शौर्य कविता 9th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
छूटत कमान और तीन गोली बानन के,
मुसकिल होति मोरचान हू की ओट मैं।।
ता समै सिवराज हुकुम कैहल्ला कियो,
दाबा बांधि परो हल्ला बीर भट जोट मैं।
‘भूषन’ भनत तेरी हिम्मति कहाँलौं कहौं
किम्मति इहाँलगि जाकी भट झोट मैं।
ताव दै-दैमूंछन, कंगूरन पैपाँव दै-दै,
अरि मुख घाव दै-दै, कूदि परैंकोट मैं।।१।।
साजी चतुरंग सैन, रंग मेंतुरंग चढ़ि,
सरजा शिवाजी जंग जीतन चलत है।
भूखन भनत, नाद बेहद नगारन के,
नदी-नद मद गैवरन केरलत है।
ऐल-फैल, खैल-भैल खलक मेंगैल-गैल,
गजन की ठेल-पेल सैल उसलत है।।
तारा-सो तरनि धूरि-धरा मेंलगत जिमि
थारा पर पारा, पारावार यों हलत है।
गरुड़ को दावा जैसेनाग केसमूह पर
दावा नाग जूह पर सिंह सिरताज को
दावा पुरहूत को पहारन केकूल पर
दावा सब पच्छिन केगोल पर बाज को
भूषण अखंड नव खंड महि मंडल में
रवि को दावा जैसेरवि किरन समाज पे
पूरब-पछांह देश दच्छिन तेउत्तर लौं
जहाँपातसाही तहाँदावा सिवराज को ।
ऊँचेघोर मंदर केअंदर रहन वारी
ऊँचेघोर मंदर केअंदर रहाती है।
कंद मूल भोग करैं, कंद मूल भोग करैं,
तीन बेर खातीं, तेवेतीन बेर खाती हैं।।
भूषण शिथिल अंग, भूषन शिथिल अंग,
बिजन डुलाती तेवे बिजन डुलाती हैं।
‘भूषन’ भनत सिवराज बीर तेरे त्रास,
शौर्य कविता 9th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
परिचय
जन्म ः १६१३ ई तिकवांपुर, कानपुर (उ.प्र)
मृत्यु ः १७०5
परिचय ः हिंदी साहित्य मेंभूषण का विशिष्ट स्थान है। वे वीररस के अद्वितीय कवि थे । रीतिकालीन
कवियों मेंवेपहलेकवि थे जिन्होंने हास-विलास की अपेक्षा राष्ट्रीय भावना को प्रमुखता दी । आपकी रचनाओं में शिवाजी महाराज और छत्रसाल के शौर्य-साहस, प्रभाव-पराक्रम, तेज और आेज का सजीव वर्णन हुआ है। आपने कवित्त और सवैया छंद का प्रमुख रुप से प्रयोग किया है।
प्रमुख कृतियाँ ः शिवराज भूषण, शिवा बावनी और छत्रसाल दशक (काव्यसंग्रह)
कवित्त ः यह वार्णिक छंद है। इसे घनाक्षरी छंद भी कहतेहैं। इस छंद में ओजपूर्ण भावों कीअभिव्यक्ति सफलता
केसाथ होती है। प्रस्तुत कवित्त मेंछत्रपति शिवाजी महाराज की वीरता का वर्णन विविध रूपों में किया गया है। उनकेव्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को उजागर करने का सार्थक प्रयास किया गया है।
- मोरचा (पुं.फा.) = युद्ध मेंआमना-सामना
- साजी (क्रि.) = सजाकर
- भनत (क्रि.) = कहतेहैं
- रलत (क्रि.) = मिलना, पूर्ण होना
- तरनि (स्त्री.सं.) = नाव, तरौना
- पारावार (पुं.सं.) = आर-पार, दोनों तट; सीमा
- पुरहूत (पुं.सं.) = इंद्र
- पातसाही (पुं.फा.) = बादशाही
- मंदर (पुं.सं.) = स्वर्ग, पहाड़
- बिजन (पुं.सं.) = पंखा, अकेले
- खलक (पुं.अ.) = संसार, लोक
शौर्य कविता 9th हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ रसास्वादन ]
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