मैं उद्घोषक - Mai Udghoshak | मैं उद्घोषक स्वाध्याय [12th लेखक रचना स्वाध्याय ]
पाठ पर आधारित
पाठ पर आधारित | Q 1 | Page 94
1) सूत्र संचालक केकारण कार्यक्रम मेंचार चाँद लगतेहैं’, इसेस्पष्ट कीजिए ।
आज के जमाने में सूत्र संचालन का महत्त्व बहुत बढ़ गया है। कार्यक्रम छोटा हो या बड़ा, सूत्र संचालक अपनी प्रतिभा से उसमें चार चाँद लगा देता है। वह अपनी भाषा, आवाज में उतार - चढ़ाव, अपनी हाजिरजवाबी, श्रोताओं से चुटीले संवादों, संचालन के बीच-बीच में बरसात लाने के लिए चुटकुलों, रोचक घटनाओं के प्रयोग, मंच पर उपस्थित महानुभावों के प्रति अपने सम्मान सूचक शब्दों के प्रयोग, कार्यक्रमों के अनुसार भाषा-शैली में परिवर्तन करने तथा अपनी गलती पर माफी माँग लेने आदि गुणों के कारण सूत्र संचालन में तो चार चाँद लगा ही देता हैं, उपस्थित जन-समुदाय की प्रशंसा का पात्र भी बन जाता हैं। सूत्र संचालन अपने मिलनसार व्यक्तित्व, अपने विविध विषयों के ज्ञान, कार्यक्रम के सूत्रसंचालन, अपनी अध्ययनशीलता, अपनी प्रभावशाली और मधुर आवाज के संतुलित प्रयोग आदि के बल पर कार्यक्रम में जान डाल देता है। सधे हुए सूत्र संचालक की प्रतिभा का लाभ कार्यक्रमों और उनके आयोजकों को मिलता है।
इस तरह सधे हुए सूत्र संचालक के कारण कार्यक्रम में चार चाँद लग जाते हैं।
2) उत्तम मंच संचालक बननेके लिए आवश्यक गुण विस्तार से लिखिए ।
SOLUTION
मंच संचालन एक कला है। अच्छा मंच संचालक कार्यक्रम में जान डाल देता है। मंच संचालक श्रोता और वक्ता को जोड़ने वाली कड़ी होता है। वही सभा की शुरूआत करता है। उत्तम मंच संचालक बनने के लिए संचालक को अच्छी तैयारी करनी पड़ती है। जिस तरह का कार्यक्रम हो, उसी तरह की तैयारी भी होनी चाहिए। उसी के अनुरूप कार्यक्रम की संहिता लेखन करनी चाहिए। मंच संचालक के लिए प्रोटोकॉल का ज्ञान, प्रभावशाली व्यक्तित्व, हँसमुख, हाजिरजवाबी तथा विविध विषयों का ज्ञान होना चाहिए। इसके अतिरिक्त भाषा पर उसका प्रभुत्व होना आवश्यक है। मंच संचालक को किसी कार्यक्रम में ऐन मौके पर परिवर्तन होने पर संहिता में परिवर्तन कर संचालन करते हुए कार्यक्रम को सफल बनाना पड़ता है।
यह क्षमता उसमें होनी चाहिए। अच्छे मंच संचालक को हर प्रकार के साहित्य का अध्ययन करना आवश्यक है। मंच संचालन को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कार्यक्रम कोई भी हो, मंच की गरिमा बनी रहनी चाहिए। सबसे पहले मंच संचालन श्रोताओं के सामने आता है। इसलिए उसका परिधान, वेशभूषा आदि सहज और गरिमामय होनी चाहिए। मंच संचालन के अंदर आत्मविश्वास, सतर्कता, सहजता के साथ श्रोताओं का उत्साह बढ़ाने का गुण होना आवश्यक है। इसके अलावा मंच संचालक में समयानुकूल छोटे - छोटे चुटकुलों तथा रोचक घटनाओं से श्रोताओं को बाँधे रखने की शक्ति भी जरूरी है।
अच्छे मंच संचालक को भाषा का पर्याप्त ज्ञान होना आवश्यक है। भाषा की शुद्धता, शब्दों का चयन, शब्दों का उचित प्रयोग तथा किसी प्रख्यात साहित्यकार के कथन का उल्लेख कार्यक्रम को प्रभावशाली एवं हृदयस्पर्शी बना देता है। यही उत्तम मंच संचालन की थाती होती है।
उत्तम मंच संचालक बनने वाले व्यक्ति को उपर्युक्त गुणों को आत्मसात करना आवश्यक है।
3) सूत्र संचालन केविविध प्रकारों पर प्रकाश डालिए ।
SOLUTION
