श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय | shram sadhana swadhyay

श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay

श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay

कृति

[कृतिपत्रिका के प्रश्न 1 [अ] तथा प्रश्न 1 [आ] के लिए 

*सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए:

प्रश्न 1. उत्तर लिखिए:
१. व्यापारी और उद्योगपतियों के लिए अर्थशास्त्र द्वारा बनाए गए नये नियम -
२. संपत्ति के दो मुख्य साधन -
३. समाप्त हुईं दो प्रथाएँ -
४. कल्याणकारी राज्य का अर्थ -
Solutions : 
कल्याणकारी राज्य का अर्थ - सब तरह के दुर्बलों को राजसत्ता द्वारा मदद दिया जाना।

प्रश्न 2. कृति पूर्ण कीजिए:
श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay
Solutions : 
श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay

प्रश्न 3. तुलना कीजिए:
बुद्धिजीवी - श्रमजीवी
1. …………………. 2. ………………….
1. …………………. 2. ………………….
Solutions : 
बुद्धिजीवी - श्रमजीवी
1. बौद्धिक काम करना। -1. शारीरिक श्रम करना।
2. अधिक आमदनी, प्रतिष्ठित एवं सुखमय जीवन। - 2. आमदनी कम, प्रतिष्ठा नहीं, कष्टमय जीवन।

प्रश्न 4. लिखिए:
  454
Solutions : 
श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay

प्रश्न 5. पाठ में प्रयुक्त ‘इक’ प्रत्यययुक्त शब्दों को ढूँढ़कर लिखिए तथा उनमें से किन्हीं चार का स्वतंत्र वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
Solutions : 

प्रश्न 6. पाठ में कुछ ऐसे शब्द हैं, जिनके विलोम शब्द भी पाठ में ही प्रयुक्त हुए हैं, ऐसे शब्द ढूँढ़कर लिखिए।
Solutions : 
[i] हाड़ × माँस
[ii] प्रत्यक्ष × अप्रत्यक्ष
[iii] देश × विदेश
[iv] हाथ × पैर
[v] स्वार्थ × परार्थ
[vi] अमीर × गरीब।

अभिव्यक्ति 

‘समाज परोपकार वृत्ति के बल पर ही ऊँचा उठ सकता है’, इस कथन से संबंधित अपने विचार लिखिए।
Solutions : 
हमारे शास्त्रों में परोपकार को बहुत महत्त्व दिया गया है। पेड़ों में फल लगना, नदियों के जल का बहना परोपकार का ही एक रूप है। इसी तरह सज्जन व्यक्तियों की संपत्ति और इस शरीर को भी परोपकार में लगा देने के लिए कहा गया है। हमारे समाज में गरीब-अमीर हर प्रकार के व्यक्ति होते हैं। अनेक लोग ऐसे हैं जिन्हें भरपेट भोजन भी नहीं मिलता और कुछ लोग ऐसे हैं, जिनके पास इतनी संपत्ति है कि उन्हें स्वयं इसकी पूरी जानकारी नहीं है। मनुष्य में परोपकार की प्रवृत्ति जन्मजात होती है। प्यासे को पानी पिलाना और किसी भूखे को खाना खिला देना कौन नहीं चाहता।

यही परोपकार भावना है। हमारे देश में अनेक अस्पताल, अनेक शिक्षा संस्थाएँ परोपकार करने वाले लोगों के धन से चल रही हैं। समाज के कमजोर वर्ग के लिए तरह-तरह की संस्थाएँ काम कर रही हैं। इनका संचालन दान अथवा सहायता के रूप में प्राप्त धन से हो रहा है। हर युग में समाज के उत्थान के लिए परोपकारियों का सहयोग प्राप्त होता रहा है। यह सहयोग इसी तरह मिलता रहना चाहिए तभी हमारे समाज का उत्थान होगा।

भाषा बिंदु

प्रश्न 1. निम्न वाक्यों में अधोरेखांकित शब्द समूह के लिए कोष्ठक में दिए गए मुहावरों में से उचित मुहावरे का चयन कर वाक्य फिर से लिखिए:
[इज्जत उतारना, हाथ फेरना, काँप उठना, तिलमिला जाना, दुम हिलाना, बोलबाला होना]

१. करामत अली हौले-से लक्ष्मी से स्नेह करने लगा।
वाक्य = ………………………………………
Solutions : 
वाक्य: करामत अली हौले-से लक्ष्मी पर हाथ फेरने लगा।

२. सार्वजनिक अस्पताल का खयाल आते ही मैं भयभीत हो गया ।
वाक्य = ………………………………………
Solutions : 
वाक्य: सार्वजनिक अस्पताल का ख्याल आते ही मैं काँप उठा।

३. क्या आपने मुझे अपमानित करने के लिए यहाँ बुलाया था ?
वाक्य = ………………………………………
Solutions : 
वाक्य: क्या आपने मेरी इज्जत उतारने के लिए यहाँ बुलाया था?

