कोखजाया संपूर्ण स्वाध्याय - kokhajaaya sampoorn svaadhyaay | [12th लेखक रचना स्वाध्याय ]

कोखजाया संपूर्ण स्वाध्याय - kokhajaaya sampoorn svaadhyaay 

कोखजाया संपूर्ण स्वाध्याय - kokhajaaya sampoorn svaadhyaay | [12th लेखक रचना स्वाध्याय ]

परिणाम लिखिए :

आकलन | Q 1.1 | Page 62

1) मौसा अचानक चल बस - __________________
SOLUTION
मौसा अचानक चल बसे - मौसी का जीवन एकाएक ठहरसा गया।

2) दिलीप उच्च शिक्षा के लिए लंदन चला गया - __________________
SOLUTION
दिलीप उच्च शिक्षा के लिए लंदन चला गया - तो वहीं का होकर रह गया।

कृति पूर्ण कीजिए :

आकलन | Q 2.1 | Page 62

1) बोर्ड पर लिखा वृद्धाश्रम का नाम - ____________
SOLUTION
बोर्ड पर लिखा वृद्धाश्रम का नाम - मातेश्वरी महिला वृद्धाश्रम

2) दिलीप और रघुनाथ का रिश्ता - ____________
SOLUTION
दिलीप और रघुनाथ का रिश्ता - मौसेरे भाई

तद्‌धित शब्द लिखिए :

शब्द संपदा | Q 1 | Page 62
1) बूढ़ा - __________________
SOLUTION
बूढ़ा - बुढ़ापा

2) मानव - __________________
SOLUTION
मानव - मानवता

3) माता - __________________
SOLUTION
माता - मातृत्व

4) अपना - ______
SOLUTION
अपना - अपनापन

अभिव्यक्त 

अभिव्यक्त | Q 1 | Page 62
1) कोखजाया’ कहानी का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए ।
SOLUTION
वर्तमान भारतीय समाज में पारिवारिक व्यवस्था में बड़ी तेजी से बदलाव आ रहे हैं। निकटस्थ रिश्ते भी भावनाओं से दूर निरर्थक होते जा रहे हैं। परिवार छोटे हो गए हैं। केवल 'मैं और मेरे बच्चे' ही परिवार का हिस्सा रह गए। इस भावना के फलने-फूलने में स्त्रियों का योगदान भी कम नहीं रहा। 'मेरे पति की आमदनी पर सिर्फ मेरा और मेरे बच्चों का ही अधिकार है' वाली भावना जोर पकड़ने लगी। 'कोखजाया' कहानी का उद्देश्य आज समाज में फैलती जा रही रिश्तों की निरर्थकता को चित्रित करते हुए यह दर्शाना भी है कि प्रत्येक रिश्ते में प्यार होना जरूरी है। आज के समाज के केंद्र में धन, विलासिता सुख-सुविधाओं का स्थान सर्वोपरि हो गया है। आज की भौतिकवादी पीढ़ी में युवक विवाहोपरांत निजी स्वार्थ में इस तरह लिप्त हो जाते हैं कि वूद्ध माता-पिता की सेवा करना तो दूर, उनकी उपेक्षा करने लगते हैं। कहानी हमें यह भी संदेश देती है कि मनुष्य की इस प्रवृत्ति को बदलना होगा और रिश्तों को सार्थकता प्रदान करनी होगी वरना हमारी महान भारतीय संस्कृति रसातल में चली जाएगी।

2) ‘माँकेचरणों मेंस्वर्ग होता है’, इस कथन पर अपने विचार लिखिए ।
SOLUTION
कहा जाता है कि माता के चरणों में स्वर्ग होता है। संसार का सुंदर व प्यारा शब्द है 'माँ'। इसमें कितनी मिठास भरी है। माँ का दर्जा देवताओं से भी बढ़कर है। हमने परमात्मा को नहीं देखा, भगवान को नहीं देखा। हमारी माँ हमारे लिए भगवान का ही रूप है। परमात्मा इस सृष्टि का पालन करता है, यह हम सभी जानते हैं। माता के चरणों का स्पर्श करने से बल, बुद्धि, विद्या और आयु प्राप्त होती है। कितने कष्टों को सहकर माँ बच्चे को जन्म देती है, उसके पश्चात अपने स्नेहरूपी अमृत से सींचकर उसे बड़ा करती है। माता- पिता के चरणों में स्वर्ग होता है, उनके आशीर्वाद से हमें हर क्षेत्र में सफलता मिलती है। हर कष्ट से मुक्ति मिलती है। उनका आदर और सम्मान करना हमारा सबसे पहला धर्म है। आज संसार में हमारा जो भी अस्तित्व है, जो भी पहचान है, उसका संपूर्ण श्रेय हमारे माता- पिता को ही जाता है। विवेकी पुत्र अपने माता-पिता की आज्ञा की अवहेलना करके एक कदम भी नहीं चलते। साथ ही लालच के कारण, धन के लिए माता-पिता की आज्ञा का उल्लंघन करने वालों की भी समाज में कमी नहीं है। आज आवश्यकता है मातृदेवो भव वाली वैदिक अवधारणा को एक बार पुनःप्रतिष्ठित करने की। तभी भारतीय समाज अपनी प्राचीन गरिमा को प्राप्त कर सकेगा।