आजकल संगीत संध्या तथा जन्मदिन की पार्टी का भी संचालन जरूरी गया है। सूत्र संचालक, मंच और श्रोताओं के बीच सेतु का कार्य करता है। कार्यक्रमों अथवा समारोहों में निखार लाने का कार्य सूत्र संचालक ही करता है। इसलिए सूत्र संचालक का बहुत महत्त्व होता है। सूत्र संचालन कई प्रकार के होते हैं। इसके मुख्यतः निम्न प्रकार होते हैं। शासकीय कार्यक्रम का सूत्र संचालन, दूरदर्शन हेतु सूत्र संचालन, रेडियो हेतु सूत्र संचालन, राजनीतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का सूत्र संचालन। अलग अलग कार्यक्रमों का संचालन करने के लिए सूत्र संचालक को अलग-अलग प्रकार की सावधानियां बरतनी पड़ती हैं।
शासकीय एवं राजनीतिक समारोहों के सूत्र संचालन में प्रोटोकॉल का बहुत ध्यान रखना पड़ता है। इसके लिए पदों के अनुसार नामों की सूची बनानी पड़ती है। दूरदर्शन तथा रेडियो कार्यक्रमों का सूत्र संचालन करने के पहले उन पर प्रसारित किए जाने वाले कार्यक्रमों की संपूर्ण जानकारी प्राप्त करनी जरूरी है। कार्यक्रम की संहिता लिखकर तैयारी करनी होती हैं। सामाजिक तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों के सूत्र संचालन का कार्य हल्के-फुल्के ढंग का होता है। इनके लिए अलग संहिता लेखन की तैयारी करनी पड़ती है।
4) शहर के प्रसिद्ध संगीत महोत्सव का मंच संचालन कीजिए ।
SOLUTION
मंच संचालन : भाइयो और बहनो! आज हमारे शहर कोल्हापुर में आयोजित प्रसिद्ध संगीत महोत्सव में आप सबका स्वागत है। और स्वागत है इस महत्त्वपूर्ण संगीत महोत्सव में अपने मधुर गीत-संगीत से श्रोताओं को सराबोर करने के लिए पधारे हुए संगीतकारों, गायक-गायिकाओं तथा उपस्थित जन-समुदाय का।
मंच संचालन : ...तो दोस्तो! प्रतीक्षा की घड़ियाँ समाप्त हुईं। अब आपके समक्ष मंच पर विराजमान हैं अपने साज-ओ-सामान के साथ शहर के प्रसिद्ध तबला वादक पंडित राधेश्याम जी। पंडित जी अपने तबला वादन के लिए पूरे जिले में विख्यात हैं। उनका साथ दे रही हैं शास्त्रीय गायिका शारदादेवी जी। पंडित जी के स्वागत में जोरदार तालियाँ...
(गायिका शारदादेवी के स्वरों के साथ पंडित राधेश्याम की उँगलियाँ तबले पर थिरकने लगती हैं।लोग वाह-वाह करते हैं।तालियों की गड़गड़ाहट से सभा गारगूँज उठता है।)
मंच संचालक : वाह भाई वाह! वाह वाह। पंडित जी ने वाकई अपनी वाद्य कला से श्रोताओं का मन मोह लिया। सभागार में गूंजती हुई तालियों का शोर इसका सबूत है।
मंच संचालन : दोस्तों! अब आप सुनेंगे अपनी चहेती लोकगीत गायिका राधा वर्मा को। वे आपको सावन माह की वर्षा की फुहारों के बीच गाए जाने वाले मधुर गीत कजरी के रस से सराबोर करेंगी। उनके साथ हारमोनियम पर हैं रामनाथ शर्मा जी और ढोलक पर हैं पंडित राधारमण त्रिपाठी जी।
(राधा वर्माजी अपने कजरी गीत से समां बाँध देती हैं और लोग तालियाँ बजा कर 'वन्समोर... वन्समोर...' कहकर शोर मचाते हैं।)
मंच संचालक : दोस्तो! शांत रहिए... शांत! राधा जी आपके आग्रह का मान जरूर रखेंगी। राधा जी प्लीज! प्लीज!
राधा वर्मा दूसरी बार कजरी गाना शुरू करती हैं।अब श्रोता भी उनके स्वर से स्वर मिलाकर गाना शुरू कर देते हैं।)
मंच संचालक : वाह! वाह! दोस्तो, कजरी गीत है ही ऐसा। समूह में गाने पर इसका आनंद और ज्यादा, और ज्यादा बढ़ने लगता है। वाह भाई वाह!