४. सिरचन को बुलाओ, चापलूसी करता हुआ हाजिर हो जाएगा।
वाक्य = ………………………………………
Solutions : 
वाक्य: सिरचन को बुलाओ, दुम हिलाता हुआ हाजिर हो जाएगा।

५. पंडित बुद्धिराम काकी को देखते ही क्रोध में आ गए।
वाक्य = ………………………………………
Solutions : 
वाक्य: पंडित बुद्धिराम काकी को देखते ही तिलमिला उठे।

प्रश्न 2. निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखकर उनका अर्थपूर्ण वाक्यों में प्रयोग कीजिए

१. गुजर-बसर करना: ………………………………………
२. गला फाड़ना: ………………………………………
३. कलेजे में हूक उठना: ………………………………………
४. सीना तानकर खड़े रहना: ………………………………………
५. टाँग अड़ाना: ………………………………………
६. जेब ढीली होना: ………………………………………
७. निजात पाना: ………………………………………
८. फूट-फूटकर रोना: ………………………………………
९. मन तरंगायित होना: ………………………………………
१०. मुँह लटकाना: ………………………………………
Solutions : 
[i] गुजर-बसर करना।
अर्थ: जीविका चलाना।
वाक्य: पंडित घनश्याम किसी तरह गुजर-बसर कर लेते हैं।

[ii] गला फाड़ना।
अर्थ: ऊँची आवाज में बोलना।
वाक्य: बेटे ने पिता से कहा, “मैं आपकी बात सुन रहा हूँ,आप
नाहक गला फाड़ रहे हैं।”

[iii] कलेजे में हूक उठना।
अर्थ: कसक होना।
वाक्य: सेठ लक्खूमल जब भी जवान बेटे की हत्या की बात याद करते हैं, उनके कलेजे में हूक उठती है।

[iv] सीना तानकर खड़े रहना।
अर्थ: दृढ़तापूर्वक अड़े रहना।।
वाक्य: वह समाजसेवक निर्दोष लोगों की सहायता के लिए सीना तानकर खड़ा रहता हैं।

[v] टाँग अड़ानां।
अर्थ: कार्य में बाधा डालना।
वाक्य: किसी के बनते हुए काम में टाँग अड़ाना अच्छी बात नहीं है।

[vi] जेब ढीली होना।
अर्थ: काफी खर्च होना।
वाक्य: मरीज की बीमारी तो ठीक हो गई, पर अस्पताल का बिल भरने में जेब ढीली हो गई।

[vii] निजात पाना।
अर्थ: मुक्त होना।
वाक्य: आखिरकार लंबे अरसे बाद सेठजी लेन-देन के मुकदमे से निजात पा गए।

[viii] फूट-फूटकर रोना।
अर्थ: बिलखते हुए रोना।
वाक्य: बेटे के गायब हो जाने पर माँ फूट-फूटकर रोई थी।

[ix] मन तरंगित होना।
अर्थ: मौज में आना।
वाक्य: बेटे की अच्छे वेतनवाली नौकरी लग जाने की बात सुनकर पिता का मन तरंगित हो गया।

[x] मुँह लटकाना।
अर्थ: चिंता, दुख से सिर नीचा कर लेना।
वाक्य: पिता जब निकम्मे बेटे को फटकारता है, तो वह मुँह लटकाकर सुनता रहता है।

प्रश्न 3. पाठ्यपुस्तक में आए मुहावरों का अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए।

Solutions : 
[इसके लिए विद्यार्थी ‘नवनीत हिंदी [LL] उपयोजित लेखन, कक्षा दसवीं’ पुस्तक देखें।]

उपयोजित लेखन

निम्न शब्दों के आधार पर कहानी लेखन कीजिए
मिट्टी, चाँद, खरगोश, कागज।
Solutions : 
एक छोटा-सा गाँव था। गाँव के लोग खेती-बारी से अपना गुजारा करते थे। लोगों के पास छोटे-छोटे खेत थे। वे अपने खेतों में साल में दो फसलें उगाते थे। खेतों में उत्पन्न अनाज से साल भर बड़ी मुश्किल से उनका काम चलता था। इस गाँव के लोगों में आपस में बहुत प्रेम-भाव था। गाँव में कुछ लोग ऐसे थे, जिनके पास खेत भी नहीं थे। उनका जीवन बहुत कष्टमय था। इन्हीं में से एक था आत्माराम। आत्माराम गाँव के किसानों के खेत में काम करके कुछ कमा लिया करता था।

