चुनौती हिमालय की के प्रश्न उत्तर | Class 5 Hindi Chapter 18 | Chunauti Himalaya Ki Question Answer

चुनौती हिमालय की के प्रश्न उत्तर | Class 5 Hindi Chapter 18  | Chunauti Himalaya Ki Question Answer

चुनौती हिमालय की के प्रश्न उत्तर | Class 5 Hindi Chapter 18  | Chunauti Himalaya Ki Question Answer

कहाँ क्या है?

Question 1.

(क) लद्दाख जम्मू-कश्मीर राज्य में है। ऊपर दिए भारत के नक्शे में हूँढ़ो कि लद्दाख कहाँ है और तुम्हारा घर कहाँ है?
(ख) अनुमान लगाओ कि तुम जहाँ रहते हो वहाँ से लद्दाख पहुँचने में कितने दिन लग सकते हैं और वहाँ किन-किन ज़रियों से पहुँचा जा सकता है?
(ग) किताब के शुरू में तुमने तिब्बती लोककथा ‘राख की रस्सी’ पढ़ी थी। नक्शे में तिब्बत को ढूँढ़ो।
Answers:
 विद्यार्थी मानचित्र की सहायता से स्वयं करें।


वाद-विवाद

Question 1. (क) बर्फ से ढके चट्टानी पहाड़ों के उदास और फीके लगने की क्या वजह हो सकती थी?

Answers:
(क) यहाँ हरे-भरे पेड़-पौधे नहीं थे न ही बर्फीला इलाका होने के कारण लोगों का आना जाना था।

(ख) बताओ, ये जगहें कब उदास और फीकी लगती हैं और यहाँ कब रौनक होती है?

घर बाज़ारस्कूलखेत
Answers: (ख)
जगहकब उदास और फीकी लगती है।कब यहाँ रौनक होती है।
घरजब घर के लोग बाहर गए होते हैं।जब घर के सभी लोग घर में होते हैं। और आपस में प्यार से बोलते-बतियाते हैं।
बाज़ारदोपहर के समयशाम के समय, त्योहारों के अवसर पर
स्कूलजब स्कूल में बच्चों की छुट्टी होती है।जब तक स्कूल में बच्चे रहते हैं, वहाँ रौनक ही रौनक होती है।
खेतजब फसल कट जाती है और खेत परती हो जाते हैं।जब खेत में फसल लहलहाते हैं।

Question 2. जवाहरलाल को इस कठिन यात्रा के लिए तैयार नहीं होना चाहिए। तुम इससे सहमत हो तो भी तर्क दो, नहीं हो तो भी तर्क दो। अपने तर्को को तुम कक्षा के सामने प्रस्तुत भी कर सकते हो।

Answers:
मैं इससे सहमत नहीं हूँ। रास्ते की कठिनाइयों का पहले ही अंदाजा लगा लेना और अलग हट जाना कहीं से सही नहीं है। हमें कठिनाइयों से मुँह नहीं मोड़ना चाहिए बल्कि उन्हें चुनौती मानकर उनका सामना करना चाहिए। हमारे अंदर इतना आत्मविश्वास और जोश जरूर होना चाहिए। जिसके सहारे हम कठिनाइयों को जहाँ तक बन पड़े पार करें। फिर यदि आगे बढ़ना बिल्कुल असंभव हो जाए तो वापस मुड़ जाएँ। ऐसा करने से हमें अफसोस या दुःख नहीं होगा बल्कि अपने आप पर गर्व होगा। और ऐसा ही सबको करना चाहिए। जवाहरलाल ने वही किया जो एक महान पुरूष करता है।
कोलाज
‘कोलाज’ उस तस्वीर को कहते हैं जो कई तस्वीरों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर एक कागज़ पर चिपका कर बनाई जाती है।
1. तुम मिलकर पहाड़ों का एक कोलाज बनाओ। इसके लिए पहाड़ों से जुड़ी विभिन्न तस्वीरें इकट्ठा करो-पर्वतारोहण, चट्टान, पहाड़ों के अलग-अलग नज़ारे, चोटी, अलग-अलग किस्म के पहाड़। अब इन्हें एक बड़े से कागज़ पर पहाड़ के आकार में ही चिपकाओ। यदि चाहो तो ये कोलाज तुम अपनी कक्षा की एक दीवार पर भी बना सकते हो।

2. अब इन चित्रों पर आधारित शब्दों का एक कोलाज बनाओ। कोलाज में ऐसे शब्द हों जो इन चित्रों का वर्णन कर पा रहे हों या मन में उठने वाली भावनाओं को बता रहे हों।

अब इन दोनों कोलाजों को कक्षा में प्रदर्शित करो।
Answers:
स्वयं करो।

तुम्हारी समझ से

Question 1. इस वृत्तांत को पढ़ते-पढ़ते तुम्हें भी अपनी कोई छोटी या लंबी यात्रा याद आ रही हो तो उसके बारे में लिखो।

Answers:
स्वयं करो।

Question 2. जवाहरलाल को अमरनाथ तक का सफर अधूरा क्यों छोड़ना पड़ा?

