पाप के चार हथि यार स्वाध्याय | Paap ke chaar hathi | Balbharati solutions for Hindi

पाप के चार हथि स्वाध्याय | Paap ke chaar hathi

पाप के चार हथि स्वाध्याय | Paap ke chaar hathi | Balbharati solutions for Hindi

शब्दसमूह के लिए एक शब्द लिखिए :

शब्द संपदा | Q 1 | Page 34

1) जिसे व्यवस्थित न गढ़ा गया हो - ____________
SOLUTION
जिसे व्यवस्थित न गढ़ा गया हो - अनगढ़

2) निंदा करने वाला - ____________
SOLUTION
निंदा करने वाला - निंदक

3) देश के लिए प्राणों का बलिदान देने वाला - ____________
SOLUTION
देश के लिए प्राणों का बलिदान देने वाला - शहीद

4) जो जीता नहीं जाता - ____________
SOLUTION
जो जीता नहीं जाता - अजेय

अभिव्यक्ति - पाप के चार हथि

अभिव्यक्ति | Q 1 | Page 34
1) समाज सुधारक समाज में व्याप्त बुराइयों को पूर्णतः समाप्त करने में विफल रहे', इस कथन पर ना मत प्रकट कीजजए।
SOLUTION
संसार में अनेक महान समाज सुधारक हुए हैं। वे अपने समाज सुधार के कार्यों से अपना नाम अमर कर गए हैं। हर युग में अनेक समाज सुधारक समाज को सुधारने का कार्य करते रहे हैं, पर समाज में व्याप्त बुराइयों की तुलना में उनकी संख्या नगण्य है। इसके अलावा समाज सुधारकों को जनता का पर्याप्त सहयोग भी नहीं मिल पाता। इसलिए वे अपने कार्य में पूर्णतः सफल नहीं हो पाते। इतना ही नहीं, भिन्न-भिन्न कारणों से समाज विरोधी तत्त्व भी अपने स्वार्थ के कारण समाज सुधारकों के दुश्मन बन जाते हैं। इससे समाज सुधारकों के कार्य में केवल अड़चनें ही नहीं आतीं, बल्कि उनकी जान पर भी बन आती है। इसलिए समाज सुधारकों के लिए समाज में व्याप्त बुराइयों को पूरी तरह समाप्त करना संभव नहीं हो पाया। आए दिन लोगों के प्रति होने वाले अन्याय और अत्याचार की घटनाएँ इस बात का सबूत हैं कि समाजसुधारक समाज में व्याप्त बुराइयों को पूर्णतः समाप्त करने में विफल रहे हैं।

2) लोगों के सक्रिय सहभाग से ही समाज सुधारक का कार्य सफल हो सकता है', इस विषय पर अपने विचार स्पष्ट कीजिए।
SOLUTION
समाज सुधार कोई छोटा-मोटा काम नहीं है। इसका दायरा विशाल है। इस कार्य को करने का बीड़ा उठाने वाले को इस कार्य में निरंतर रत रहना पड़ता है। किसी भी अकेले व्यक्ति के वश का यह काम नहीं है। इस कार्य को सुचारु रूप से संपन्न करने के लिए समाज सुधारक को समाज के प्रतिनिधियों एवं निष्ठावान कार्यकर्ताओं का सहयोग लेना आवश्यक होता है। समाज में तरह तरह की विकृतियाँ होती हैं। 

उनके बारे में जानकारी करने और उन्हें दूर करने के लिए समाज के लोगों का सहयोग प्राप्त करना अत्यंत आवश्यक होता है। इसके अतिरिक्त किसी भी सामाजिक बुराई के पीछे विभिन्न कारणों से कुछ लोगों का स्वार्थ भी होता है। ऐसे लोगों से निपटे बिना उसे दूर नहीं किया जा सकता। बिना लोगों के सक्रिय सहयोग से ऐसे समाज विरोधी तत्वों से पार पाना संभव नहीं हो पाता। इसलिए इन सभी बातों को ध्यान में रखकर समाज सुधारक को लोगों का सक्रिय सहयोग लेना आवश्यक है। लोगों के सक्रिय सहयोग से ही वह अपने कार्य में सफल हो सकता है।