एक दिन गाँव में एक साधु महाराज आए। आत्माराम ने साधु के सामने अपनी समस्या रखते हुए कहा, “महाराज कुछ ऐसा उपाय बताइए, जिसमें मैं चार पैसे कमाकर अपना और अपने परिवार का पेट पाल सकूँ।” साधु महाराज ने कहा, “ले यह मिट्टी। यह मिट्टी तेरे लिए सोना बनेगी।” आत्माराम बोला, “मैं समझा नहीं, महाराज। ऐसी मिट्टी तो गाँव में बहुत है, क्या करूँ इसका?” साधु ने कहा, “मिट्टी खोद। उससे खिलौने बना और बाजार में बेच। तेरा भला होगा।” आत्माराम ने साधु को धन्यवाद दिया।

वह मिट्टी से खरगोश, चूहा, तोता, गुड़िया, गुड्डा बनाता और बाजार में बेच आता। इससे उसे अच्छी आय होने लगी। अब उसकी जिंदगी आराम से चलने लगी।

एक दिन बाजार में एक लड़के ने उससे चाँद के खिलौने की माँग की। यह खिलौना तो उसने कभी बनाया ही नहीं था। बात आई-गई हो गई।

एक दिन आत्माराम ने चाँद की शक्ल का पतंग आकाश में उड़ते हुए देखा। फिर क्या था! अब आत्माराम ने मिट्टी के खिलौने बनाने बंद कर दिए और कागज के पतंग, खरगोश, तोते, बिल्ली, गुड़िया, गुड्डा आदि बनाने लगा। अब उसके खिलौनों का वजन हल्का हो गया और उसकी कमाई भारी हो गई।

गद्यांश क्र.1

प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:
कृति 1: [आकलन]

आकृति पूर्ण कीजिए:
श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay
[स्वाध्याय में दिए गए ‘उत्तर लिखिए’ प्रश्न को कृतिस्वरूप में दिया गया है।]
श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay
श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay
  
Solutions : 
श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay
[ii]
श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay
 
[iii]
श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay

कृति 2: [आकलन]

प्रश्न 1.
[i] संजाल पूर्ण कीजिए:
श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay
Solutions : 
श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay

[ii] लिखिए:
श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay
Solutions : 
श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay

प्रश्न 2. आकृति पूर्ण कीजिए:
(i)
श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay
(ii)
श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay
(iii)
श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay
(iv)
श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay
उत्तर:
श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay

कृति 3: [शब्द संपदा]

प्रश्न 1. शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए:
[i] प्रथा =
[ii] युद्ध =
[iii] हुकूमत =
[iv] गुलामी =
Solutions : 
[i] प्रथा = रिवाज
[ii] युद्ध = लड़ाई
[iii] हुकूमत = शासन
[iv] गुलामी = दासता।

प्रश्न 2. विरुद्धार्थी शब्द लिखिए:
[i] गौण x
[ii] अनेक x
[iii] अप्राकृतिक x
[iv] बादशाह x
Solutions : 
[i] गौण x मुख्य
[ii] अनेक x एक
[iii] अप्राकृतिक x कृत्रिम
[iv] बादशाह x भिखारी।

प्रश्न 3. लिंग पहचान कर लिखिए:
[i] मकान - ………………………
[i] संपत्ति - …………………………
Solutions : 
[i] मकान - पुल्लिग
[ii] संपत्ति - स्त्रीलिंग।

कृति 4: [स्वमत अभिव्यक्ति]

प्रश्न. ‘राजाओं और बादशाहों का राज’ के बारे में अपने विचार 25 से 30 शब्दों में व्यक्त कीजिए।
Solutions : 
स्वतंत्रता प्राप्ति के पहले हमारे देश में छोटी-बडी अनेक रियासतें थीं। राजा, बादशाह और तालुकेदार इन रियासतों के मालिक थे। इनके राज में रहने वाली जनता इनकी प्रजा कहलाती थी। राजा और बादशाह जनता से तरह-तरह के कर वसूल करते थे और कर अदा न कर पाने पर जनता पर तरह-तरह के अत्याचार करते थे। एक तरह से जनता को ये अपना गुलाम समझते थे और उसका शोषण करने में जरा भी नहीं झिझकते थे। जनता इनसे त्रस्त थी।

इसके अलावा ये राजा और बादशाह अपने स्वार्थ के लिए आपस में लड़ते-भिड़ते थे और मौका मिलने पर एक-दूसरे की रियासतों पर कब्जा कर जनता में लूटपाट किया करते थे। असहाय जनता की कोई सुनने वाला नहीं था। आजादी मिलने के बाद इन छोटी-छोटी रियासतों को खत्म कर भारत संघ में मिला लिया गया। इसके बाद इन राजाओं और बादशाहों का राज खत्म हो गया। इसके साथ ही समाप्त हो गया जनता पर इनका अत्याचार। फिर तो प्रजातंत्र में न कोई किसी का राजा रहा न कोई किसी की प्रजा। सबको समान अधिकार उपलब्ध हो गए।
 

