सुनु रे सखिया, कजरी स्वाध्याय | Sunu re sakhiya, kajaree
उत्तर लिखिए :
आकलन | Q 1.1 | Page 67
1) मन को प्रसन्न करने वाले - ____________
SOLUTION
1) मन को प्रसन्न करने वाले - ____________
SOLUTION
मन को प्रसन्न करने वाले - बादल।
2) धरती को नहलाने वाले - ____________
SOLUTION
धरती को नहलाने वाले - मेघा।
परिवर्तन लिखिए :
आकलन | Q 2 | Page 671) वसंत ऋतु से आया → बाग-बगीचों में - ______
SOLUTION
वसंत ऋतु से आया → बाग-बगीचों में - बाग-बगीचे हरे-भरे हो गए हैं।
2) वसंत ऋतु से आया → खेतों में - ______
SOLUTION
वसंत ऋतु से आया → खेतों में - खेत और वन सब हरे-भरे हो गए हैं।
उचित जोड़ियाँ मिलाइए :
शब्द संपदा | Q 1 | Page 67
'अ' | ‘ब’ |
(१) तालाब | (१) सरिता |
(२) नदी | (२) सर |
(३) बयार | (३) भ्रमर |
(४) भौंरा | (४) हवा |
SOLUTION
'अ' | ‘ब’ |
(१) तालाब | (१) सर |
(२) नदी | (२) सरिता |
(३) बयार | (३) हवा |
(४) भौंरा | (४) भ्रमर |
अभिव्यक्त
अभिव्यक्त | Q 1 | Page 67
1) सावन बड़ा मनभावन’, इस विषय पर अपने विचार व्यक्त कीजिए ।
SOLUTION
सावन मास का नाम आते ही मन में ढेर सारी उमंगें हिलोरें मारने लगती हैं। सावन के महीने का भारतीय संस्कृति में विशेष महत्त्व है। कजरारी काली घटाएँ, उमड़ते-घुमड़ते, मदमाते बादल, रिमझिम फुहारें, भीना-भीना मौसम सावन शब्द अपने आप में मनभावन है। आषाढ़ की तपती-झुलसाती गरमी के बाद सावन की ठंडी फुहार तन व मन को प्रफुल्लता प्रदान करने के साथ वातावरण को भी सुरम्यता प्रदान करती हैं। मुरझाई, कुम्हलाई धरा सावन की ठंडी फुहारों में भीग हरियाणा की सुंदर चूनर ओढ़ स्वयं को बड़े मनमोहक अंदाज में सजा लेती है। सावन प्रकृति को तो सराबोर करता ही है, साथ ही मानव मन में भी उल्लास और उमंग भर देता है। प्रकृति खिलखिलाती है, तो मनमयूर झूम उठता है।
SOLUTION
सावन मास का नाम आते ही मन में ढेर सारी उमंगें हिलोरें मारने लगती हैं। सावन के महीने का भारतीय संस्कृति में विशेष महत्त्व है। कजरारी काली घटाएँ, उमड़ते-घुमड़ते, मदमाते बादल, रिमझिम फुहारें, भीना-भीना मौसम सावन शब्द अपने आप में मनभावन है। आषाढ़ की तपती-झुलसाती गरमी के बाद सावन की ठंडी फुहार तन व मन को प्रफुल्लता प्रदान करने के साथ वातावरण को भी सुरम्यता प्रदान करती हैं। मुरझाई, कुम्हलाई धरा सावन की ठंडी फुहारों में भीग हरियाणा की सुंदर चूनर ओढ़ स्वयं को बड़े मनमोहक अंदाज में सजा लेती है। सावन प्रकृति को तो सराबोर करता ही है, साथ ही मानव मन में भी उल्लास और उमंग भर देता है। प्रकृति खिलखिलाती है, तो मनमयूर झूम उठता है।
2) बसंत केआगमन पर प्रकृति खिल उठती है’, इस तथ्य को स्पष्ट कीजिए ।
SOLUTION
भारत में बसंत ऋतु को सबसे सुंदर और आकर्षक मौसम माना जाता है। बसंत के आगमन पर प्रकृति खिल उठती है। पेड़ों की शाखाओं पर नए, हरे-गुलाबी पत्ते आ जाते हैं। दिशाओं में रंग-बिरंगे सुगंधित पुष्प दृष्टिगोचर होते हैं। उन पर मँडराती सुंदर तितलियाँ सबका मन मोह लेती हैं। हर तरफ हरियाली का साम्राज्य दिखाई पड़ता है। सरदियों की लंबी खामोशी के बाद पक्षी मधुर आवाज में पेड़ों की शाखाओं पर नाचना और गाना शुरू कर देते हैं। मानो वसंत का स्वागत कर रहे हों। इस मौसम में न अधिक सरदी होती है और न ही अधिक गरमी। आकाश बिलकुल साफ दिखाई देता है। खेतों में फसलें पकने लगती हैं। सभी के हृदय आनंद से परिपूर्ण होते हैं।
3) ‘बसंत और सावन ॠतु जीवन के सौंदर्य का अनुभव कराते हैं ।’ इस कथन के आधार पर कविता का रसास्वादन कीजिए ।
