ब्लॉग लेखन - Blog Lekhan | ब्लॉग कैसे लिखें [12th लेखक रचना स्वाध्याय ]

ब्लॉग लेखन - Blog Lekhan [12th लेखक रचना स्वाध्याय ]

ब्लॉग लेखन - Blog Lekhan | ब्लॉग कैसे लिखें  [12th लेखक रचना स्वाध्याय ]

पाठ पर आधारित

पाठ पर आधारित | Q 1 | Page 99
1) ब्लॉग लेखन सेतात्पर्य 
SOLUTION
ब्लॉग अपना विचार, अपना मत व्यक्त करने का एक डिजिटल माध्यम है। ब्लॉग के माध्यम से हम जो कुछ कहना चाहते हैं, उसके लिए किसी से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होती। ब्लॉग लेखन में शब्द संख्या का बंधन नहीं होता। हम अपनी बात को जितना विस्तार देना चाहें, दे सकते हैं। डिजिटल माध्यम हैं। ब्लॉग, वेबसाइट, पोर्टल आदि अखबार, पत्रिका या पुस्तक हाथ में लेकर पढ़ने के स्थान पर उसे कंप्यूटर, टैब या सेलफोन पर पढ़ना डिजिटल माध्यम कहलाता है। 

इसके कारण लेखक और पत्रकार भी ग्लोबल हो गए हैं। इस माध्यम के द्वारा पूरी दुनिया की कोई भी जानकारी क्षण भर में ही परदे पर उपलब्ध हो जाती है। नवीन वाचकों की संख्या मुद्रित माध्यम के वाचकों से बहुत अधिक है। इस वर्ग में युवा वर्ग अधिक संख्या में हैं। जस्टीन हॉल ने सन 1994 में सबसे पहले इस शब्द का प्रयोग किया। जॉन बर्गर ने इसके लिए वेब्लॉग शब्द का प्रयोग किया था। माना जाता है कि 1999 में पीटर मेरहोल्स ब्लॉग शब्द को प्रस्थापित कर उसे व्यवहार में लाए। भारत में 2002 के बाद ब्लॉग लेखन आरंभ हुआ और देखते-देखते यह माध्यम लोकप्रिय हो गया। साथ ही इसे अभिव्यक्ति के नए माध्यम के रूप में मान्यता भी प्राप्त हुई।

2) ब्लॉग प्रारंभ करने की प्रक्रिया ।
SOLUTION
यह एक टेक्निकल अर्थात तकनीकी प्रक्रिया है। इसके लिए डोमेन अर्थात ब्लॉग के शीर्षक को रजिस्टर्ड कराना होता है। इसके बाद उसे किसी सर्वर से जोड़ना पड़ता है। उसमें अपनी विषय सामग्री समाविष्ट करके हम इस माध्यम का प्रयोग कर सकते हैं। भारत में २००२ के बाद ब्लॉग लेखन आरंभ हुआ और देखते देखते यह माध्यम लोकप्रिय हो गया। साथ ही इसे अभिव्यक्ति के नए माध्यम के रूप में मान्यता भी प्राप्त हुई। विज्ञापन, फेसबुक, वॉट्सऐप, एस एम एस आदि द्वारा इसका प्रचार होता है। 

आकर्षक चित्रों, छायाचित्रों के साथ विषय सामग्री यदि रोचक हो तो पाठक ब्लॉग की प्रतीक्षा करता है और उसका नियमित पाठक बन जाता है। ब्लॉग लेखक के पास लोगों से संवाद स्थापित करने के लिए बहुत-से विषय होने चाहिए। विपुल पठन, चिंतन तथा भाषा का समुचित ज्ञान होना आवश्यक है। भाषा सहज और प्रवाहमयी हो तो पाठक उसे पढ़ना चाहेगा। साथ ही लेखक के पास विषय से संबंधित संदर्भ, घटनाएँ और यादें हों तो ब्लॉग पठनीय होगा। जिस क्षेत्र या जिस विख्यात व्यक्ति के संदर्भ में आप लिख रहे हैं, उस व्यक्ति से आपका संबंध कैसे बना? किसी विशेष भेंट के दौरान उस व्यक्ति ने आपको कैसे प्रभावित किया? यदि वह व्यक्ति आपके निकटस्थ परिचितों में है तो उसकी सहदयता, मानवता आदि से संबंधित कौन-सा पहलू आपकी स्मृति में रहा। ऐसे अनेक विषय शब्दांकित किए जा सकते हैं।

