अद्भुत वीर अद्भुत वीर 9th हिंदी

अद्भुत वीर अद्भुत वीर 9th हिंदी

‘जय हो’ जग में जहाँभी, नमन पुनीत अनल को,
जिस नर मेंभी बसे, हमारा नमन तेज को, बल को ।
किसी वृंत पर, खिले विपिन में, पर नमस्‍य हैफूल,
सुधी खोजतेनहीं गुणों का आदि, शक्‍ति का मूल ।

ऊँच-नीच का भेद न माने, वही श्रेष्‍ठ ज्ञानी है,
दया-धर्म जिसमेंहो, सबसेवही पूज्‍य प्राणी है।
क्षत्रिय वही, ‍भरी हो जिसमें निर्भयता की आग,
सबसे श्रेष्‍ठ वही ब्राह्मण है, हो जिसमेंतप-त्‍याग ।

तेजस्‍वी सम्‍मान खोजते, नहीं गोत्र बतलाके,
पातेहै जग से प्रशस्‍ति अपना करतब दिखलाके।
हीन मूल की ओर देख जग गलत कहेया ठीक,
वीर खींचकर ही रहतेहैंइतिहासों मेंलीक ।

जिसके पिता सूर्य थे, माता कंुती सती कुमारी,
उसका पलना हुई धार पर बहती हुई पिटारी ।
सूत वंश मेंपला, चखा भी नहीं जननि का क्षीर,
निकला कर्ण सभी युवकों मेंतब भी अदुभत वीर ।

तन सेसमरशूर, मन सेभावुक, स्‍वभाव सेदानी,
जाति-गोत्र का नहीं, शील का, पौरुष का अभिमानी ।
ज्ञान-ध्यान, शस्‍त्रास्‍त्र का कर सम्‍यक अभ्‍यास,
अपनेगुण का किया कर्ण नेआप स्‍वयंसुविकास ।

अलग नगर केकोलाहल से, अलग पुरी-पुरजन से,
कठिन साधना मेंउद्योगी लगा हुआ तन-मन से।
निज समाधि में निरत, सदा निज कर्मठता मंे चूर,
वन्य कुसुम-सा खिला कर्ण जग की आँखों सेदूर ।
नहीं फूलतेकुसुम मात्र राजाओं केउपवन में,
अमित बार खिलतेवेपुर सेदूर कुंज कानन में।
समझेकौन रहस्‍य ? प्रकृति का बड़ा अनोखा हाल
गुदड़ी मेंरखती चुन-चुन कर बड़ेकीमती लाल ।

जलद-पटल में छिपा, किंतुरवि कबतक रह सकता है?
युग की अवहेलना शूरमा कबतक सह सकता है?
पाकर समय एक दिन आखिर उठी जवानी जाग,
फूट पड़ी सबकेसमक्ष पौरुष की पहली आग ।
रंग-भूमि मेंअर्जुन था जब समाँअनोखा बाँधे,
बढ़ा भीड़ भीतर सेसहसा कर्ण शरासन साधे।
कहता हुआ, ‘‘तालियों सेक्‍या रहा गर्व मेंफूल ?
अर्जुन ! तेरा सुयश अभी क्षण मेंहोता हैधूल ।
(‘रश्मिरथी’ से)

अद्भुत वीर अद्भुत वीर 9th हिंदी

जन्म ः २३ सितंबर १९०8 सिमरिया, मंुगेर(बिहार) 
मृत्‍यु ः २4 अप्रैल १९७4 चेन्नई(तमिळनाडु)

परिचय ः रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी अपने युग के प्रखरतम कवि केसाथ-साथ सफल और प्रभावशाली गद्य लेखक भी थे । आपने निबंध केअतिरिक्‍त डायरी, संस्‍मरण, दर्शन व ऐतिहासिक तथ्‍यों के विवेचन भी लिखेहैं। 

प्रमुख कृतियाँ ः कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, उर्वशी (खंड काव्य) टेसू राजा अड़े-अड़े (बालसाहित्‍य) परशुराम की प्रतीक्षा, रेणुका, नील कुसुम आदि (काव्य संग्रह), संस्‍कृति के चार अध्याय, चेतना की शिखा, रेती केफूल आदि (निबंध), वट पीपल (संस्‍मरण), देश-विदेश, मेरी यात्राएँ(यात्रा  वर्णन), आत्‍मा की अाँखें(अनुवाद) ।

खंडकाव्य ः हिंदी साहित्‍य मेंयह प्रबंध काव्य का रूप है। मानव जीवन की किसी विशेष घटना को लेकर लिखा गया काव्य  ‘खंडकाव्य’ होता है। इसमेंकेवल प्रमुख कथा होती है। प्रासंगिक कथाओं को इसमें स्‍थान नहीं मिल पाता है। 

कम सेकम आठ सर्गों के प्रबंध काव्य को खंडकाव्य माना जाता है।  प्रस्‍तुत काव्यांश ‘रश्मिरथी’ खंडकाव्य से लिया गया है। इसमेंकवि नेकर्ण केबहाने तेज कोनमन, समाज मेंसमानता, कुलीनता छोड़कर योग्‍यता, कर्मठता को प्रधानता देने की प्रेणा दी है।

शब्द संसार
  1. पुनीत (पुं.सं) = पवित्र
  2. अनल (पुं.सं) = अग्‍नि
  3. करतब (पुं.सं) =कर्तव्य 
  4. वृंत (पु.सं.) = वह पतला डंठल जिस पर फूल लगा रहता है।
  5. विपिन (पुं.सं.) = जंगल
  6. क्षीर (पुं.सं.) = दूध
  7. शरासन (पुं.सं.) = धनुष
  8. शूरमा (पुं.सं.) =वीर

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