पेड़ होने का अर्थ कविता 12वी हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ ]
आदमी पेड़ नहीं हो सकता...
कल अपने कमरे की
खिड़की के पास बैठकर,
जब मैं निहार रहा था एक पेड़ को
तब मैं महसूस कर रहा था पेड़ होने का अर्थ !
मैं सोच रहा था
आदमी कितना भी बड़ा क्यों न हो जाए,
वह एक पेड़ जितना बड़ा कभी नहीं हो सकता
या यूँ कहूँकि-
आदमी सिर्फ आदमी है
वह पेड़ नहीं हो सकता !
हौसला है पेड़...
अंकुरित होने से ठूँठ हो जाने तक
आँधी-तूफान हो या कोई प्रतापी राजा-महाराजा
पेड़ किसी के पाँव नहीं पड़ता है,
जब तक है उसमें साँस
एक जगह पर खड़े रहकर
हालात से लड़ता है !
जहाँ भी खड़ा हो
सड़क, झील या कोई पहाड़
भेड़िया, बाघ, शेर की दहाड़
पेड़ किसी से नहीं डरता है !
हत्या या आत्महत्या नहीं करता है पेड़ ।
थके राहगीर को देकर छाँव व ठंडी हवा
राह में गिरा देता है फूल
और करता है इशारा उसे आगे बढ़ने का ।
पेड़ करता है सभी का स्वागत,
देता है सभी को विदाई !
गाँव के रास्ते का वह पेड़
आज भी मुस्कुरा रहा है
हालाँकि वह सीधा नहीं, टेढ़ा पड़ा है
सच तो यह है कि-
रात भर तूफान से लड़ा है
खुद घायल है वह पेड़
लेकिन क्या देखा नहीं तुमने
उसपर अब भी सुरक्षित
चहचहाते हुए चिड़िया के बच्चों का घोंसला है
जी हाँ, सच तो यह है कि
पेड़ बहुत बड़ा हौसला है ।
दाता है पेड़...
जड़, तना, शाखा, पत्ती, पुष्प, फल और बीज
हमारे लिए ही तो है पेड़ की हर एक चीज !
किसी ने उसे पूजा,
किसी ने उसपर कुल्हाड़ी चलाई
पर कोई बताए
क्या पेड़ ने एक बूँद भी आँसू की गिराई?
हमारी साँसों के लिए शुद्ध हवा
बीमारी के लिए दवा
शवयात्रा, शगुन या बारात
सभी के लिए देता है पुष्पों की सौगात
आदिकाल से आज तक
सुबह-शाम, दिन-रात
हमेशा देता आया है मनुष्य का साथ
कवि को मिला कागज, कलम, स्याही
वैद, हकीम को दवाई
शासन या प्रशासन
सभी के बैठने के लिए
कुर्सी, मेज, आसन
जो हम उपयोग नहीं करें
वृक्ष के पास ऐसी एक भी नहीं चीज है
जी हाँ, सच तो यह है कि
पेड़ संत है, दधीचि है ।
पेड़ होने का अर्थ कविता 12वी हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ ]
कवि परिचय -
- डॉ. मुकेश गौतम जी का जन्म १ जुलाई १९७० को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में हुआ । आधुनिक कवियों में आपने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है ।
- आपने आधुनिक भावबोध को सहज-सीधे रूप में अभिव्यक्ति दी है । वर्तमान मनुष्य की समस्याएँ और प्रकृति के साथ हो रहा क्रूर मजाक आपके काव्य में प्रखरता से उभरकर आते हैं ।
- आप हास्य-व्यंग्य के लोकप्रिय मंचीय कवि हैं फिर भी सामाजिक सरोकार की भावना आपके काव्य का मुख्य स्वर है । आपकी समग्र रचनाओं की भाषा अत्यंत सरल-सहज है तथा मन को छू जाती है ।
- आपके काव्य में बड़े ही स्वाभाविक और लोकव्यवहार के बिंब, प्रतीक और प्रतिमान आते हैं जो प्रभावशाली ढंग से आपके भावों और विचारों का संप्रेषण पाठकों तक करते हैं ।
प्रमुख कृतियाँ -
- ‘अपनों के बीच’, ‘सतह और शिखर’, ‘सच्चाइयों के रू-ब-रू’, ‘वृक्षों के हक में’, ‘लगातार कविता’, प्रेम समर्थक हैं पेड़’, ‘इसकी क्या जरूरत थी’ (कविता संग्रह) आदि ।
- विधा परिचय ः प्रस्तुत काव्य ‘नयी कविता’ की अभिव्यक्ति है । नये भावबोध को व्यक्त करने के लिए काव्य क्षेत्र में नये प्रयोग शिल्प और भावपक्ष के स्तर पर किए गए ।
- नये शब्द प्रयुक्त हुए, नये प्रतिमान, उपमान और प्रतीकों को तलाशा गया ।
- फलत: नयी कविता आज के व्यस्ततम मनुष्य का दर्पण बन गई है और आस-पास की सच्चाई की तस्वीर ।
पाठ परिचय -
- प्रकृति मनुष्य के जीवन का स्पंदन है औैर पेड़ इस स्पंदन का पोषक तत्त्व है । पेड़ मनुष्य का बहुत बड़ा शिक्षक है ।
- पेड़ और मनुष्य के बीच पुरातन संबंध रहा है । पेड़ ने भारतीय संस्कृति को जीवित रखा है और मनुष्य को संस्कारशील बनाया है ।
- पेड़ मनुष्य का हौसला बढ़ाता है, समाज के प्रति दायित्व और प्रतिबद्धता का निर्वाह करना सिखाता है और सच्चीपूजा का अर्थ समझाता है ।
- कवि ने मनुष्य जीवन में पेड़ की विभिन्नार्थी भूमिकाओं को स्पष्ट करते हुए उसके होने की आवश्यकता की ओर संकेत किया है । सब कुछ दूसरों को देकर पेड़ जीवन की सार्थकता को सिद्ध करता है ।
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