जहाँ चाह वहाँ राह के प्रश्न उत्तर | Class 5 Hindi Chapter 5 | Jahan Chah Wahan Raah Question Answer

जहाँ चाह वहाँ राह के प्रश्न उत्तर | Class 5 Hindi Chapter 5 | Jahan Chah Wahan Raah Question Answer

जहाँ चाह वहाँ राह के प्रश्न उत्तर | Class 5 Hindi Chapter 5 | Jahan Chah Wahan Raah Question Answer

जहाँ चाह वहाँ राह

Question: 1. इला या इला जैसी कोई लड़की यदि तुम्हारी कक्षा में दाखिला लेती तो तुम्हारे मन में कौन-कौन-से उठते?

Answer:
इला या इला जैसी कोई लड़की यदि मेरी कक्षा में दाखिला लेती तो मेरे मन में तरह-तरह के Question: उठते, जैसे
  • वह कपड़े कैसे पहनती होगी?
  • वह कैसे खाती होगी?
  • वह अपना गृहकार्य कैसे करती होगी?
  • वह अपने बाल कैसे संवारती होगी?
  • कहीं खुजली होने पर वह कैसे खुजलाती होगी?

Question: 2. इस लेख को पढ़ने के बाद क्या तुम्हारी सोच में कुछ बदलाव आए?

Answer:
पहले मुझे लगता था कि अपंग व्यक्ति शारीरिक रूप से ही नहीं वरन् मानसिक रूप से भी कमजोर होते हैं। उन्हें सहारे और सहानुभूति की जरूरत होती है। वे खुद से कोई काम नहीं कर सकते, स्कूल में दाखिला लेकर लिखने-पढ़ने की बात तो बहुत दूर है। लेकिन अब मेरी सोच बिल्कुल बदल गई है। अब मैं उन्हें आत्मविश्वास . और साहस से भरा पाती हूँ। वे हमसे थोड़ा भी कम नहीं हैं। बल्कि कभी-कभी तो कार्यकुशलता में वे हमसे इतने आगे हो जाते हैं कि वे हमसे नहीं, हम उनसे प्रेरणा लेने लग जाते हैं।
मैं भी कुछ कर सकती हूँ..

Question: 1. यदि इला तुम्हारे विद्यालय में आए तो उसे किन-किन कामों में परेशानी आएगी?

Answer:
उसे अपना स्कूल बैग ढ़ोने में, लिखने में, बेंच अगर सीधा नहीं है तो उसे सीधा करने में, अपनी कक्षा के साथियों के साथ झूला आदि खेलने में परेशानी आएगी।

Question: 2. उसे यह परेशानी न हो इसके लिए अपने विद्यालय में क्या तुम कुछ बदलाव सुझा सकती हो?

Answer:
उसके लिए एक लिखने वाले की व्यवस्था की जाए या उसे सब कुछ मौखिक पढ़ाया जाए।
प्यारी इला…
इला के बारे में पढ़कर जैसे भाव तुम्हारे मन में उठ रहे हैं उन्हें इला को चिट्ठी लिखकर बताओ। चिट्ठी की रूपरेखा नीचे दी गई है।
Answer:
प्रीत विहार
नई दिल्ली
दिनांक 5 मार्च 2012
प्रिय इला
जब पहली बार मैंने तुम्हें देखा तो मुझे लगा कि तुम अपने सारे काम किसी दूसरे से करवाती होगी। लेकिन अब तो मुझे तुम पर गर्व होता है। तुम आत्मविश्वास से भरी हो। तुम अपनी अपंगता को अपनी दृढ़ इच्छा-शक्ति पर कभी हावी नहीं होने देती। हाथ नहीं होने के बावजूद तुम कशीदाकारी जैसी मुश्किल कला में निपुणता हासिल कर ली हो। यह वाकई बेमिशाल है। हम हाथ वाले भी ऐसा काम नहीं कर पाते। तुम मेरे लिए ही नहीं सबके लिए प्रेरणा की स्रोत हो। भगवान तुम्हारे आत्मविश्वास और दृढ़ इच्छाशक्ति को बनाए रखे और तुम सफलता पर सफलता हासिल करती जाओ। इन्हीं कामनाओं के साथ।
तुम्हारा/तुम्हारी।
सुरभि

सवाल हमारे, जवाब तुम्हारे

Question: 1. इला को लेकर स्कूल वाले चिंतित क्यों थे? उनका चिंता करना सही था या नहीं? अपने का कारण लिखो।

Answer:
स्कूल वाले उसकी सुरक्षा और उसके काम करने की गति को लेकर अर्थात उसकी अपंगता को लेकर चिंतित थे। उनका चिंता करना कुछ हद तक सही था, कुछ हद तक नहीं। जहाँ तक उसकी सुरक्षा संबंधी चिंता थी, वह तो सही था लेकिन उसकी अपंगता को लेकर चिंतित होना सही नहीं था क्योंकि इला कोई भी काम इतनी फुर्ती से करतीं थी कि देखने वाले दंग रह जाते थे।

Question: 2. इला की कशीदाकारी में खास बात क्या थी?