3) पाप के चार हथियार’ पाठ का संदेश लिखिए।

SOLUTION
'पाप के चार हथियार' पाठ में लेखक कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' ने एक ज्वलंत समस्या की ओर ध्यान आकर्षित किया है। संसार में चारों ओर पाप, अन्याय और अत्याचार व्याप्त है, फिर भी कोई संत, महात्मा, अवतार, पैगंबर या सुधारक इससे मुक्ति का मार्ग बताता है, तो लोग उसकी बातों पर ध्यान नहीं देते और उसकी अवहेलना करते हैं। उसकी निंदा करते हैं। इतना ही नहीं, इस प्रकार के कई सुधारकों को तो अपनी जान तक गँवा देनी पड़ी है। 

लेकिन यही लोग सुधारकों, महात्माओं की मृत्यु के पश्चात उनके स्मारक और मंदिर बनाते हैं और उनके विचारों और कार्यों का गुणगान करते नहीं थकते। जो लोग सुधारक के जीवित रहते उसकी बातों को अनसुना करते रहे, उसकी निंदा करते रहे और उसकी जान के दुश्मन बने रहे, उसकी मृत्यु के पश्चात उन्हीं लोगों के मन में उसके लिए श्रद्धा की भावना उमड़ पड़ती है और वे उसके स्मारक और मंदिर बनाने लगते हैं।

इस प्रकार लेखक ने 'पाप के चार हथियार के द्वारा यह संदेश दिया है कि सुधारकों और महात्माओं के जीते जी उनके विचारों पर ध्यान देने और उन पर अमल करने से ही समस्याओं का समाधान होता है, न कि स्मारक और मंदिर बनाने से।

4) पाप के चार हथियार’ निबंध का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।

SOLUTION
संसार में पाप, अत्याचार और अन्याय का बोलबाला रहा है और आज भी वह वैसा ही है। इससे लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए अनेक महापुरुषों, सुधारकों, समाज सेवकों एवं संत महात्माओं ने अथक प्रयास किया, पर वे अपने प्रयास में सफल नहीं हो पाए। उल्टे उन्हें समाज के लोगों की उपेक्षा तथा निंदा आदि का शिकार होना पड़ा और कुछ लोगों को अपनी जान भी गँवानी पड़ी। पर देखा यह गया है कि जीते जी जिन सुधारकों और महापुरुषों को समाज का सहयोग नहीं मिला और उनकी अवहेलना होती रही, मरने के बाद उनके स्मारक और मंदिर भी बने और लोगों ने उन्हें भगवान-सुधारक कह कर वंदनीय भी बताया।

यहाँ लेखक यह कहना चाहते हैं कि मरणोपरांत सुधारक का स्मारक-मंदिर बनना सुधारक और उसके प्रयासों दोनों की पराजय है। अच्छा तो तब होता, जब लोग सुधारक के जीते जी उसके विचारों को अपनाते और पाप, अत्याचार और अन्याय जैसी बुराइयों के खिलाफ संघर्ष में उसका सहयोग करते और समाज से इन बुराइयों के दूर होने में सहायक बनते। इससे सुधारक समाज को पाप, अन्याय, भ्रष्टाचार और अत्याचार जैसी बुराइयों से मुक्ति दिलाने में सफल हो सकता था। लोगों को सुधारक की उपेक्षा, निंदा अथवा उनके खिलाफ षड्यंत्र रचने के बजाय उनके अभियान में अपना पूरा सहयोग देना चाहिए। तभी समाज से ये बुराइयाँ दूर हो सकती हैं। यही इस पाठ का उद्देश्य है।

साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान |

साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान | Q 1 | Page 35

1) कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ जी के निबंध संग्रहों के नाम लिखिए - __________________
SOLUTION
कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर जी के निबंध संग्रहों के नाम हैं - 
(1) जिंदगी मुस्कुराई 
(2) बाजे पायलिया के घुँघरू
(3) जिंदगी लहलहाई 
(4) महके आँगन - चहके द्वार।

2) लेखक कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ जी की भाषा शैली - __________________
SOLUTION
कन्हैयालाल मिश्र जी कथाकार, निबंधकार एवं पत्रकार थे। आपकी भाषा मँजी हुई, सहज-सरल और मुहावरेदार है, जो कथ्य को दृश्यमान और सजीव बना देती है। आपके लेखन में तत्सम शब्दों का प्रयोग भारतीय चिंतन-मनन को अधिक प्रभावशाली बना देता है। आप एक सफल निबंधकार थे। आप में अपने विषय को प्रखरता से प्रस्तुत करने की सामर्थ्य है।

