पंद्रह अगस्त स्वाध्याय | पंद्रह अगस्त कविता स्वाध्याय | Pandraha agasta swadhyay

प्रेरणा कविता का स्वाध्याय | Prerna kavita swadhyay

पंद्रह अगस्त स्वाध्याय | पंद्रह अगस्त कविता स्वाध्याय | Pandraha agasta swadhyay

आकलन [PAGE 11]

संकल्पना स्पष्ट कीजिए -

आकलन | Q 1.1 | Page 11
नये स्वर्ग का प्रथम चरण
Solution :
संकल्पना : स्वर्ग का अर्थ है वह स्थान जहाँ बहुत सुख मिले और किसी प्रकार का कष्ट न हो। हमें अभी-अभी स्वतंत्रता मिली है। कवि इस स्वतंत्रता की स्वर्ग से तुलना करते हुए कहते हैं कि यह स्वतंत्रता का आरंभिक काल है। हमें इस स्वतंत्रता को स्वर्ग के समान बनाना है, जिसमें सुख- समृद्धि और लोगों में भाईचारे की भावना हो। इस पंक्ति से कवि ने इसी ओर संकेत किया है।

आकलन | Q 1.2 | Page 11
विषम श्रृंखलाएँ
Solution :
संकल्पना : गुलामी के समय हमारा समाज अमीर-गरीब, ऊँच-नीच तथा जाति-पाँति की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। देश में असमानताएँ व्याप्त थीं। आजादी मिलने के बाद ये बंदिशें टूट गई हैं। कवि ने विषम श्रृंखला शब्द में इस स्थिति की ओर संकेत किया है।

आकलन | Q 1.3 | Page 11
युग बंदिनी हवाएँ
Solution :
संकल्पना : गुलामी के समय देशवासियों पर तरह-तरह की बंदिशें थीं। आज की तरह उस समय अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं थी। लोगों को खुलकर बोलने की आजादी नहीं थी। इसलिए उन्हें तरह-तरह के अन्याय सहन करने के बावजूद इसलिए उन्हें तरह-तरह के अन्याय सहन करने बावजूद उनका विरोध करने का साहस नहीं था। गुलामी के समय लोगों को अपने विचार व्यक्त करने पर जो अंकुश था, कवि ने इन शब्दों में उसी की ओर संकेत किया है।

आकलन | Q 2 | Page 11
लिखिए -
Solution :
शेषिप → समाज की वर्तमान स्थिति → मृतप्राय


काव्य सौंदर्य [PAGE 11]

काव्य सौंदर्य | Q 1 | Page 11
आशय लिखिए :
‘‘ऊँची हुई मशाल हमारी......हमारा घर है।’’
Solution :
कवि कहते हैं कि हमारे देश को परतंत्रता से मुक्ति मिलने पर देशवासियों का सिर गर्व से ऊँचा हो गया है। पर वे इसके साथ ही देशवासियों को संबोधित करते हुए यह भी कहते हैं कि हमें आजादी मिल गई, पर आगे का रास्ता, अर्थात हमारा आने वाला समय कठिनाइयों से भरा हुआ है। शत्रु अर्थात हमें गुलाम बनाने वाले अंग्रेज चले गए हैं, पर उनकी छाया के रूप में विद्यमान छद्म शत्रुओं की यहाँ कमी नहीं है। हमें उनका डर है। उनसे हमें सावधान रहने की जरूरत है। हमारा समाज बुरी तरह शोषण का शिकार हो चुका है। उसकी हालत मरणासन्न जैसी है। हमारा देश आर्थिक रूप से बहुत विपन्न हो चुका है।

काव्य सौंदर्य | Q 2 | Page 11
आशय लिखिए :
‘‘युग बंदिनी हवाएँ... टूट रहीं प्रतिमाएँ।’’
Solution :
कवि कहते हैं कि हमारी अभिव्यक्ति पर युगों-युगों से बंदिशें लगी हुई थीं। सदियों से हम निर्धारित सीमाओं में बँधे हुए थे। सदियों से देशवासियों की दबी कुचली-महत्त्वाकांक्षाएँ संतुष्ट होने के लिए आतुर हैं। स्वतंत्रता मिलने के पहले हम जिन सीमाओं में बंधे हुए थे, वे सीमाएँ अब हमारे लिए प्रश्नचिह्न बन गई हैं। लोग उन्हें तोड़ देना चाहते हैं। वे कहते हैं कि हमारे समाज में प्रचलित प्राचीन मान्यता अब टूट रही हैं।


