गुरुबानी - गुरुबानी संपूर्ण स्वाध्याय | Gurubani svaadhyaay
संजाल पूर्ण कीजिए :
आकलन | Q 1 | Page 25
1) नाम स्तुति के लिए ये आवश्यक हैं
SOLUTION
(१) मोह को त्यागना
(२) बुद्धि को श्रेष्ठ मानना
(३) प्रेमभाव जाग्रत करना
कृति पूर्ण कीजिए :-
आकलन | Q 2 | Page 25
2) आकाश के दीप
SOLUTION
(१) सूर्य
(२) चंद्रमा
लिखिए :
शब्द संपदा | Q 1 | Page 25
3) प्रत्यययुक्त शब्द
SOLUTION
प्रत्यय युक्त शब्
दान
दान + ई = दानी
दया
दया + आलू = दयालु
गुण
गुण + वान = गुणवान
अंतर
अंतर + आल = अंतराल
गुरुबानी कविता का अभिव्यक्ति
अभिव्यक्ति | Q 1.1 | Page 25
1) 'गुरु बिन ज्ञान न होई' उक्ति पर अपने विचार लिखिए ।
SOLUTION
ज्ञान की कोई सीमा नहीं है। विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न प्रकार के ज्ञान की आवश्यकता होती है। यह ज्ञान हमें किसी-न किसी व्यक्ति से मिलता है। जिस व्यक्ति से हमें यह ज्ञान मिलता है, वही हमारे लिए गुरु होता है। बचपन में बच्चे का पालन-पोषण कर उसे बड़ा करके बोलने-चालने और बोली-भाषा सिखाने का काम माता करती है। उस समय वह बच्चे की गुरु होती है। बड़े होने पर बच्चे को विद्यालय में शिक्षकों से ज्ञान प्राप्त होता है। पढ़-लिखकर जीवन में पदार्पण करने पर हर व्यक्ति को किसी-न-किसी से अपने काम-काज करने का ढंग सीखना पड़ता है। इस तरह के लोग हमारे लिए गुरु के समान होते हैं। मनुष्य गुरुओं से ही सीखकर विभिन्न कलाओं में पारंगत होता है। बड़े-बड़े विद्वान, विचारक, राजनीति, समाजशास्त्री, वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री अपने-अपने गुरुओं से ज्ञान प्राप्त करके ही महान हुए हैं। अच्छी शिक्षा देने वाला गुरु होता है।
गुरु की महिमा अपरंपार है। गुरु ही हमें गलत या सही में भेद करना सिखाते हैं। वे अपने मार्ग से भटके हुए लोगों को सही मार्ग दिखाते हैं। यह सच है कि गुरु के बिना ज्ञान नहीं होता।
2) ईश्वर भक्ति में नामस्मरण का महत्व होता है', इस विषय पर अपना मंतव्य लिखिए।
SOLUTION
ईश्वर भक्ति के अनेक मार्ग बताए गए हैं। उनमें सबसे सरल मार्ग ईश्वर का नाम स्मरण करना है। नाम स्मरण करने का कोई नियम नहीं है। भक्त जहाँ भी हो, चाहे जिस हालत में हो, ईश्वर का नाम स्मरण कर सकता है। अधिकांश लोग ईश्वर भक्ति का यही मार्ग अपनाते हैं। उठते-बैठते, आते-जाते तथा काम करते हुए नाम स्मरण किया जा सकता है। भजन - कीर्तन भी ईश्वर के नाम स्मरण का ही एक रूप है। ईश्वर भक्ति के इस मार्ग में प्रभु के गुणों का वर्णन किया जाता है। इसमें धार्मिक पूजा-स्थलों में जाने की जरूरत नहीं होती। गृहस्थ अपने घर में ईश्वर का नाम स्मरण कर उनके गुणों का बखान कर सकता है। इससे नाम स्मरण करने वालों को मानसिक शांति मिलती हैं और मन प्रसन्न होता है। कहा गया है - 'कलियुग केवल नाम अधारा, सुमिरि-सुमिर नर उतरें पारा।' इसमें ईश्वर भक्ति में नाम स्मरण का ही महत्त्व बताया गया है।
