डुबा दो अहंकार कविता 8th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
मेरा शीश नवा दो अपनी
चरण धूल के तल में ।
देव ! डुबा दो अहंकार सब
मेरे आँसू जल में ।
अपने को गौरव देने हित
अपमानित करता अपने को,
घेर स्वयं को घूम-घूमकर
मरता हूँ पल-पल मंे ।
देव ! डुबा दो अहंकार सब
मेरे आँसू जल में ।
अपने कामों में न करूँ मैं
आत्मप्रचार प्रभो;
अपनी ही इच्छा मेरे
जीवन में पूर्ण करो ।
मुझको अपनी चरम शांति दो
प्राणों में वह परम कांति हो
आप खड़े हो मुझे ओट दें
हृदयकमल के दल में ।
देव ! डुबा दो अहंकार सब
मेरे आँसू जल में ।
डुबा दो अहंकार कविता 8th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
परिचय
जन्म ः १8६१, कोलकाता (प.बं.)
मृत्यु ः १९4१
परिचय ः विश्व के महान साहित्यकार गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर जी को ‘नोबल पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है । आप केवल कवि ही नहीं बल्कि कथाकार, उपन्यासकार, नाटककार, निबंधकार तथा चित्रकार भी हैं । आप हमारे राष्ट्रगीत के रचयिता हैं । आपको १९१३ में ‘गीतांजलि’ के लिए ‘नोबल
पुरस्कार’ भी प्राप्त हुआ है ।
प्रमुख कृतियाँ ः ‘बनफूल’, ‘कवि- कहानी’, ‘संध्यासंगीत’, ‘प्रभातसंगीत’, ‘छवि ओगान’, ‘गीतांजलि’, ‘वलाका’,‘पलातका’, ‘वनवाणी’ और ‘शेषलेखा’ आदि ।
पद्य संबंधी
प्रस्तुत गीत में कवींद्र रवींद्रनाथ टैगोर जी ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि हे देव ! ऐसी शक्ति दो कि हमें किसी बात का अहंकार न हो । इस गीत में कवि हमें अहंकार, अत्याचार से बचने के लिए प्रेरित करते हैं ।
‘खड़े रहो तुम अविचल होकर सब संकट-तूफानों में’, इसपर अपने विचार लिखो ।
आत्मप्रचार = आत्मस्तुति
चरम = सर्वोच्च, पराकाष्ठा
दल = पंखुड़ी
शीश नवाना = नतमस्तक होना, विनम्र होना
ओट देना = सहारा देना, आड़ देना
डुबा दो अहंकार कविता 8th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
Tags:
हिंदी कविता