3) ब्लॉग लेखन में बरतनी जाने वाली सावधानियों पर प्रकाश डालिए ।
SOLUTION
(१) ब्लॉग लेखन के विषय का चुनाव करते समय सूझ बूझ का होना आवश्यक है।
(२) ब्लॉग लेखन में इस बात का ध्यान रखना पड़ता है कि उसमें मानक भाषा का प्रयोग हो। व्याकरणिक अशुद्धियाँ न हों।
(३) ब्लॉग लेखन के लिए प्राप्त स्वतंत्रता का उचित उपयोग करना चाहिए। लेखन की स्वतंत्रता से हमें यह नहीं समझना चाहिए कि हम कुछ भी लिख सकते हैं।
(४) ब्लॉग लेखन में सामाजिक स्वास्थ्य का विचार हो। वह समाज विघातक न हो। ब्लॉग लेखक को किसी की निंदा करना, किसी पर गलत टिप्पणी करना, समाज में तनाव की स्थिति उत्पन्न करना आदि बातों से दूर रहना चाहिए।
(५) ब्लॉग लेखन में आक्रामकता से अर्थात गाली-गलौज अथवा अश्लील शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए। कोई भी पाठक ऐसी भाषा को पसंद नहीं करता।
(६) बिना सबूत के किसी पर आरोप लगाना गंभीर अपराध है।
(७) पाठक ऐसे लेखकों की बात गंभीरता से नहीं पढ़ते। परिणाम स्वरूप ब्लॉग की आयु अल्प हो जाती है।
(८) ब्लॉग लेखन में सामाजिक संकेतों का पालन आवश्यक है।
(९) ब्लॉग लेखन करते समय छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखा जाए तो पाठक ही हमारे ब्लॉग के प्रचारक बन जाते हैं।

4) अपने शहर की विशेषताओं पर ब्लॉग लेखन कीजिए ।
SOLUTION
मैं महाराष्ट्र के नासिक जिले में रहता हूँ। यह महाराष्ट्र का एक छोटा शहर है। यह नाशिक-पुणे राजमार्ग पर स्थित है। यह एक सुंदर व आदर्श शहर है। यहाँ की इमारतें भव्य और दर्शनीय हैं।

शहर की जनसंख्या : यह एक घना बसा हुआ नगर है। इसमें लगभग एक लाख लोग रहते हैं। यह मुख्य रूप से हिंदू बहुल नगर है। हिंदुओं के अतिरिक्त इसमें मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि अन्य धर्मों के लोग भी रहते हैं। हमारे नगर के लोग बहुत अच्छे हैं। वे सदैव एक-दूसरे की मदद करने को तत्पर रहते है। यहाँ के लोगों में बहुत एकता है। सभी लोग बहुत ईमानदार और परिश्रमी हैं।

शहर का मुख्य व्यवसाय : यहाँ के लोगों का मुख्य व्यवसाय व्यापार है। यहाँ एक बड़ी शुगर मिल है। कुछ अन्य फैक्टरियाँ भी हैं, जो बोगियों के लिए धुरे और पहिये बनाती हैं। यहाँ तीन मंडियाँ हैं, जहाँ माल के क्रय-विक्रय के लिए आस-पास से बहुत-से लोग आते हैं।

विद्यालय, कॉलेज व चिकित्सालय : हमारा शहर शिक्षा का एक केंद्र है। यहाँ दो स्नातकोत्तर विद्यालय और चार उच्च माध्यमिक कॉलेज हैं। हमारे जिले का एकमात्र राजकीय गर्ल्स उच्च माध्यमिक कॉलेज हमारे शहर में ही है। आस-पास के गाँवों से बहुत-से लड़के लड़कियाँ यहाँ शिक्षा प्राप्त करने आते हैं। हमारे शहर में अनेक चिकित्सालय हैं और सरकारी डिस्पेंसरी भी है।

अन्य आकर्षण : मेरे शहर के निकट शरद पूर्णिमा को नदी के किनारे प्रत्येक वर्ष मेला लगता है। नदी के निकट एक बहुत विशाल परिसर में शिव, दुर्गा, राम, कृष्ण तथा हनुमान जी के मंदिर हैं। इस मेले में बहुत भीड़ होती है। आस-पास के गाँवों के सैंकड़ों दुकानदार कई दिन पहले से ही मेले में अपनी दुकानें सजाने लगते हैं। लोग दूर-दूर से इस मेले को देखने आते हैं। लोगों की इतनी भीड़ होती है कि तिल रखने की जगह नहीं होती।
मुझे अपने शहर से बहुत प्यार है। मैं अपना संपूर्ण जीवन इसी शहर में व्यतीत करना चाहता हूँ। मुझे नहीं लगता कि किसी अन्य शहर में मैं इतनी सुख और शांति से जीवन बिता सकूँगा।

