खुला आकाश स्वाध्याय | खुला आकाश का स्वाध्याय | khula aakash swadhyay 10th

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सूचना के अनुसार कृवियाँ कीविए:

[1] प्रहवलका पूण् कीविए:
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SOLUTION :
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[2] कृवि पूण् कीविए:
  2
SOLUTION :
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[3] आकृवि मे वलखिए:
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SOLUTION :
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[4]
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SOLUTION :
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[5] लखिए:
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SOLUTION :
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b.
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SOLUTION :
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भाषा हबंदु

[1] हनम्हलखखत संहध हिचछेद की संहध कीहजए और भेद हलखखए:
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SOLUTION :

[2] हनम्हलखखत शब् का संहध हिचछेद कीहजए और भेद हलखखए:
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SOLUTION :
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[3] हनम्हलखखत आकृहत मे हदए गए शब् का हिचछेद कीहजए और संहध का भेद हलखखए:
  10
SOLUTION :
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[4] पाठो मे आए संहध शब् छाँटकर उनका हिचछेद कीहजए और संहध का भेद हलखखए।
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गद्यांश क्र.1

कृति 1: [आकलन]
[1] आकृति पूर्ण कीजिए:
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SOLUTION :
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[2] उत्तर लिखिए: [बोर्ड की नमूना कृतिपत्रिका]
SOLUTION :
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कृति 2: [स्वमत अभिव्यक्ति]

‘बढ़ती हुई जनसंख्या का मनुष्य जीवन पर प्रभाव’ के बारे में आपके विचार 25 से 30 शब्दों में लिखिए। [बोर्ड की नमूना कृतिपत्रिका]
SOLUTION :
आज लगभग सभी देशों की जनसंख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है। यह जनसंख्या वृद्धि आज संसार के समक्ष एक समस्या बन गई है। सभी देशों के संसाधन सीमित हैं और बढ़ी हुई जनसंख्या की माँग विशाल है, जिसकी पूर्ति करना संभव नहीं है। इसी का परिणाम है कि आज लोगों के सामने बेकारी की समस्या उत्पन्न हो गई है। जनसंख्या वृद्धि के कारण कृषि पर आधारित लोग परेशान हैं। खेती योग्य जमीन बँटती जा रही है।

अब वह इतने लोगों को रोटी देने में असमर्थ हो गई है। गाँवों की आबादी का बोझ शहरों पर आ पड़ा है। यहाँ शहरों में बेकारी की समस्या है। यहाँ भी लोग रोटी, कपड़ा, मकान की समस्याओं से जूझ रहे हैं। लोग गंदी बस्तियों में रहने के लिए मजबूर हैं। न इतने लोगों के लिए ढंग की शिक्षा व्यवस्था उपलब्ध हो पा रही है और न ही चिकित्सा व्यवस्था।

बढ़ती जनसंख्या ने देश की अर्थव्यवस्था बिगाड़ दी है। इस पर अंकुश लगाकर ही इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। तभी मनुष्य के जीवन स्तर में भी सुधार हो पाएगा।

गद्यांश क्र.2

प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:

कृति 1: [आकलन]
[2] सही विकल्प चुनकर वाक्य फिर से लिखिए:
[i] बिलकुल चुपचाप बैठकर सिर्फ ………………………… बारे में सोचें। [मेरे/अपने/सबके]
[ii] दूसरों की सोच-समझ पर ………………………… रखें। [भरोसा/प्रेम/संदेह]
[iii] ………………………… अन्य नहीं, अंतमय है, हमारे ही प्रतिरूप, हमसे अलग या भिन्न नहीं। [दूसरा /सब/वह]
[iv] ………………………… तरह सारे मनुष्य केवल मनुष्य होते और कुछ नहीं। [इसी/उसी/किसी]
SOLUTION :
[2] [i] बिलकुल चुपचाप बैठकर सिर्फ अपने बारे में सोचें।
[ii] दूसरों की सोच-समझ पर भरोसा रखें।
[iii] दूसरा अन्य नहीं, अंतमय है, हमारे ही प्रतिरूप, हमसे अलग या भिन्न नहीं।
[iv] उसी तरह सारे मनुष्य केवल मनुष्य होते और कुछ नहीं।