मंच संचालक : अब मंच पर आपके समक्ष है प्रसिद्ध भजन गायक सुमित संत जी। संत जी की गायकी से तो आप सब परिचित ही हैं। अपने भजनों से संत जी आपको भक्ति रस से सराबोर कर देंगे। सुमित जी के साथ तबले पर हैं कामता प्रसाद जी। हारमोनियम पर हैं रामदास और सारंगी वादन कर रहे हैं प्रभु नारायण जी।
(सुमित संत पायो जी मैं ने राम रतन धन पायो' तथा 'मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई' जैसे भजनों से श्रोताओं को भक्तिरस से सराबोर कर देते हैं। तालियों और वाह! वाह के स्वर गूँजते हैं।)
मंच संचालक : वाह भाई! मेरे तो गिरधर गोपाल... (गुनगुनाते हैं) वाह! भक्ति रस का जवाब नहीं। आत्मा-परमात्मा का मिलन कराने वाला रस है भक्ति रस। वाह! वाह! वाह!
मंच संचालक : दोस्तो! अब आपको हम गजल गायकी की दुनिया में ले चलते हैं। मंच पर आपके सामने हैं प्रसिद्ध गजल गायक राजेंद्र शर्मा जी। गजल संभ्रांत श्रोताओं का गीत है। गजल के कई गायकों को अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है। श्री राजेंद्र शर्मा जी...
(राजेंद्र शर्मा की गायकी पर श्रोता झूमते हैं। एक-एक शब्द पर दाद देते हैं। वाह-वाह के शब्द सुनाई देते हैं।राजेंद्र शर्मा अपना गायन समाप्त करते हैं। तालियों की गड़गड़ाहट होती हैं।)
मंच संचालन : दोस्तो! अब आप के समक्ष सितारवादक रमाशंकर जी तंत्रवाद्य सितार की मधुर ध्वनि से आपका मनोरंजन करने आ रहे है। सितारवादक रविशंकर का नाम तो आपने सुना ही होगा। अब सुनिए रमाशंकर जी को।
(सितार वादक रमाशंकर अपने सितार पर मधुर ध्वनि से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। तालियों की गडगडाहट होती है।)
मंच संचालक : दोस्तो! मृदंग के मधुर स्वर से तो आप परिचित ही होंगे। मृदंग मंदिरों में बजाया जाने वाला वाद्य हैं। इसके अलावा गाँवों में देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना में मृदंग वाद्य का प्रयोग होता है। तो सुनिए अब मृदंग के मधुर स्वर पंडित कमलाकांत शर्मा जी से।
(पंडित कमलाकांत अपने मृदंग पर ऐसी थपकियाँ देते हैं कि श्रोता वाह-वाह करने लगते हैं।)
मंच संचालक : दोस्तो! अब हम एक ऐसे वाद्य और उसे बजाने वाले व्यक्ति से आपका परिचय कराते हैं, जो वाद्य पुराने जमाने में लड़ाई के समय सैनिकों में उत्साह पैदा करने के लिए बजाया जाता था। लेकिन आजकल इसका प्रयोग गाँवों में नौटंकियों में किया जाता है। इसका नाम है नगाड़ा। आज इसे मंच पर बजा हैं पंडित श्याम नारायण जी। श्याम नारायण जी का पेशा ही है नौटंकियों में नगाड़ा बजाना। तो श्याम नारायण जी... कड़कड़... कड़कड़... धम्म!
(श्याम नारायणजी नौटंकी की तर्जपर नगाड़ा बजाते हैं।श्रोता मस्ती से सिर हिलाते हैं।कुछ दर्शक अपने स्थान पर खड़े होकर नगाड़े की तर्ज पर अभिनय भी करने लगते हैं।श्याम नारायणजी नगाड़ा वादन बंद करते हैं। तालियों की गड़गड़ाहट होती हैं।)
मंच संचालन : दोस्तो! अब मैं आपके सामने आपका परिचय वाद्य यानी बाँसुरी बजाने वाले कलाकार को मंच पर अपने बाँसुरी वादन से आपका मनोरंजन करने के लिए बुलाता हूँ। दोस्तो! बाँसुरी की धून बहुत कर्णप्रिय होती है। भगवान श्री कृष्ण की बाँसुरी सुनकर गायें तक उनके पास दौड़ी चली आती थीं। तो शीतल यादव जी मंच पर अपनी बाँसुरी के साथ आपके सामने हैं।
(शीत लयादव बाँसुरी बजाते हैं।उनकी बांसुरी की धुन से पंडाल गूंजने लगता है। तालियाँ बजती हैं।)
मंच संचालक : दोस्तो! संगीत महोत्सव का कार्यक्रम हो और उसमें फिल्मी गीत-संगीत का समावेश न हो, ऐसा कैसे हो सकता है। दोस्तो! हम आज आपको फिल्मी गीतों के करावके संगीत की महफिल में ले चलते हैं। तो फिर देर किस बात की।...