Answer:
इला की कशीदाकारी में काठियावाड़ के साथ-साथ लखनऊ और बंगाल की भी झलक थी। उसने काठियावाड़ी | टॉकों के साथ-साथ और कई टाँके भी इस्तेमाल किए थे। पत्तियों को चिकनकारी से सजाया था। डंडियों को कांथा से उभारा था। पशु-पक्षियों की ज्यामितीय आकृतियों को कसूती और जंजीर से उठा रखा था।

Question: 3. सही के आगे (✓) का निशान लगाओ।

इला दसवीं की परीक्षा पास नहीं कर सकी, क्योंकि…
परीक्षा के लिए उसने अच्छी तरह तैयारी नहीं की थी।
वह परीक्षा पास करना नहीं चाहती थी।
लिखने की गति धीमी होने के कारण वह पत्र पूरे नहीं कर पाती थी।
उसको पढ़ाई करना कभी अच्छा लगा ही नहीं।
Answer:
लिखने की गति धीमी होने के कारण वह पत्र पूरे नहीं कर पाती थी।

Question: 4. क्या इला अपने पैर के अंगूठे से कुछ भी करना सीख पाती, अगर उसके आस-पास के लोग उसके लिए सभी काम स्वयं कर देते और उसको कुछ करने का मौका नहीं देते?

Answer:
यदि इला के आस-पास के लोग उसके लिए सभी काम स्वयं कर देते और उसको कुछ करने का मौका नहीं देते। तो वह अपने पैर के अँगूठे से कुछ भी करना सीख नहीं पाती।

कशीदाकारी

Question: 1. (क) इस पाठ में सिलाई-कढ़ाई से संबंधित कई शब्द आए हैं। उनकी सूची बनाओ। अब देखो कि इस पाठ को पढ़कर तुमने कितने नए शब्द सीखे।

Answer:
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(ख) नीचे दी गई सूची में से किन्हीं दो से संबंधित शब्द (संज्ञा और क्रिया दोनों ही) इकट्ठा करो।
फुटबाल बुनाई (ऊन) बागबानी पतंगबाजी
Answer:
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Question: 2. एक सादा रूमाल लो या कपड़ा काटकर बनाओ। उस पर नीचे दिए गए टॉकों में से किसी एक टाँके का इस्तेमाल करते हुए बड़ों की मदद से कढ़ाई करो।
जंजीरमछली टाँकाभरवाँ टाँका
उल्टी बखियाखुला हुआ जंजीर टाँका
Answer:
स्वयं करो।

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मलमली धोती का बादामी रंग खिल उठा था। किनारों पर कसूती के टाँकों से पिरोई हुई बेल थी । पल्लू पर भरवाँ टाँके अपना कमाल दिखा रहे थे। सुनहरे - रूपहले बेल-बूटों से जान आ गई थी मलमल में इन बेल-बूटों को सजाया था इला सचानी ने। इला की हिम्मत की अनूठी मिसाल हैं ये कढ़ाई के नमूने छब्बीस साल की इला गुजरात के सूरत जिले में रहती हैं। उनका बचपन

अमरेली जिले के राजाकोट गाँव में अपने नाना के यहाँ बीता। साँझ होते ही मोहल्ले के बच्चे घरों से बाहर आ जाते। कुछ मिट्टी में आड़ी-तिरछी लकीरें खींचते, कुछ कनेर के पत्तों से पिटपिटी बजाते, खेलते, कुछ इधर-उधर से टूटे-फूटे घड़ों के ठीकरे बटोरकर पिट्टू खेलते । जब कुछ गिट्टे इन खेलों से मन भर जाता तो पेड़ की डालियों पर झूला डालकर ऊँची-ऊँची फेंगे लेते और ऊँचे स्वर में एक साथ गाते- कच्चे नीम की निंबौरी सावन जल्दी अइयो रे!

