नदी और दरिया कविता 9th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
इस नदी की धार सेठंडी हवा आती तो है,
नाव जर्जर ही सही, लहरों सेटकराती तो है।
एक चिंगारी कहीं सेढूँढ़ लाओ दोस्तो,
इस दियेमेंतेल सेभीगी हुई बाती तो है।
एक खंडहर केहृदय-सी एक जंगली फूल-सी,
आदमी की पीर गूँगी ही सही गाती तो है।
एक चादर साँझ नेसारेनगर पर डाल दी,
यह अँधेरेकी सड़क उस भोर तक जाती तो है।
निर्वसन मैदान मेंलेटी हुई है जो नदी,
पत्थरों सेओट में जा-जा केबतियाती तो है।
दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों केनाम पर,
और कुछ हो या न हो आकाश-सी छाती तो है।
आज सड़कों पर लिखेहैंसैकड़ों नारेन देख,
पर अँधेरेदेख तूआकाश केतारेन देख ।
एक दरिया हैयहाँपर दूर तक फैला हुआ,
आज अपनेबाजुओं को देख पतवारेंन देख ।
अब यकीनन ठोस हैधरती हकीकत की तरह,
यह हकीकत देख लेकिन खौफ केमारेन देख ।
वेसहारेभी नहीं अब जंग लड़नी हैतुझे,
कट चुके जो हाथ उन हाथों मेंतलवारेंन देख ।
येधुंधलका हैनजर का तूमहज मायूस है,
रोजनों काेदेख दीवारों मेंदीवारेंन देख ।
राख कितनी राख है, चारों तरफ बिखरी हुई,
नदी और दरिया कविता 9th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
जन्म ः १ सितंबर १९३३ राजपुर, विजनौर (उ.प्र.)
मृत्यु ः ३० दिसंबर १९७5 भोपाल(म.प्र.)
परिचय ः दुष्यंतकुमार जी हिंदी साहित्य केलोकप्रिय, कालजयी हस्ताक्षर हैं।गजल विधा को हिंदी मेंलोकप्रिय बनाने मेंआपका बहुत बड़ा योगदानहै। आपने कविता, गीत, गजल, काव्य नाटक, उपन्यास आदि सभी विधाओं मेंअपनी लेखनी चलाई है। आपकी गजलों ने आपको लोकप्रियता की बुलंदी पर
पहुँचा दिया है।
प्रमुख कृतियाँ ः एक कंठ विषपायी (काव्य नाटक) और मसीहा मर गया (नाटक) छोटे-छोटेसवाल, आँगन में एक वृक्ष, दुहरी जिंदगी आदि (उपन्यास), सायेमेंधूप (गजल संग्रह) सूर्य का स्वागत, आवाजों केघेरे, जलते हुए वन का वसंत (कविता संग्रह) ।
गजल ः गजल एक ही बहर और वजन केअनुसार लिखेगए शेरों का समूह है। इसकेपहले शेर को मतला और अंतिम शेर जिसमें शायर का नाम हो उस को मकता कहतेहैं। इन गजलों मेंदुष्यंत कुमार जी ने साहस, अधिकारों के प्रति सजग रहने, स्वाभिमान बनाए रखने, खुद पर भरोसा करनेके लिए प्रेरित किया है।
नदी और दरिया कविता 9th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
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