3) गुरुनिष्ठा और भक्तिभाव से ही मानव श्रेष्ठ बनता है’ इस कथन के आधार पर कविता का रसास्वादन कीजिए ।
SOLUTION
गुरु नानक का कहना है कि बिना गुरु के मनुष्य को ज्ञान नहीं मिलता। मनुष्य के अंतःकरण में अनेक प्रकार के मनोविकार होते हैं, जिनके वशीभूत होने के कारण उसे वास्तविकता के दर्शन नहीं होते। वह अहंकार में डूबा रहता है और उसमें गलत-सही का विवेक नहीं रह जाता। ये मनोविकार दूर होता है गुरु से ज्ञान प्राप्त होने पर। यदि गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा और उनमें पूरा विश्वास हो तो मनुष्य के अंतःकरण के इन विकारों को दूर होने में समय नहीं लगता। मन के विकार दूर हो जाने पर मनुष्य में सबको समान दृष्टि से देखने की भावना उत्पन्न हो जाती है। उसके लिए कोई बड़ा या छोटा अथवा ऊँच-नीच नहीं रह जाता। उसे मनुष्य में ईश्वर के दर्शन होने लगते हैं। उसके लिए ईश्वर की भक्ति भी सुगम हो जाती है। गुरु नानक ने अपने पदों में इस बात को सरल ढंग से कहा है।
इस तरह गुरु के प्रति सच्ची निष्ठा और भक्ति-भावना से मनुष्य श्रेष्ठ मानव बन जाता है।
गुरुबानी कविता का साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान
साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान | Q 1.1 | Page 26
1) गुरु नानक जी की रचनाओं के नाम :
SOLUTION
गुरुग्रंथसाहिब आदि।
2) गुरु नानक जी की भाषा शैली की विशेषताएँ :
SOLUTION
गुरु नानक जी सहज-सरल भाषा में अपनी बात कहने में माहिर हैं। आपकी काव्य भाषा में फारसी, मुल्तानी, पंजाबी, सिंधी, खड़ी बोली और अरबी भाषा के शब्द समाए हुए हैं। आपने पद शैली में रचना की है। 'पद' काव्य रचना की गेय शैली है।
निम्नलिखित वाक्यों मेंअधोरेखांकित शब्दों का वचन परिवर्तन करके वाक्य फिर से लिखिए :
1) सत्य का मार्ग सरल है ।
SOLUTION
सत्य के मार्ग सरल हैं।
2) हथकड़ियाँ लगाकर बादशाह अकबर के दरबार को ले चले।
SOLUTION
हथकड़ी लगाकर बादशाह अकबर के दरबार को ले चले।
3) चप्पे-चप्पे पर काटों की झाड़ियाँ हैं।
SOLUTION
चप्पे-चप्पे पर काँटें की झाड़ी है।
4) सुकरात के लिए यह जहर का प्याला है।
SOLUTION
सुकरात के लिए ये जहर के प्याले हैं।
5) रूढ़ि स्थिर है, परंपरा निरंतर गतिशील है।
SOLUTION
रूढ़ियाँ स्थिर हैं, परंपराएँ निरंतर गतिशील हैं।
6) उनकी समस्त खूबियों-खामियों के साथ स्वीकार कर अपना लें।
SOLUTION
उनकी समस्त खूबी-कमी के साथ स्वीकार कर अपना लें।
7) वे तो रुपये सहेजने में व्यस्त थे।
SOLUTION
वह तो रुपया सहेजने में व्यस्त था।
8) ओजोन विघटन के खतरे क्या-क्या हैं?
SOLUTION
ओजोन विघटन काखतरा क्या है?