5) ग्रामीण समस्याओं पर ब्लॉग लेखन कीजिए ।
SOLUTION
भारत की ७० प्रतिशत आबादी आज भी गाँवों में रहती है। अतः ग्रामीण क्षेत्रों की हालत ही हमारे देश का वास्तविक प्रतिबिम्ब है। भारतवर्ष उस गति से तरक्की नहीं कर पा रहा, जिस गति से उसे करनी चाहिए।

भारत के गाँवों में विभिन्न समस्याएं :
गरीबी : १३० करोड़ लोगों के देश में लगभग ४० करोड़ लोग आज भी गरीबी रेखा के नीचे रह रहे हैं। और यह आबादी अधिकांश रूप से गाँवों में ही हैं। छोटे किसान हमेशा कर्ज से लदे रहते हैं। वे बड़े किसानों पर निर्भर रहते है। अंततः बड़ जमींदार छोटे किसानों की जमीनें हड़प लेते हैं। आबादी में वृद्धि के कारण जमीनों का बँटवारा होता जा रहा है। अतः जमीन-जायदाद के टुकड़े हो जाते हैं। छोटे टुकड़े फलदायी नहीं रहते और उनके मालिक कृषि करके घाटा उठाते हैं। जिसके कारण हालात दिनोंदिन बदतर होते जा रहे हैं।

बेरोजगारी : ग्रामीण इलाकों में रोजगार का अभाव होने से युवाओं को चिंता में देखा जा सकता है। खेतों में अन्न और सब्जियाँ उगाने का एक निश्चित चक्र है। बीज बोकर, सिंचाई करके फसलों को उगने के लिए छोड़ दिया जाता है। ऐसे समय पर न तो किसान के पास कोई काम होता है, न ही वह अपनी फसलों को छोड़कर कहीं और काम करने जा सकता है। अत: आंशिक बेरोजगारी कृषक जीवन का अभिन्न अंग बन गई है।

सूखा और बाढ़ : जो लोग गाँवों में रहकर खून पसीना एक करते हैं, उन पर प्राकृतिक आपदाएँ कहर ढाया करती हैं। बाढ़, सूखा, तूफानी हवाएँ ऐसी अनेक परेशानियाँ हैं, जिन पर मनुष्य का कोई वश नहीं है। कभी सूखे के कारण फसलें नष्ट हो जाती हैं। ग्रामीण भारत में इन समस्याओं के कारण परेशानी बढ़ रही हैं। शिक्षा का अभाव : गाँवों में शिक्षा का नितांत अभाव है। गाँव के लोग आज भी शिक्षा को जरूरी नहीं समझते। स्त्री-पुरुष सभी सुरक्षित रह जाते हैं।
परिणामस्वरूप वे गरीबी के कुचक्र को नहीं तोड़ पाते, क्योंकि वे शिक्षा के माध्यम से आगे बढ़ने के सभी अवसर खो देते हैं। अपने बच्चों को भी समुचित शिक्षा नहीं दिला पाते। शिक्षा के अभाव में ग्रामीण लोग मानसिक रूप से विकसित नहीं हो पाते।

स्वास्थ्य सुविधाएँ : ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं की भी कमी है। कोई भी डॉक्टर ग्रामीण इलाकों में नहीं रहना चाहता। प्राइमरी हेल्थ सेंटर में दी जाने वाली दवाइयाँ और डॉक्टरी परामर्श आज भी मध्ययुग जैसी हैं। ग्रामीण अपनी चिकित्सा पर अधिक खर्च नहीं कर सकते। यही कारण है कि गाँवों में झोलाछाप डॉक्टरों और दाइयों का धंधा खूब पनपता है।

ब्लॉग लेखन - Blog Lekhan [12th लेखक रचना स्वाध्याय ]

लेखक परिचय ः ब्लॉग लेखन के सफलतम लेखक प्रवीण बर्दापूरकर का जन्म ३ सितंबर १९55 को गुलबर्गामें हुआ ।  मराठी पत्रकारिता में आपको सम्मान का स्थान प्राप्त है । राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्रों का गहराई  से अध्ययन करने वाले तथा उन्हें समझने वाले निर्भीक पत्रकार के रूप में आप सुपरिचित हैं । आपने पत्रकारिता क्षेत्र में ब्लॉग  लेखन को बहुत ही लोकप्रिय बनाया है । आपने अपने ब्लॉग द्वारा बदलते सामाजिक विषयों को परिभाषित करते हुए  जनमानस की विचारधारा को नयी दिशा देने का प्रयास किया है । आपके ब्लॉग धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण की पुष्टि करते हैं ।  सीधी-सादी, रोचक और संप्रेषणीय मराठी और हिंदी भाषा आपके ब्लॉग की विशेषता है ।