कृति 2: [स्वमत अभिव्यक्ति

‘आत्मचिंतन के लाभ’ विषय में अपने विचार 25 से 30 शब्दों में लिखिए।
SOLUTION :
आत्मचिंतन यानी स्वयं के विषय में चिंतन करना। आत्मचिंतन का अर्थ है किसी कार्य को करने या होने के बाद उसे करने के लिए अपनाई. गई क्रिया और विचार पद्धति का विश्लेषण। आत्मचिंतन के द्वारा हमें अपनी गलतियों से सीखने, साथ ही अपने किए गए कार्य को और बेहतर ढंग से करने का मौका मिलता है। किसी भी व्यक्ति को कोई दूसरा जितना सिखा सकता है, उससे कहीं अधिक वह अपने स्वाध्याय एवं आत्मचिंतन के द्वारा सीख सकता है। इस प्रक्रिया में हम शांत भाव से बैठकर किसी समस्या या मुद्दे के बारे में चिंतन कर सकते हैं।

छात्र जीवन में तो इसकी और भी अधिक आवश्यकता है। अपनी क्षमताओं के विषय में अच्छी तरह जाने-समझे बिना हम लक्ष्य निर्धारित कर लेते हैं। शीघ्रातिशीघ्र उसे प्राप्त कर लेना चाहते हैं और बाद में भटक जाते हैं। इसलिए पहले आत्मचिंतन करें, स्वयं को जानें, फिर लक्ष्य प्राप्ति का प्रयास करें।

गद्यांश क्र. 3

प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढकर दी गई ‘सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:

कृति 1: [आकलन]
[1] उत्तर लिखिए:
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SOLUTION :
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कृति 2: [स्वमत अभिव्यक्ति]

‘जीवन की सार्थकता के विषय में अपने विचार 25 से 30 शब्दों में लिखिए।
SOLUTION :
ईश्वर ने हमें सर्वश्रेष्ठ योनि अर्थात मानव योनि में जन्म दिया है। हमारा कर्तव्य है कि हम मानव जाति के लिए कुछ अच्छा कार्य करें। हमें जितनी आयु मिली है, वह समय हम अच्छे कार्यों को करने में लगाएँ। कुछ ऐसा काम करें जिससे समाज और देश का हित हो।

कुछ लोग समय की कमी की बात करते हैं। लेकिन यदि कुछ करने की लगन हो तो समय आड़े नहीं आता। स्वामी विवेकानंद 40 वर्ष की आयु से भी पहले इस संसार से चले गए। ईसा मसीह का 30 वर्ष की आयु में ही प्राणांत हो गया। रामानुजम, रानी लक्ष्मीबाई, नेपोलियन, सिकंदर और अन्य अनेक अल्पायु में ही इस असार संसार को छोड़ गए, फिर भी मानव इतिहास में, ये महापुरुष अपनी छाप छोड़ गए।

सीमित समय में भी जितना अधिक-से-अधिक अच्छा हो सके, हमें देश व समाज के कल्याण के लिए कुछ सकारात्मक अवश्य करना चाहिए।

गद्यांश क्र. 4

प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:

कृति 1: [आकलन]
[1] आकृति पूर्ण कीजिए:
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SOLUTION :
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[2] जोड़ियाँ मिलाइए:

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SOLUTION :
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कृति 2: [स्वमत अभिव्यक्ति]

→ ‘जो हम शौक से करना चाहते हैं, उसके लिए रास्ते निकाल लेते हैं, इसका सोदाहरण अर्थ 25 से 30 शब्दों में लिखिए।
SOLUTION :
जिन कामों या चीजों का हमें शौक होता है, जिसमें हमारी रुचि होती है, उसके लिए हम समय, विधा सब निकाल लेते हैं। रुचि सफलता की वाहक है। हम सभी अपनी रुचि के कामों को करते समय उसमें डूब जाते हैं। उसी का परिणाम होता है सफलता। शिक्षा काल में जिस विषय में हमारी रुचि होती है, उसे पढ़ने में हम सारी रात भी जग लेते हैं, जबकि किसी ऐसे विषय की पुस्तक खोलते ही आँखें नींद से भर आती हैं, जो हमें पसंद न हो।