Answers:
जवाहरलाल को अमरनाथ तक का सफर अधूरा इसलिए छोड़ना पड़ा क्योंकि आगे का रास्ता अनेकों गहरी और चौड़ी खाइयों से भरा पड़ा था। खाइयाँ पार करने का उचित सामान भी उनके पास नहीं था।

Question 3. जवाहरलाल, किशन और कुली सभी रस्सी से क्यों बँधे थे?

Answers:
जवाहरलाल, किशन और कुली सभी रस्सी से इसलिए बँधे थे ताकि पैर फिसलने के कारण या किसी और कारण से वे पहाड़ से गिर जाएँ तो रस्सी के सहारे लटककर अपनी जान बचा सकें। एकबार जवाहरलाल के साथ ऐसी घटना घट भी गई थी। रस्सी से बँधे होने के कारण किशन और कुली ने उन्हें खाई में से सुरक्षित ऊपर खींच लिया।

Question 4. (क) पाठ में नेहरू जी ने हिमालय से चुनौती महसूस की। कुछ लोग पर्वतारोहण क्यों करना चाहते हैं?

(ख) ऐसे कौन-से चुनौती-भरे काम हैं जो तुम करना पसंद करोगे?
Answers:
(क) कुछ लोगों को पर्वतारोहण बेहद रोमांचक और चुनौतीपूर्ण लगता है। उनके अंदर कुछ असाधारण काम करने की लालसा होती है।
(ख) पूरे क्लास में सबसे अव्वल अंक लाने की चुनौती और स्कूल में आयोजित सभी मुख्य प्रतियोगिताओं में भाग लेकर कुछ कर दिखाने की चुनौती।

बोलते पहाड़

Question 1. उदास फीके बर्फ से ढके चट्टानी पहाड़

हिमालय की दुर्गम पर्वतमाला मुँह उठाए चुनौती दे रही थी।
उदास होना” और “चुनौती देना” मनुष्य के स्वभाव हैं। यहाँ निर्जीव पहाड़ ऐसा कर रहे हैं। ऐसे और भी वाक्य हैं। जैसे-
बिजली चली गई।
चाँद ने शरमाकर अपना मुँह बादलों के पीछे कर लिया।
इस किताब के दूसरे पाठों में भी ऐसे वाक्य हूँढ़ो।
Answers:
ऐसे कुछ वाक्य नीचे दिए जा रहे हैं

नलों में अब पूरे समय पानी नहीं आता।
हिमालय की दुर्गम पर्वतमाला मुँह उठाए चुनौती दे रही थी।
फसल तैयार खड़ी थी।
सुबह की हल्की धूप में खेत सुनहरे दिखाई दे रहे थे।
सामने एक गहरी खाई मुँह फाड़े निगलने के लिए तैयार थी।

एक वर्णन ऐसा भी

पाठ में तुमने जवाहरलाल नेहरू की पहाड़ी यात्रा के बारे में पढ़ा। नीचे एक और पहाड़ी इलाके का वर्णन किया गया है जो प्रसिद्ध कहानीकार निर्मल वर्मा की किताब ‘चीड़ों पर चाँदनी’ से लिया गया है। इसे पढ़ो और नीचे लिखे  दो।
क्या यह शिमला है-हमारा अपना शहर-या हम भूल से कहीं और चले आए हैं? हम नहीं जानते कि पिछली रात ज़ब हम बेखबर सो रहे थे, बर्फ चुपचाप गिर रही थी। खिड़की के सामने पुराना, चिर-परिचित देवदार का वृक्ष था, जिसकी नंगी शाखों पर रूई के मोटे-मोटे गालों-सी बर्फ चिपक गई थी। लगता था जैसे वह सांता क्लॉज़ हो, एक रात में ही जिसके बाल सन-से सफेद हो गए हैं…। 

कुछ देर बाद धूप निकल आती है-नौले चमचमाते आकाश के नीचे बर्फ से ढकी पहाड़ियाँ धूप सेकने के लिए अपना चेहरा बादलों के बाहर निकाल लेती हैं।”

(क) ऊपर दिए पहाड़ के वर्णन और पाठ में दिए वर्णन में क्या अंतर है?

