प्रभात कविता 8th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
फूटा प्रभात, फूटा विहान,
बह चले रश्मि के प्राण, विहग के गान, मधुर निर्झर के स्वर
झर-झर, झर-झर ।
प्राची का यह अरुणाभ क्षितिज,
मानो अंबर की सरसी में
फूला कोई रक्तिम गुलाब, रक्तिम सरसिज ।
धीर-धीरे,
लो, फैल चली आलोक रेख
धुल गया तिमिर, बह गई निशा;
चहुँ ओर देख,
धुल रही विभा, विमलाभ कांति ।
अब दिशा-दिशा
सस्मित, विस्मित,
खुल गए द्वार, हँस रही उषा ।
खुल गए द्वार, दृग, खुले कंठ,
खुल गए मुकुल ।
शतदल के शीतल कोषों से निकला मधुकर गंुजार लिए
खुल गए बंध, छवि के बंधन ।
जागो जगती के सुप्त बाल !
पलकों की पंखुरियाँ खोलो, मधुकर के अलस बंध दृग भर
समेट तो लो यह श्री, यह कांति
बही आती दिगंत से,
यह छवि की सरिता अमंद
झर-झर, झर-झर ।
फूटा प्रभात, फूटा विहान, पद्य संबंधी
छूटे दिनकर के शर ज्यों छवि के बह्नि बाण
केशर फूलों के प्रखर बाण
आलाेकित जिनसे धरा
प्रस्फुटित पुष्पों के प्रज्वलित दीप,
लौ भरे सीप ।
फूटीं किरणें ज्यों बह्नि बाण, ज्यों ज्योति-शल्य,
तरुवन में जिनसे लगी आग ।
लहरों के गीले गाल, चमकते ज्यों प्रवाल,
प्रभात कविता 8th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
जन्म ः १९१९, मथुरा (उ.प्र.)
मृत्यु ः १९७5
परिचय ः भारतभूषण अग्रवाल छायावादोत्तर हिंदी कविता के सशक्त हस्ताक्षर हैं । आप अज्ञेय द्वारा संपादित ‘तारसप्तक’ के महत्त्वपूर्ण कवि हैं । आपने आकाशवाणी तथा अनेक साहित्यिक संस्थाओं में सेवा की है । आप साहित्य अकादमी के उपसचिव थे ।
प्रमुख कृतियाँ ः ‘छवि के बंधन’, ‘जागते रहो’, ‘ओ अप्रस्तुत मन’, ‘अनुपस्थित लोग’, ‘फूटा प्रभात’, ‘समाधि लेख’ आदि ।
पद्य संबंधी - प्रस्तुत नई कविता में भारतभूषण अग्रवाल ने सूर्योदय एवं प्रातःकाल का बड़ा ही मनोरम दृश्य उपस्थित किया है । दिनकर का आगमन होते ही फूल-पौधे, प्राणी-पक्षी वातावरण में होने वाले परिवर्तनों का कवि ने बहुत ही मनोरम वर्णन किया है । यहाँ रचना की चित्रात्मक शैली दर्शनीय है ।
- विहान = भोर, प्रातःकाल
- अरुणाभ = लाल आभा से युक्त
- क्षितिज = वह स्थान जहाँ पृथ्वी और आकाश
- मिलते दिखाई देते हैं
- रक्तिम = लाल रंग का
- सरसिज = कमल
- विमलाभ = निर्मल
- मुकुल = कली
- अलस = आलसी, सुस्त
- दिगंत = दिशा का अंत, क्षितिज
- शल्य = वेदना
- प्रवाल = नया एवं मुलायम पत्ता, कांेपल
प्रभात कविता 8th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
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हिंदी कविता
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