अनमोल वचन कविता 8th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
गुरु पहली मन सौं कहै, पीछे नैन की सैन ।
दादू सिख समझै नहीं, कहि समझावै बैन ।।
दादू दीया है भला, दिया करो सब कोय ।
घर में धरा न पाइये, जो कर दिया न होय ।।
ना घरि रह्या न बनि गया, ना कुछ किया कलेस ।
दादू मन-ही-मन मिल्या, सतगुर के उपदेस ।।
यहु मसीति यहु देहुरा, सतगुरु दिया दिखाइ ।
भीतरि सेवा बंदिगी, बाहरि काहे जाइ ।।
फल पाका बेली तजी, छिटकाया मुख माँहि ।
साँई अपणा करि लिया, सो फिरि ऊगौ नाँहि ।।
दादू इस संसार मैं, ये द्वै रतन अमोल ।
इक साईं इक संतजन, इनका मोल न तोल ।।
मेरा बैरी ‘मैं’ मुवा मुझे न मारै कोई ।
मैं ही मुझकौं मारता, मैं मरजीवा होई ।।
दादू आपा जब लगै, तब लग दूजा होई ।
अनमोल वचन कविता 8th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
जन्म ः १544, अहमदाबाद (गुजरात)
मृत्यु ः १६०३
- गृहस्थी त्यागकर इन्होंने १२ वर्षों तक कठिन तप किया । गुरुकृपा से सिद्धि प्राप्त हुई । ‘दादू’ के नाम से ‘दादू पंथ’ चल पड़ा । आप अत्यधिक दयालु थे ।
- इस कारण आपका नाम ‘दादू दयाल’ पड़ गया ।
- आप हिंदी, गुजराती, राजस्थानी आदि कई भाषाओं के ज्ञाता थे । आपने शब्द और साखी लिखीं । आपकी रचनाएँ प्रेमभावपूर्ण हैं ।
- जाति-पाँति के निराकरण, हिंदू-मुसलमानों की एकता आदि विषयों पर आपके पद तर्क प्रेरित न होकर, हृदय प्रेरित हैं ।
प्रमुख कृतियाँ ः ‘साखी’, ‘हरडेवानी’, ‘अंगवधू’ आदि
प्रस्तुत ‘साखी ’(Xmohm|) में दादू जी ने परोपकार, सद्गुरु का महत्त्व, सेवाभाव, सत्संग, अहंकार से बचने आदि के संबंध में अनमोल मार्गदर्शन किया है ।
- सैन = इशारा
- बैन = वाणी, शब्द
- दीया = दीपक
- घीव = घी
- कलेस = कष्ट, दुख
- बंदिगी = वंदना, सम्मान, पूजा
- पाका = पका
- द्वै = दोनों
- मुवा = मृत, समाप्त
- आपा = अहं, घमंड
अनमोल वचन कविता 8th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
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हिंदी कविता