Answers:
(क) ऊपर दिए पहाड़ के वर्णन में वृक्ष (देवदार) का वर्णन है। किन्तु पाठ में वृक्ष का वर्णन नहीं है बल्कि उजाड़ चट्टानों का वर्णन है।

(ख) कई बार निर्जीव चीज़ों के लिए मनुष्यों से जुड़ी क्रियाओं, विशेषण आदि का इस्तेमाल होता है, जैसे-पाठ , में आए दो उदाहरण उदास फीके, बर्फ से ढके चट्टानी पहाड़” या “सामने एक गहरी खाई मुँह फाड़े निगलने के लिए तैयार थी।” ऊपर लिखे शिमला के वर्णन में ऐसे उदाहरण हूँढ़ो।

Answers:
(ख) बर्फ़ चुपचाप गिर रही थी।
…… जिसकी नंगी शाखा पर रुई के मोटे-मोटे गालों-सी बर्फ चिपक गई थी।
कुछ देर बाद धूप निकल आती है।
नीले चमचमाते आकाश के नीचे बर्फ से ढकी पहाड़ियाँ धूप सेंकने के लिए अपना चेहरा बादलों के । बाहर निकाल लेती हैं।

Chunauti Himalay Ki Class 5 Notes CBSE Hindi Chapter 18

जोजीला पास से आगे चलकर जवाहरलाल मातायन पहुँचे तो वहाँ के नवयुवक कुली ने बताया, "शाब, सामने उस बर्फ से ढके पहाड़ के पीछे अमरनाथ की गुफा है । " " लेकिन, शाब, रास्ता बहुत टेढ़ा है।" किशन ने कुली की बात काटी "बहुत चड़ाई है और शाब, दूर भी है। " ने पूछा। " कितनी दूर ?" जवाहरलाल 'आठ मील, शाब, " कुली ने जल्दी से उत्तर दिया।

“बस! तब तो ज़रूर चलेंगे।" जवाहरलाल ने अपने चचेरे भाई की ओर प्रश्नसूचक दृष्टि डाली। दोनों कश्मीर घूमने निकले थे और जोज़ीला पास से होकर लद्दाखी इलाके की ओर चले आए थे। अब अमरनाथ जाने में क्या आपत्ति हो सकती थी? फिर जवाहरलाल रास्ते की मुश्किलों के बारे में सुनकर सफर के लिए और भी उत्सुक हो गए।

" कौन-कौन चलेगा हमारे साथ?" जवाहरलाल ने जानना चाहा। तुरंत किशन बोला, "शाब मैं चलूँगा। भेड़ें चराने मेरी बेटी चली जाएगी। ' अगले दिन सुबह तड़के तैयार होकर जवाहरलाल बाहर आ गए। आकाश में रात्रि की कालिमा पर प्रातः की लालिमा फैलती जा रही थी । तिब्बती पठार का दृश्य निराला था । दूर-दूर तक वनस्पति-रहित उजाड़ चट्टानी इलाका दिखाई दे रहा था। उदास, फीके, बर्फ़ से ढके चट्टानी पहाड़ सुबह की पहली किरणों का स्पर्श पाकर ताज की भाँति चमक उठे। दूर से छोटे-छोटे ग्लेशियर ऐसे लगते, मानो स्वागत करने के लिए पास सरकते आ रहे हों। सर्द हवा के झोंके हड्डियों तक ठंडक पहुँचा रहे थे।

जवाहर ने हथेलियाँ आपस में रगड़कर गरम कीं और कमर में रस्सी लपेट कर चलने को तैयार हो गए। हिमालय की दुर्गम पर्वतमाला मुँह उठाए चुनौती दे रही थी। जवाहर इस चुनौती को कैसे न स्वीकार करते। भाई, किशन और कुली सभी रस्सी के साथ जुड़े थे। किशन गड़ेरिया अब गाइड बन गया।

बस आठ मील ही तो पार करने हैं। जोश में आकर जवाहरलाल चढ़ाई चढ़ने लगे। यूँ आठ मील की दूरी कोई बहुत नहीं होती लेकिन इन पहाड़ी रास्तों पर आठ कदम चलना दूभर हो गया। एक-एक डग भरने में कठिनाई हो रही थी।

रास्ता बहुत ही वीरान था। पेड़-पौधों की हरियाली के अभाव में एक अजीव खालीपन-सा महसूस हो रहा था। कहीं एक फूल दिख जाता तो आँखों को ठंडक मिल जाती । दिख रही थीं सिर्फ़ पथरीली चट्टानें और सफ़ेद बर्फ़ । फिर भी इस गहरे सन्नाटे में बहुत सुकून था। एक ओर सूँ-सूँ करती बर्फीली हवा बदन को काटती तो दूसरी ओर ताज़गी और स्फूर्ति भी देती ।