3) मौसी की स्वभावगत विशेषताएँ लिखिए ।
SOLUTION
स्नेही : मौसी बड़ी स्नेही थीं। उन्होंने अपने पिता से मिली संपत्ति जबरन अपनी छोटी बहन को सौंप दी। लेखक की पढ़ाई-लिखाई में भी मौसी का योगदान था।
निरभिमानी : मौसी के पति प्रसिद्ध आई ए एस अधिकारी थे। वे हमेशा बड़े-बड़े पदों पर आसीन रहे। गुजरात में जिलाधिकारी रहे। अंत में भारत सरकार के वित्त सचिव के पद से रिटायर हुए थे। परंतु मौसी को कभी भी अपने पति के पद या पावर का घमंड नहीं हुआ।

भावुक हृदया : मौसी बहुत भावुक हृदय की स्वामिनी थीं। एक बार उनके नैहर के गाँव में भयंकर अकाल पड़ा। लोगों के हाहाकार और दुर्दशा से द्रवित होकर उन्होंने अपनी ससुराल से सारा जमा अन्न मँगवाया। आवश्यकतानुसार खरीदवाया भी। और पूरे गाँव के लिए भंडारा खुलवा दिया।

स्वाभिमानी : मौसी सरल हृदया थीं परंतु बड़ी स्वाभिमानी थीं। उनके एकमात्र पुत्र ने धोखे से उनकी सारी संपत्ति औने-पौने दामों में बेच दी। मौसी ने भारी हृदय से उस धोखे को भी आत्मसात कर लिया। परंतु वही पुत्र उन्हें एयरपोर्ट पर अकेले, निराश्रित छोड़कर चला गया। उसने एक बार भी यह नहीं सोचा कि माँ का क्या होगा, वह कहाँ जाएगी? तब मौसी ने वृद्धाश्रम में रहना उचित समझा। लोकलाज के भय से बेटा परिवार के साथ आया अवश्य, पर उनके छटपटाने, गिड़गिड़ाने के बावजूद मौसी ने मिलने से मना कर दिया, उनका मुँह तक नहीं देखा।

4) ‘मनुष्य केस्वार्थ केकारण रिश्तों मेंआई दूरी’, इसपर अपना मंतव्य लिखिए ।
SOLUTION
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। रिश्ते सामाजिक संबंधों का आधार हैं। संस्कारों की कमी, निहित स्वार्थ और भौतिकवादी सोच व्यक्ति को क्रूर बना रहे हैं। पैसों की होड़, मनुष्य के निजी स्वार्थ के कारण पारिवारिक रिश्तों में काफी गिरावट आई है। दो लोगों के बीच में पारस्परिक हितों का होना, बनना और बढ़ना रिश्तों को न केवल जन्म देता है, बल्कि एक मजबूत नींव भी प्रदान करता है। जैसे ही पारस्परिक हित निजी हित या स्वार्थ में बदल जाता है रिश्तों में ग्रहण लगना शुरू हो जाता है। पारस्परिक हित में अपने हित के साथ-साथ दूसरे के हित का भी समान रूप से ध्यान रखा जाता है।

जानकारी लिखिए :

साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान | Q 1 | Page 63
1) ‘कोखजाया’ कहानी के हिंदी अनुवादक का नाम -
SOLUTION
बैद्यनाथ झा।

2) कहानी विधा की विशेषता -
SOLUTION
कहानी विधा में जीवन में किसी एक अंश अथवा प्रसंग का वर्णन मिलता है। कहानियाँ अपने प्रारंभिक काल से ही सामाजिक बोध को व्यक्त करती है। समाज के बदलते मूल्यों, विचारों और दर्शन ने सदैव कहानियों को प्रभावित किया है। कहानियों के द्वारा हम किसी भी काल की सामाजिक, राजनीतिक दशा का परिचय आसानी से पा सकते हैं।

निम्न उपसर्गों से प्रत्येक केतीन शब्द लिखिए :

साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान | Q 1.01 | Page 63

1) अति - क्रमण : अतिक्रमण ______ ______
SOLUTION
अति - क्रमण : अतिक्रमण अतिरिक्त अतिशय