गद्यांश क्र. 2

प्रश्न निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:

कृति 1: [आकलन]

प्रश्न 1. संजाल पूर्ण कीजिए:
श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay
Solutions : 
श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay
श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay

प्रश्न 2. अकृति पूर्ण कीजिए:
 श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay
Solutions : 
श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay

कृति 2: [आकलन]

प्रश्न 1. संजाल पूर्ण कीजिए:
श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay
Solutions : 
श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay

प्रश्न 2. उत्तर लिखिए:
[i] जो संपत्ति का निर्माण करते हैं, वे - [ ]
[ii] धन इकट्ठा होता है इनके पास - [ ]
[iii] बौद्धिक काम से अपना भरण-पोषण करने वाले लोग - [ ]
[iv] समाज के लिए ये दोनों जरूरी हैं - [ ]
Solutions : 
[i] जो संपत्ति का निर्माण करते हैं, वे माण - [मजदूर]
[ii] धन इकट्ठा होता है इनके पास - [व्यवस्था करने वाले]
[iii] बौद्धिक काम से अपना भरण-पोषण करने वाले लोग - [मंत्री, राज्य के कर्मचारी, क्लर्क, न्यायाधीश, वकील, डॉक्टर, अध्यापक, व्यापारी]
[iv] समाज के लिए ये दोनों जरूरी है - [श्रमजीवी और बुद्धिजीवी]


प्रश्न 3. आकृति पूर्ण कीजिए:
(i)श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay
Solutions : 
श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay

[ii] दो ऐसे प्रश्न बनाकर लिखिए, जिनके उत्तर निम्नलिखित शब्द हों:
[1] अन्न
[2] श्रम जीवियों पर
Solutions : 
[1] वर्षभर मेहनत कर किसान क्या पैदा करता है?
[2] बुद्धिजीवियों का जीवन किन लोगों पर आधारित है?


कृति 3: [शब्द संपदा]

प्रश्न 1. गद्यांश में आए शब्द-युग्म ढूँढ़कर लिखिए।
[i] ……………………..
[ii] ……………………..
[iii] ……………………..
[iv] ……………………..
Solutions : 
[i] लेन - देन
[ii] राज - काज
[iii] ऊँचे - ऊँचे
[iv] भरण - पोषण।

प्रश्न 2. विरुद्धार्थी शब्द लिखिए:
[i] प्रत्यक्ष × ……………………..
[ii] धनवान × ……………………..
[iii] ऊँचा × ……………………..
[iv] दुर्भाग्य × ……………………..
Solutions : 
[i] प्रत्यक्ष × परोक्ष
[ii] धनवान × निर्धन
[iii] ऊँचा × नीचा
[iv] दुर्भाग्य × सौभाग्य।

कृति 4: [स्वमत अभिव्यक्ति]

प्रश्न. ‘शारीरिक श्रम का महत्त्व’ विषय पर अपने विचार 25 से 30 शब्दों में लिखिए।
Solutions : 
श्रम दो प्रकार का होता है। शारीरिक श्रम और बौद्धिक श्रम। पुराने जमाने में पढ़े-लिखे लोगों की संख्या कम थी, इसलिए लोगों को शारीरिक श्रम का ही सहारा था। वे जीवन-यापन के लिए छोटा-मोटा काम करके अपना गुजारा कर लेते थे। शिक्षा की समुचित व्यवस्था हो जाने के बाद पढ़े-लिखे लोगों की संख्या में अंधाधुंध वृद्धि हुई है। हर शिक्षित व्यक्ति चाहता है कि उसे ऐसी नौकरी मिले, जिसमें उसे शारीरिक श्रम न करना पड़े। शारीरिक श्रम वाला काम कोई करना नहीं चाहता। इसलिए देश में लाखों नवयुवक बेरोजगार हैं। यह लोगों के शारीरिक श्रम से परहेज रखने का परिणाम है।

लोगों को शारीरिक श्रम का महत्त्व समझना जरूरी है। बुद्धि के बल पर बड़ीबड़ी योजनाएँ बनाई जा सकती हैं, पर उनका कार्यान्वयन करने के लिए शारीरिक श्रम की ही आवश्यकता होती है। छोटी-छोटी चीजों से लेकर बड़ी-बड़ी चीजों का निर्माण केवल शारीरिक श्रम से ही हो सकता है। जो व्यक्ति इस रहस्य को समझते हैं, वे शारीरिक श्रम को महत्त्व देते हैं। अनेक पढ़े-लिखे लोग अपना व्यवसाय अथवा छोटा-मोटा काम शुरू करके अपना जीवन-यापन कर रहे हैं और बौद्धिक श्रम के साथ शारीरिक श्रम उनका साथ दे रहा है। स्वरोजगार के द्वारा वे स्वयं भी काम कर रहे हैं और दूसरों को भी रोजगार दे रहे हैं।

