर रद्दी इकट्ठा करना शुरू
कर दिया पर पढ़ाई के प्रति लालसा बनी हुई थी ।
उस दिन
भी तराजू पर रद्दी तौलते हुए बबलू की नजर लगातार
स्कूल की उन किताबों पर थी जिसे रद्दी में बेचा जा रहा
था। वह चाह रहा था कि वे किताबें उसे मिल जाएँ ।
‘‘स्कूल नहीं जाता तू? अजीब हैं तेरे माँ-बाप जो
तुझसे काम कराते हैं।’’ घर की मालकिन ने तराजू के काँटे
पर नजर जमाए कहा। तभी उनकी कॉलेज के लिए तैयार
होती लड़की ने कहा -
‘‘माँ, बाल मजदूरी तो अपराध है
न ?’’
‘‘हाँ बिल्कुल, पर अनपढ़ माँ-बाप समझें तब
न’’,
बबलू को बुरा लगा। उससे अपशब्द सहे नहीं गए ।
‘‘स्कूल बप्पा ने भेजा था मेमसाब पर उनके पास
किताबों के लिए पैसे न थे इसलिए पढ़ाई रुक गई।’’
‘‘माँ, इससे इन किताबों के पैसे मत लो। इसके काम
आएँगी। वह इनसे अपनी पढ़ाई कर लेगा ।’’
‘‘कुछ नहीं होता इससे, हम फ्री में देंगे और यह रद्दी
पेपर के मालिक से किताबों के पैसे ले चाट-पकौड़ी में उड़ा
देगा। इनके बस का नहीं है पढ़ना।’’
बबलू ने रद्दी के पैसे चुकाए और बोरा उठा सीधा घर
पहुँचा। उसने बोरे में से किताबें निकालकर अलग रख दीं ।
फिर बोरा लेकर वह रद्दी पेपर के दुकानदार के पास
पहुँचा। दुकानदार ने रद्दी तौल किनारे रखी।
‘‘पैसे तो बचे होंगे तेरे पास । जा, सामने के ठेले से
वड़ा-पाव और चाय ले आ फिर हिसाब कर।’’ बबलू सिर
झुकाए खड़ा रहा । दुकानदार बार-बार बोलता रहा पर
बबलू टस-से-मस न हुआ । अब दुकानदार से रहा नहीं
गया । वह झल्ला उठा ।
‘‘अरे क्या हुआ? जाता क्यों नहीं?’’
‘‘रुपये खर्च हो गए सेठ ।’’
‘‘क्या! तेरे पैसे थे जो खर्च कर दिए!’’ दुकानदार ने
उसको बुरी तरह से डाँट दिया। डाँट खाने के बावजूद वह
मुस्कुरा रहा था। अब वह स्कूल जा सकेगा। उसके पास भी
किताबें हैं। वह घर की ओर लौट पड़ा ।
पुस्तक लेकर घर से आते हुए रास्तेमें वही सुबहवाली
मालकिन और उनकी लड़की मिल गई । उसके हाथ में
किताबें देख मालकिन के आश्चर्य का ठिकाना न रहा । उसे
सुबह कहे हुए अपने ही अपशब्द याद आ गए और अपने ही
शब्दों पर अपराध बोध हो आया । बबलू की पढ़ाई के प्रति
लालसा को देखकर उसने निश्चय किया कि अब उसकी
आगे की पढ़ाई का खर्चावही उठाएगी । बबलू की खुशी
का ठिकाना न था ।
(‘फैसला’ लघुकथा संग्रह से)