मेरी स्‍मृति कविता 10th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]

मेरी स्‍मृति कविता 10th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]

गई है पिकी प्रतीक्षारत पुनः 
आम्र शाखाएँ ।
महुआ खड़ा

बिछा श्वेत चादर
किसे जोहता ।
किसकी व्यथा

छा गई बन घटा
नभ है घिरा ।
साँझ का तारा

किसे खोजने आया
आम निशा में ।
कौन संदेशा

ले पवन आया है
सुनने तो दो ।
रची-बसी हो

मेहँदी की गंध में याद आती हो ।
खुल गए हैं
पी कहाँ पुकार से

पृष्ठ पिछले ।
कटे बिरिछ
गाँव की दुपहर

खोजती साया ।
गाँव मुझको
मैं ढँूढ़ता गाँव को

खो गए दोनों ।
वर्षा की सॉंझ
बजाते शहनाई

छिपे झींगुर ।
बजाने आई
पिकी छिप बॉंसुरी

अमराई में ।
फूल खिलता
महक मुरझाता

स्‍वप्न बनता ।
बड़े सवेरे
उठ जातीं चिड़ियाँ

जगाता कौन ?
आए कोकिल
धुन वंशी की गँूजे
बौर महके ।

मेरी स्‍मृति कविता 10th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]

मेरी स्‍मृति कविता 11th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]


परिचय
जन्म ः १९२१, रायबरेली (उ.प्र.)

परिचय  - डॉ. श्रीवास्‍तव जी ने १९44 से अब तक पत्रकारिता और संपादन को व्यवसाय एवं मिशन के रूप में जिया । आपने दैनिक, साप्ताहिक, मासिक पत्रों के संपादन के अतिरिक्त हिंदी समिति, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान में प्रधान संपादक (राजपत्रित) के रूप में दरजनोंविविध विषयक संदर्भएवं मानक ग्रंथों का संपादन किया है ।

प्रमुख कृतियाँ ः २० पुस्‍तकें प्रकाशित । ‘बेटे को क्‍या बतलाओगे’ (उपन्यास) आदि ।

प्रस्तुत कविता हाइकु विधा मंे लिखी गई है । यहाँडॉ. रमाकांतश्रीवास्तव जी ने प्रत्येक हाइकु में अलग-अलगविषयों पर लेखन किया है । आपने इन रचनाओं में आम, महुआ, आकाश, तारा, पवन, मेहँदी, गाँवआदि बारे में अपने संक्षिप्त विचार व्यक्त किए हैं । इनके अतिरिक्त झींगुर, कोयल आदि की खुशियों को भी आपने इस कविता में स्थान दिया है ।

  1. जोहना क्रि.(दे.) = प्रतीक्षा करना
  2. बिरिछ पुं.सं.(दे.) = वृक्ष 
  3. महुआ पुं.सं.(दे.) = एक प्रकार का वृक्ष
  4. पिकी स्त्री.सं.(सं.) = कोयल

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