मधुर-मधुर मेरे दीपक जल ! कविता 9th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
मधुर-मधुर मेरेदीपक जल !
युग-युग प्रतिदिन-प्रतिक्षण- प्रतिपल,
प्रियतम का पथ आलोकित कर !
सौरभ फैला विपुल धूप बन,
मृदुल मोम-सा घुल रेमृदुतन;
दे प्रकाश का सिंधुअपरिमित,
तेरे जीवन का अणुगल-गल !
सारे शीतल-कोमल-नूतन,
मॉंग रहेतुझसेज्वाला कण
विश्व शलभ सिर धुन कहता ‘मैं
हाय न जल पाया तुझ में मिल’ !
सिहर-सिहर मेरेदीपक जल !
जलतेनभ मंेदेख असंख्यक,
स्नेहहीन नित कितनेदीपक;
जलमय सागर का उर जलता,
विद्युत्ले घिरता हैबादल !
विहँस-विहँस मेरेदीपक जल !
द्रुम केअंग हरित कोमलतम,
ज्वाला को करतेहृदयंगम;
वसुधा के जड़ अंतर मेंभी,
बंदी हैतापों की हलचल !
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल ! कविता 9th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
परिचय
जन्म ः २६ मार्च१९०७, फर्रुखाबाद (उ.प्र.)
मृत्यु ः ११ सितंबर १९8७ इलाहाबाद (उ.प्र.)
परिचय ः महादेवी जी हिंदी साहित्य मेंछायावादीयुग के चार स्तंभों मेंएक प्रतिभावान, सशक्त कवयित्री हैं। आधुनिक गीत काव्य मेंआप का स्थान सर्वोपरि है। आपकी कविताओं मेंपीड़ा और भावों की तीव्रता, भाषा मेंरहस्यवाद गहराई से दिखाई पड़तेहैं।
आपकेद्वारा लिखित संस्मरण भारतीय जीवन के चित्र हैं। प्रमुख कृतियाँ ः नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत, दीपशिखा, सप्तपर्णा, प्रथम आयाम आदि (कविता संग्रह) अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ(रेखाचित्र) पथ केसाथी, मेरा परिवार (संस्मरण), ठाकुर जी भोलेहैं, आज खरीदंेगेहम ज्वाला (बाल कविता संकलन) ।
कविता ः रस की अनुभूति करानेवाली, सुंदरअर्थ प्रकट करनेवाली, लोकोत्तर आनंद देनेवाली रचना कविता होती है। इसमेंदृश्य कीअनुभूतियों को साकार किया जाता है।प्रस्तुत कविता मेंमहादेवी जी नेदीपक केविविध प्रकार से जलने की प्रक्रिया केमाध्यम सेमानव को लोगों केपथ प्रकाशित करनेकी प्रेणा दी है।
- आलोकित (वि.) = चमकता हुआ
- अपरिमित (वि.) = असीम
- अणु(पुं.सं.) = सूक्ष्म
- शलभ (पुं.सं.) = पतंग, फतिंगा
- द्रुम (पुं.सं.) = वृक्ष
- अनादि (वि.) = जिसका आदि न ह
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल ! कविता 9th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
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