गद्यांश क्र. 3

प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:

कृति 1: [आकलन]

आकृति पूर्ण कीजिए:
  श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay
श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay
श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay
Solutions : 
श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay
श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay
श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay

कृति 2: [आकलन]

प्रश्न 1. आकृति पूर्ण कीजिए:
(i)श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay
(ii)श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay
Solutions : 
श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay

कृति 3: [शब्द संपदा]

प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए:
[i] आम = …………………….
[ii] श्रम = …………………….
[iii] हिस्सा = …………………….
[iv] जगत = …………………….
Solutions : 
[i] आम = सामान्य
[ii] श्रम = मेहनत
[iii] हिस्सा = भाग
[iv] जगत = संसार।

प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों में से प्रत्यय और मूल शब्द अलग करके लिखिए:
[i] योग्यता
[i] अल्पतम
[ii] बुनियादी
[iv] सामाजिक
Solutions : 
[i] योग्य + ता [ता]
[ii] अल्प + तम [तम]
[iii] बुनियाद + ई [ई]
[iv] समाज + इक [इक]।

कृति 4: [स्वमत अभिव्यक्ति]

प्रश्न. ‘समाज परोपकार वृत्ति के बल पर ही ऊँचा उठ सकता है’- इस कथन से संबंधित अपने विचार 25 से 30 शब्दों में लिखिए।

गद्यांश क्र.4

प्रश्न. निम्नलिखित पठिक अट्यार पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:

कृति 1: [आकलन]

आकृति पूर्ण कीजिए:
 श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay

(iii) श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay
Solutions : 
श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay


कृति 2: [आकलन]

प्रश्न 1. आकृति पूर्ण कीजिए:
श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay
Solutions : 
श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay


प्रश्न 2. आकृति पूर्ण कीजिए:
[i] अर्थशास्त्रियों के अनुसार उत्पादन की प्रेरणा के लिए यह करना होगा - [ ]
[ii] पूँजी के बारे में अनुभव यह बताता है - [ ]
[iii] लेखक के अनुसार स्वार्थ का अर्थ - [ ]
[iv] समाज इस वृत्ति के बल पर ऊँचा उठ सकता है - [ ]
Solutions : 
[i] अर्थशास्त्रियों के अनुसार उत्पादन की प्रेरणा के लिए यह करना होगा - [व्यक्ति को स्वार्थ के लिए अवसर देने होंगे।
[ii] पूँजी के बारे में अनुभव यह बताता है - [पूँजी गरीबी या बेकारी की समस्या हल नहीं कर सकी है]
[iii] लेखक के अनुसार स्वार्थ का अर्थ - [परार्थ की हानि]
[iv] समाज इस वृत्ति के बल पर ऊँचा उठ सकता है - [परोपकार की वृत्ति]

प्रश्न 3. गद्यांश के वाक्यों को उचित क्रम से लिखिए:
[i] देखना है कि समाज का कल्याण किस वृत्ति से होगा।
[ii] बिना शरीर श्रम किए उस सामग्री का उपयोग करने का न्यायोचित अधिकार हमें नहीं मिलता।
[iii] आजीविका की साधन-सामग्री किसी-न-किसी के श्रम के बिना हो ही नहीं सकती।
[iv] नैतिक दृष्टि से स्वार्थवृत्ति का पोषण करना योग्य नहीं है।
Solutions
[i] आजीविका की साधन-सामग्री किसी-न-किसी के श्रम के बिना हो ही नहीं सकती।
[ii] बिना शरीर श्रम किए उस सामग्री का उपयोग करने का न्यायोचित अधिकार हमें नहीं मिलता।
[iii] नैतिक दृष्टि से स्वार्थवृत्ति का पोषण करना योग्य नहीं है।
[iv] देखना है कि समाज का कल्याण किस वृत्ति से होगा।

कृति 3: [शब्द संपदा]

प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्द समूह के लिए गद्यांश से चुनकर एक-एक शब्द लिखिए:
[i] वह दौलत, जो किसी के अधिकार में हो और जो खरीदी या बेची जा सकती हो-
[ii] दूसरों के उपकार या भलाई का काम’ -
[iii] ऐसी बात-जिसमें केवल अपना हित हो -
[iv] वह धन-जिससे कोई व्यवसाय आरंभ किया गया हो -
Solutions : 
[i] संपत्ति
[ii] परोपकार
[iii] स्वार्थ
[iv] पूँजी।


