समय की शिला पर कविता 9th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
समय की शिला पर मधुर चित्र कितने
किसी नेबनाए, किसी ने मिटाए ।।
किसी ने लिखी आँसुओं सेकहानी
किसी नेपढ़ा किंतुदो बूँद पानी
इसी मेंगए बीत दिन जिंदगी के
गई घुल जवानी, गई मिट निशानी ।
विकल सिंधुसाध केमेघ कितने
धरा नेउठाए, गगन ने गिराए ।।
शलभ नेशिखा को सदा ध्येय माना
किसी को लगा यह मरण का बहाना
शलभ जल न पाया, शलभ मिट न पाया
तिमिर मेंउसेपर मिला क्या ठिकाना ?
प्रेम-पंथ पर प्राण केदीप कितने
मिलन ने जलाए, बिरह नेबुझाए ।।
भटकती हुई राह मेंवंचना की
रुकी श्रांत हो जब लहर चेतना की
तिमिर आवरण ज्योति का वर बना तब
कि टूटी तभी श्रृंखला साधना की ।
नयन-प्राण मेंरूप केस्वप्न कितने
निशा ने जगाए, उषा नेसुलाए ।।
सुरभि की अनिल पंख पर मौन भाषा
उड़ी वंदना की जगी सुप्त अाशा
तुहिन बिंदुबनकर बिखर पर गए स्वर
नहीं बुझ सकी अर्चना की पिपासा ।
किसी के चरण पर वरण फूल कितने
समय की शिला पर कविता 9th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
जन्म ः १७ जून १९१६ रावतपार, देवरिया (उ.प्र.)
मृत्यु ः ३ सितंबर १९९१
परिचय ः शंभूनाथ सिंह जी नवगीतपरंपरा के शीर्ष प्रवर्तक, प्रगतिशीलकवि केरूप में जाने जातेहैं। बहुमुखीप्रतिभा के धनी आप कहानीकार,समीक्षक, नाटककार और पुरातत्वविद
भी थे।
प्रमुख कृतियाँ ः रूप रश्मि, छायालोक(पारंपरिक गीत संग्रह) समय की शिला,जहाँदर्द नीला है, वक्त की मीनार पर(नवगीत संग्रह) उदयाचल, खंडित सेतु(नई कविता संग्रह), रातरानी, विद्रोहआदि (कहानी संग्रह), धरती और आकाश, अकेला शहर (नाटक)।
नवगीत ः यह गीत का ही विकसित रूपहै। इसमेंपरंपरागत भावबोध सेअलगनवीन भावबोध तथा शिल्प प्रस्तुत किया जाता है। कवि आवश्यकतानुसार नएप्रतीकों के माध्यम से काव्य प्रस्तुत
करता है। प्रस्तुत नवगीत में कवि ने लिखने-पढ़ने में अंतर, अंधकार के प्रकाश मेंपरिवर्तन, आँखों में तैरते
सपनों की स्थिति, प्रार्थना की प्यास आदि मनोभावों को बड़ेही मार्मिक ढंग सेअभिव्यक्त किया है।
समय की शिला पर कविता 9th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
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हिंदी कविता