व्यायाम, तैराकी, बागवानी, चित्रकला, गायन, वादन आदि ऐसे अनेक कार्य हैं, जिनका यदि शौक हो तो मनुष्य घंटों बिताने पर भी उनसे ऊब अनुभव नहीं करता। किसी भी काम में सफलता प्राप्त करने के लिए उसमें रुचि होना परम आवश्यक है। बिना रुचि के आगे बढ़ने की संभावना बहुत कम होती है। जिस काम में हमारी रुचि होती है, उसे करने के लिए हम अपनी सारी ऊर्जा लगा देते हैं। न दिन देखते हैं, न ही रात। थकान शब्द तो मानो हमारे शब्दकोश में कभी था ही नहीं। 

→ ‘कंप्यूटर ज्ञान का महासागर’ विषय पर तर्कपूर्ण चर्चा कीजिए।
SOLUTION :
कंप्यूटर इस पृथ्वी पर कल्पवृक्ष के समान है। जीवन का कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है, जहाँ इसका महत्व न हो। सूचना के क्षेत्र में कंप्यूटर के कारण अद्भुत क्रांति आ गई है। इंटरनेट इसकी अनुपम देन है। दुनियाभर की जानकारी हम मिनटों में प्राप्त कर सकते हैं। यह एक सेकंड में दस हजार करोड़ गणितीय गणना कर सकता है।

चाहे मौसम का पूर्वानुमान हो या प्राकृतिक गैस और खनिज भंडारों का पता लगाना हो, रेलगाड़ियों और हवाईजहाजों का आरक्षण कराना हो या संसारभर की जानकारी प्राप्त करनी हो, कंप्यूटर के द्वारा घर बैठे हम मिनटों में कर सकते हैं। यह समय-समय पर भौगोलिक सूचनाओं से संबंधित जानकारी भी देता है। मुद्रण व प्रसारण के क्षेत्र में इसका योगदान असीमित है।

कंप्यूटर एक चालक की भाँति वायुयान का संचालन करता है। चालक के बटन दबाते ही कंप्यूटर स्वयं गति और दिशा का निर्धारण कर लेता है। शिक्षा के क्षेत्र में तो आज कंप्यूटर एक अनिवार्यता बन गया है।

→ महानगरीय/ग्रामीण दिनचर्या के लाभ तथा हानि के बारे में अपने अनुभव के आधार पर लिखिए।
SOLUTION :
गाँवों में आज भी खुला आसमान है। वहाँ का वातावरण शुद्ध, प्रकृति की गोद में है, जबकि महानगरों में आसमान दिखाई नहीं पड़ता। बड़े पैमाने पर वाहनों से होने वाला प्रदूषण, लगातार होने वाला शोर, भीड़ और धुआँ असहज महसूस कराता है। भीड़भाड़, ट्रैफिक जाम, और अपराध महानगरों में रोज की बात है। गाँवों में एक प्रकार का ठहराव है। शाम ढलते ही चारों ओर एक प्रकार का सन्नाटा पसर जाता है।

जबकि, महानगरों में जीवन हर समय गतिमान रहता है। देर रात तक ऑफिस, दुकानें खुली रहती हैं। बस, ट्रेन, टैक्सियाँ, स्कूटर्स सड़कों पर दौड़ते रहते हैं। गाँवों में धूप, हरियाली और शांति का आनंद प्राप्त कर सकते हैं। लोग आज भी गर्मजोशी से मिलते हैं। एक-दूसरे के दुख-तकलीफ में काम आते हैं। महानगरों में बहुत-से लोग पड़ोसी तक को नहीं पहचानते। दोस्तों, रिश्तेदारों के लिए समय नहीं निकाल पाते।