प्रमुख कृतियाँ ः ‘डायरी’, ‘नोंदी डायरीनंतरच्या’, ‘दिवस असे की’, ‘आई’, ‘ग्रेस नावाचं गारूड’ आदि ।
आलेख ः वर्तमान समय में आलेख लेखन को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ है । समाचारपत्रों में छपने वाले विभिन्न आलेख  विज्ञान, राजनीति, समसामयिक विषयों की विस्तृत, उपयोगी एवं ज्ञानवर्द्धक जानकारी देते हैं । फलस्वरूप पाठकों एवं  चनाकारों में आलेख लेखन के प्रति पठन एवं लेखन का भाव जाग्रत हो गया है ।

पाठ परिचय ः आधुनिक समय में पत्रकारिता का क्षेत्र बड़ी तेजी से फैलता जा रहा है । समाचारपत्र हों अथवा टेलीविजन के  समाचार चैनल हों... पत्रकारिता अछूती नहीं रही है । पत्रकारिता क्षेत्र में ब्लॉग लेखन का प्रचलन भी लोकप्रिय बनता जा रहा  है । प्रस्तुत पाठ में लेखक ने ब्लॉग लिखने के नियम, ब्लॉग का स्वरूप और उसके वैज्ञानिक पक्ष की चर्चा करते हुए उसके  महत्त्व को स्पष्ट किया है । ब्लॉग लेखन जहाँ एक ओर सामाजिक जागरण का माध्यम बन चुका है; वहीं पत्रकारिता के  जीवित तत्त्व के रूप में भी स्वीकृत हुआ है तथा बड़ा ही लोकप्रिय माध्यम बन चुका है ।

ब्लाॅग लेखन सेतात्पर्य :
‘ब्लॉग’ अपना विचार, अपना मत व्यक्त करने का  एक डिजिटल माध्यम है । ब्लॉग के माध्यम से हमें जो  कहना है; उसके लिए किसी की अनुमति लेने की  आवश्यकता नहीं होती । ब्लॉग लेखन में शब्दसंख्या का  बंधन नहीं होता । अत: हम अपनी बात को विस्तार से रख  सकते हैं । ब्लॉग, वेबसाइट, पोर्टल आदिडिजिटल माध्यम हैं । अखबार, पत्रिका या पुस्तक हाथ में लेकर पढ़ने की  बजाय उसे कंप्यूटर, टैब या सेलफोन से परदे पर पढ़ना  डिजिटल माध्यम कहलाता है । इस प्रकार का वाचन करने  वाली पीढ़ी इंटरनेट के महाजाल के कारण निर्माण हुई है ।  इसके कारण लेखक और पत्रकार भी ग्लोबल हो गए हैं ।  नवीन वाचकों की संख्या मुद्रित माध्यम के वाचकों से बहुत अधिक है । इस वर्ग में युवा वर्ग अधिक संख्या में है ।  दुनिया की कोई भी जानकारी एक क्षण में ही परदे पर  उपलब्ध हो जाती है । 

ब्लॉग की खोज :
ब्लॉग की खोज के संदर्भ में निश्चित रूप से कोई  डॉक्युमेंटेशन उपलब्ध नहीं है पर जो जानकारी उपलब्ध है  उसके अनुसार जस्टीन हॉल ने सन १९९4 में सबसे पहले  इस शब्द का प्रयोग किया । जॉन बर्गर ने इसके लिए वेब्लॉग  (Weblog) शब्द का प्रयोग किया था । माना जाता है कि सन १९९९ में पीटर मेरहोल्स ने ‘ब्लॉग’ शब्द को प्रस्थापित कर उसे व्यवहार में लाया । भारत में २००२ के बाद  ‘ब्लॉग लेखन’ आरंभ हुआ और देखते-देखते यह माध्यम