अभिव्यक्ति [PAGE 11]

अभिव्यक्ति | Q 1 | Page 11
‘देश की रक्षा-मेरा कर्तव्य’, इसपर अपना मत स्पष्ट कीजिए ।
Solution :
जिस देश में हमारा जन्म होता है, जिस देश का अन्नकी जल खा-पीकर हम बड़े होते हैं, उस देश से प्यार करना और उसकी स्वतंत्रता रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है। इसी भावना के कारण हमारे देश थी। के अनेक वीरों और क्रांतिकारियों ने अपने देश के हित और उसकी बावजूद रक्षा के लिए अपने प्राण निछावर कर दिए। 

समय जो देश हमें सम्मान के साथ जीने और सुख-सुविधा के साथ कवि रहने का अधिकार देता है, उसकी हर तरह से हमें रक्षा करनी चाहिए। हमारे देश में तरह-तरह की समस्याएं हैं। समाज-विरोधी तत्त्व देश में अव्यवस्था फैलाने का काम कर रहे हैं। धर्म के नाम पर जगह-जगह 'दंगा-फसाद' होते हैं। आतंकवाद से सारा देश त्रस्त है। मोर्चा-आंदोलनों में राष्ट्र की संपत्ति बरबाद की जाती है।

भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है। इन सबके प्रति हमारा भी कुछ कर्तव्य हैं। जहाँ तक हो सके हमें अपने स्तर पर इन बुराइयों से निपटने की कोशिश करनी चाहिए। लोगों में देश-प्रेम की भावना जगानी चाहिए और लोगों से देशहित के कार्यों में सहयोग देने की अपील करनी चाहिए। प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा, स्वच्छता अभियान आदि में सहयोग देने तथा वृक्षारोपण अभियान के द्वारा पर्यावरण की सुरक्षा का काम करने आदि से भी देश की रक्षा होती है। इन कार्यों में सहयोग देना हर देशवासी का कर्तव्य है।

अभिव्यक्ति | Q 2 | Page 11
‘देश के विकास में युवकों का योगदान’, इस विषय पर अपने विचार लिखिए।
Solution :
किसी भी देश के विकास का दारोमदार उसकी युवा शक्ति पर आधारित होता है। वे देश के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। किसी भी कार्य को करने के लिए शारीरिक अथवा मानसिक श्रम की आवश्यकता होती है। श्रमशक्ति युवाओं के पास प्रचुर मात्रा में होती है। आज हमारे देश में प्रशिक्षित युवकों की बहुतायत है। वे देश ही नहीं विदेश में भी बड़े-बड़े पदों पर काम कर रहे हैं।

 किसी भी देश की प्रगति उसके कृषि, उद्योग, सैन्य, परिवहन, शिक्षा, राजनीति, विज्ञान, संचार व्यवस्था तथा अंतरिक्ष अनुसंधान आदि क्षेत्रों में होने वाले विकास पर निर्भर होती है। इनमें से प्रत्येक क्षेत्र में प्रशिक्षित युवकों की सेवाएँ आवश्यक होती हैं। इनमें से हर क्षेत्र में प्रशिक्षित युवक अपनी उल्लेखनीय सेवाएं दे रहे हैं। अत: किसी भी देश का विकास उस देश के युवकों के बल पर ही संभव हो सकता है। जिस देश की युवा-शक्ति जितनी प्रशिक्षित, संगठित, दलबंदी और द्वेष भावना से मुक्त होगी, वह देश उतना अधिक विकसित होगा।


रसास्वादन [PAGE 11]

रसास्वादन | Q 1 | Page 11
स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ समझते हुए प्रस्तुत गीत का रसास्वादन कीजिए।
Solution :
प्रसिद्ध कवि गिरिजाकुमार माथुर ने पंद्रह अगस्त' गीत में हमारे देश को आजादी मिलने की खुशी और उसके बाद देश के समक्ष आने वाली समस्याओं का सामाजिक चित्रण किया है। स्वतंत्रता का अर्थ है बिना किसी नियंत्रण या बंधन के देश के प्रत्येक व्यक्ति को स्वेच्छानुसार काम करने का अधिकार मिलना और सबको ऊँच-नीच, जाति-पाति से रहित समानता का दर्जा प्राप्त होना। 

