. धूप की उष्मित छुवन से कविता 8th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
एक ः
रास्ते में रोशनी तेरी मुसकान हो गई,
पहचान थी न तुझसे यों पहचान हो गई ।
कितना मैं चला, चलता रहा, राह कठिन थी,
देखा जो तुझे राह वो आसान हो गई ।
अब तक तो उदासीन-सी थी मुझसे ये दुनिया,
जाने क्या हुआ आज कदरदान हो गई ।
आई थी खुशी घर मेरे रहने के वास्ते,
दो दिन के लिए हाय वो मेहमान हो गई ।
पल भर को नहीं चैन से सो पाया आदमी,
सपनों से आज नींद परेशान हो गई ।
रोती रही अकेली पड़ी रागिनी उसकी,
लोगों के स्वर मिले तो वो सहगान हो गई ।
ः दो ः
पेड़ हैं कुछ खुश समझकर आ रहा ॠतुराज है,
भर रही पंखों में चिड़ियों के नई परवाज है ।
हो रही महसूस है खुशबू हवाओं में मधुर,
दिख रहा कुछ आज फूलांे में नया अंदाज है ।
धूप की उष्मित छुवन से फूल-सी खिलती त्वचा,
बज रहा जैसे दिशाओं बीच कोई साज है ।
खुल गई सिमटी हुई फसलों के फूलों की हँसी,
उग रही कंठांे में गाँवों की नई आवाज है ।
भूल जाओ कल तलक के वक्त की नाराजगी,
धूप की उष्मित छुवन से कविता 8th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
जन्म ः १९२4, गोरखपुर (उ.प्र.)
परिचय ः प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. रामदरश मिश्र जितने समर्थ कवि हैं उतने ही श्रेष्ठ उपन्यासकार और कहानीकार भी हैं । नई कविता, छोटी कविता, लंबी कविता के साथ-साथ गजल में भी आपने अपनी सार्थक उपस्थिति रेखांकित की है । आपके सारे सर्जनात्मक लेखन में गाँव और शहर की जिंदगी के कठोर यथार्थ की गहरी पहचान दिखाई देती है ।
प्रमुख कृतियाँ ः ‘पथ के गीत’, ‘पक गई है धूप’, ‘कंधे पर सूरज’, ‘अपने लोग’, ‘सहचर है समय’, ‘एक अंतयात्रा’, ‘हिंदी कविताः अाधुनिक आयाम’ आदि ।
पद्य संबंधी - यहाँ रामदरश मिश्र की दो गजलें दी गई हैं । प्रथम गजल के शेरों में अापने पहचान के साथी के मिलने से राह के आसान होने, अस्थायी खुशी, जीवन की बेचैनी की बात की है । दूसरी गजल में वसंत के आगमन से प्रकृति, प्राणियों में होने वाले परिवर्तन एवं प्रसन्न वातावरण की बात है ।
- दहलना = डर से काँपना, थर्राना
- आँत = अँतड़ी
- अदायगी = भुगतान, चुकता करना
- धरातल = पृथ्वी की सतह, पृथ्वी
- आमदरफ्त = आना-जाना
- सतह = तल, वस्तु का ऊपरी भाग या विस्तार
- निरीह = उदासीन, विरक्त, बेचारा, मासूम
- मुहावरा
- राहत की साँस लेना = छुटकारा पाना
धूप की उष्मित छुवन से कविता 8th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
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हिंदी कविता
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