(मंच पर करावके संगीत बजता है।इसमें सन १९६० से लेकर सन १९८० तक के मधुर गीतों के मुखड़ों संगीत बजते हैं और गायक मधुर स्वर में इन गीतों को गाते हैं।)
मंच संचालक : दोस्तो! आपको पॉप संगीत का मजा दिलाए बिना भला हम कैसे जाने देंगे। ऐसी कल्पना भी मत कीजिए। तो हो जाए धम... धमा... धम...।
(मंच पर दिलदहला देने वाला पॉप संगीत बजता है।लोग इस संगीत के साथ नाचने लगते हैं।)
मंच संचालक : अरे भाई, हम तो भूल ही गए। हमारे बीच एक बहुत ही उदीयमान कलाकार कब से अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे हैं। ये हैं बैंजो वादक मास्टर देवेश पांडेय जी। तो पांडेय जी, शुरू हो जाइए।
(देवांश पांडेजी अपने बैंजो वादक से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। चारों ओर से वाह-वाह का शोर होता हैं।)
मंच संचालक : अरे भाई, हमें पता है कि आप हमारे चहेते कलाकार पुत्तूचेरी पिल्लई को सुने बिना नहीं जाने वाले हैं। भाइयो! आखिर में आपके सामने श्रीमान पिल्लई साहब ही आ रहे हैं। आप तो जानते ही हैं कि वे -
प्यारा भारत देश हमारा।
हमको प्राणों से है प्यारा।
गीत हिंदी, मराठी, गुजराती, तमिल और तेलुगु भाषाओं में सुनाते हैं। आप यह देशभक्तिपूर्ण मधुर गीत सुनिए।
(श्री पिल्लई पाँच भाषाओं में यह गीत गाते हैं। तालियाँ बजती है।)
(गीत समाप्त होता है।)
मंच संचालक : दोस्तो। इस गीत के साथ ही हमारा आज का संगीत महोत्सव का यह समारोह समाप्त होता है।
।। जय हिंद ।।
(राष्ट्रगान बजता है, परदा गिरता है।)
5) अपने कनिष्ठ महाविद्यालय में मनाए जाने वाले ‘हिंदी दिवस समारोह’ का सूत्र संचालन कीजिए ।
SOLUTION
सूत्रसंचालन : दोस्तो! हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में आज महात्मा गांधी स्मारक इंटर कॉलेज, नाशिक में आयोजित इस समारोह में आपका हार्दिक स्वागत है। इस अवसर पर मुझे अपनी भाषा हिंदी से संबंधित कुछ पंक्तियाँ याद आती हैं -
जो थी तुलसी, चंद्र, सूर, भूषण को प्यारी।
थे रहीम, रसखान आदि जिस पर बलिहारी।
छवि ने जिसको लुभा लिया, जिसकी मनहारी।
सचमुच भाषा सकल राष्ट्र की वही हमारी।।
तो दोस्तो! हिंदी दिवस के इस अवसर पर अब बारहवीं कक्षा की छात्राओं द्वारा तैयार किया गया यह सुंदर नृत्य गीत प्रस्तुत है। आपके सामने यह नृत्य गीत प्रस्तुत कर रही हैं ऋचा, ऋधि, मधुरिमा, रोहा और अन्विता!
(कक्षा बारहवीं की लड़कियाँ -
जय माँ भारती जय, जय।
जय माँ भारती जय, जय।।
गीत गाते हुए नृत्य करती हैं।)
(तालियों की गड़गड़ाहट होती है।)
सूत्र संचालन : दोस्तो! तालियों की गड़गड़ाहट ही बता रही है कि यह नृत्य-गीत आप सबको कैसा लगा।
दोस्तो! अब हम आरंभ कर रहे हैं आज का मुख्य समारोह, यानी हिंदी दिवस का रंगारंग कार्यक्रम। मंच पर उपस्थित हैं हमारे कालेज के प्रिंसिपल श्री राजेंद्र पेंडसे जी, आज के प्रमुख अतिथि स्थानीय राणा प्रताप कालेज के हिंदी विभाग के अध्यक्ष श्री लोकनाथ सिन्हाजी तथा कालेज के अन्य अध्यापकगण।
सूत्र संचालन : अब हम महात्मा गांधी स्मारक इंटर कॉलेज के हिंदी विभाग के प्रभारी श्री श्रीपत मिश्र जी से प्रार्थना करते है कि आप हमारे प्रमुख अतिथि श्री लोकनाथ सिन्हाजी को पुष्पगुच्छ देकर उनका स्वागत करें। श्री श्रीपत जी मिश्र...