यहाँ लोगों के पास पैसा है, सुविधाएँ हैं, पर शांति कोसों दूर है। ग्रामीण लोगों का जीवन महानगरों की भागदौड़ से दूर एवं प्रकृति के करीब होता है। दूसरी ओर महानगरों में लोग हमेशा समय को पकड़ने के लिए दौड़ते रहते हैं। अति व्यस्तता के कारण तनाव, फिर स्वास्थ्य। संबंधी विभिन्न परेशानियाँ उन्हें घेर लेती हैं।

अपवठि ग‍दयांश

नम्वलखिि पररचछे‍ पढ़कर सूचना के अनुसार कृवियाँ कीविए:

हर फकसी को आतमरक् करनी होगी, हर फकसी को अपना कत्यय करना होगा। मै फकसी की सहायता की प्राशा नही करता। मै फकसी का भी प्राह नही करता। इस दुफनया से मदद की प्र्या करने का मुझे कोई अफधकार नही है। अतीत मे फिन लोगो ने मेरी मदद की है या भफ‍व् मे भी लोग मेरी मदद करें, मेरे प्र उन सबकी करुण मौिूद है, इसका दा‍व कभी नही फकया सकता। इसीफलए मै सभी लोगो के प्र फचर कक तज ञँ।

तुमहारी पररफस्फत इतनी बुरी देखकर मै बेहद फचंफतत हँ। लेफकन यह लो फक-‘तुमसे भी जयादा दुखी लोग इस संसार मे है। मै तुमसे भी जयादा बुरी पररफस्फत मे हँ। इंग् मे सब कुछ के फलए मुझे अपनी ही िेब से खच् करना पड़ता है। आमदनी कुछ भी नही है। लंदन मे एक कमरे का फकराया हर सप्ह के फलए तीन पाउंड होता है। ऊपर से अनय कई खच् है। अपनी तकलीिो के फलए मै फकससे फशकायत करू? यह मेरा अपना कम्यल है, मुझे ही भुगतना होगा।’

[फ‍ववकानंद की आतमकथा से]

[1] कृवि पूण् कीविए:

1.खुला आकाश स्वाध्याय | खुला आकाश का स्वाध्याय | khula aakash swadhyay

2. खुला आकाश स्वाध्याय | खुला आकाश का स्वाध्याय | khula aakash swadhyay


[2] उतिर वलखिए:
1. पररचछेद मे उखलिखत देश – [ ]
2. हर फकसी को करना होगा – [ ]
3. लेखक की तकलीिे – [ ]
4. हर फकसी को करनी होगी – [ ]

[3] वन‍देानुसार हल कीविए:
[अ] वनम्वलखिि अर् से मेलनेला शब् उपयु्थ् पररचछे‍ से ढूँढ़कर वलखिए ः
1. स्वं की रक् करना – …………………………….
2. दूसरो के उपकारो को मानने ‍वला – …………………………….

[4] लंग पहचानकर वलखिए:
1. जेब [ ]
2. साहित्य [ ]
3. दावा [ ]
4. सेवा [ ]

खुला आकाश Summary in Hindi

  प्रस्तुत पाठ डायरी विधा का एक उदाहरण है। कुँवर नारायण जी ने इस पाठ के माध्यम से नगरों की भीड़, वहाँ की जीवन-शैली, जीवन के संघर्ष, आत्मचिंतन आदि पर प्रकाश डाला है। लेखक मानते हैं कि व्यक्ति के विकास में आत्मचिंतन का बड़ा महत्त्व है। इसके द्वारा हम अपनी क्षमताओं के बारे में और अधिक जान सकेंगे। साथ ही अपनी गलतियों से सीख ले सकेंगे। 

