लोकगीत कविता 12वी हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ ]
* सुनु रे सखिया *
आइल बसंत के फूल रे, सुनुरे सखिया ।
सरसों सरसाइल
अलसी अलसाइल
धरती हरसाइल
कली-कली मुसुकाइल बन के फूल रे, सुनु रे सखिया ।।
आइल...
खेत बन रँग गइल
तन मन रँग गइल
अइसन मन भइल
जइसे इंद्रधनुष के फूल रे, सुनुरे सखिया ।।
आइल...
अँखिया कजराइल
सपना मुसुकाइल
कंठ राग भराइल
बगिया फूलल यौबन फूल रे, सुनुरे सखिया ।।
आइल...
बहे मस्त बयार,
झर-झर झरे प्यार
रंग गइल तार-तार
हर मनवा गुलाब के फूल रे, सुनु रे सखिया ।।
आइल...
बगिया मुसुकाइल
कली-कली चिटकाइल
भौंरा दल दौड़ि आइल
गौरैया के माथे करिया फूल रे, सुनुरे सखिया ।।
आइल...
आँख चुभे कजरा
काँट भये सेजरा
आँसु भिगे अँचरा
पिया बो गये बबूल के फूल रे, सुनुरे सखिया ।।
आइल...
* कजरी *
सावन आइ गये मनभावन, बदरा घिर-घिर आवै ना !
बदरा गरजै बिजुरी चमकै, पवन चलति पुरवैया ना !
सावन...
रिमझिम-रिमझिम मेहा बरसै, धरती काँ नहवावै ना !
सावन...
दादुर, मोर, पपीहा बोलै, जियरा मोर हुलसावै ना !
सावन...
जगमग-जगमग जुगुनू डोलै, सबकै जियरा लुभावै ना !
सावन...
लता, बेल सब फूलन लागीं, महकी डरिया-डरिया ना !
सावन...
उमगि भरे सरिता सर उमड़े, हमरो जियरा सरसै ना !
सावन...
संकर कहैं बेगि चलो सजनी, बँसिया स्याम बजावै ना !
सावन...
× × × ×
शब्दार्थ (सुनु रे सखिया)
- आइल = आया
- सरसाइल = सरस हुआ अर्थात फूलों से लद गई
- हरसाइल = हर्षित होना
- गइल = गया
- भइल = हुआ
- कजराइल = काजल लगाया
- चिटकाइल = चटककर खिल
- उठी करिया = काला
- सेजरा = सेज
- अँचरा = आँचल
- (कजरी)
- पुरवैया = पूरब की ओर से बहने वाली हवा
- मेहा = मेघ, बादल
- दादुर = मेंढक
- हुलसाव = आनं ै दित होना
- सर = तालाब
- सरसै = आनंद से भर जाना
लोकगीत कविता 12वी हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ ]
विधा परिचय -
- प्रस्तुत काव्य लोकगीत का एक प्रकार है । लोकगीत पद, दोहा, चौपाई छंदों में रचे जाते हैं । लोकगीत में गेयता तत्त्व प्रमुखता से पाया जाता है ।
- ये लोकगीत मुख्यत: जनसाधारण के त्योहारों से संबंधित होते हैं तथा त्योहारों की बड़ी ही सरस अभिव्यक्ति इन लोकगीतों में पाई जाती है ।
- प्राय: ये लोकगीत परंपरा द्वारा अगली पीढ़ी तक पहुँच जाते हैं और हमारे लोकजीवन की संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने का सामाजिक कर्तव्य पूर्ण करते हैं ।
- ‘कजरी’, ‘सोहर’, ‘बन्ना-बन्नी’ लोकगीतों के प्रकार हैं । लोकगीतों की भाषा में ग्रामीण जनजीवन की बोली का स्पर्श रहता है ।
- सहज-सरल शब्दों का समावेश, ग्रामीण प्रतीकों, बिंबों और लोककथा का आधार लोकगीतों को सजीव बना देता है ।
पाठ परिचय -
- सावन-भादों के महीने में प्रकृति का सुंदर और मनमोहक दृश्य चारों ओर दिखाई देता है । नवविवाहिताएँ मायके आती हैं, युवतियाँ हर्षित हो जाती हैं, पेड़ों पर झूले पड़ते हैं, वर्षा से पूरी धरती हरी-भरी हो उठती है, नदियाँ बहती हैं, त्योहारों की फसल उग अाती है ।
- सबके चेहरे चमक-दमक उठते हैं । यही भाव सावन के गीत इस कजरी में व्यक्त हुआ है ।दूसरे लोकगीत में बसंत ॠतु के आगमन पर प्रकृति में होने वाले परिवर्तन का सजीव वर्णन चित्रित हुआ है ।
- इस लोकगीत में एक युवती अपनी सखियों से बसंत ॠतु के आने से खिल उठी प्रकृति की सुंदरता को बताती है ।
- सरसों का सरसना, अलसी का अलसाना, धरती का हरसाना, कलियों का मुस्काना, खेत, तन और मन का इंद्रधनुष की तरह रँगना, आँखों का कजराना, बगिया का खिल उठना, कलियों का चटक उठना और अंत में वियोग की स्थिति इस लोकगीत में व्यक्त जनमानस की भावना को कलात्मक अभिव्यक्ति प्रदान करती है ।
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