2) नि - कृष्ट : निकृष ______  ______
SOLUTION
नि - कृष्ट : निकृष्ट  निवास  निषेध

3) परा - काष्ठा : पराकाष ______  ______
SOLUTION
परा - काष्ठा : पराकाष्ठा  पराजय  पराजय

4) वि - संगति : विसंगति ______  ______
SOLUTION
वि - संगति : विसंगति  विदेश  विवाद

5) अभि - भावक: अभिभावक ______  ______
SOLUTION
अभि - भावक : अभिभावक अभिनव  अभिमान

6) प्र - स्थान : प्रस्थान ______  ______
SOLUTION
प्र - स्थान : प्रस्थान  प्रगति  प्रबल

7) अ - विवेक : अविवेक ______  ______
SOLUTION
अ - विवेक : अविवेक  अधर्म  असत्य

8) अध - पका : अधपका ______  ______
SOLUTION
अध - पका : अधपका अधबना अधजला

9) भर - पूर : भरपूर ______  ______
SOLUTION
भर - पूर : भरपूर भरपेट भरसक

10) कु - पात्र : कुपात ______  ______
SOLUTION
कु - पात्र : अपात्र  कर संगत  कुप्रथा

11) आ - प्यास : प्यासा ______ ______
SOLUTION
आ - प्यास : प्यासा  प्यारा  दुलारा

12) इया - पूरब : पुरबिया ______ ______
SOLUTION
इया - पूरब : पुरबिया  घटिया  उड़िया

13) ई - ज्ञान : ज्ञानी ______ ______
SOLUTION
ई - ज्ञान : ज्ञानी  विदेशी  गुजराती

14) ईय - भारत : भारतीय ______ ______
SOLUTION
ईय - भारत : भारतीय  शासकीय  राजकीय

15) ईय - भारत : भारतीय ______ ______
SOLUTION
ईय - भारत : भारतीय  शासकीय  राजकीय

16) ऊ - ढाल : ढालू ______ ______
SOLUTION
ऊ - ढाल : ढालू  चालू  रट्टू

17) मय - जल : जलमय ______ ______
SOLUTION
मय - जल : जलमय  ज्ञानमय  संगीतमय

18) मय - जल : जलमय ______ ______
SOLUTION
मय - जल : जलमय  ज्ञानमय  संगीतमय

19) वर - नाम : नामवर ______ ______
SOLUTION
वर - नाम : नामवर  ताकतवर  प्रियवर

20) दार - धार : धारदार ______ ______
SOLUTION
दार - धार : धारदार  जमींदार  दुकानदार


कोखजाया संपूर्ण स्वाध्याय - kokhajaaya sampoorn svaadhyaay 

लेखक परिचय ः श्याम दरिहरे जी का जन्म १९ फरवरी १९54 को बिहार के मधुबनी जिले में हुआ । आप मैथिली भाषा के  चर्चित रचनाकार माने जाते हैं । मैथिली भाषा में कहानी, उपन्यास तथा कविता में आपने अपनी लेखनी का श्रेष्ठत्व सिद्ध  किया है । आपने ‘कनुप्रिया’ काव्य का मैथिली भाषा में अनुवाद किया है । आपकी समग्र रचनाएँ भारतीय संस्कृति में  आधुनिक भावबोध को परिभाषित करती हैं । परिणामत: आपकी रचनाएँ पुरानी और नई पीढ़ी के बीच सेतु का कार्य करती  हैं । आपका समस्त साहित्य मैथिली भाषा में रचित है तथा संप्रेषणीयता की दृष्टि से भाव एवं बोधगम्य है । आपकी सहज  और सरल मैथिली भाषा पाठकों के मन पर दूर तक प्रभाव छोड़ जाती है । प्रस्तुत कहानी का हिंदी में अनुवाद बैद्यनाथ झा  ने किया है । 

प्रमुख कृतियाँ ः ‘घुरि आउ मान्या’, ‘जगत सब सपना’, ‘न जायते म्रियते वा’ (उपन्यास), ‘सरिसो में भूत’, ‘रक्त संबंध’  कथा संग्रह), ‘गंगा नहाना बाकी है’, ‘मन का तोरण द्वार सजा है’ (कविता संग्रह) आदि ।

विधा परिचय ः अनूदित साहित्य का हिंदी साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान है । अनूदित कहानी विधा में जीवन के किसी एक  अंश अथवा प्रसंग का चित्रण मिलता है । ये कहानियाँप्रारंभ से ही सामाजिक बोध को व्यक्त करती रही हैं । समाज के बदलते  मूल्यों एवं विचार तथा दर्शन ने सामाजिक कहानियों को प्रभावित किया है । 