प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचार खुलकर व्यक्त करने की आजादी मिलना तथा समाज का शोषण मुक्त होना। इसके साथ ही देश के लोगों का कर्तव्य होता है, देश और देश की आजादी की रक्षा करना। कवि देश को आजादी मिलने से खुश हैं, पर इसके साथ ही वे देश के रखवालों और कर्णधारों को सावधान रहने के लिए कहते हैं कि वे देश की आजादी पर आँच न आने दें। क्योंकि शत्रु ने हमें आजादी तो दे दी है, पर 'शत्रु की छाया' अर्थात देश में छिपे हुए शत्रुओं से देश को डर है।

इसी तरह कवि कहना चाहते हैं कि हमें आजादी मिली जकर है, पर यह उसका आरंभिक समय है - 'प्रथम चरण है नए स्वर्ग का' हमें अभी बहुत कुछ करना शेष है क्योंकि अभी नहीं मिट पाई दुख की विगत साँवली (काली) की (छाया)। स्वतंत्रता का अर्थ अपने अधिकारों के साथ-साथ अपने कर्तव्यों को समझना है। स्वतंत्रता का अर्थ स्वच्छंदता नहीं है। अपने अधिकारों और कर्तव्यों की सीमा में रहकर हमें देश के हित को ध्यान में रखकर व्यवहार करना ही स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ है। 

कविता में कवि ने स्थान-स्थान पर अलंकारों का सुंदर प्रयोग किया है। अचल दीपक समान रहना' पंक्ति में कवि ने उपमा अलंकार का प्रयोग कर पहरेदारों को दीपक की तरह अचल रहने का आवाहन किया है। इसी तरह 'अभी शेष है पूरी होना जीवन मुक्ता डोर' पंक्ति में रूपक अलंकार का प्रयोग किया गया है तथा जन गंगा में ज्वार' पंक्ति में भी रूपक अलंकार का सुंदर प्रयोग किया गया है।
गीत विधा में लिखित इस कविता में परंपरागत भावबोध तथा शिल्प प्रस्तुत किया गया है।


साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान [PAGE 12]

साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान | Q 1 | Page 12
जानकारी दीजिए :
गिरिजाकुमार माथुर जी केकाव्यसंग्रह -
Solution :
गिरिजाकुमार माथुर जी के निम्नलिखित है :
(1) मंजीर
(2) नाश और निर्माण
(3) धूप के धान
(4) शिलापंख चमकीले
(5) जो बांध नहीं सका काव्य-संग्रह
(6) साक्षी रहे वर्तमान
(7) मैं वक्त के हूँ सामनेगिरिजाकुमार माथुर जी के निम्नलिखित है :
(1) मंजीर
(2) नाश और निर्माण
(3) धूप के धान
(4) शिलापंख चमकीले
(5) जो बांध नहीं सका काव्य-संग्रह
(6) साक्षी रहे वर्तमान
(7) मैं वक्त के हूँ सामने

साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान | Q 2 | Page 12
जानकारी दीजिए :
‘तार सप्तक’ केदो कवियों के नाम -
Solution :
'तार-सप्तक' के दो कवियों के नाम इस प्रकार हैं।
(1) अज्ञेय
(2) भारतभूषण अग्रवाल।

Balbharati solutions for Hindi - Yuvakbharati 11th Standard HSC Maharashtra State Board chapter 3 - पंद्रह अगस्त [Latest edition]

कवि परिचय ः गिरिजाकुमार माथुर जी का जन्म २२ अगस्त १९१९ को अशोक नगर (मध्य प्रदेश) में हुआ। आपकी आरंभिक शिक्षा झाँसी में तथा स्नातकोत्तर शिक्षा लखनऊ में हुई। आपने आॅल इंडिया रेडियो, दिल्ली तथा आकाशवाणी लखनऊ में सेवा प्रदान की। संयुक्त राष्ट्र संघ, न्यूयार्क में सूचनाधिकारी का पदभार भी सँभाला। आपके काव्य में राष्ट्रीय चेतना के स्वर मुखरित होने के कारण प्रत्येक भारतीय के मन में जोश भर देते हैं। माथुर जी की मृत्यु १९९4 में हुई । 