(श्री पतमिश्रप्रमुख अतिथि का पुष्पगुच्छ देकर स्वागत करते है।तालियों की गड़गड़ाहट होती है।)
दोस्तो! अब हम अपने महात्मा गांधी स्मारक इंटर कॉलेज के प्रिंसिपल श्री राजेंद्र पेंडसे जी की ओर से प्रमुख अतिथि श्री लोकनाथ सिन्हा जी से प्रार्थना करते हैं कि वे माँ सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर उन्हें माल्यार्पण करें। श्रीमान लोकनाथ सिन्हा जी!
(लोकनाथ सिन्हाजी माँ सरस्वती के समक्ष रखे दीपदान के दीप प्रज्ज्वलित करते हैं। वे सरस्वती की मूर्ति को माला पहनाते हैं।तालियों की गड़गड़ाहट होती है।)
सूत्र संचालन : अब कालेज की ग्यारहवीं कक्षा की छात्राएँ सुनीता संघवी और जाह्नवी पांडेय देवी सरस्वती का वंदना गीत प्रस्तुत करेंगी...
(सुनीता और जाह्नवी माँ सरस्वती का वंदना गीत गाती हैं)
या कुन्देन्दु तुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा। या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वंदिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा।।
(सरस्वती वंदना समाप्त होती है।)
(तालियों की गड़गड़ाहट होती है।)
सूत्र संचालन : अब कालेज के प्रिंसिपल श्री राजेंद्र पेंडसे जी हमारे प्रमुख अतिथि श्री आलोक नाथ सिन्हा जी का परिचय देंगे और कालेज की विभिन्न गतिविधियों से आप लोगों को परिचित कराएंगे। श्री राजेंद्र पेंडसे जी...
(श्री राजेंद्र पेंडसे प्रमुख अतिथि को समारोह का अतिथि पदस्वीकार करने के लिए बधाई देते हैंऔर संक्षेप में उनका परिचय देते हैं।) (वे कालेज की गतिविधियों के बारे में बताते हैं।)
सूत्र संचालक : अब मैं प्रिंसिपल साहब राज
मैं उद्घोषक - Mai Udghoshak | मैं उद्घोषक स्वाध्याय [12th लेखक रचना स्वाध्याय ]
लेखक परिचय ः आनंद प्रकाश सिंह जी का जन्म २१ जुलाई १९58 को असम राज्य के धुबरी नामक स्थान पर
हुआ । आपकी शिक्षा-दीक्षा उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ एवं इलाहाबाद में हुई । आपकी रुचियों और वृत्तियों ने आपको कविता, लेख, फिल्म, नाट्य और कला समीक्षा का हस्ताक्षर बना दिया । श्रेष्ठ उद्घोषक तथा सफल मंच संचालक के रूप में आपकी विशेष पहचान है । आकाशवाणी मुंबई में २९ वर्ष उद्घोषक के रूप में अपनी सेवाएँ देकर आप अवकाश ग्रहण कर चुके हैं । आपने आकाशवाणी के लिए आवश्यक संवाद लेखन करते हुए संवाद तथा संप्रेषण क्षेत्र में अपनी विशेष पहचान बनाई है । आपने विभिन्न समसामयिक विषयों पर लेखन करते हुए हिंदी भाषा की सेवा की है ।
प्रमुख कृतियाँ ः पत्र-पत्रिकाओं में विभिन्न विषयों पर लेख, समीक्षाएँ, कहानियाँ, कविताएँ आदि प्रकाशित ।
अात्मकथा ः आत्मकथात्मक लेखन हिंदी साहित्य में रोचक और पठनीय माना जाता है । अपने अनुभवों, व्यक्तिगत प्रसंगों को पूरी निष्ठा से बताना आत्मकथा की पहली शर्त है । इसमें लेखक की तटस्थता, घटनाओं के प्रति निरपेक्षता का निर्वाह आत्मकथा को विश्वसनीय बना देता है । आत्मकथा उत्तम पुरुषवाचक सर्वनाम ‘मैं’ में लिखना आवश्यक है ।
पाठ परिचय ः यहाँ सूत्र संचालन की प्रस्तुति ‘आत्मकथा’ के रूप में की गई है । प्रस्तुत पाठ में लेखक ने सफल उद्घोषक अथवा मंच संचालक बनने के लिए आवश्यक गुणों का उल्लेख किया है । लेखक का मानना है कि कार्यक्रम की सफलता मंच संचालक के आकर्षक और उत्तम संचालन पर निर्भर करती है । संचालक की सूझ बूझ, समयसूचकता, हाजिरजवाबी और भाषा प्रभुत्व समारोह को नये आयाम प्रदान करते हैं । वर्तमान काल में मंच अथवा सूत्र संचालन कार्य अपने-आप में महत्त्वपूर्ण कार्य के रूप में प्रसिद्ध हो गया है ।