रचना के आधार पर निम्न वाक्यों के भेद पहचानिए :

साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान | Q 1 | Page 35
1) संयोग से तभी उन्हें कहीं से तीन सौ रुपये मिल गए ।
SOLUTION
सरल वाक्य

2) यह वह समय था जब भारत में अकबर की तूती बोलती थी।
SOLUTION
मिश्र वाक्य

3) सुधारक होता है करुणाशील और उसका सत्य सरल विश्वासी ।
SOLUTION
संयुक्त वाक्य

4) फिर भी सावधानी तो अपेक्षित है ही।
SOLUTION
सरल वाक्य

5) यह तस्वीर नि:संदेह भयावह है लेकिन इसे किसी भी तरह अतिरंजित नहीं कहा जाना चाहिए।
SOLUTION
मिश्र वाक्य

6) आप यहीं प्रतीक्षा कीजिए।
SOLUTION
सरल वाक्य

7) निराला जी हमें उस कक्ष में ले गए जो उनकी कठोर साहित्य साधना का मूक साक्षी रहा है।
SOLUTION
मिश्र वाक्य

8) लोगों ने देखा और हैरान रह गए।
SOLUTION
संयुक्त वाक्य

9) सामने एक बोर्ड लगा था जिस पर अंग्रेजी में लिखा था ।
SOLUTION
मिश्र वाक्य

10) सामने एक बोर्ड लगा था जिस पर अंग्रेजी में लिखा था 
SOLUTION
मिश्र वाक्य

पाप के चार हथि स्वाध्याय | Paap ke chaar hathi

लेखक परिचय ः कन्हैयालाल मिश्र जी का जन्म २६ सितंबर १९०६ को उत्तर प्रदेश के देवबंद गाँव में हुआ । आप हिंदी  के कथाकार, निबंधकार, पत्रकार तथा स्वतंत्रता सेनानी थे । आपने पत्रकारिता में स्वतंत्रता के स्वर को ऊँचा उठाया । आपके  निबंध भारतीय चिंतनधारा को प्रकट करते हैं । आपका संपूर्ण साहित्य मूलत: सामाजिक सरोकारों का शब्दांकन है । आपने  साहित्य और पत्रकारिता को व्यक्ति और समाज के साथ जोड़ने का प्रयास किया है । आप भारत सरकार द्वारा ‘पद्‌मश्री’  सम्मान से विभूषित हैं । आपकी भाषा सहज-सरल और मुहावरेदार है जो कथ्य को दृश्यमान और सजीव बना देती है । तत्सम शब्दों का प्रयोग भारतीय चिंतन-मनन को अधिक प्रभावशाली बनाता है । आपका निधन १९९5 में हुआ । 

प्रमुख कृतियाँ ः ‘धरती के फूल’ (कहानी संग्रह), ‘जिंदगी मुस्कुराई’, ‘बाजे पायलिया के घुँघरू’, ‘जिंदगी लहलहाई’,  महके आँगन-चहके द्वार’ (निबंध संग्रह), ‘दीप जले, शंख बजे’, ‘माटी हो गई सोना’ (संस्मरण एवं रेखाचित्र) आदि । 

विधा परिचय ः निबंध का अर्थ है - विचारों को भाषा में व्यवस्थित रूप से बाँधना । हिंदी साहित्यशास्त्र में निबंध को गद्य  की कसौटी माना गया है । निबंध विधा में जो पारंगत है वह गद्य की अन्य विधाओं में सहजता से लिख सकता है । निबंध  विधा में वैचारिकता का अधिक महत्त्व होता है तथा विषय को प्रखरता से पाठकों के सम्मुख रखने की सामर्थ्य होती है । 

पाठ परिचय ः प्रत्येक युग में विचारकों, दार्शनिकों, संतों-महापुरुषों ने पाप, अपराध, दुष्कर्मों से मानवजाति को मुक्ति दिलाने का प्रयास किया परंतु विडंबना यह है कि आज भी विश्व में अन्याय, अत्याचार, भ्रष्टाचार, पाप और दुष्कर्मों का  बोलबाला है और मनुष्य जाने-अनजाने इन्हीं का समर्थक बना हुआ है । समाज संतों-महापुरुषों की जयंतियाँमनाता है,  जय-जयकार करता है, उनके स्मारकों का निर्माण करवाता है परंतु उनके विचारों को आचरण में नहीं उतारता । ऐसा क्यों  होता है? लेखक ने अपने चिंतन के आधार पर इस प्रश्न का उत्तर खोजने का प्रया प्रस्तुत निबंध में किया है ।