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परिचय
जन्म ः १९२७, फैजाबाद (उ.प्र.)
मृत्यु ः २०१७, लखनऊ (उ.प्र.)
परिचय ः ‘नई कविता’ आंदोलन के सशक्‍त हस्‍ताक्षर कुँवर नारायण की मूल विधा कविता रही है । इसके
अलावा आपने कहानी, लेख, समीक्षा, सिनेमा, रंगमंच आदि
कलाओं पर भी लेखनी चलाई है । आपकी कविता-कहानियांे का कई भारतीय भाषाओं और विदेशी
भाषाओं में अनुवाद हुआ है । आपको भारतीय साहित्‍य जगत का सर्वोच्च सम्‍मान ‘ज्ञानपीठ’ भी प्राप्त हुआ है ।

प्रमुख कृतियाँ ः ‘चक्रव्यूह’, ‘तीसरा सप्तक’, ‘परिवेश’, ‘हम-तुम’, ‘आत्‍मजयी’, ‘कोई दूसरा नहीं’, ‘इन दिनों’ आदि ।
गद्‌य संबंधी
प्रस्‍तुत डायरी विधा में कुँवर नारायण जी ने जीवन के संघर्ष, साहित्‍य, आत्‍मचिंतन, जीवनक्रम आदि पर अपने विचार स्‍पष्‍ट किए हैं। इस पाठ में आपका मानना है कि हमें दूसरों से वाद-विवाद न करके स्‍वयं से संवाद करना चाहिए ।

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अंदर की दुनिया
हमारे अंदर की दुनिया बाहर की दुनिया से कहीं ज्यादा बड़ी है । हम उसका विस्‍तार नहीं करते । बाहर की अपेक्षा उसे छोटा करते चले जाते हैं और उसे बिलकुल निर्जीव कर लेते हैं । आजादी, पूरी आजादी, अगर कहीं संभव है तो इसी भीतरी दुनिया में ही, जिसे हम बिलकुल अपनी तरह समृद्ध बना सकते हैं- स्‍वार्थी अर्थों में सिर्फ अपने लिए ही नहीं, निःस्‍वार्थी अर्थों में दूसरों के लिए भी महत्‍त्‍व रखता है और स्‍वयं अपने लिए तो विशेष महत्‍त्‍व रखता ही है।
- १० मार्च १९९8

मकान पर मकान
जिस गली में आजकल रहता हूँ-वहाँ एक आसमान भी है लेकिन दिखाई नहीं देता । उस गली में पेड़ भी नहीं हैं, न ही पेड़ लगाने की गुंजाइश ही है । मकान ही मकान हैं । इतने मकान कि लगता है मकान पर मकान लदे हैं । लंद-फंद मकानों की एक बहुत बड़ी भीड़, जो एक संॅकरी गली में फँस गई और बाहर निकलने का कोई रास्‍ता नहीं है ।

 जिस मकान में रहता हूँ, उसके बाहर झाँकने से ‘बाहर’ नहीं सिर्फ दूसरे मकान और एक गंदी व तंग गली दिखाई देती है । चिड़ियाँ दिखती हैं, लेकिन पेड़ों पर बैठीं या आसमान में उड़तीं हुई नहीं । बिजली या टेलीफोन के तारों पर बैठी, मगर बातचीत करतीं या घरों के अंदर यहाँ-वहाँ घोंसले बनाती नहीं दिखतीं। उन्हें देखकर लगता मानो वे प्राकृतिक नहीं, रबड़ या प्लास्‍टिक के बने खिलौने हैं, जो शायद ही इधर-उधर फुदक सकते हों या चूँ-चूँ की आवाजें निकाल सकते हों ।

मैं ऐसी संॅकरी और तंग गली में, मकानों की एक बहुत बड़ी भीड़ से बिजली या टेलीफोन के तारों से उलझे आसमान से एवं हरियाली के अभाव से जूझते अपने मुहल्‍ले से बाहर निकलने की भारी कोशिश में हूँ ।
- १० मार्च १९९8