पाठ परिचय ः वर्तमान मानव समाज के केंद्र में धन, विलासिता, सुख-सुविधाओं को स्थान प्राप्त हो चुका है । पारिवारिक  व्यवस्था में भी बहुत बड़ा बदलाव आ गया है । पैसे ने रिश्तों का रूप धारण कर लिया है तो रिश्तेनिरर्थक होते जा रहे हैं ।  यही कारण है कि दिलीप अपने पिता की मृत्यु के पश्चात माँ-पिता का घर बेचकर सारा पैसा अपने नाम कर लेता है और  अपनी माँ को अपने साथ विदेश ले जाने के बदले हवाई अड्डे पर निराधार हालत में छोड़ जाता है । माँ जो एक आई.ए.एस. अधिकारी की पत्नी हैं; वृद्धाश्रम में रहने को अभिशप्त हो जाती हैं । शायद यही नियति है... आज के वृद्धों की ! लेखक  के अनुसार मनुष्य की इस प्रवृत्ति को बदलना होगा और रिश्तों को सार्थकता प्रदान करनी होगी ।

कोखजाया संपूर्ण स्वाध्याय - kokhajaaya sampoorn svaadhyaay 

वृद्‌धाश्रम के प्रबंधक का फोन कॉल सुनकर मैं  अवाक् रह गया । मौसी इस तरह अचानक संसार से चली जाएगी; इसका अनुमान नहीं था । ऑफिस से अनुमति लेकर तुरंत विदा हो गया । संग में पत्नी और चार सहकर्मी  भी थे । मन बहुत दुखी हो रहा था- ओह ! भगवान भी कैसी-कैसी परिस्थितियों में लोगों को डालते रहते हैं । गाड़ी में बैठे-बैठे मुझे उस दिन की याद हो आई जब  मैं पहली बार वृद्‌धाश्रम में मौसी से मिलने आया था ।  पूछते-पूछते जब मैं वृद्धाश्रम पहुँचा था तो दिन डूबने को  था । शहर से कुछ हटकर बना वृद्‌धाश्रम का साधारण-सा  घर देखकर आश्चर्य लगा कि भारत सरकार के पूर्व वित्त सचिव की विधवा इस वृद्‌धाश्रम में किस प्रकार गुजारा कर  रही होंगी ।

 संपूर्ण जीवन बड़ी-बड़ी कोठियों-बंगलों में  रहने वाली मौसी अंतिम समय में शहर से दूर दस-बीस  अनजान, बूढ़ी, अनाथ महिलाओं के साथ किस प्रकार  रहती होंगी । ऐसी जिंदगी की तो उसे कल्पना तक नहीं रही होगी, मैंने सोचा था । सामने एक बोर्ड लगा था जिसपर अंग्रेजी में लिखा  था ‘‘मातेश्वरी महिला वृद्धाश्रम’’ । दीवाल पर एक स्विच  लगा हुआ दीखा । उसको दबाने से लगा कि अंदर कोई घंटी घनघना उठी । कुछ ही पलों के बाद फाटक का छोटा-सा  भाग खिसकाकर एक व्यक्ति ने पूछा, ‘‘क्या बात है  श्रीमान?’’ ‘‘मुझे मिसेज गंगा मिश्र से मिलना है ।’’ मैंने कहा । ‘‘आपका नाम?’’ ‘‘रघुनाथ चौधरी ।’’

‘‘ठीक है । आप यहीं प्रतीक्षा कीजिए । मैं उनसे पूछ  लेता हूँकि वे आपसे मिलना चाहती हैं या नहीं ।’’ यह  कहकर उस व्यक्ति ने फाटक फिर से बंद कर लिया । लगभग दस मिनट तक मैं कार में बैठा प्रतीक्षा करता  रहा तब जाकर वह गेट खुला और मैं कारसहित अंदर  दाखिल हुआ । बाहर से बहुत छोटा दिखने वाला यह  वृद्‌धाश्रम अंदर से काफी बड़ा था । मन में संतोष हुआ कि मौसी अनजान लोगों के बीच तो अवश्य पड़ गई हैं परंतु  व्यवस्था बुरी नहीं है । कार पार्क करने के बाद उस व्यक्ति  के साथ विदा हुआ ।

‘‘मिसेज गंगा मिश्रा जिस दिन से यहाँ आई हैं तबसे  आप प्रथम व्यक्ति हैं जिनसे उन्होंने मिलना स्वीकार किया  है ।’’ वह व्यक्ति चलते-चलते कहने लगा, ‘‘कैसे-कैसे  लोग कई-कई दिनों तक आकर गिड़गिड़ाते रहे और लौट  गए परंतु मैडम टस-से-मस नहीं हुई । अभी जब मैंने  आपका नाम कहा तो वे रोने लगीं । मैं प्रतीक्षा करता खड़ा  था । थोड़ी देर बाद आँसू पोंछकर बोलीं, ‘‘बुला लाइए ।’’ मैंने कोई जवाब नहीं दिया । ‘‘वे आपकी कौन होंगी?’’ फिर उसी ने पूछा ।  ‘‘मौसी ।’’ ‘‘आप लोग क्या बहुत बड़े लोग हैं?’’ ‘‘बड़े लोगों की माँएँ क्या वृद्‌धाश्रम में ही अपना  जीवन गुजारती हैं?’’ मैंने दुख से प्रतिप्रश्न किया ।

