इनसान कविता 8th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]

इनसान कविता 8th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]

 तोड़ा फूल, किसी ने कहा-
फूल की तरह जियो औ’ मरो
सदा इनसान । 
भूलकर वसुधा का श्रृंगार,
सेज पर सोया जब संसार,
दीप कुछ कहे बिना ही जला 
रात भर तम पी-पीकर पला 
दीप को देख, भर गए नयन
उसी क्षण
बुझा दिया जब दीप, किसी ने कहा
दीप की तरह जलो, तम तुम हरो
सदा इनसान ।
रात से कहने मन की बात,
 चंद्रमा जागा सारी रात,
भूमि की सूनी डगर निहार,
डाल आँसू चुपके दो-चार
डूबने लगे नखत बेहाल
उसी क्षण 
छिपा गगन में चाँद, किसी ने कहा-
चाँद की तरह, जलन तुम हरो
सदा इनसान ।
साँस-सी दुर्बल लहरें
पवन ने लिखा जलद को लेख,
पपीहा की प्यारी आवाज,
 हिलाने लगी इंद्र का राज,
धरा का कंठ सींचने हेतु
उसी क्षण
बरसे झुक-झुक मेघ, किसी ने कहा-
मेघ की तरह प्यास तुम हरो 
सदा इनसान ।

इनसान कविता 8th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]

इनसान कविता 8th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]



जन्म ः १९२६, फतेहपुर (उ.प्र.)

परिचय ः अवस्‍थी जी ने आकाशवाणी  में प्रोड्‌यूसर के रूप में कई वर्षों तक  काम किया। आप लोकप्रिय मधुर     गीतकार थे । आपको उत्‍तर प्रदेश  सरकार ने पुरस्‍कृत किया है 

प्रमुख कृतियाँ ः ‘सुमन-सौरभ’ ‘आग  और पराग’, ‘राख और शहनाई’, ‘बंद  न करना द्‌वार’ आदि  

पद्‌य संबंधी - प्रस्तुत नवगीत में रमानाथ  अवस्थी जी का कहना है कि प्रत्येक  इनसान को फूल की तरह अपने  अच्छे कर्मों की खुशबू समाज में  फैलानी चाहिए । आपने सभी को  दीपक की तरह अज्ञान के अंधकार  को दूर करने, चंद्रमा की तरह दूसरों  के दुख-ताप को हरने, बादलों की  तरह प्यासों की प्यास बुझाने के  लिए प्रेरित किया है । 

पद्‌य संबंधी - ‘मानवता मनुष्‍य का मौलिक  अलंकार है,’ स्‍पष्‍ट करो । कल्‍पना पल्‍लव

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