इला गाने में तो उनका साथ देती, पर उनके साथ पेंगे नहीं ले पाती। रस्सी पकड़ने को हाथ बढ़ाती मगर हाथ तो उठते ही नहीं थे। वह चुपचाप एक किनारे बैठ जाती । मन-ही-मन सोचती, "मैं भी ऐसा कुछ क्यों नहीं कर पाती हूँ। बच्चे भी चाहते कि इला किसी-न-किसी तरह तो उनके साथ खेल सके। कभी-कभार वह पकड़म-पकड़ाई और विष अमृत के खेल में शामिल हो जाती। साथियों के साथ जमकर दौड़ती मगर जब 'धप्पा' करने की बारी आती तो फिर निराश हो जाती। हाथ ही नहीं उठेंगे तो धप्पा कैसे देगी? वह बहुत कोशिश करती पर उसके हाथों ने तो जैसे उसका साथ न देने की ठान रखी हो। इला ने अपने हाथों की इस जिद को एक चुनौती माना।

उसने वह सब अपने पैरों से करना सीखा जो हम हाथों से करते हैं। दाल-भात खाना, दूसरों के बाल बनाना, फ़र्श बुहारना, कपड़े धोना, तरकारी काटना यहाँ तक में कि तख्ती पर लिखना भी उसने एक स्कूल में दाखिला ले लिया। दाखिला मिलने में भी उसे परेशानी हुई। कहीं तो उसकी सुरक्षा को लेकर चिंता थी, कहीं उसके काम करने की गति को लेकर किसी काम को तो वह इतनी फुर्ती से कर जाती कि देखने वाले दंग रह जाते। पर किसी-किसी काम में थोड़ी बहुत परेशानी तो आती ही थी। 

वह परेशानियों के आगे घुटने टेकने वाली नहीं थी। उसने दसवीं कक्षा तक पढ़ाई की। वह दसवीं की परीक्षा पास नहीं कर पाई। इला को यह मालूम न था कि परीक्षा के लिए उसे अतिरिक्त समय नहीं मिल सकता है। उसे ऐसे व्यक्ति की सुविधा भी मिल सकती थी जो परीक्षा में उसके लिए लिखने का काम कर सके। यह जानकारी इला को समय रहते मिल जाती तो कितना अच्छा रहता। उसे इस बात का दुख है पर यहाँ आकर सब कुछ खत्म तो नहीं हो जाता न!

उसकी माँ और दादी कशीदाकारी करती थीं। वह उन्हें सुई में रेशम पिरोने से लेकर बूटियाँ उकेरते हुए देखती । न जाने कब उसने कशीदाकारी करने की ठान ली। यहाँ भी उसने अपने पैर के अंगूठों का सहारा लिया। दोनों अँगूठों के बीच सुई थामकर कच्चा रेशम पिरोना कोई आसान काम नहीं था। पर कहते हैं न, जहाँ चाह वहाँ राह उसके विश्वास और धैर्य ने कुदरत को भी झुठला दिया।

पंद्रह-सोलह साल की होते-होते इला काठियावाड़ी कशीदाकारी में माहिर हो चुकी थी। किस वस्त्र पर किस तरह के नमूने बनाए जाएँ, कौन-से रंगों से नमूना खिल उठेगा और टाँके कौन-से लगें, यह सब वह समझ गई थी।

एक समय ऐसा भी आया अब उसके द्वारा काढ़े गए परिधानों की प्रदर्शनी लगी। इन परिधानों में काठियावाड़ के साथ-साथ लखनऊ और बंगाल भी झलक रहा था। इला ने काठियावाड़ी टाँकों के साथ-साथ और कई टाँके भी इस्तेमाल किए थे। पत्तियों को चिकनकारी से सजाया था। डंडियों को कांथा से उभारा था। पशु-पक्षियों की ज्यामितीय आकृतियों को कसूती और जंजीर से उठा रखा था ।

पारंपरिक डिजाइनों में यह नवीनता सभी को बहुत भाई। इला के पाँव अब रुकते नहीं हैं। आँखों में चमक, होंठो पर मुस्कान और अनूठा विश्वास लिए वह सुनहरी रूपहली बूटियाँ उकेरते थकती नहीं हैं।

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Cha NoChapter Name And Solutions link
1रखा की रस्सी
2फसलें का त्योहार
3खिलौनेवाला
4नन्हा फनकार
5जहाँ चाह वहाँ राह
6चिट्ठी का सफर
7डाकिए की कहानी ,कंवरसिंह की जुबानी
8वे दिन भी क्या दिन थे
9एक माँ की बेबसी
10एक दिन की बादशाहत
11चावल की रोटियां
12गुरु और चेला
13स्वामी की दादी
14बाघ आया उस रात
15बिशन की दिलेरी
16पानी रे पानी
17छोटी-सी हमारी नदी
18चुनौती हिमालय की

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