SOLUTION
बसंत ऋतु आते ही हर तरफ फूल महकने लगते हैं। सरसों फूल जाती है और पूरी धरती हरियाली की चादर ओढ़कर खिल उठती है। कली-कली फूल बनकर मुस्कुराने लगती है। जिसके कारण तन-मन भी प्रसन्न हो जाते हैं। इस ऋतु के आने से खेत, वन, बाग-बगीचे सब हरे-भरे हो जाते हैं, इंद्रधनुष के विभिन्न रंगों के समान भाँति-भाँति के रंग-बिरंगे फूल खिल उठते हैं। भौरों के दल प्रसन्न होकर फूलों पर मँडराने लगते हैं। काजल लगी कजरारी आँखों में सपने मुस्कुराने लगते हैं और कंठ से मीठे गीत फूटने लगते हैं। बाग-बगीचों में बहार आने के साथ ही यौवन भी अँगड़ाइयाँ लेने लगता है। मधुर-मस्त बयार चलने के कारण सबके तन-मन प्रसन्न हो जाते हैं। इसी प्रकार मनभावन सावन आने पर बादल घिर-घिरकर गरजने लगते हैं, बिजली चमकने लगती है और पुरवाई चलने लगती है। मेघ रिमझिम-रिमझिम करके बरसते रहते हैं। मानो प्यार बरसाकर हृदय का तार-तार रँग रहे हों। हर व्यक्ति का मन गुलाब की तरह खिल जाता है। दादुर, मोर और पपीहे बोलकर सबके हृदय को प्रफुल्लित करते रहते हैं। अँधेरी रात में जुगनू जगमग-जगमग करते हुए इधर से उधर डोलकर सबका मन लुभाते हैं। लताएँ और बेलें सब फूल जाती हैं। डाल-डाल महक उठती है। सरोवर और सरिताएँ जल से भरकर उमड़ पड़ती हैं। सभी मनुष्यों के हृदय आनंदित हो उठते हैं।
साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान
साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान | Q 1 | Page 68
1) लोकगीतों की दो विशेषताएँ : ____________
SOLUTION
(१) लोकगीतों में गेयता तत्त्व प्रमुख होता है।
(२) लोकगीत मुख्यतः जनसाधारण के त्योहारों से संबंधित होते हैं।
SOLUTION
(१) लोकगीतों में गेयता तत्त्व प्रमुख होता है।
(२) लोकगीत मुख्यतः जनसाधारण के त्योहारों से संबंधित होते हैं।
2) लोकगीतों के दो प्रकार : ____________
SOLUTION
(१) कजरी
(२) सोहर
निम्नलिखित शब्दसमूह के लिए कोष्ठक में दिए गए शब्दों में से सही शब्द चुनकर शब्दसमूह केसामने लिखिए।
साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान | Q 1 | Page 68
1) मन का गर्व -
SOLUTION
मन का गर्व - अहंकार
2) आंतरिक प्रसन्नता -
SOLUTION
आंतरिक प्रसन्नता - हर्ष
3) जिस वस्तु का मूल्य आँका न जा सके -
SOLUTION
जिस वस्तु का मूल्य आँका न जा सके - अमूल्य
जिस वस्तु का मूल्य आँका न जा सके - अमूल्य
4)धार्मिक विषयों पर दिया जाने वाला व्याख्यान -
SOLUTION
धार्मिक विषयों पर दिया जाने वाला व्याख्यान - प्रवचन
5) किसी अच्छे कार्य से प्रसन्न होकर दी जाने वाली धनराशि -
SOLUTION
किसी अच्छे कार्य से प्रसन्न होकर दी जाने वाली धनराशि - पुरस्कार
6) प्रिय व्यक्ति की मृत्यु पर प्रकट किया जाने वाला दुख -
SOLUTION
प्रिय व्यक्ति की मृत्यु पर प्रकट किया जाने वाला दुख - शोक
7) बड़ों के प्रति किया जाने वाला अभिवादन -
SOLUTION
बड़ों के प्रति किया जाने वाला अभिवादन - प्रणाम
8) कम व्यय करने वाला -
SOLUTION
कम व्यय करने वाला - मितव्ययी
10) आकाश को चूमने वाला -
SOLUTION
आकाश को चूमने वाला - गगनचुंबी
11)जो विधि या कानून के विरुद्ध हो -
SOLUTION
जो विधि या कानून के विरुद्ध हो - अवैध
12) क्षमा के लिए प्रार्थना करने वाला -
SOLUTION
क्षमा के लिए प्रार्थना करने वाला - क्षमाप्रार्थी
13) सभ्य पुरुषों का आचरण -
SOLUTION
सभ्य पुरुषों का आचरण - शिष्टाचार
14) मन को हरने वाला -
SOLUTION
मन को हरने वाला - मनोहर