लोकप्रिय हुआ तथा इसे अभिव्यक्ति के नये माध्यम के रूप  में मान्यता भी प्राप्त हुई । ब्लॉग लेखन शुरू करनेकी प्रक्रिया : यह एक टेक्निकल अर्थात तकनीकी प्रक्रिया है ।  इसके लिए डोमेन (Domain) अर्थात ब्लॉग के शीर्षक को  रजिस्टर्ड कराना होता है । उसके बाद वह किसी सर्वर से  जोड़ना पड़ता है । उसमें अपनी विषय सामग्री समाविष्ट कर  हम इस माध्यम का उपयोग कर सकते हैं । इस संदर्भ में  विस्तृत जानकारी ‘गूगल’ पर उपलब्ध है । कुछ विशेषज्ञइस संदर्भमें सशुल्क सेवाएँ देते हैं । 

ब्लॉग लेखक के लिए आवश्यक गुण :
ब्लॉग लेखक के पास लोगों से संवाद स्थापित करने के लिए बहुत-से विषय होने चाहिए । विपुल पठन, चिंतन तथा भाषा का समुचित ज्ञान होना आवश्यक है । भाषा  सहज, प्रवाहमयी हो तो ही पाठक उसे पढ़ेगा । साथ ही  लेखक के पास विषय से संबंधित संदर्भ, घटनाएँ और यादें  हों तो ब्लॉग पठनीय होगा । जिस क्षेत्र या जिस विख्यात व्यक्ति के संदर्भमें आप लिख रहे हैं, उस व्यक्ति से आपका  संबंध कैसे बना? किसी विशेष भेंट के दौरान उस व्यक्ति ने आपको कैसे प्रभावित किया? यदि वह व्यक्ति आपके  निकटस्थ परिचितों में है तो उसकी सहृदयता, मानवता  आदि से संबंधित कौन-सा पहलू आपकी स्मृतियों में रहा?  ऐसे अनेक विषय हैं जिन्हें आप शब्दांकित कर अपने  पाठकों का विश्वास प्राप्त कर सकते हैं ।

  यहाँ इस बात का ध्यान रहे कि विषय में आशय की  गहराई हो । प्रवाही कथन शैली भी इसका एक महत्त्वपूर्ण मापदंड है । क्लिष्ट शब्दों के उपयोग से बचते हुए  सीधी-सादी, सहज भाषा का प्रयोग किया जाए तो पाठक  विषय सामग्री से बहुत जल्दी एकरूप हो जाता है । सटीक विशेषणों के प्रयोग से भाषा को सौष्ठव प्राप्त होता है और  पाठक इसकी ओर आकर्षित होता है । भाषा शब्दों या  अक्षरों का समूह नहीं होता है । प्रत्येक शब्द का विशिष्ट अर्थ के साथ जन्म होता है तथा उस अर्थमें भावनाएँनिहित होती हैं । सहज-सरल होने के साथ भाषा का बाँकपन  ब्लॉग लेखन की गरिमा को बढ़ाता है । ‘शैली’ एक दिन में  नहीं बनती । यह सतत लेखन से ही संभव है । जिस प्रकार  गायक प्रतिदिन रियाज कर राग और बंदिश का निर्माण करने  में निपुण बनता है, उसी प्रकार निरंतर लेखन से लेखक की  शैली विकसित होती है और पाठकों को प्रभावित करती  है ।

ब्लॉग लेखन मेंआवश्यक सावधानियाँ:
ब्लॉग लेखन में इस बात का ध्यान रखना पड़ता है कि उसमें मानक भाषा का प्रयोग हो । व्याकरणिक अशुद्‌धियाँ ना हों; लेखन की स्वतंत्रता से तात्पर्य कुछ भी लिखने का  अनुमतिपत्र नहीं मिल जाता है । आक्रामकता का अर्थ गाली-गलौज अथवा अश्लील शब्दों का प्रयोग करना नहीं  है । पाठक ऐसी भाषा को पसंद नहीं करते । किसी की निंदा  करना, किसी पर गलत टिप्पणी करना, समाज में तनाव की  स्थिति उत्पन्न करना आदि बातों से ब्लॉग लेखक को दूर  रहना चाहिए । बिना सबूत के किसी पर कोई आरोप करना  एक गंभीर अपराध है । 

ऐसा करने से पाठक आपकी कोई  भी बात गंभीरता से नहीं पढ़ते और ब्लॉग की आयु अल्प हो जाती है । लेखन करते समय छोटी-छोटी बातों का  ध्यान रखा जाए तो पाठक ही हमारे ब्लॉग के प्रचारक बन  जाते हैं । एक पाठक दूसरे से सिफारिश करता है, दूसरा  तीसरे से और यह श्रृंखला बढ़ती चली जाती है । ब्लॉग लेखन का प्रसार : ब्लॉग लेखक अपने ब्लॉग का प्रचार-प्रसार स्वयं कर  सकता है । विज्ञापन, फेसबुक, वाॅट्स एेप, एसएमएस आदि द्वारा इसका प्रचार होता है । 