सही साहित्‍य
सही और संपूर्ण साहित्‍य वह है, जिसे हम दोनों आँखों से देखते
हैं-सिर्फ बाईं या सिर्फ दाईं आँख से नहीं ।
- 8 अगस्‍त, १९९8
जानें खुद को
बिलकुल चुपचाप बैठकर सिर्फ अपने बारे में सोचें । कोशिश करें कि दूसरे’ या ‘सब’ कहीं भी उस आत्‍मचिंतन के बीच में ना आएँ । इससे दो फायदे होंगे । एक तो हम अपने को जान सकेंगे कि हम स्‍वयं क्‍या हैं, जो दूसरों के बारे में सब कुछ जानने का दंभ रखते हैं । दूसरे, हमारे उस हस्‍तक्षेप से दूसरों की रक्षा होगी, जिसके प्रतिक्षण मौजूद रहते वे अपने बारे में न तो संतुलित ढंग से सोच पाते हैं, न सक्रिय हो पाते हैं । दूसरों की सोच-समझ में भी उतना ही भरोसा रखें, जिनमें हमें अपनी सोच-समझ में है । हर एक के प्रति हमारे मन में सहज सकारात्‍मक स्‍वीकृति का भाव होना चाहिए । दूसरा अन्य नहीं, अंतमय है, हमारे ही प्रतिरूप, हमसे अलग या भिन्न नहीं ।
- १२ नवंबर १९९8

सिर्फ मनुष्‍य होते ...
कुछ लोग सोचते होंगे कि आखिर यह क्‍यों होता है, कैसे होता है कि आदमियों में ही कुछ आदमी बाघ, भेड़िये, लकड़बग्‍घे, सांॅप, तेंदुए, बिच्छू, गोजर वगैरह की तरह होते हैं और कुछ आदमी गायें, बकरी, भेड़, तितली वगैरह की तरह ? ऐसा क्‍यों नहीं होता कि जिस तरह सारे बाघ केवल बाघ होते हैं और कुछ नहीं, या जैसे सारी गायें केवल गायें होती हैं और कुछ नहीं, उसी तरह सारे मनुष्‍य केवल मनुष्‍य होते और कुछ नहीं...।
- ७ अगस्‍त १९९९

लुका-छिपाकर जीना
मुझे जीवन को सहज और खुले ढंग से जीना पसंद है । चीजों को लुका-छिपाकर, बातों और व्यवहार को रचा बसाकर जीना सख्त नापसंद है। वह चारित्रिक बेईमानी है, जिसे हम व्यवहार कुशलता का नाम देते हैं। इसके पीछे आत्‍मविश्वास की कमी झलकती है कि कहीं लोग हमारी असलियत को न जान जाएँ । आखिर वह असलियत इतनी गंदी और धूर्त क्‍यों हो कि उसे छिपाना जरूरी लगे ।
- 4 जनवरी २००१

जीने का अर्थ
बुढ़ापे का केवल यही अर्थ नहीं कि जीवन के कुछ कम वर्षबचे हैं; यह तथ्‍य तो जीवन के किसी खंड पर भी लागू हो सकता है- बचपन, यौवन बुढ़ापा... । खास बात है, जो भी वर्षबचे हैं, जब तक जीवित और चैतन्य हूँ, जिंदगी को क्‍या अर्थ दे पाता हूँ, या अपने लिए उससे क्‍या पाता हूँ, एेसा कुछ जिसका सबके लिए कोई महत्‍त्‍व है । लगभग इसी अर्थ में मैं साहित्‍यिक चेष्‍टा और जीवन चेष्‍टा को अपने लिए अविभाज्‍य पाता हूँ ।

७5 का हो रहा हूँ-यानी, जीने के लिए अब कुछ ही वर्ष बचे हैं लेकिन जीना बंद नहीं हो गया है । यह अहसास कि मृत्‍यु बहुत दूर नहीं है, उम्र के किसी भी मोड़ पर हो सकती है । ऐसा हुआ भी है मेरे साथ । तब हो या अब, यह सवाल अपनी जगह बना रहता है कि जीवन को किस तरहजिया जाए-सार्थकता से अपने लिए या दूसरों के लिए ... ।
- २३ जनवरी २००२