प्रश्न 2. विरुद्धार्थी शब्द लिखिए:
[i] थोड़ा × ……………………
[ii] दोषपूर्ण × ……………………
[iii] योग्य × ……………………
[iv] गरीबी × ……………………
Solutions : 
[i] थोड़ा × बहुत
[ii] दोषपूर्ण × निर्दोष
[iii] योग्य × अयोग्य
[iv] गरीबी × अमीरी।

कृति 4: [स्वमत अभिव्यक्ति]

प्रश्न. ‘मेवे फलते श्रम की डाल’ विषय पर 25 से 30 शब्दों में अपनी लिखित अभिव्यक्ति दीजिए।
Solutions : 
श्रम दो प्रकार का होता है। एक शारीरिक श्रम और दूसरा बौद्धिक श्रम। दोनों प्रकार के श्रम का अपना-अपना महत्त्व है। श्रम को सदा महत्त्व दिया गया है। श्रम करने वाला व्यक्ति परिश्रम करके अपना भरण-पोषण करता है और शान से रहता है। जो श्रम करता है, वह स्वयं अपने भाग्य का निर्माण करता है। वह अपना खून-पसीना एक कर मेहनत की पवित्र रोटी खाता है। मेहनत की जिंदगी ही सच्ची जिंदगी है।

श्रम करने वाला व्यक्ति काम से कभी नहीं घबराता। उसके सामने जैसा भी काम आता है, उसे वह लगन और मेहनत से पूरा करता है। विद्यार्थी श्रम द्वारा ही परीक्षा में सफलता प्राप्त करते हैं। मजदूर, किसान, इंजीनियर, वैज्ञानिक, व्यापारी, खिलाड़ी आदि सबकी प्रगति में श्रम का ही हाथ होता है। हमें याद रखना चाहिए कि श्रम कभी बेकार नहीं जाता। ईमानदारी से किए गए श्रम का तुरंत लाभ भले न मिले, पर कभी-न-कभी उसका फल मिलकर ही रहता है। श्रम करने वाले ही मेवों का स्वाद चखते हैं।

गद्यांश क्र. 5

प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:

कृति 1: [आकलन]

प्रश्न 1. आकृति पूर्ण कीजिए:
  श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay
Solutions : 
श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay

प्रश्न 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
[i] शरीर श्रम के लिए क्या जरूरी है?
[ii] श्रम की प्रतिष्ठा बढ़ाना किसके हाथ है?
Solutions : 
[i] शरीर श्रम के लिए जरूरी है दिल में प्रीति होना।
[ii] श्रम की प्रतिष्ठा बढ़ाना श्रमिक के हाथ है।


कृति 2: [आकलन]

प्रश्न 1. आकृति पूर्ण कीजिए:
[i] गांधीजी की मान्यता के अनुसार। हर व्यक्ति को यह करना चाहिए - [ ]
[ii] अब कुछ समय से जगत के सामने दया की जगह यह विचार आया है - [ ]
[iii] महात्माजी द्वारा दी गई प्रसिद्ध विचारधारा - [ ]
[iv] अहिंसा के मार्ग से यह प्रश्न हल हो सकता है - [ ]
उत्तर;
[i] गांधीजी की मान्यता के अनुसार हर व्यक्ति को यह करना चाहिए - [उत्पादक श्रम]
[ii] अब कुछ समय से जगत के सामने दया की जगह यह विचार आया है - [समता का]
[iii] महात्माजी द्वारा दी गई गई प्रसिद्ध विचारधारा - [अहिंसा]
[iv] अहिंसा के मार्ग से यह प्रश्न हल हो सकता है - [विषमता का]

प्रश्न 2. निम्नलिखित वाक्यों के आधार पर प्रश्न बनाइए:
[i] गांधीजी ने श्रम और श्रमिक की प्रतिष्ठा स्थापित करने के लिए ही रचनात्मक कार्यों को लोक चेतना का माध्यम बनाया।
[ii] कानून से मानवोचित गुणों का विकास नहीं हो सकता?
[iii] अहिंसा के प्रभाव का कुछ अनुभव भी हम कर सकते हैं।
[iv] आर्थिक सामाजिक समता का प्रश्न अहिंसा के मार्ग से सुलझेगा।
Solutions : 
[i] गांधीजी ने किन बातों की प्रतिष्ठा स्थापित करने के लिए रचनात्मक कार्यों को लोक चेतना का माध्यम बनाया?
[ii] कानून से किन गुणों का विकास नहीं हो सकता?
[iii] किसके प्रभाव का अनुभव हम कर सकते हैं?
[iv] आर्थिक सामाजिक समता का प्रश्न किस मार्ग से सुलझेगा?