मैं उद्घोषक - Mai Udghoshak
मैं उद्घोषक हूँ । उद्घोषक के पर्यायवाची शब्द के रूप में ‘मंच संचालक’ और अंग्रेजी में कहें तो एंकर हूँ । मंच संचालक श्रोता और वक्ता को जोड़ने वाली कड़ी है । मैं उसी कड़ी का काम करता हूँ । इसके लिए मेरी कई नामचीन व्यक्तियों द्वारा भूरि-भूरि प्रशंसा की गई है । भारत रत्न पं. भीमसेन जोशी जैसी हस्तियों के मुँह से यह सुनना कि बहुत अच्छा बोलते हो, अच्छे उद्घोषक हो या
मैं तो तुम्हारा फैन हो गया’ तो सचमुच स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करता हूँ । किसी भी कार्यक्रम में मंच संचालक की बहुत अहम भूमिका होती है । वही सभा की शुरुआत करता है । आयोजकों को तथा अतिथियों को वही मंच पर आमंत्रित करता है, वही अपनी आवाज, सहज और हास्य प्रसंगों तथा काव्य पंक्तियों से कार्यक्रम की सफलता निर्धारित करता है । मैंने कई बार इस महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह अत्यंत सफलतापूर्वक किया है लेकिन यह सब यों अचानक नहीं हो गया । मैंने भी इसके लिए बहुत पापड़ बेले हैं । आरंभिक दिनों में मैं भी मंच पर जाते घबराता था । माइक मुझे साँप के फन की तरह नजर आता था ।
दिल जोर-जोर से धड़कने लगता था । मुझे याद है - तब मैं नौवीं कक्षा का छात्र था । विद्यालय के प्रांगण में गांधी जयंती का आयोजन किया गया था । मुझे भी भाषण देने के लिए चुना गया । मंच पर जाते ही हाथ-पैर थरथराने लगे । जो कुछ याद किया था, लगा, सब भूल गया हूँ । कुछ पल के लिए जैसे होश ही खो बैठा हूँ पर फिर खुद को सँभाला । महान व्यक्तियों के आरंभिक जीवन के प्रसंगों को याद किया कि किस तरह कुछ नेता हकलाते थे, कुछ काँपते थे पर बाद में वे कुशल वक्ता बने । ये बातें याद आते ही हिम्मत जुटाकर मैंने बोलना शुरू किया और बोलता ही गया । भाषण समाप्त हुआ । खूब तालियाँ बजीं । खूब वाह-वाही मिली । कहने का मतलब यह कि थोड़ी-सी हिम्मत और आत्मविश्वास ने मुझे भविष्य की राह दिखा दी और मैं एक सफल सूत्र संचालक के रूप में प्रसिद्ध हो गया ।
सूत्र संचालन के मुख्यत: निम्न प्रकार हैं -
• शासकीय कार्यक्रम का सूत्र संचालन • दूरदर्शन हेतु सूत्र संचालन • रेडियो हेतु सूत्र संचालन • राजनीतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का सूत्र संचालन
• शासकीय एवं राजनीतिक कार्यक्रम का सूत्र संचालन : शासकीय एवं राजनीतिक समारोह के सूत्र संचालन में प्रोटोकॉल का बहुत ध्यान रखना पड़ता है । पदों के अनुसार नामों की सूची बनानी पड़ती है । किसका-किसके हाथों सत्कार करना है; इसकी योजना बनानी पड़ती है । इस प्रकार का सूत्र संचालन करते समय अति आलंकारिक भाषा के प्रयोग से बचना चाहिए ।
• दूरदर्शन तथा रेडियो कार्यक्रम का सूत्र संचालन : दूरदर्शन अथवा रेडियो पर प्रसारित किए जाने वाले कार्यक्रम/समारोह की संपूर्ण जानकारी होनी चाहिए । कार्यक्रम की संहिता लिखकर तैयार करनी चाहिए । उसके पश्चात कार्यक्रम प्रारंभ करना चाहिए और धीरे-धीरे उसका विकास करते जाना चाहिए । भाषा का प्रयोग कार्यक्रम और प्रसंगानुसार किया जाना चाहिए । रोचकता और विभिन्न संदर्भों का समावेश कार्यक्रम में चार चाँद लगा देते हैं । स्मरण रहे- सूत्र संचालक मंच और श्रोताओं के बीच सेतु का कार्य करता है ।