9) शब्द में अर्थ छिपा होता है।
SOLUTION
शब्दों में अर्थ छिपे होते हैं।
10) अभी से उसे ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहिए।
SOLUTION
अभी से उसे ऐसे कोई कदम नहीं उठाने चाहिए।
गुरुबानी - गुरुबानी संपूर्ण स्वाध्याय | Gurubani svaadhyaay
कवि परिचय ः गुरु नानक जी का जन्म १5 अप्रैल १4६९ को रावी नदी के किनारे तलवंडी नामक ग्राम में हुआ । बचपन से ही आपका झुकाव आध्यात्मिक चिंतन और सत्संग की ओर रहा । आपके व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी,गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाज सुधारक और कवि के गुण पाए जाते हैं । आप सर्वेश्वरवादी हैं और सभी धर्मों-वर्गों को समान दृष्टि से देखते हैं । आपने विश्वबंधुत्व के विचार की पुष्टि की है । आपके भावुक और कोमल हृदय ने प्रकृति से एकात्म होकर जो अभिव्यक्ति की है, वह अनूठी है । आपकी काव्यभाषा में फारसी, मुल्तानी, पंजाबी, सिंधी, खड़ी बोली और अरबी भाषा के शब्द समाए हुए हैं । सहज-सरल भाषा द्वारा अपनी बात कहने में आप सिद्धहस्त हैं । आपका निधन १5३९ में हुआ ।
प्रमुख कृतियाँ ः ‘गुरुग्रंथसाहिब’ आदि ।
विधा परिचय ः ‘पद’ काव्य रचना की एक गेय शैली है । इसके विकास का मूल स्रोत लोकगीतों की परंपरा ही माना जा सकता है । हिंदी पद शैली में विभिन्न छंदों का प्रयोग अनेक निश्चित रूपों में हुआ है । हिंदी साहित्य में ‘पद शैली’ की दो निश्चित परंपराएँमिलती हैं - एक संतों की ‘सबद’ और दूसरी ‘कृष्णभक्तों’ की परंपरा ।
पाठ परिचय ः प्रस्तुत दोहों तथा पदों में गुरु नानक ने गुरु की महिमा, कर्म की महानता, सच्ची शिक्षा आदि विषयों पर अपने विचार व्यक्त किए हैं । मनुष्य के जीवन को उदात्त और चरित्रवान बनाने में गुरु का मार्गदर्शन, मनुष्य के उत्तम कार्य और सच्ची शिक्षा का बहुत बड़ा योगदान रहता है । गुरु द्वारा दिया जाने वाला ज्ञान ही शिष्य की सबसे बड़ी पूँजी है । संसार मनुष्य की जाति का नहीं अपितु उसके उत्तम कर्मों का सम्मान करता है । मनुष्य का श्रेष्ठत्व उसके अच्छे कर्मों से सिद्ध होता है न कि उसकी जाति अथवा वर्ग से । गुरु नानक ने कर्मकांड और बाह्याडंबर का घोर विरोध किया ।
गुरुबानी - गुरुबानी संपूर्ण स्वाध्याय | Gurubani svaadhyaay
नानक गुरू न चेतनी मनि आपणै सुचेत ।
छुटे तिल बूआड़ जिऊ सुंञे अंदरि खेत ।।
खेतै अंदरि छुटिआ कहु नानक सउ नाह ।
फलीअहि फुलीअहि बपुड़े भी तन विच सुआह ।। १ ।।
जालि मोहु घसि मसु करि,
मति कागदु करि सारु,
भाउ कलम करि चितु, लेखारी,
गुर पुछि लिखु बीचारू,
लिखु नामु सालाह लिखु,
लिखु अंतु न पारावारू ।। २ ।।
मन रे अहिनिसि हरि गुण सारि ।
जिन खिनु पलु नामु न वीसरै ते जन विरले संसारि ।
जोती जोति मिलाईए, सुरती सुरति संजोगु ।
हिंसा हउमै गतु गए नाही सहसा सोगु ।
गुरमुखि जिसु हरि मनि वसै तिसु मेले गुरू संजोगु ।। ३ ।।
तेरी गति मिति तूहै जाणहि किआ को आखि वखाणै
तू आपे गुपता, आपे प्ररगटु, आपे सभि रंग माणे
साधिक सिध, गुरू वहु चेले खोजत फिरहि फुरमाणे
मागहि नामु पाइ इह भिखिआ तेरे दरसन कउ कुरबाणे
अबिनासी प्रभु खेलु रचाइआ, गुरमुखि सोझी होई ।
नानक सभि जुग आपे वरतै, दूजा अवरु न कोई ।। 4 ।।
गगन मै थालु रवि चंदु दीपक बने ।
तारिका मंडल जनक मोती ।
धूपु मलआनल, पवणु चवरो करे,
सगल वनराइ फूलंत जोती ।
कैसी आरती होई भव खंडना, तेरी आरती ।
अनहता सबद वाजंत भेरी ।। 5 ।।
- (‘गुरू ग्रंथ साहिब’ से)
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