बटोहिया कविता 10th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
सुंदर सुभूमि भैया भारत के देसवा से
मोरे प्राण बसे हिम खोह रे बटोहिया
एक द्वार घेरे रामा हिम कोतवलवा से
तीन द्वार सिंधु घहरावे रे बटोहिया ।
जाहु-जाहु भैया रे बटोही हिंद देखी आउ
जहवांॅ कुहुँकि कोइल बोले रे बटोहिया
पवन सुगंध-मंद अगर, चंदनवां से
कामिनी बिरह राग गावे रे बटोहिया ।
गंगा रे जमुनवा के झिलमिल पनियाँ से
सरजू झमकि लहरावे रे बटोहिया
ब्रह्मपुत्र-पंचनद घहरत निसि-दिन
सोनभद्र मीठे स्वर गावे रे बटोहिया ।
ऊपर अनेक नदी उमड़ि-घुमड़ि नाचे
जुगन के जदुआ जगावे रे बटोहिया
आगरा, प्रयाग, काशी, दिल्ली, कलकतवा से
मोरे प्राण बसे सरजू तीर रे बटोहिया ।
जाउ-जाउ भैया रे बटोही हिंद देखि आउ
जहाँ ॠषि चारों बेद गावें रे बटोहिया
सीता के बिमल जस, राम जस, कृष्ण जस
मोरे बाप-दादा के कहानी रे बटोहिया ।
ब्यास, बाल्मीकि, ॠषि गौतम, कपिलमुनि
सूतल अमर के जगावे रे बटोहिया
रामानुज-रामानंद न्यारी-प्यारी रूपकला
ब्रह्म सुख बन के भंॅवर रे बटोहिया ।
नानक, कबीर, गौर-संकर, श्रीराम-कृष्ण
अलख के बतिया बतावे रे बटोहिया
बिद्यापति, कालीदास, सूर, जयदेव कवि
तुलसी के सरल कहानी रे बटोहिया ।
जाउ-जाउ भैया रे बटोही हिंद देखि आउ
जहांॅ सुख झूले धान खेत रे बटोहिया
बुद्धदेव, पृथु, बिक्रमारजुन, सिवाजी के
फिरि-फिरि हिय सुध आवे रे बटोहिया ।
अपर प्रदेस, देस, सुभग-सुघर बेस
मोरे हिंद जग के निचोड़ रे बटोहिया
सुंदर सुभूमि भैया भारत के भूमि जेही
बटोहिया कविता 10th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
जन्म ः १884 (बिहार)
मृत्यु ः १९55
परिचय ः रघुवीर नारायण जी प्रतिभाशाली, मृदुभाषी, हिंदी साहित्यकार तथा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी थे । जन-जागरण गीत की तरह गाया जाने वाला यहगीत पूरबी लोकधुन मंे लिखा गया है । आप भोजपुरी की इस कविता से अमर कवियों में शामिल हो गए । प्रमुख कृतियाँ ः ‘रघुवीर पत्र-पुष्प’, ‘रघुवीर रसरंग’, ‘रंभा’ (अप्रकाशित खंडकाव्य) आदि ।
लोकभाषा में लिखे प्रस्तुत गीत में रघुवीर नारायण जी ने भारत देश का गौरवगान किया है । इस गीत में कविने भारत भूमि की प्रकृति, नदी, पहाड़, महापुरुष, कवि-लेखक, वेद-पुराण, तीर्थस्थलों आदि की चर्चा की है । आपका कहना है कि यह देश पूरी दुनिया का ‘निचोड़’ है । अतः सभी को इस देश की यात्रा अवश्य करनी चाहिए ।
- देसवा पुं. सं.(दे.) = देश
- कोइल स्त्री.सं.(दे.) = कोयल
- बटोहिया पुं.सं.(दे.) = पथिक, राही
- सोनभद्र स्त्री.सं.(सं.) = नदी विशेष का नाम
- घहरना क्रि.(हिं.) = ऊँची आवाज में गर्जना करना
- हिम खोह स्त्री.सं.(सं) = हिम की गुफा
- सुभग वि.(सं) = मनोहर, सुखद
- झमकना क्रि.(हिं.) = झनकार होना
बटोहिया कविता 10th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
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