‘‘आजकल बड़े लोग ही अपने माँ-बाप को अंतिम  समय में वृद्‌धाश्रम भेजने लगे हैं । उनके पास समय ही नहीं  होता अपने माँ-बाप के लिए ।’’ वह फिर कहने लगा,  ‘‘गरीब घर के बूढ़े तो कष्ट और अपमान सहकर भी बच्चों के साथ ही रहने को अभिशप्त हैं । उनकी पहुँच इस तरह के  वृद्धाश्रम तक कहाँ है?’’ मैंने फिर चुप रहना ही उचित समझा ।

 वह व्यक्ति मुझे बाग के छोर पर अकेली बैठी एक  महिला की ओर संकेत कर वापस चला गया । मैं वहाँ  जाकर मौसी को देख अति दुखी हो गया । कुछ महीने पूर्व ही मौसी को बुलंदी पर देखकर गया था लेकिन अभी मौसी एकदम लस्त-पस्त लग रही थीं । बेटे के विश्वासघात और  अपनी इस दुर्दशा पर व्यथित हो गई थीं । मैंने प्रणाम किया तो उसने मेरा माथा सहला दिया  लेकिन मुँह से कुछ नहीं बोलीं । मौसी को इस परिस्थिति में  देखकर मैं सिर झुकाकर रोने लगा था । मेरी मौसी प्रतिभावान  और प्रसिद्ध आई.ए.एस. अधिकारी की पत्नी थीं । मौसा  एक-से-एक बड़े पद पर रहकर भारत सरकार के वित्त सचिव के पद से रिटायर हुए थे । 

फिर भी मौसी को कभी अपने पति के पद और पाॅवर का घमंड नहीं हुआ । वह  सबके काम आईं और आज उनका कोई नहीं । अपना बेटा  ही जब... । बहुत देर तक हम दोनों रोते रहे । फिर मौसी ने ही साहस किया और मुझे भी चुप कराया । उसके बाद मौसी ने  पहली बार सारी घटना मुझे विस्तारपूर्वक बतलाई ।  मैं किसी से नहीं मिली । तुम्हारा मौसेरा भाई (मौसी का  बेटा, दिलीप) भी मिलने और माफी माँगने पहुँचा था परंतु  मैं उससे मिली ही नहीं । अब मेरा शव ही इस गेट से बाहर  जाएगा । तुम्हें जब कभी समय मिले; यहीं आकर मिलते  रहना । कभी-कभी अपनी पत्नी को भी लाना । अब  जाओ, बहुत विलंब हो गया ।’’ गाड़ी में बैठते ही रघुनाथ  अतीत में पहुँच गया । मेरी माँ मिलकर दो बहनें ही थीं । मेरा कोई मामा  नहीं था । मेरी माँ बड़ी थीं । मेरे नाना एक खाते-पीते  किसान थे । उन्होंने अपनी दोनों बेटियों का विवाह कॉलेज


में पढ़ते दो विद्यार्थियों से ही कुछ साल के अंतराल पर  किया था । मेरे पिता जी बी.ए. करने के बाद अपने गाँव में  खेती-बाड़ी सँभालने लगे थे । मौसा पढ़ने में प्रतिभाशाली थे । वे अंतत: आई.ए.एस. की प्रतियोगिता परीक्षा में सफल  हो गए । मौसा जब गुजरात में जिलाधिकारी थे तो नाना का  देहांत हुआ था । नानी पहले ही जा चुकी थीं । नाना का  श्राद्‌ध बहुत बड़ा हुआ था । श्राद्ध का पूरा खर्च मौसी ने ही किया था । मेरी माँ की उसने एक नहीं सुनी थीं । नाना की  संपत्ति का अपना हिस्सा भी मौसी ने मेरी माँ को लिखकर  सौंप दिया था । कुछ दिनों के बाद मेरे पिता जी नाना के ही गाँव में  आकर बस गए । अब हम लोगों का गाँव नाना का गाँव ही है । इसलिए मौसी से संबंध कुछ अधिक ही गाढ़ा है । मेरी पढ़ाई-लिखाई में भी मौसी का ही योगदान है । मौसी का  बेटा दिलीप हमसे आठ बरस छोटा था । वह अपने माँ-बाप  की इकलौती संतान था । 