आकर्षक चित्रों-छायाचित्रों के साथ विषय सामग्री यदि रोचक हो तो पाठक ब्लॉग की  प्रतीक्षा करता है और उसका नियमित पाठक बन जाता है । ब्लॉग लेखन सेआर्थिक लाभ : ब्लॉग लेखन से आर्थिक लाभ भी होता है । विशेष  रूप से हिंदी और अंग्रेजी ब्लॉग लेखन का व्यापक पाठक  वर्ग होने से इसमें अच्छी कमाई होती है । विद्यार्थी अपने  अनुभव तथा विचार ब्लॉग लेखन द्वारा साझा कर सकते  हैं । प्रत्येक विद्यार्थी की अपनी जीवनशैली, अपना संघर्ष,  अपनी सफलताएँविभिन्न रूपों में अभिव्यक्त हो सकती  हैं । राजनीतिक विषयों के लिए अच्छा प्रतिसाद मिलता  है । इसके अतिरिक्त जीवनशैली तथा शिक्षा विषयक ब्लॉग  पढ़ने वाला पाठक वर्ग भी विपुल मात्रा में है । यात्रा वर्णन,  आत्मकथात्मक तथा अपने अनुभव विश्व से जुड़े जीवन  की प्रेरणा देने वाले विषय भी बड़े चाव से पढ़े जाते हैं ।

महात्मा गांधी - जीनेकी प्रेणा देने वाला महामानव

 महात्मा गांधीजी के संबंध में सोचता हूँतो मुझे ‘हाथी  और सात अंधों की कहानी’ याद आती है । जिस तरह उन  सात अंधों को उनके स्पर्श से हाथी अलग-अलग रूप में  अनुभव हुआ वही बात महात्मा गांधी के संदर्भमें होती है ।  यह वर्षमहात्मा गांधी का १5० वाँ जयंती वर्ष है ।  आज भी हम गांधीजी, उनके विचार और कार्य को पूर्णत:  समझ नहीं सके । किसी को उनका रहन-सहन, किसी को  उनके विचार, किसी को उनका स्वाधीनता संग्राम का  नेतृत्व, किसी को इस संग्राम में उनका अभूतपूर्व लोकसहभाग, अहिंसा और शांति के संदर्भमें उनके विचार,  किसी को उनके भीतर बसा पत्रकार, किसी को उनके भीतर  का अध्यात्मवादी रूप, किसी को गाँव की ओर चलने का  उनका संदेश भाया तो किसी को खादी का समर्थन करने  वाले, स्वयंपूर्ण ग्राम की संकल्पना प्रस्तुत करने वाले  गांधीजी भाते हैं ।  

कोई उनकी निडरता से परिचित है तो किसी को उनका  संगठक का रूप प्रभावित करता है । इतना ही नहीं; किसी  को उनके व्यक्तित्व से समाजकार्य की प्रेरणा मिलती है तो  कुछ उन्हें ‘जीने की शिक्षा देने वाले शिक्षक’ मानते हैं ।  अनेकों के लिए तो महात्मा गांधीजी जीने के लिए आवश्यक  ऑक्सीजन है । बहुत-से लोग उनके शोषणरहित समाज के  विचार पसंद करते हैं ।  व्यक्तिगत जीवन में मूल्यों के प्रति समर्पित होने वाले  गांधीजी भी अनेक लोगों को प्रभावित करते हैं । कोई उनका  ‘विरोधियों को शस्त्र से नहीं, प्यार से जीता जा सकता है’  वाला विचार पसंद करते हैं । संक्षेप में; महात्मा गांधी किसी  एक की सोच में समा सकने वाला व्यक्तित्व नहीं है ।  महात्मा गांधी नाम का एक विशाल वृक्ष है जो किसी  एक व्यक्ति के आकलन के दायरे में समा नहीं सकता ।  महात्मा गांधी का एक अन्य रूप भी है । सभी धर्मों तथा जातियों के बच्चों-बड़ों को, धनवानों-निर्धनों को,  नगरीय तथा ग्रामीण सभी को महात्मा गांधी अपने लगते  हैं ।