कृति 3: [शब्द संपदा]

प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों के वचन पहचान कर लिखिए:
[i] बच्चा - ………………….
[ii] विषमताएँ - ………………….
[iii] पैसे - ………………….
[iv] धनिक - ………………….
Solutions : 
[i] बच्चा - एकवचन
[ii] विषमताएँ - बहुवचन
[ii] पैसे - बहुवचन
[iv] धनिक - एकवचन।

प्रश्न 2. गद्यांश में प्रयुक्त ‘इक’ प्रत्यययुक्त शब्दों को ढूँढ़कर स्वतंत्र वाक्यों में प्रयोग कीजिए:
[i] ………………….
[ii] ………………….
[iii] ………………….
[iv] ………………….
[v] ………………….
[vi] ………………….
Solutions : 
[i] आर्थिक
[ii] प्राकृतिक
[iii] श्रमिक
[iv] सामाजिक
[v] प्राथमिक
[vi] बौद्धिक

[i] आर्थिक: किसानों की आर्थिक दशा सुधारने के लिए कुछ करो।
[ii] प्राकृतिक: कश्मीर की घाटी प्राकृतिक दृश्यों से भरी पड़ी है।
[iii] श्रमिक: कारखाने में काम करने वाले श्रमिक का काम बहुत मेहनत का होता है।
[iv] सामाजिक: मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।
[v] प्राथमिक: घायल व्यक्ति को तुरंत प्राथमिक चिकित्सा की जरूरत होती है।
[vi] बौद्धिक: हर व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता भिन्न-भिन्न होती है।

 

कृति 4: [स्वमत अभिव्यक्ति]

प्रश्न. शारीरिक श्रम स्वास्थ के लिए अति उत्तम’ विषय पर अपने। विचार 25 से 30 शब्दों में लिखिए।
Solutions : 
शारीरिक श्रम का अर्थ है, वह मेहनत, जिसमें हाथ-पैर के सहयोग से काम संपन्न हो। किसान, मजदूर, क्ली, ठेलेवाले, शारीरिक मेहनत करते हैं। वैसे हर व्यक्ति जाने-अनजाने थोड़ी बहुत शारीरिक मेहनत करता ही है। अपने घर की सफाई करना, खाना बनाना, बरतन धोना और बाजार-हाट से सामान-सब्जी लाना भी श्रम है। कुछ शारीरिक काम करने वाले लोग धूप में खेतों में काम करते हैं।

कुछ कारखानों में पसीना बहाकर मेहनत करते हैं। कुछ अनाज के बोरे ३ गाड़ियों पर चढ़ाते-उतारते हैं। कुछ सड़कों पर हथौड़े लेकर पत्थर तोड़ते ३ या खुदाई करते हैं। ये मोटा खाते और मोटा पहनते हैं, पर शारीरिक ३ रूप से स्वस्थ होते हैं। दूसरी ओर वे लोग हैं, जो कोई शारीरिक श्रम ३ नहीं करते। वे पौष्टिक भोजन करते हैं, नर्म गद्देदार बिछौनों पर सोते B हैं, पर बीमारी के कारण उन्हें नींद नहीं आती। भोजन नहीं पचता।

डॉक्टर इन्हें कम भोजन करने और ज्यादा दवाइयाँ लेने के लिए कहते हैं। शारीरिक श्रम के अभाव में इनका जीवन कष्टप्रद बन जाता है।
डॉक्टर इन्हें हाथ-पैर चलाने और व्यायाम करने की सलाह देते हैं। ऐसे 3 लोगों को शारीरिक श्रम करने वालों से सबक लेना चाहिए, जो
अपनी मेहनत के बल पर भले-चंगे बने रहते हैं। इस प्रकार शारीरिक , श्रम अच्छे स्वाथ्य की कुंजी है।

भाषा अध्ययन [व्याकरण]

प्रश्न, सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:

1. शब्द भेद:

प्रश्न. अधोरेखांकित शब्दों के शब्दभेद पहचानकर लिखिए:
[i] गांधीजी ने यह काम श्रम और श्रमिक की प्रतिष्ठा कायम करने के लिए किया।
[ii] विषमता दूर करने के लिए प्रभावशाली उपाय करना चाहिए।
Solutions : 
[1] गांधीजी - व्यक्तिवाचक संज्ञा।
[ii] प्रभावशाली - गुणवाचक विशेषण।

2. अव्यय:

प्रश्न. निम्नलिखित अव्ययों का अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए:
[i] फिर
[ii] कभी-कभी।
Solutions : 
[i] संपत्ति रूपी ये सब चीजें फिर कैसे बनती हैं?
[ii] बुद्धिजीवियों को भी कभी-कभी शरीर श्रम करना पड़ता है।
 

3. संधि:

प्रश्न. कृति पूर्ण कीजिए:

संधि शब्द संधि विच्छेद संधि भेद
…………………… स्व + अर्थ ……………………
 अथवा
 …………………… सम् + पूर्ण ……………………
Solutions : 
 