वह पढ़ने में मौसा की तरह ही काफी प्रतिभावान था । मैं पढ़-लिखकर नौकरी करने लगा । मौसी से  भेंट-मुलाकात कम हो गई । दिलीप का एडमिशन जब एम्स में हुआ था तो मौसा की पोस्टिंग दिल्ली में ही थी । उसने  मेडिकल की पढ़ाई भी पूरे ऐश-ओ-आराम के साथ की  थी । आगे की पढ़ाई के लिए वह लंदन चला गया । एक  बार जो वह लंदन गया तो वहीं का होकर रह गया । जब तक  विवाह नहीं हुआ था तब तक तो आना-जाना प्राय: लगा  रहता था । विवाह के बाद उसकी व्यस्तता बढ़ती गई तो  आना-जाना भी कम हो गया । मौसी भी कभी-कभी लंदन  आती-जाती रहती थीं । मौसी जब कभी अपनी ससुराल आती थीं तो नैहर  भी अवश्य आती थीं । एक बार गाँव में अकाल पड़ा था ।  वह अकाल दूसरे वर्ष भी दुहरा गया ।

 पूरे इलाके में हाहाकार  मचा था । मौसी उन लाेगों की हालत देखकर द्रवित हो  गईं । उसने अपनी ससुराल से सारा जमा अन्न मँगवाया और  बाजार से भी आवश्यकतानुसार क्रय करवाया । तीसरे ही दिन से भंडारा खुल गया । मौसी अपने गाँव की ही नहीं  बल्कि पूरे इलाके की आदर्श बेटी बन गई थीं । मैं बर्लिन में ही था कि यहाँ बहुत कुछ घट गया ।  जीवन के सभी समीकरण उलट-पुलट गए । मौसा अचानक  हृदय गति रुक जाने के कारण चल बसे । मौसी का जीवन  एकाएक ठहर-सा गया । मौसा का अंतिम संस्कार दिलीप  के आने के बाद संपन्न हुआ था । मौसा का श्राद्ध उनके  गाँव में जाकर संपन्न किया गया ।  वे लोग जब गाँव से वापस आए तो दिलीप का  रंग-ढंग बदला हुआ था । वह पहले मौसा की पेंशन मौसी के नाम से ट्रांसफर करवाने और लंदन ले जाने के लिए वीज़ा  बनवाने के काम में लग गया । उसी के बहाने उसने मौसी से  कई कागजातों पर हस्ताक्षर करवा लिए । मौसी उसके कहे  अनुसार बिना देखे-सुने हस्ताक्षर करती रहीं ।

 उसे भला  अपने ही बेटे पर संदेह करने का कोई कारण भी तो नहीं  था । जब तक वह कुछ समझ पातीं; उसका जमीन, मकान  सब हाथ से निकल चुका था । दिलीप ने धोखे से उस मकान  का सौदा आठ करोड़ रुपये में कर दिया था । मौसी को जब  इसका पता चला तो उसने एक बार विरोध तो किया परंतु  दिलीप ने यह कहकर चुप करा दिया, ‘जब तुम भी मेरे साथ  लंदन में ही रहोगी तो फिर यहाँ इतनी बड़ी संपत्ति रखने का  कोई औचित्य नहीं है ।’  दिलीप ने लंदन यात्रा से पूर्व घर की लिखा-पढ़ी समाप्त कर ली । घर की सारी संपत्ति औने-पौने दामों में  बेच डाली । मौसी अपनी सारी गृहस्थी नीलाम होते देखती रहीं । उसकी आँखों से आँसू पोंछने का समय किसी के पास  नहीं था । वे तो रुपये सहेजने में व्यस्त थे । बाप का मरना  दिलीप के लिए लाॅटरी निकलने जैसा था । उसे लंदन में  अपना घर खरीदने में आसानी हो जाने की प्रसन्नता थी ।  वह अपने प्रोजेक्ट पर काम करता रहा और मौसी पल-पल  उजड़ती रहीं ।  फिर लंदन यात्रा की तिथि भी आ गई । सभी लोग  दो टैक्सियों में एअरपोर्ट पहुँचे । अंदर जाने के बाद मौसी को  एक कुर्सी पर बिठाते हुए दिलीप ने कहा, ‘‘तुम यहीं बैठो ।