 दिहाड़ी मजदूरी करने वाले अति निर्धन व्यक्ति को भी  गांधीजी अपने में से  एक लगते हैं तथा वे  महात्मा गांधी को पिता  के लिए प्रयुक्त किए  जाने वाले आदरसूचक  ‘मेरे बापू’ शब्द से  संबोधित करते हैं ।  किसी मामूली फकीर  की तरह जीवन जीने  वाले महात्मा गांधी के सम्मुख बड़े-से-बड़े धनवान भी  शीश नवाते हैं । इसीलिए धनवान हो या निर्धन; सभी के  लिए महात्मा गांधी वंदनीय हैं ।   महात्मा गांधी का एकमात्र धर्म था ‘मानवता’ । वे  पूर्णत: धर्मनिरपेक्ष थे । राजनीति के संदर्भमें भी उनकी यही  भूमिका थी । अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी मात्र भारत के  लिए ही नहीं बल्कि विश्व के लिए वंदनीय हैं । आज भी  विश्व के कई देशों में गांधी जयंती के अवसर पर उनके  जीवन दर्शन को याद किया जाता है । उनके विचारों को हम प्रत्यक्ष में उतार नहीं सके ।  इसीलिए हमारे देश का प्रत्येक शहर नगरीय समस्याओं से  ग्रस्त है ।

 ‘हरिजन’ पत्रिका के माध्यम से महात्मा गांधी ने  शोषणविरहित समाज का विचार प्रस्तुत करने के लिए  आदर्श ग्राम की संकल्पना प्रस्तुत की । जुलाई १९4२ के  ‘हरिजन’ अंक में महात्मा गांधी ने यही संकल्पना प्रस्तुत करते हुए ‘गाँव की ओर चलो’ का विचार लोगों के सम्मुख  रखा । साथ ही उन्होंने ‘गाँव को स्वयंपूर्ण होना चाहिए’;  यह संदेश भी दिया । उनका कहना था कि गाँव के लोगों को  अपनी आवश्यकताएँ स्वयं पूर्ण करने का प्रयत्न करना  चाहिए । इतना ही नहीं; अपनी जरूरतों को पूरा करने के  साथ-साथ एक-दूसरे को सहयोग भी करना चाहिए ।  इसके लिए वे सुझाव देते हैं कि कपास की फसल लेते हुए  उससे सूत कातें तथा स्वयं चरखा चलाते हुए कपड़ों की  आवश्यकताओं को पूर्ण करें । महिलाओं से भी उनका

कहना था कि सूत कताई कर कपड़े बनाएँ, गाँव के लोगों  को बेचें और अर्थार्जन कर अपने पैरों पर खड़े रहें । गांधीजी  के शिक्षा के संदर्भमें भी विचार महत्त्वपूर्ण रहे हैं । गाँव में  प्राथमिक शिक्षा को भी उन्होंने अनिवार्यमाना है  वर्धा जिले के सेवाग्राम तथा अहमदाबाद की  साबरमती नदी के किनारे बने आश्रम में महात्मा गांधी बहुत समय तक रहे । उस समय ये दोनों आश्रम शहरी क्षेत्र में नहीं  थे । मिट्टी से जुड़ना गांधीजी को अपेक्षित था । आज भी  असंख्य लोगों के लिए ये दोनों आश्रम मानवतावादी जीवन  जीने के प्रेरणास्रोत हैं । जिस तरह महात्मा गांधी ने शांति और अहिंसा का समर्थन किया, उसी तरह वे निर्भय बने  रहने के प्रति आग्रही थे । निर्भय होने का अर्थ स्वयंसिद्ध  अथवा स्वयं तैयार रहना है ।

 इस बात को बिना किसी  भ्रांति-भ्रम के समझ लेना आवश्यक है । महात्मा गांधी का  अहिंसा का मूलमंत्र विश्व को मोहित करने वाला सिद्ध  हुआ है । आज भी संसार में कहीं हिंसा या क्रूरता की  ज्वालाएँ धधक उठती हैं तो लोग महात्मा गांधी को याद  करते हैं । आज भी उनका मानवता का दर्शन तथा मनुष्य के  परस्पर द्वेष न करने के संदेश का स्मरण हो जाता है । पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करते हुए मैं लगभग  २5 वर्ष नागपुर में रहा । नागपुर से डेढ़ घंटे की दूरी पर वर्धा जिला है । इसी जिले में महात्मा गांधी के चरणकमलों से  पुनीत हुआ सेवाग्राम आश्रम है । साल भर में दो-तीन बार  वहाँ जाकर पेड़ के नीचे एक-दो घंटे शांति से बैठकर पढ़ने  में आनंद और प्रेरणा की अनुभूति मिलती है । यह मेरा  अनुभव रहा है । विभिन्न सेवा प्रतियोगिता परीक्षाओं में  सम्मिलित होने वाले विद्यार्थी विविध विषयों पर संवाद  स्थापित करने हेतु मेरे पास आते थे । उन युवाओं को लेकर  मैं विविध विषयों पर चर्चा करने इस आश्रम में जाया  करता । 