प्रमुख कृतियाँ ः ‘मंजीर’,‘नाशऔरनिर्माण’,‘धूपकेधान’,‘शिलापंख चमकीले’,‘जो बँध नहीं सका’, ‘साक्षी रहे वर्तमान’, ‘मैं वक्त के हूँ सामने’ (काव्य संग्रह) आदि। काव्य प्रकार ः यह ‘गीत’ विधा है जिसमें एक मुखड़ा और दो या तीन अंतरे होते हैं। इसमें परंपरागत भावबोध तथा शिल्प प्रस्तुत किया जाता है । कवि अपने कथ्य की अभिव्यक्ति हेतु प्रतीकों, बिंबों तथा उपमानों को लोक जीवन से लेकर उनका प्रयोग करता है। ‘तार सप्तक’ के कवियों में अज्ञेय, मुक्तिबोध, प्रभाकर माचवे, गिरिजाकुमार माथुर, नेमिचंद्र जैन, भारतभूषण अग्रवाल, रामविलास शर्मा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। 

काव्य परिचय ः प्रस्तुत गीत में कवि ने स्वतंत्रता के उत्साह को अभिव्यक्त किया है। स्वतंत्रता के पश्चात विदेशी शासकों से मुक्ति का उल्लास देश में चारों ओर छलक रहा है। इस नवउल्लास के साथ-साथ कवि देशवासियों तथा सैनिकों को सजग और जागरूक रहने का आवाहन कर रहा है। समस्त भारतवासियों का लक्ष्य यही होना चाहिए कि भारत की स्वतंत्रता पर अब कोई आँच न आने पाए क्योंकि दुखों की काली छाया अभी पूर्ण रूप से हटी नहीं है। जब शोषित, पीड़ित और मृतप्राय समाज का पुनरुत्थान होगा तभी सही मायने में भारत आजाद कहलाएगा। 

पंद्रह अगस्त स्वाध्याय | पंद्रह अगस्त कविता स्वाध्याय | Pandraha agasta swadhyay 

आज जीत की रात
पहरुए, सावधान रहना !
खुले देश के द्वार
अचल दीपक समान रहना ।

प्रथम चरण है नये स्वर्ग का
है मंजिल का छोर,
इस जनमंथन से उठ आई
पहली रतन हिलोर,
अभी शेष है पूरी होना
जीवन मुक्ता डोर,
क्योंकि नहीं मिट पाई दुख की
विगत साँवली कोर,
ले युग की पतवार
बने अंबुधि महान रहना,
पहरुए, सावधान रहना !

विषम श्रृंखलाएँ टूटी हैं
खुलीं समस्त दिशाएँ,
आज प्रभंजन बनकर चलतीं
युग बंदिनी हवाएँ,
प्रश्नचिह्न बन खड़ी हो गईं
ये सिमटी सीमाएँ,
आज पुराने सिंहासन की
टूट रहीं प्रतिमाएँ,
उठता है तूफान
इंदु, तुम दीप्तिमान रहना,
पहरुए, सावधान रहना !

ऊँची हुई मशाल हमारी
आगे कठिन डगर है,
शत्रु हट गया लेकिन उसकी
छायाओं का डर है,
शोषण से मृत है समाज
कमजोर हमारा घर है,
किंतु आ रही नई जिंदगी
यह विश्वास अमर है,
जनगंगा में ज्वार
लहर तुम प्रवहमान रहना,
पहरुए, सावधान रहना!

(‘धूप केधान’ काव्य संग्रह से)

पंद्रह अगस्त स्वाध्याय | पंद्रह अगस्त कविता 

  • पहरुए = पहरेदार, 
  • प्रहरी प्रभंजन = आँधी, तूफान
  • पतवार = नाव खेने का साधन 
  • इंदु = चंद्रमा
  • अंबुधि = सागर, समुद्र 
  • दीप्तिमान = प्रकाशमान, कांतिमान, प्रभायुक

Maharashtra Board Class 11 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 पंद्रह अगस्त

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