मयूर पंख कविता 8th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
(१)
भेजेमनभावन केऊधव केआवन की,
सुधि ब्रज गाँवनि मैंपावन जबैलगीं ।
कहै‘रतनाकर’ गुवालिनि की झौरि-झौरि,
दौरि-दौरि नंद पौरि आवन तबैलगीं ।
उझकि-उझकि पद कंजनि केपंजनि पै,
पेखि-पेखि पाती छाती छोहनि छबैलगीं ।
हमकौं लिख्यो हैकहा, हमकौं लिख्यो हैकहा,
हमकौं लिख्यो हैकहा, कहन सबैलगीं ।।
(२)
कान्ह दूत कैधौं ब्रह्म दूत ह्वैपधारेआप,
धारेप्रन फेरन को मति ब्रजबारी की ।
कहै‘रतनाकर’ पै प्रीति-रीति जानत ना,
ठानत अनीति आनि नीति लैअनारी की ।
मान्यो हम, कान्ह ब्रह्म एक ही कह्यो जो तुम,
तौहूँ हमेंभावति ना भावना अन्यारी की ।
जैहैबनि-बिगरि न बारिधिता बारिधि की,
बूँदता बिलैहैबूँद बिबस बिचारी की ।।
(३)
धाईं जित-तित तैं बिदाई हेत ऊधव की,
गोपी भरीं आरति सँम्हारति न साँसुरी ।
कहै‘रतनाकर’ मयूर-पच्छ कोऊ लिए,
कोऊ गंुज अंजली उमाहै प्रेम आँसुरी ।।
भाव-भरी कोउ लिए रुचिर सजाव दही,
कोऊ मही मंजुदाबि दलकति पाँसुरी ।
पीत पट नंद जसुमति नवनीत नयौ,
मयूर पंख कविता 8th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
जन्म ः १8६६, काशी (उ.प्र.)
मृत्यु ः १९३२
परिचय ः रत्नाकर जी केवल कवि ही नहीं, वरन वेअनेक भाषाओं के ज्ञाता तथा विद्वान भी थे। आपकी ब्रज भाषा की रचनाओं मेंसुंदर प्रयोगों एवं ठेठ शब्दावली का प्रभाव रहाहै। आपस्वच्छ कल्पना केकवि हैं। आपकेद्वारा प्रस्तुत दृश्यावली सदैव अनुभूति सेसनी और संवेदना को जागृत करनेवाली है।
प्रमुख कृतियाँ ः ‘हिंडोला’, ‘उद्धव शतक’, ‘श्रृंगार लहरी’, ‘गंगावतरण’, ‘गंगा लहरी’ आदि ।
यहाँप्रसंग उस समय का है, जब श्रीकृष्ण केकहनेपरउद्धव जी गोकुल मेंआए हुए हैं। प्रस्तुत पदों मेंगोपियों कीउत्सुकता,उद्धव जी का ज्ञानबोध, गोपियों केउत्तर का बड़ा ही मनोरम वर्णन किया गया है । अंतिम पद में गोकुलवासी श्रीकृष्ण के लिए अलग-अलग भेंट भेजते नजर आतेहैं। इन पदों में ब्रज भाषा का सौंदर्य दर्शनीय है।
- दौरि-दौरि = दौड़-दौड़कर
- झौरि-झौरि = झुंड-के-झुंड
- पेखि-पेखि = देख-देखकर
- ठानत = निश्चय
- बारिधि = समुद्र
- रुचिर = प्रिय
- गुवालिन = ग्वालिन
मयूर पंख कविता 8th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
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