जवाहरलाल बढ़ते जा रहे थे। ज्यों-ज्यों ऊपर चढ़ते गए, त्यों-त्यों साँस लेने में दिक्कत होने लगी। एक कुली की नाक से खून बहने लगा। जल्दी से जवाहरलाल ने उसका उपचार किया। खुद उन्हें भी कनपटी की नसों में तनाव महसूस हो रहा था, लगता था जैसे दिमाग में खून चढ़ आया हो। फिर भी जवाहरलाल ने आगे बढ़ने का इरादा नहीं बदला।

थोड़ी देर में बर्फ पड़ने लगी। फिसलन बढ़ गई, चलना भी कठिन हो गया। एक तरफ़ थकान, ऊपर से सीधी चढ़ाई तभी सामने एक बर्फीला मैदान नज़र आया। चारों ओर हिम शिखरों से घिरा वह मैदान देवताओं के मुकुट के समान लग रहा था । प्रकृति की कैसी मनोहर छटा थीं आँखों और मन को तरोताज़ा कर गई। बस एक झलक दिखाकर बर्फ़ के धुंधलके में ओझल हो गई। दिन के बारह बजने वाले थे। सुबह चार बजे से वे लोग लगातार चढ़ाई कर रहे थे। शायद सोलह हज़ार फीट की ऊँचाई पर होंगे इस वक्त अमरनाथ

से भी ऊपर। पर अमरनाथ की गुफा का दूर-दूर तक पता नहीं था। इस पर भी जवाहरलाल की चाल में न ढीलापन था, न बदन में सुस्ती हिमालय ने चुनौती जो दी थी। निर्गम पथ पार करने का उत्साह उन्हें आगे खींच रहा था। "शाब लौट चलिए वापस कैंप में पहुँचते- पहुँचते दिन ढल जाएगा, " एक कुली ने कहा । "लेकिन अभी तो अमरनाथ पहुँचे नहीं।" जवाहरलाल को लौटने

पसंद नहीं आया। " वह तो दूर बर्फ के उस मैदान के पार है, " किशन बीच में बोल पड़ा। "चलो, चलो चढ़ाई तो पार कर ली, अब आधे मील का मैदान ही तो बाकी है." कहकर जवाहरलाल ने थके हुए कुलियों को उत्साहित किया। सामने सपाट बर्फ़ का मैदान दिखाई दे रहा था। 

उसके पार दूसरी ओर से नीचे उतरकर गुफा तक पहुँचा जा सकता था। जवाहरलाल फुर्ती से बढ़ते जा रहे थे। दूर से मैदान जितना सपाट दिख रहा था असलियत में उतना ही ऊबड़-खाबड़ था ताजी बर्फ ने ऊँची-नीची चट्टानों को एक पतली चादर से ढक कर एक समान कर दिया था। गहरी खाइयाँ थीं गड्ढे बर्फ से ढके हुए थे और गज़ब की फिसलन थी। कभी पैर फिसलता और कभी बर्फ़ में पैर अंदर धँसता जाता, भैंसता जाता । बहुत नाप नाप कर कदम रखने पड़ रहे थे। ये तो चढ़ाई से भी मुश्किल था, पर जवाहरलाल को मज़ा आ रहा था। 

तभी जवाहरलाल ने देखा सामने एक गहरी खाई मुँह फाड़े निगलने के लिए तैयार थी। अचानक उनका पैर फिसला वे लड़खड़ाए और इससे पहले कि सँभल पाएँ वे खाई में गिर पड़े। शाब ... गिर गए।" किशन चीखा । "जवाहर ...!" भाई की पुकार वादियों की शांति भंग कर गई। वे खाई की ओर तेजी से बढ़े। रस्सी से बँधे जवाहरलाल हवा में लटक रहे थे। उफ़, कैसा झटका लगा। दोनों तरफ़ चट्टानें ही चट्टानें, नीचे गहरी खाई। जवाहरलाल कसकर रस्सी पकड़े थे, वही उनका एकमात्र सहारा था।

"जवाहर ...!" ऊपर से भाई की पुकार सुनाई दी। मुँह ऊपर उठाया तो भाई और किशन के धुंधले चेहरे खाई में झाँकते हुए दिखाई दिए। "हम खींच रहे हैं, रस्सी कस के पकड़े रहना, " भाई ने हिदायत दी।

