दिवस का अवसान कविता 9th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
दिवस का अवसान समीप था ।
गगन था कुछ लोहित हो चला ।
तरु शिखा पर थी अब राजती ।
कमलिनी कुल वल्लभ की प्रभा ।।१।।
विपिन बीच विहंगम वृंद का ।
कलनिनाद विवद्र्धित था हुआ ।
ध्वनिमयी विविधा विहगावली ।
उड़ रही नभमंडल मध्य थी ।।२।।
अधिक और हुई नभ लालिमा ।
दश दिशा अनुरंजित हो गई ।
सकल पादप पुंज हरीतिमा ।
अरुणिमा विनिमज्जित-सी हुई ।।३।।
झलकनेपुलिनों पर भी लगी ।
गगन केतल की यह लालिमा ।
सरि- सरोवर के जल मेंपड़ी ।
अरुणता अति ही रमणीय थी ।।4।।
अचल केशिखरों पर जा चढ़ी ।
किरण पादप शीश विहारिणी ।
तरणि बिंब तिरोहित हो चला ।
गगन मंडल मध्य शनैः शनैः ।।5।।
निमिष मेंवन व्यापित वीथिका ।
विविध धेनु विभूषित हो गई ।
धवल धूसर वत्स समूह भी ।
विलसता जिनकेदल साथ था ।।६।।
जब हुए समवेत शनैः शनैः ।
सकल गोप सधेनुसमंडली ।
तब चलेब्रज भूषण को लिए ।
अति अलंकृत गोकुल ग्राम को ।।९।।
गगन मंडल मेंरज छा गई ।
दश दिशा बहु शब्दमयी हुई ।
विशद गोकुल के प्रति गेह में।
बह चला वर स्रोत विनोद का ।।१०।।
सकल वासर आकुल सेरहे।
अखिल मानव गोकुल ग्राम के
अब दिनांत विलोकत ही बढ़ी ।
ब्रज विभूषण दर्शन लालसा ।।११।।
सुन पड़ा स्वर ज्यों कल वेणुका ।
सकल ग्राम समुत्सुक हो उठा ।
हृदय यंत्र निनादित हो गया ।
तुरत ही अनियंत्रित भाव-से।।१२।।
बहु युवा - युवती गृह बालिका ।
विपुल बालक-वृद्ध-वयस्क भी ।
विवश-से निकले निज गेह से।
स्वदृग का दुख मोचन के लिए ।।१३।।
इधर गोकुल से जनता कढ़ी ।
उमगती-पगती अति मोद में।
उधर आ पहुँची बलबीर की ।
दिवस का अवसान कविता 9th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
जन्म ः १5 अप्रैल १8६5, निजामाबाद आजमगढ़ (उ.प्र.)
मृत्यु ः १६ मार्च१९4७
परिचय ः खड़ी बोली के प्रथममहा काव्यकार ‘हरिऔध’ जी की भूमिका हिंदी साहित्य के विकास मेंनींव केपत्थर
केसमान हैं। भाषा पर ‘हरिऔध’ जी का अद्भुत अधिकार प्राप्त था। आपकी भाषा प्रांजल और आकर्षकर्ष है। आपकी रचनाओं मेंसंस्कृत केतत्सम शब्द, फारसी, उर्दू आदि के शब्दों के प्रयोग हृदयग्राही है।
प्रमुख कृतियाँ ः रस कलश (ब्रजभाषा में काव्यसंग्रह) वैदेही वनवास, प्रिय प्रवास (महाकाव्य) ठेठ हिंदीका ठाट,अधखिला फूल (उपन्यास), कबीर वचनावली, हिंदी भाषा और साहित्य का विकास (आलोचना) रुक्मणी परिचय, प्रद्युम्न विजय व्यायोग (नाटक)हरिऔध सतसई, कल्पलता, चुभते चौपदे, पारिजात (मुक्तक काव्य)
पद्य संबंधी
महाकाव्य ः महाकाव्य मेंएक पूरी कथा का होना अनिवार्य है। महाकाव्य मेंमुख्य चरित्र के जीवन को समग्रता से विकसित किया जाताहै। प्रत्येक सर्ग मेंएक ही छंद होताहै किंतुसर्ग का अंतिम पद भिन्न छंद का होता है। सर्गों की संख्या आठ या प्रस्तुत काव्यांश ‘प्रिय प्रवास’ महाकाव्य के प्रथम सर्ग से लिया गया है। यहाँ ‘हरिऔध’ जी ने सायंकाल की प्राकृतिक छटा और गोकुल के ग्रामीण जीवन का बहुत ही सुंदर वर्णन किया है।
शब्द संसार
- अवसान (पुं.सं.) = समाप्ति, सायंकाल
- वल्लभ (पुं.सं.) = प्रियतम, स्वामी
- विवद्र्धित (वि.सं.) = बढ़ाना, विवर्धन
- तिरोहित (वि.) = छिपा हुआ, अंतर्निहित, गायब, लुप्त
- निमिष (पुं.सं) = क्षण, पल
- वीथि (बीथिका) (स्त्री.सं.) = गली, आकाश मेंनक्षत्रों केरहने का स्थान,
- विलसता (क्रि.) = क्रीड़ा करना
- विशद (वि.सं.) = विस्तृत रूप
- आकुल (वि.सं.) = व्यग्र, विह्वल, कातर
- विलाेकना (क्रि.) = देखना
- समुत्सुक (वि.सं.) = विशेष रूप सेउत्सुक
दिवस का अवसान कविता 9th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
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