दिल्‍ली में रहना
दिल्‍ली शहर में घर ढूँढ़ रहा हूँ । शहर, जैसे एक बहुत बड़ी बस ! सवारियों से लंद-फंद, हर वक्‍त चलायमान ।दिल्‍ली में रहने का मतलब कहीं पायदान बराबर दो कमरों में दो पाँव टिकाकर किसी तरह लटक जाओ और लटके रहोउम्र भर । जिंदगी का मतलब बस इतना ही कि जब तक बन पड़े लटके रहो, फिर धीरे-से कहीं भीड़-भाड़ में गिर जाओ ... ।
- १२ जून २००३

बहाने निकालना
जो हम शौक से करना चाहते हैं, उसके लिए रास्‍तेनिकाल लेते हैं । जो नहीं करना चाहते, उसके लिए बहाने निकाल लेते हैं... ।
- जनवरी २००६

अपने से बहस
बहस दूसरों से नहीं, अपने से करनी चाहिए उससे सच्चाई हाथ लगती है। दूसरों को सिर्फ सुनना चाहिए; दूसरों से बहस से केवल झगड़ा हाथ लगता है । 

चीजों की गुलामी
कुछ दिनों पहले एक कंप्यूटर ने मुझे चालीस हजार रुपयों में खरीदा है ! आज-कल उसकी गुलामी में हूँ । उसके नखरों को सिर झुकाकर झेलने मंे ही अपना कल्‍याण देख रहा हूँ । उसका वादा है कि एक दिन वह मुझे लिखने-पढ़ने की पूरी आजादी देगा । फिलहाल उसकी एकनिष्‍ठ सेवा में ही मेरा उज्‍ज्‍वल भविष्‍य है । इसके पहले एक मोटर मुझे भारी दामों में खरीद चुकी है । उसकी सेवा में भी हूँ । दरअसल, चीजों का एक पूरा परिवार है जिसकी सेवा में हूँ । आदमी का स्‍वभाव नहीं बदलता या बहुत कम बदलता है । गुलामी करना-करवाना उसके स्‍वभाव में है । सिर्फ तरीके बदले हैं, गुलामी की प्रवृत्‍ति नहीं । हजारों साल पहले एक आदमी मालिक होता था और उसके दरजनों गुलाम होते थे । अब हर चीज के दरजनों गुलाम होते हैं ।
- ३० सितंबर २०१०
(‘दिशाओं का खुला आकाश’ से)

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अनुक्रमणिका  INDIEX

Maharashtra State Board 10th Std Hindi Lokbharti Textbook Solutions
Chapter 1 भारत महिमा
Chapter 2 लक्ष्मी
Chapter 3 वाह रे! हम दर्द
Chapter 4 मन (पूरक पठन)
Chapter 5 गोवा : जैसा मैंने देखा
Chapter 6 गिरिधर नागर
Chapter 7 खुला आकाश (पूरक पठन)
Chapter 8 गजल
Chapter 9 रीढ़ की हड्डी
Chapter 10 ठेस (पूरक पठन)
Chapter 11 कृषक गान

Hindi Lokbharti 10th Textbook Solutions दूसरी इकाई

Chapter 1 बरषहिं जलद
Chapter 2 दो लघुकथाएँ (पूरक पठन)
Chapter 3 श्रम साधना
Chapter 4 छापा
Chapter 5 ईमानदारी की प्रतिमूर्ति
Chapter 6 हम उस धरती की संतति हैं (पूरक पठन)
Chapter 7 महिला आश्रम
Chapter 8 अपनी गंध नहीं बेचूँगा
Chapter 9 जब तक जिंदा रहूँ, लिखता रहूँ
Chapter 10 बूढ़ी काकी (पूरक पऊन)
Chapter 11 समता की ओर
पत्रलेखन (उपयोजित लेखन)
गद्‍य आकलन (उपयोजित लेखन)
वृत्तांत लेखन (उपयोजित लेखन)

कहानी लेखन (उपयोजित लेखन)
विज्ञापन लेखन (उपयोजित लेखन)
निबंध लेखन (उपयोजित लेखन)

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