हम लोग लगेज जाँच और बोर्डिंग कराकर आते हैं ।  इमिग्रेशन के समय सब साथ हो जाएँगे ।’’ जब काफी समय बीत गया तो उसे चिंता होने लगी कि बेटा-बहू कहाँ चले गए । लगेज में कोई झंझट तो नहीं  हो गया । वह उठकर अंदर के गेट पर तैनात सिक्यूरिटी के  पास जाकर बोलीं, ‘‘मेरा बेटा दिलीप मिश्रा लंदन के  फ्लाइट में बोर्डिंग कराने गया था । मुझे यहीं बैठने बोला  था, परंतु उसे गए बहुत देर हो गई है । वह कहाँ है, इसका  पता कैसे चलेगा?’’
‘‘आपका टिकट कहाँ है?’’ सिक्यूरिटी ने पूछा ।
‘‘मेरा भी टिकट उसी के पास है ।’’
‘‘आपकी फ्लाइट कौन-सी है?’’
‘‘ब्रिटिश एअरवेज ।’’
‘‘ठीक है, आप बैठिए । मैं पता लगाकर आता 
हूँ ।’’ कहकर वह अफसर बोर्डिंग काउंटर की ओर बढ़  गया । मौसी फिर उसी कुर्सी पर आकर बैठ गईं । थोड़ी देर के बाद एक सिपाही आकर मौसी से  बोला, ‘‘मैडम, आपको हमारे सिक्यूरिटी इंचार्ज अफसर ने  आॅफिस में आकर बैठने को बुलाया है ।’’ ‘‘ऐसा क्यों?’’ मौसी ने आश्चर्य से कहा । ‘‘मुझे पता नहीं है ।’’ सिपाही बोला । मौसी का मन किसी अनहोनी आशंका से अकुला  उठा । वह विदा होने लगीं तो उस सिपाही ने पूछा, ‘‘आपका  लगेज कौन-सा है?’’ अब मौसी की नजर पहली बार बगल में दूसरी ओर  घुमाकर रखी एक ट्राॅली की ओर गई । उसपर मात्र उसका  सामान इस प्रकार रखा था ताकि उसकी नजर सहज रूप से  उसपर नहीं पड़े । वह सिपाही ट्राॅली चलाते हुए मौसी के  साथ चल पड़ा । 

 सिक्यूरिटी आॅफिस में सात-आठ अफसर जमा थे ।  सभी चिंतित दिखलाई दे रहे थे । मौसी के प्रवेश करते ही वे  सभी उठकर खड़े हो गए । मौसी को बहुत आश्चर्य हुआ कि उन लोगों को मेरा  परिचय कैसे पता चल गया । मौसी के बैठने के बाद एक अफसर बोला, ‘‘मैडम,  मैं आपको एक दुख की बात बताने जा रहा हूँ ।’’ ‘‘क्या हुआ?’’ मौसी ने चिंता से अकुलाते हुए  पूछा । ‘‘आपका बेटा आपको यहीं छोड़कर लंदन चला  गया है । उसने आपका टिकट सरैंडर कर दिया है ।’’ वह  अफसर बोला । ‘‘इसका क्या अर्थ हुआ?’’ मौसी ने अविश्वास  और आश्चर्य से पूछा । ‘‘मैम, आपके बेटे ने आपके साथ धोखा किया है ।  वह आपको यहीं बैठा छोड़कर लंदन चला गया । लंदन के  लिए ब्रिटिश एअरवेज की फ्लाइट को उड़े आधा घंटा हो  चुका है । आज अब और कोई फ्लाइट नहीं है । आपका  टिकट भी सरैंडर हो चुका है ।’’ 

उस अफसर ने स्पष्ट करते  हुए कहा । ‘‘ऐसा कैसे होगा !! ऐसा करने की उसे क्या जरूरत  है ! नहीं-नहीं आप लोगों को अवश्य कोई धोखा हुआ  है । अाप लोग एक बार फिर अच्छी तरह पता लगाइए । मैं  भारत सरकार के पूर्व वित्त सचिव की पत्नी हूँ । आप लोग  इस तरह मुझे गलत सूचना नहीं दे सकते । आप लोग फिर  पता लगाइए । मेरा तो घर भी बेच दिया है मेरे बेटे ने । फिर  मुझे यहाँ कैसे छोड़ सकता है !!’’ मौसी बहुत अप्रत्याशित  व्यवहार करने लगी थीं और हाँफने लगी थीं । मौसी कुछ नहीं बोल रही थीं । मौसी को चुप देख वे  लाेग भी फिर चुप हो गए । थोड़ी देर बाद सभी अफसरों को  सतर्क होते देख मौसी समझ गईं कि आई.जी. साहब आ  गए । आई.जी. साहब ने आते ही हाथ जोड़कर मौसी को  प्रणाम किया और बोले, ‘‘मैडम, मेरा नाम है अमित गर्ग ।  मिश्रा सर जब इंडस्ट्री विभाग में थे तो मैं उनके अधीन कार्य कर चुका हूँ । 