सेवाग्राम की जमीन, वहाँ की मिट्टी का प्रत्येक  कण गांधीजी के पदस्पर्श से पुनीत हुआ है । इस पुण्यभूमि में होने वाली इन चर्चाओं को मानो गांधीजी सुन रहे हैं; इस  भावना से हम अभिभूत हुआ करते थे । पत्रकारिता के बहाने देश-विदेश में मेरा भ्रमण चलता  रहा । किसी भी देश के विश्वविद्यालय या सामाजिक  संस्था में जाता हूँतो मैं अपना परिचय देते हुए यह कहता हूँ कि मैं महात्मा गांधी और आचार्यविनोबा भावे के सेवाग्राम तथा पवनार की भूमि से आया हूँ । ऐसा परिचय होने पर मेरा  स्वागत और आतिथ्य अत्यंत सम्मानपूर्वक हुआ ।  मैं जिन-जिन देशों में गया हूँ, हर जगह महात्मा गांधी के  प्रति उनकी आत्मीयता तथा स्नेह मुझे प्रतीत हुआ । जर्मनी की एक यात्रा के बीच अमानवीय अत्याचारों  के जो यातनाघर हैं; उन्हें देखने का अनुभव आपको बताना  चाहता हूँ ।

 यहूदी (ज्यू) लोगों को जहाँक्रूर और अमानवीय  यातनाएँ दी गईं, वे यातनाघर उनकी यातनाओं के स्मारक  हैं । उन यातनाघरों में दी गई यातनाओं और अत्याचारों की कहानियाँक्रूरता की परिसीमा को भी लाँघ जाती हैं । उन यातनाघरों को देखते समय हम अंतर-बाह्य टूट जाते हैं । ऐसे ही एक यातनाघर को देखते समय हमारे आगे चलने वाली एक जर्मन महिला की आँखों में आँसू आ गए थे । जैसे उसके ही किसी रिश्तेदार को इन अत्याचारों का शिकार  होना पड़ा था । चलते-चलते हमारे बीच की दूरी कम हो  गई थी ।   मैं अपने साथी के साथ हिंदी में वार्तालाप कर रहा  था । उसे सुनकर उस महिला ने मुझसे पूछा- आप भारतीय  हैं? मेरे ‘हाँ’ कहने पर वह कहने लगी, ‘‘इसका मतलब  आप महात्मा गांधी के देश से आए हैं ।’’ सेवाग्राम आश्रम का संदर्भ देते हुए मैंने कहा- ‘‘जी हाँ ।’’ ‘‘सच?’’  आश्चर्यचकित होकर उसने मेरा हाथ अपने हाथ में लिया  और गद्गद् होकर कहने लगी- ‘‘लगता है जैसे मैंने उस  भूमि को स्पर्श कर लिया है ।’’

 इसके बाद हम आपस में  बातचीत करते रहे । उसके दादा जी तथा माँ को उन  अत्याचारों का शिकार होना पड़ा था । परिणामत: वह बचपन में ही बेघर, अनाथ हो गई थी । उस महिला ने महात्मा गांधी को पढ़ा था । लुई फिशर द्वारा लिखितगांधीजी की जीवनी उसके व्यक्तिगत पुस्तकालय में थी ।अंत में विदाई के दौरान उसने कहा, ‘‘आपके देश में महात्मा गांधी जैसे महामानव अवतीर्ण हुए इसलिए आपके माता-पिता ऐसी क्रूरता से बच गए ।’’ उस समय गांधीजी के विचारों से अभिभूत वास्तविक मानवताके दर्शन हुए और महात्मा गांधी जैसे महामानव के सम्मुख मैं नतमस्तक हो गया । इसीलिए मैं लिखता हूँ और कहता भी हूँकिमानवता के पुजारी महात्मा गांधी के भारत में जन्म लेने पर  मुझे गर्व है ।

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3सच हम नहीं; सच तुम नहींClick Now
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5गुरुबानी - वृंद के दोहेClick Now
6पाप के चार हथि यारClick Now
7पेड़ होने का अर्थClick Now
8सुनो किशोरीClick Now
9चुनिंदा शेरClick Now
10ओजोन विघटन का संकटClick Now
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12सुनु रे सखिया, कजरीClick Now
13कनुप्रियाClick Now
14पल्लवनClick Now
15फीचर लेखनClick Now
16मैं उद्घोषकClick Now
17ब्लॉग लेखनClick Now
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