पाप के चार हथि स्वाध्याय | Paap ke chaar hathi

जॉर्ज बर्नार्ड शॉ का एक पैराग्राफ मैंने पढ़ा है । वह  उनके अपने ही संबंध में है : ‘‘मैं खुली सड़क पर कोड़े खाने  से इसलिए बच जाता हूँकि लोग मेरी बातों को दिल्लगी  समझकर उड़ा देते हैं । बात यूँ है कि मेरे एक शब्द पर भी वे  गौर करें, तो समाज का ढाँचा डगमगा उठे । ‘‘वे मुझे बर्दाश्त नहीं कर सकते, यदि मुझपर हँसें  नहीं । मेरी मानसिक और नैतिक महत्ता लोगों के लिए  असहनीय है । उन्हें उबाने वाली खूबियों का पुंज लोगों के  गले के नीचे कैसे उतरे? इसलिए मेरे नागरिक बंधु या तो  कान पर उँगली रख लेते हैं या बेवकूफी से भरी हँसी के  अंबार के नीचे ढँक देते हैं मेरी बात ।’’

 शॉ के इन शब्दों में  अहंकार की पैनी धार है, यह कहकर हम इन शब्दों की  उपेक्षा नहीं कर सकते क्योंकि इनमें संसार का एक बहुत ही  महत्त्वपूर्ण सत्य कह दिया गया है । संसार में पाप है, जीवन में दोष, व्यवस्था में अन्याय  है, व्यवहार में अत्याचार... और इस तरह समाज पीड़ित और पीड़क वर्गों में बँट गया है । सुधारक आते हैं, जीवन  की इन विडंबनाओं पर घनघोर चोट करते हैं । विडंबनाएँ टूटती-बिखरती नजर आती हैं पर हम देखते हैं कि सुधारक  चले जाते हैं और विडंबनाएँ अपना काम करती रहती हैं । आखिर इसका रहस्य क्या है कि संसार में इतने महान  पुरुष, सुधारक, तीर्थंकर, अवतार, संत और पैगंबर आ  चुके पर यह संसार अभी तक वैसा-का-वैसा ही चल रहा  है । 

इसे वे क्यों नहीं बदल पाए? दूसरे शब्दों में जीवन के  पापों और विडंबनाओं के पास वह कौन-सी शक्ति है  जिससे वे सुधारकों के इन शक्तिशाली आक्रमणों को झेल  जाते हैं और टुकड़े-टुकड़े होकर बिखर नहीं जाते?  शॉ ने इसका उत्तर दिया है कि मुझपर हँसकर और इस  रूप में मेरी उपेक्षा करके वे मुझे सह लेते हैं । यह मुहावरे की  भाषा में सिर झुकाकर लहर को ऊपर से उतार देना है । शॉ की बात सच है पर यह सच्चाई एकांगी है । सत्य तना ही नहीं है । पाप के पास चार शस्त्र हैं, जिनसे वह  सुधारक के सत्य को जीतता या कम-से-कम असफल  करता है । मैंने जीवन का जो थोड़ा-बहुत अध्ययन किया  है, उसके अनुसार पाप के ये चार शस्त्र इस प्रकार हैं :- उपेक्षा, निंदा, हत्या और श्रद्धा ।

सुधारक पापों के विरुद्ध विद्रोह का झंडा बुलंद करता  है तो पाप और उसका प्रतिनिधि पापी समाज उसकी उपेक्षा करता है, उसकी ओर ध्यान नहीं देता और कभी-कभी  कुछ सुन भी लेता है तो सुनकर हँस देता है जैसे वह किसी  पागल की बड़बड़ हो, प्रलाप हो । इन क्षणों में पाप का नारा  होता है, ‘‘अरे, छोड़ो इसे और अपना काम करो ।’’ सुधारक का सत्य उपेक्षा की इस रगड़ से कुछ तेज  होता जाता है, उसके स्वर अब पहले से कुछ पैने हो जाते हैं  और कुछ ऊँचे भी । अब समाज का पाप विवश हो जाता है कि वह  सुधारक की बात सुने । वह सुनता है और उसपर निंदा की  बौछारें फेंकने लगता है । 