मिश्रा सर का बहुत उपकार है इस विभाग  पर । मुझे सब कुछ पता चल चुका है । आपका आदेश हो  तो दिलीप को हम लोग लंदन एअरपोर्ट पर ही रोक लेने का  प्रबंध कर सकते हैं ।’’ गर्ग साहब को देखते ही मौसी उन्हें पहचान गई थीं  परंतु चुप ही रहीं । बहुत आग्रह करने पर वह बोलीं, ‘‘मैं  किसी अच्छेवृद्धाश्रम में जाना चाहती हूँ । आप लोग यदि उसमें मेरी सहायता कर दें तो बड़ा उपकार होगा ।’’ गर्ग साहब ने अपने वचन का पालन किया । उन्होंने  ही मौसी की इस मातेश्वरी वृद्‌धाश्रम में व्यवस्था करा दी थी । आई.ए.एस. एसोसिएशन ने भारत से लेकर इंग्लैंड  तक हंगामा खड़ा कर दिया । मीडिया ने भी भारत की स्त्रियों  और वृद्‌धों की दुर्दशा पर लगातार समाचार प्रसारित किए  तथा बहस करवाई । इतने बड़े पदाधिकारी की विधवा 


साथ यदि बेटा ऐसा व्यवहार कर सकता है तो दूसरों की  क्या हालत होगी । घर का खरीददार घर वापस करने और  दिलीप सारा मूल्य वापस करने को तैयार हो गया । अंतत: कुछ भी हो नहीं सका क्योंकि मौसी कुछ करने को तैयार 
नहीं हुईं । दिलीप और उसके परिवार का मुँह देखने के लिए  मौसी कदापि तैयार नहीं हुईं । वह बहुत छटपटाया, बहुत  गिड़गिड़ाया परंतु मौसी टस-से-मस नहीं हुईं । उसने मेरे  पास भी बहुत पैरवी की परंतु कोई लाभ नहीं हुआ । दिलीप  को पश्चाताप हुआ कि नहीं; यह तो मैं बता नहीं सकता  परंतु वह लोकलज्जा से ढक अवश्य गया था ।  उसके बाद मैं प्रयास करने लगा कि इतनी बड़ी घटना के बाद भी मौसी का विश्वास जीवन के प्रति बचा  रहे ।   फिर प्रत्येक रविवार पत्नी के साथ मौसी से मिलने  आने लगा था ।

 प्रत्येक भेंट में मौसी एक सोहर अवश्य गाती थीं और गाते-गाते रोने लगती थीं - ‘‘ललना रे एही लेल होरिला, जनम लेल वंश के तारल रे । ललना रे नारी जनम कृतारथ, बाँझी पद छूटल रे । ललना रे सासु मोरा उठल नचइते, ननदि गबइते रे । ललना रे कोन महाव्रत ठानल, पुत्र हम पाओल रे ।’’ मेरी पत्नी भी मौसी के संग सोहर गाने और रोने में  मौसी का साथ देती थी । मैं भावुक होकर बगीचे की ओर  निकल जाता था । आज अब उस अध्याय का अवसान हो गया है ।  मौसी लगभग सात वर्ष इस आश्रम में बिताकर आज संसार  से चली गई हैं । इस अवधि में वह एक दिन भी चहारदीवारी के बाहर नहीं गईं । एक बार जो अंदर आईं तो आज अब  उसका... । ट्रस्ट के सचिव ने मुझे एक लिफाफा देते हुए कहा,  ‘‘गंगा मैडम दाह संस्कार करने का अधिकार आपको देकर  गई हैं । शेष आप इस लिफाफे को खोलकर पढ़ लीजिए ।’’


 लिफाफे में दो पन्ने का पत्र और एक बिना तिथि का  चेक था । वह चेक मेरे नाम से था जो अपने श्राद्ध खर्च के  लिए उसने दिया था । पत्र के अंत में मौसी ने लिखा था, ‘‘अपनी कोख का जाया बेटा मुझे जिंदा ही मारकर विदेश भाग गया और  तुमने अंत तक मेरा साथ दिया । तुम्हें देखकर सदा मेरा  विश्वास जीवित रहा कि सभी संतानें एक जैसी नहीं होती हैं । इसी विश्वास के सहारे इस संसार से जा रही हूँकि जब  तक एक भी सपूत संसार में रहेगा तब तक माँएँ हजार कष्ट  सहकर भी संतान को जन्म देती रहेंगी और संसार चलता  रहेगा । इसका श्रेय माँ और सपूत दोनों को है । तुम्हारे जैसा  पुत्र भगवान सबको दें ।’’ इन पंक्तियों को पढ़कर मैं अपने को और अधिक  नहीं रोक सका । मैं जोर-जोर से रोने लगा । मेरी पत्नी भी फूट-फूटकर रो पड़ी । वह रोते-रोते गाने भी लगी- ‘ललना  रे एही लेल होरिला, जनम लेल वंश के तारल रे...’ 
(‘रक्त संबंध’ कहानी संग्रह से)

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