वसंत-वर्षा कविता 9th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
कूलन मेंकेलि मेंकछारन मेंकुंजन में
क्यारिन मेंकलिन मेंकलीन किलकंत है।
कहेपद्माकर परागन मेंपौनहू में
पानन मेंपीक मेंपलासन पगंत है।
द्वार में दिसान मेंदुनी मेंदेस-देसन में
देखौ दीप-दीपन मेंदीपत दिगंत है।
बीथिन मेंब्रज मेंनवेलिन मेंबेलिन में
बनन मेंबागन मेंबगरयो बसंत है।।१।।
मल्लिक न मंजुल मलिंद मतवारे मिले,
मंद-मंद मारुत मुहीम मनसा की है।
कहै‘पद्माकर’ त्यों नदन नदीन नित,
नागर नबेलिन की नजर नसा की है।
दौरत दरेर देत दादुर सुदुंदैदीह,
दामिनी दमकंत दिसान मेंदसा की है।
बद्दलनि बंुदनि बिलोकी बगुलात बाग,
वसंत-वर्षा कविता 9th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
जन्म ः १७5३ सागर (म.प्र.)
मृत्यु ः १8३३
परिचय ः पद्माकर भट्ट रीतिकालीन कवियों में श्रेष्ठ स्थान रखतेहैं। आपने कल्पना के माध्यम से शौर्य, श्रृंगार, भक्ति, प्रेम, मेलों-उत्सवों, युद्धों और प्राकृतिक सौंदर्य का मार्मिक चित्रण किया है। आपकी रचनाओं मेंअलंकार सहज ही प्रचुरता से दिखाई देतेहैं। संस्कृत, प्राकृत और ब्रजभाषा पर आपका प्रभुत्व था । दोहा, सवैया और कवित्त पर आपका असाधारण अधिकार था ।
प्रमुख कृतियाँ ः हिम्मत बहादुर विरुदावली, जगत-विनोद, यमुना लहरी, गंगा लहरी आदि (काव्य ग्रं थ) रामरसायन, हितोपदेश (अनुवाद) ।
सवैया ः यह एक वार्णिक छंद है। इसमें चार चरण अथ्ावा पद होतेहैं। वार्णिक वृत्तों में२२ से२६ अक्षर के चरण होते हैं। प्रस्तुत सवैयों मेंपद्माकर जीनेवसंत और वर्षा ॠतुओं के विविध प्रभावों को छंद बद्ध किया है।
- कछारन (पुं. दे.) = किनारे, कगार
- कंुजन (पुं.सं.) = कुंज
- पौनहु (पुं. दे.) = पवन
- पलासन (पुं.सं.) = टेसू, ढाक केफूल
- नवेलिन (स्त्री.सं.) = नववधू
- मंजुल (वि.) = संुदर, मनहरण
- दौरत (क्रि.) = दौड़ती है।
- दामिनी (स्त्री.सं.) = बिजली, दावनी
- बुंदनि (स्त्री.सं.) = बँूद
वसंत-वर्षा कविता 9th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
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