सूत्र संचालन करते समय रोचकता, रंजकता, विविध प्रसंगों का उल्लेख करना आवश्यक होता है । कार्यक्रम/समारोह में निखार लाना सूत्र संचालक का महत्त्वपूर्ण कार्य होता है । कार्यक्रम के अनुसार सूत्र संचालक को अपनी भाषा और शैली में परिवर्तन करना चाहिए; जैसे- गीतों अथवा मुशायरे का कार्यक्रम हो तो भावपूर्ण एवं सरल भाषा का प्रयोग अपेक्षित है तो व्याख्यान अथवा वैचारिक कार्यक्रम में संदर्भ के साथ सटीक शब्दों का प्रयोग आवश्यक है । सूत्र संचालन करते समय उसके सामने सुनने वाले कौन हैं; इसका भी ध्यान रखना चाहिए ।
अच्छे मंच संचालक के लिए आवश्यक है - अच्छी तैयारी । वर्तमान समय में संगीत संध्या, बर्थ डे पार्टी या अन्य मंचीय कार्यक्रमों के लिए मंच संचालन आवश्यक हो गया है । मैंने भी इस तरह के अनेक कार्यक्रमों के लिए सूत्र संचालन किया है । जिस तरह का कार्यक्रम हो, तैयारी भी उसी के अनुसार करनी होती है । मैं भी सर्वप्रथम यह
देखता हूँकि कार्यक्रम का स्वरूप क्या है? सामाजिक, शैक्षिक, राजनीतिक, कवि सम्मेलन, मुशायरा या सांस्कृतिक कार्यक्रम ! फिर उसी रूप में मैं कार्यक्रम का संहिता लेखन करता हूँ ।
इसके लिए कड़ी साधना व सतत प्रयास आवश्यक है । कार्यक्रम की सफलता सूत्र संचालक के हाथ में होती है । वह दो व्यक्तियों, दो घटनाओं के बीच कड़ी जोड़ने का काम करता है । इसलिए संचालक को चाहिए कि वह संचालन के लिए आवश्यक तत्त्वों का अध्ययन करे । सूत्र संचालक के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण गुणों का होना आवश्यक है । हँसमुख, हाजिरजवाबी, विविध विषयों का ज्ञाता होने के साथ-साथ उसका भाषा पर प्रभुत्व होना आवश्यक है । कभी-कभी किसी कार्यक्रम में ऐन वक्त पर परिवर्तन होने की संभावना रहती है । यहाँ सूत्र संचालक के भाषा प्रभुत्व की परीक्षा होती है ।
पूर्वनिर्धारित अतिथियों का न आना, यदि आ भी जाए तो उनकी दिनभर की कार्य व्यस्तता का विचार करते हुए कार्यक्रम पत्रिका में संशोधन/सुधार करना पड़ता है । आयोजकों की ओर से अचानक मिली सूचना के अनुसार संहिता में परिवर्तन कर संचालन करते हुए कार्यक्रम को सफल बनाना ही सूत्र संचालक की विशेषता होती है । सूत्र संचालक का मिलनसार होना भी आवश्यक होता है । उसका यह मिलनसार व्यक्तित्व संचालन में चार चाँद लगाता है । सूत्र संचालक को विविध विषयों का ज्ञाता होना भी आवश्यक है । यदि सूत्र संचालक भौतिकीय विज्ञान, परमाणु विज्ञान जैसे विषयों और विभिन्न राष्ट्रीय- अंतर्राष्ट्रीय नेताओं के सामने कार्यक्रम का संचालन करता
हो तो संबंधित राष्ट्र तथा विषयों का ज्ञाता होना आवश्यक है । कड़ी साधना, गहराई से अध्ययन करते हुए विषय का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं । आकाशवाणी और सार्वजनिक कार्यक्रमों के मंचों पर संचालन कार्य ने मेरे व्यक्तित्व को नई ऊँचाई प्रदान की है । इस विषय में मेरी सफलता का प्रमुख कारण है मेरा प्रस्तुतीकरण क्योंकि मंच संचालन की सफलता संचालक के प्रस्तुतीकरण पर ही निर्भर करती है ।
मैं इस बात का ध्यान रखता हूँकि कार्यक्रम कोई भी हो, मंच की गरिमा बनी रहे । मंचीय आयोजन में मंच पर आने वाला पहला व्यक्ति संचालक ही होता है । एंकर (उद्घोषक) का व्यक्तित्व दर्शकों की पहली नजर में ही सामने आता है । अतएव उसका परिधान, वेशभूषा, केश सज्जा इत्यादि सहज व गरिमामयी होनी चाहिए । उद्घोषक या एंकर के रूप में जब वह मंच पर होता है तो उसका व्यक्तित्व और उसका आत्मविश्वास ही उसके शब्दों में उतरकर श्रोता तक पहुँचता है । सतर्कता, सहजता और उत्साहवर्धन उसके मुख्य गुण हैं । मेरे कार्यक्रम का आरंभ जिज्ञासाभरा होता है । बीच-बीच में प्रसंगानुसार कोई रोचक दृष्टांत, शेर-ओ-शायरी या कविताओं के अंश का प्रयोग करता हूँ । जैसे- एक कार्यक्रम में वक्ता महिलाओं की तुलना गुलाब से करते हुए कह रहे थे कि महिलाएँ बोलती भी ज्यादा हैं और हँसती भी ज्यादा हैं ।