15) जो दिखाई न दे -
SOLUTION
जो दिखाई न दे - अदृश्य
16) जो खाने योग्य न हो -
SOLUTION
जो खाने योग्य न हो - अखाद्य
Maharashtra Board Class 12th Hindi Chapter 12 सुनु रे सखिया
सुनु रे सखिया, कजरी - सुनु रे सखिया, कजरी स्वाध्याय | Sunu re sakhiya, kajaree
विधा परिचय ः प्रस्तुत काव्य लोकगीत का एक प्रकार है । लोकगीत पद, दोहा, चौपाई छंदों में रचे जाते हैं । लोकगीत में गेयता तत्त्व प्रमुखता से पाया जाता है । ये लोकगीत मुख्यत: जनसाधारण के त्योहारों से संबंधित होते हैं तथा त्योहारों की बड़ी ही सरस अभिव्यक्ति इन लोकगीतों में पाई जाती है । प्राय: ये लोकगीत परंपरा द्वारा अगली पीढ़ी तक पहुँच जाते हैं और हमारे लोकजीवन की संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने का सामाजिक कर्तव्य पूर्ण करते हैं । ‘कजरी’, ‘सोहर’, ‘बन्ना-बन्नी’ लोकगीतों के प्रकार हैं । लोकगीतों की भाषा में ग्रामीण जनजीवन बोली का स्पर्श रहता है । सहज-सरल शब्दों का समावेश, ग्रामीण प्रतीकों, बिंबों और लोककथा का आधार लोकगीतों को सजीव बना देता है ।
पाठ परिचय ः दूसरे लोकगीत में सावन-भादों के महीने में प्रकृति का सुंदर और मनमोहक दृश्य चारों ओर दिखाई देता है । नवविवाहिताएँमायके आती हैं, युवतियाँ हर्षित हो जाती हैं, पेड़ों पर झूले पड़ते हैं, वर्षा से पूरी धरती हरी भरी हो उठती है, नदियाँ बहती हैं, त्योहारों की फसल उग अाती है । सबके चेहरे चमक-दमक उठते हैं । यही भाव सावन के इस गीत अर्थात कजरी में व्यक्त हुआ है । प्रथम लोकगीत में बसंत ॠतु के आगमन पर प्रकृति में होने वाले परिवर्तन का सजीव वर्णन चित्रित हुआ है । इस लोकगीत में एक युवती अपनी सखियों से बसंत ॠतु के आने से खिल उठी प्रकृति की सुंदरता को बताती है । सरसों का सरसना, अलसी का अलसाना, धरती का हरसाना, कलियों का मुस्काना, खेत, तन और मन का इंद्रधनुष की तरह रँगना, आँखों का कजराना, बगिया का खिल उठना, कलियों का चटक उठना और अंत में वियोग की स्थिति इस लोकगीत में व्यक्त जनमानस की भावना को कलात्मक अभिव्यक्ति प्रदान करती है ।
* सुनु रे सखिया *
आइल बसंत के फूल रे, सुनुरे सखिया ।
सरसों सरसाइल
अलसी अलसाइल
धरती हरसाइल
कली-कली मुसुकाइल बन के फूल रे, सुनु रे सखिया ।।
आइल...
खेत बन रँग गइल
तन मन रँग गइल
अइसन मन भइल
जइसे इंद्रधनुष के फूल रे, सुनुरे सखिया ।।
आइल...
अँखिया कजराइल
सपना मुसुकाइल
कंठ राग भराइल
बगिया फूलल यौबन फूल रे, सुनुरे सखिया ।।
आइल...
बहे मस्त बयार,
झर-झर झरे प्यार
रंग गइल तार-तार
हर मनवा गुलाब के फूल रे, सुनु रे सखिया ।।
आइल...
बगिया मुसुकाइल
कली-कली चिटकाइल
भौंरा दल दौड़ि आइल
गौरैया के माथे करिया फूल रे, सुनुरे सखिया ।।
आइल...
आँख चुभे कजरा
काँट भये सेजरा
आँसु भिगे अँचरा
पिया बो गये बबूल के फूल रे, सुनुरे सखिया ।।
आइल...
* कजरी *
सावन आइ गये मनभावन, बदरा घिर-घिर आवै ना !
बदरा गरजै बिजुरी चमकै, पवन चलति पुरवैया ना !
सावन...
रिमझिम-रिमझिम मेहा बरसै, धरती काँ नहवावै ना !
सावन...
दादुर, मोर, पपीहा बोलै, जियरा मोर हुलसावै ना !
सावन...
जगमग-जगमग जुगुनू डोलै, सबकै जियरा लुभावै ना !
सावन...
लता, बेल सब फूलन लागीं, महकी डरिया-डरिया ना !
सावन...
उमगि भरे सरिता सर उमड़े, हमरो जियरा सरसै ना !
सावन...
संकर कहैं बेगि चलो सजनी, बँसिया स्याम बजावै ना !
सावन...
× × × ×
सुनु रे सखिया, कजरी स्वाध्याय | Sunu re sakhiya, kajaree
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