जवाहरलाल जानते थे कि फिसलन के कारण यूँ ऊपर खींच लेना आसान नहीं होगा। “भाई, मैं चट्टान पर पैर जमा लूँ." वह चिल्लाए खाई की दीवारों से उनकी आवाज़ टकराकर दूर-दूर तक गूँज गई। हल्की-सी पेंग बढ़ा जवाहरलाल ने खाई की दीवार से उभरी चट्टान को मज़बूती से पकड़ लिया और पथरीले धरातल पर पैर जमा लिए पैरों तले धरती के एहसास से जवाहरलाल की हिम्मत बढ़ गई। 'घबराना मत, जवाहर " भाई की आवाज़ सुनाई दी।

"मैं बिल्कुल ठीक हूँ," कहकर जवाहरलाल मजबूती से रस्सी पकड़ एक-एक कदम ऊपर की ओर बढ़ने लगे। कभी पैर फिसलता, कभी कोई हल्का-फुल्का पत्थर पैरों के नीचे से सरक जाता, तो वह मन-ही-मन काँप जाते और मज़बूती से रस्सी पकड़ लेते। रस्सी से हथेलियाँ भी जैसे कटने लगीं थीं पर जवाहरलाल ने उस तरफ ध्यान नहीं दिया। कुली और किशन उन्हें खींचकर बार-बार ऊपर चढ़ने में मदद कर रहे थे। 

धीरे-धीरे सरक कर किसी तरह जवाहरलाल ऊपर पहुँचे। मुड़कर ऊपर से नीचे देखा कि खाई इतनी गहरी थी कि कोई गिर जाए तो उसका पता भी न चले। "शुक्र है, भगवान का!" भाई ने गहरी साँस ली। "शाव, चोट तो नहीं आई?" एक कुली ने पूछा। गर्दन हिला, कपड़े झाड़ जवाहरलाल फिर चलने को तैयार हो गए। इस हादसे से हल्का-सा झटका ज़रूर लगा फिर भी जोश ठंडा नहीं हुआ। वह अब भी आगे जाना चाहते थे।

आगे चलकर इस तरह की गहरी और चौड़ी खाइयों की तादाद बहुत थी। खाइयाँ पार करने का उचित सामान भी तो नहीं था। निराश होकर जवाहरलाल को अमरनाथ तक का सफ़र अधूरा छोड़कर वापस लौटना पड़ा। अमरनाथ पहुँचने का सपना तो पूरा ना हो सका पर हिमालय की ऊँचाइयाँ सदा जवाहरलाल को आकर्षित करती रहीं।

सुरेखा पणंदीकर

चुनौती हिमालय की के प्रश्न उत्तर | Class 5 Hindi Chapter 18  | Chunauti Himalaya Ki Question Answer

  • Chunauti Himalay Ki Class 5 Notes CBSE Hindi Chapter 18
  • NCERT Solutions for Class 5 Hindi Chapter 18 चुनौती हिमालय की
  • NCERT Solutions for Class 5 Hindi Chunauti Himalaya Ki
  • चुनौती हिमालय की Chunauti Himalaya Ki Explanation // Class 5 
  • Chunauti Himalaya ki Class 5th Hindi chapter 18 
  • चुनौती हिमालय की पाठ 18 हिंदी class 5th
  • Chunauti Himalaya Ki Class 5 Question Answers
  • NCERT Solutions: Chunauti Himalaya ki Notes
  • NCERT Solutions for Class 5 Hindi Chapter 18 चुनौती हिमालय की
  • NCERT Solutions for Class 5 Hindi Chapter 18 चुनौती हिमालय की
  • चुनौती हिमालय की 5th NCERT CBSE Hindi Rimjhim Ch 18
  • Chunauti Himalaya Ki चुनौती हिमालय की

NCERT Solutions for Class 5 Hindi | NCERT Class 5 Hindi Solutions pdf

Cha NoChapter Name And Solutions link
1रखा की रस्सी
2फसलें का त्योहार
3खिलौनेवाला
4नन्हा फनकार
5जहाँ चाह वहाँ राह
6चिट्ठी का सफर
7डाकिए की कहानी ,कंवरसिंह की जुबानी
8वे दिन भी क्या दिन थे
9एक माँ की बेबसी
10एक दिन की बादशाहत
11चावल की रोटियां
12गुरु और चेला
13स्वामी की दादी
14बाघ आया उस रात
15बिशन की दिलेरी
16पानी रे पानी
17छोटी-सी हमारी नदी
18चुनौती हिमालय की

Post a Comment

Thanks for Comment

Previous Post Next Post