बिलकुल खिले गुलाबों की तरह वगैरह...। जब उनका वक्तव्य खत्म हुआ तो मैंने उन्हें धन्यवाद देते हुए कहा कि सर आपने कहा कि महिलाएँ हँसती-बोलती बहुत ज्यादा हैं तो इसपर मैं महिलाओं की तरफ से कहना चाहूँगा,‘हर शब्द मेंअर्थछुपा होता है। हर अर्थमेंफर्कछुपा होता है।लोग कहतेहैं कि हम हँसतेऔर बोलतेबहुत ज्यादा हैं।पर ज्यादा हँसनेवालों के दिल मेंभी दर्द छुपा होता है।’मेरी इस बात पर इतनी तालियाँ बजीं कि बस ! महिलाएँ तो मेरी प्रशंसक हो गईं । कार्यक्रम के बाद उन वक्ताओं ने मेरी पीठ थपथपाते हुए कहा, ‘बहुत बढ़िया बोलते हो ।’ संक्षेप में; कभी कोई सहज, हास्य से भरा चुटकुला या कोई प्रसंग सुना देता हूँ तो कार्यक्रम बोझिल नहीं होता तथा उसकी रोचकता बनी रहती है । विभिन्न विषयों का ज्ञान होना जरूरी है । कार्यक्रम कोई भी हो; भाषा का समयानुकूल प्रयोग कार्यक्रम की गरिमा बढ़ा देता है ।
इसके लिए आपका निरंतर पढ़ते रहना आवश्यक है । मैं भी जब छोटा था तो रोज शाम के समय नगर वाचनालय में जाता था । ‘चंपक’, ‘नंदन’, ‘बालभारती’ और ‘चंदामामा’ जैसी पत्रिकाएँ पढ़ता था । बाद में धर्मयुग’, ‘हिंदुस्तान’, ‘दिनमान’, ‘कादंबिनी’, ‘सारिका’, नवनीत’, ‘रीडर्स डाइजेस्ट’ जैसी मासिक-पाक्षिक त्रिकाएँ पढ़ने लगा । रेडियो के विविध कार्यक्रमों को सुनना बेहद पसंद था । ये सारी बातें कहीं-न-कहीं प्रेरणादायक रहीं तथा सूत्र संचालन का आधारस्तंभ बनीं । मैं उद्घोषक/मंच संचालक की भूमिका पूरी निष्ठासे निभाता रहा हूँ और श्रोताओं ने मुझे अपार स्नेह और यश से समृद्ध किया है । किंग ऑफ वाॅईस, संस्कृति शिरोमणि, अखिल आकाशवाणी जैसे अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया हूँ । मैंने भी विज्ञापन देखकर रेडियो उद्घोषक पद हेतु आवेदन किया था । २९ वर्ष तक मैंने वहाँ अपनी सेवाएँ प्रदान कीं; इसका मुझे गर्व है । मैं उद्घोषक हूँ । शब्दों की दुनिया में रहता हूँ ।
जब रेडियो से बोलता हूँ तो हर घर, सड़क-दर-सड़क, गली-गली में सुनाई पड़ता हूँ, तब मेरी कोई सूरत नहीं होती । मेरा कोई चेहरा भी नहीं होता लेकिन मैं हवाओं की पालकी पर सवार दूर गाँवों तक पहुँच जाता हूँ । जब एंकर बन जाता हूँ तो अपने दर्शकों के दिलों को छू लेता हूँ । आप मुझे आवाज के परदे पर देखते हैं । मैं उद्घोषक हूँ । मैं एंकर हूँ । रोजगार केअवसर इस क्षेत्र में भी रोजगार की भरपूर संभावनाएँ हैं । इसमें आप नाम-दाम दोनों कमा सकते हैं । मुझे भाषा का गहराई से अध्ययन करना पड़ा है । लोग भले ही कहें कि भाषा का अध्ययन क्यों करें? क्या इससे रोजगार मिलता है? पर मैं आज तक के अपने अनुभवों से कहना चाहता हूँकि भाषा का विद्यार्थी कभी बेकार नहीं रहता । सूत्रसंचालन में भी भाषा की महत्त्वपूर्ण भूमिका है । भाषा की शुद्धता, शब्दों का चयन, उनका उचित प्रयोग, किसी प्रख्यात साहित्यकार या व्यक्तित्व के कथन का उल्लेख कार्यक्रम को प्रभावशाली एवं हृदयस्पर्शी बना देता है । विभिन्न कार्यक्रमों के साथ आप रेडियो या टी.वी. उद्घोषक के रूप में रोजगार पा सकते हैं ।
मैं उद्घोषक - Mai Udghoshak
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