ब्रजवासी 10th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
जसोदा बार-बार यौं भाषै ।
हे कोऊ ब्रज हितू हमारौ चलत गुपालहिंराखै ।।
कहा काज मेरे छगन-मगन कौं, नृप मधुपुरी बुलायौ ।
सुफलक सुत मेरे प्रान हरन कौं काल रूप है आयौ ।
बरु यह गोधन हरौ कंस सब मोहिं बंदि लै मेलौ ।
इतनोई सुख कमल-नयन मेरी अंॅखियान आगे खेलौ ।।
बासर बदन बिलोकत जीवों, निसि निज अंकम लाऊँ ।
तिहिंबिछुरत जो जियौं कर्मबस तौ हँसि काहि बुलाऊँ ।।
कमलनयन गुन टेरत टेरत, दुखित नंद जु की रानी ।।
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प्रीति करि काहू सुख न लह्यौ ।
प्रीति पतंग करी पावक सौं, आपै प्रान दह्यौ ।।
अलिसुत प्रीति करी जलसुत सौं, संपुट मांझ गह्यौ ।
सारंग प्रीति करी जु नाद सौं, सन्मुख बान सह्यौ ।।
हम जो प्रीति करी माधव सों, चलत न कछू कह्यौ ।
सूरदास प्रभु बिनु दुख पावत, नैननि नीर बह्यौ ।।
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अति मलीन वृषभानु कुमारी ।
हरि श्रम जल भीज्यौ उर अंचल, तिहि लालच न धुवावति सारी ।।
अध मुख रहति, अनत नहिंचितवति, ज्यौ गथ हारे थकित जुवारी ।
छूटे चिकुर बदन कुम्हिलाने, ज्यौं नलिनी हिमकर की मारी ।।
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कहाँ लौं कहिए व्रज की वात ।
सुनह स्याम तुम विन उन लोगनि जैसे दिवस विहात ।।
गोपी, ग्वाल, गाइ गोसुत सब, मलिन वदन कृस गात ।
परम दीन जनु सिसिर हेम हत, अंबुजगन विनु पात ।।
जो कोउ आवत देखि दूरि तें उहि पूछत कुसलात ।
चलन न देत प्रेम आतुर उर कर चरननि लपटात ।।
पिक चातक वन वसत न पावत वायस वलि नहिं खात ।
सूर स्याम संदेसन के डर पथिक न उहिं मग जात ।।
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ऊधौ मोहिं ब्रज विसरत नाहीं ।
वंृदावन गोकुल वन उपवन, सघन कुंज की छाहीं ।।
प्रात समय माता जसुमति अरु नंद देखि सुख पावत ।
माखन-रोटी दह्यौ सजायौ, अति हित साथ खवावत ।।
गोपी, ग्वाल, वाल संग खेलत, सब दिन हँसत सिरात ।
सूरदास धनि-धनि ब्रजवासी, जिनसौं हितु जदु-तात ।।
ब्रजवासी 10th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
जन्म ः १4७8, आगरा (उ.प्र.)
मृत्यु ः १58०
परिचय ः भक्त सूरदास वात्सल्य रस के मर्मज्ञ कवि माने जाते हैं । आपने श्रृंगार और शांत रसों का भी बड़ा मर्मस्पर्शी वर्णन किया है । आप हिंदी भाषा के सूर्यकहे जाते हैं । आपका काव्य सृजन ब्रज भाषा में हुआ है । आपके पदों में गेयता है । आपके ‘भ्रमरगीत’ में सगुण और निर्गुण का उत्तम विवेचन हुआ है । उसमें वियोग एवं प्रकृति सौंदर्यका सूक्ष्म औरसजीव वर्णन किया गया है । प्रमुख कृतियाँ ः ‘सूरसागर’, ‘सूरसारावली’, ‘साहित्य लहरी’, ‘नल दमयंती’ आदि ।
भक्त सूरदास ने इन पदों में उस समय का वर्णन किया है जब श्रीकृष्ण गोकुल से मथुरा चले गए हैं । गोकुलवासी कृष्ण वियोग से व्यथित हैं । प्रथम तीन पदों में आपने माता यशोदा एवं गोपियों के श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम एवंउनकी अनुपस्थिति में उनके दुख को दर्शाया है ।चौथे पद में उद्धव गोकुल से लौटकर मथुरा मंे श्रीकृष्ण को गोकुल निवासियों, पशु-पक्षी, प्रकृति का उनके प्रति प्रेम, विरह, कष्ट सुनाते हैं । अंतिम पद में श्रीकृष्ण के ब्रजभूमि एवं वहाँ के निवासियों के लगाव का बड़ा ही मार्मिक वर्णन किया गया है ।
- हितू पुं.सं.(हिं.) = हितैषी, स्नेही
- मधुपुरी स्त्री.सं.(सं.) = मथुरा
- बरु अ.(हिं.ब्रज.) = बल्कि
- बासर पुं.सं.(हिं.ब्रज.) = दिन
- पावक पुं.सं.(सं.) = अग्नि
- संपुट पुं. सं.(सं.) = कमल की पंखुडियों का घेरा
- अनल पुं.सं.(सं.) = अग्नि
- चिकुर पुं. सं.(हिं.ब्रज.) = केश
- विहात क्रि.(हिं.ब्रज.) = बीतना
ब्रजवासी कविता 10th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
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