सुधारक, सत्य और समाज के पाप  के बीच यह गालियों की दीवार खड़ी करने का प्रयत्न है ।  जीवन अनुभवों का साक्षी है कि सुधारक के जो जितना  समीप है, वह उसका उतना ही बड़ा निंदक होता है । यही  कारण है कि सुधारकों को प्राय: क्षेत्र बदलने पड़े हैं । इन क्षणों में पाप का नारा होता है : ‘‘अजी बेवकूफ  है, लोगों को बेवकूफ बनाना चाहता है ।’’ सुधारक का सत्य निंदा की इस रगड़ से और भी प्रखर  हो जाता है । अब उसकी धार चोट ही नहीं करती, काटती  भी है । पाप के लिए यह चोट धीरे-धीरे असह्य हो उठती  है और वह बौखला उठता है । अब वह अपने सबसे तेज  शस्त्र को हाथ में लेता है । यह शस्त्र है हत्या ।


सुकरात के लिए यह जहर का प्याला है, तो ईसा के  लिए सूली, दयानंद के लिए यह पिसा काँच है । इन क्षणों में 
पाप का नारा होता है, ‘‘ओह, मैं तुम्हें खिलौना समझता  रहा और तुम साँप निकले । पर मैं साँप को जीता नहीं छोडूँगा  - पीस डालूँगा ।’’ सुधारक का सत्य हत्या के इस घर्षण से प्रचंड हो 
उठता है । शहादत उसे ऐसी धार देती है कि सुधारक के  जीवन में उसे जो शक्ति प्राप्त न थी, अब वह हो जाती है ।  सूर्यों का ताप और प्रकाश उसमें समा जाता है, बिजलियों  की कड़क और तूफानों का वेग भी ।  पाप काँपता है और अब उसे लगता है कि इस वेग में  वह पिस जाएगा - बिखर जाएगा । तब पाप अपना ब्रह्‌मास्त्र तोलता है और तोलकर सत्य पर फेंकता है । यह ब्रह्‌मास्त्र है - श्रद्धा ।


इन क्षणों में पाप का नारा होता है - ‘‘सत्य की जय !  सुधारक की जय !’’ अब वह सुधारक की करने लगता है चरणवंदना और  उसके सत्य की महिमा का गान और बखान । सुधारक होता है करुणाशील और उसका सत्य सरल  विश्वासी । वह पहले चौंकता है, फिर कोमल पड़ जाता है  और तब उसका वेग बन जाता है शांत और वातावरण में छा  जाती है सुकुमारता । पाप अभी तक सुधारक और सत्य के जो स्तोत्र पढ़ता  जा रहा था, उनका करता है यूँ उपसंहार ‘‘सुधारक महान है,  वह लोकोत्तर है, मानव नहीं, वह तो भगवान है, तीर्थंकर  है, अवतार है, पैगंबर है, संत है । उसकी वाणी में जो सत्य है, वह स्वर्ग का अमृत है । 

वह हमारा वंदनीय है, स्मरणीय  है, पर हम पृथ्वी के साधारण मनुष्यों के लिए वैसा बनना  असंभव है, उस सत्य को जीवन में उतारना हमारा आदर्श है, पर  को कब, कहाँ, कौन पा सकता है?’’ और  इसके बाद उसका नारा हो जाता है, ‘‘महाप्रभु सुधारक  वंदनीय है, उसका सत्य महान है, वह लोकोत्तर है ।’’ यह नारा ऊँचा उठता रहता है, अधिक-से-अधिक  दूर तक उसकी गूँज फैलती रहती है, लोग उसमें शामिल  होते रहते हैं । पर अब सबका ध्यान सुधारक में नहीं; उसकी  लोकोत्तरता में समाया रहता है, सुधारक के सत्य में नहीं,  उसके सूक्ष्म-से-सूक्ष्म अर्थों और फलितार्थों के करने में  जुटा रहता है । 

अब सुधारक के बनने लगते हैं स्मारक और मंदिर  और उसके सत्य के ग्रंथ और भाष्य । बस यहीं सुधारक और  उसके सत्य की पराजय पूरी तरह हो जाती है । पाप का यह ब्रह्मास्त्र अतीत में अजेय रहा है और  वर्तमान में भी अजेय है । कौन कह सकता है कि भविष्य में  कभी कोई इसकी अजेयता को खंडित कर सकेगा या नहीं?
(‘बाजे पायलिया के घुँघरू’ निबंध संग्रह से)

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