संधि शब्द      संधि विच्छेद      संधि भेद
स्वार्थ       स्व + अर्थ       स्वर संधि
 अथवा
सपूर्ण   सम् + पूर्ण      व्यंजन संधि

4. सहायक क्रिया:

प्रश्न. निम्नलिखित वाक्यों में से सहायक क्रियाएँ पहचानकर उनका मूल रूप लिखिए:
[i] प्रतिदिन समय पर अपना काम किया करो।
[ii] वह अपनी जमा-पूँजी भी गंवा बैठा।
Solutions : 
सहायक क्रिया - मूल रूप
[i] करो - करना
[ii] बैठा - बैठना

5. प्रेरणार्थक क्रिया:

प्रश्न. निम्नलिखित- क्रियाओं के प्रथम प्रेरणार्थक और द्वितीय प्रेरणार्थक रूप लिखिए:
[i] खौलना
[ii] डूबना।
Solutions : 
क्रिया - प्रथम प्रेरणार्थक रूप - दवितीय प्रेरणार्थक रूप
[i] खौलना - खौलाना - खौलवाना
[ii] डूबना - डुबाना - डुबवाना


6. मुहावरे:

प्रश्न 1. निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए:
[i] मुंह फेरना
[ii] रट लगाना।
Solutions : 
[i] मुँह फेरना।
अर्थ: उपेक्षा करना।
वाक्य: कर्मचारी अपनी माँग लेकर सेठ जी के पास जाते तो वे उनसे बात करने के बजाय मुँह फेर लेते।

[ii] रट लगाना।
अर्थ: एक ही बात बार-बार कहना।
वाक्य: मुर्गा बहुत सबेरे ‘कुकड़-फूं’ की रट लगाता है।

प्रश्न 2. अधोरेखांकित वाक्यांश के लिए उचित मुहावरे का चयन करके वाक्य फिर से लिखिए: [फूला न समाना, भार होना, कान में डालना]
[i] मुनीम जी ने बड़े बाबू को बात पहुँचाई।
[ii] मेडिकल में प्रवेश मिल जाने पर नकुल बहुत प्रसन्न हुआ।
Solutions : 
[i] मुनीम जी ने बात बड़े बाबू के कान में डाल दी।
[ii] मेडिकल में प्रवेश मिल जाने पर नकुल फूला न समाया।

7. कारक:

प्रश्न. निम्नलिखित वाक्यों में प्रयुक्त कारक पहचानकर उसका भेद लिखिए:
[i] गुलामी की प्रथा संसार भर में हजारों वर्षों तक चलती रही।
[ii] गांधीजी ने श्रम और श्रमिकों की प्रतिष्ठा स्थापित करने का काम किया।
Solutions : 
[i] गुलामी की-संबंध कारक
[ii] गांधीजी ने-कर्ता कारक।

8. विरामचिह्न:

प्रश्न. निम्नलिखित वाक्यों में यथास्थान उचित विरामचिह्नों का प्रयोग करके वाक्य फिर से लिखिए:
[i] आम तौर से माना जाता है कि रुपया नोट और सोना-चाँदी का सिक्का ही संपत्ति है
[ii] अर्थशास्त्र ने यह नियम बताया है कि खरीद सस्ती से सस्ती हो और बिक्री महँगी से महँगी
Solutions : 
[i] आम तौर से माना जाता है कि रुपया, नोट और सोना-चाँदी का सिक्का ही संपत्ति है।
[ii] अर्थशास्त्र ने यह नियम बनाया है कि खरीद सस्ती-से-सस्ती हो और बिक्री महँगी से महँगी।

9. काल परिवर्तन:

प्रश्न. निम्नलिखित वाक्यों का सूचना के अनुसार काल परिवर्तन कीजिए:
[i] बहुत से लोग अपनी आजीविका शरीर श्रम से चलाते हैं। [अपूर्ण भूतकाल]
[ii] जिनके पास संपत्ति है, वे आराम से रह रहे हैं। [सामान्य भविष्यकाल]
Solutions : 
[i] बहुत से लोग अपनी आजीविका शरीर श्रम से चला रहे थे।
[ii] जिनके पास संपत्ति है, वे आराम से रहेंगे।

10. वाक्य भेद:

प्रश्न 1. निम्नलिखित वाक्यों का रचना के आधार पर भेद पहचानकर लिखिए:
[i] हमारी विचारधारा में बड़ा भारी दोष है।
[ii] लोग शरीर श्रम करना नहीं चाहते और इसे हीन दृष्टि से देखते हैं।
[iii] जिस श्रम में समाज को जिंदा रखने की क्षमता है, उस श्रम का सही मूल्य श्रमिक जान लेगा तो देश में आर्थिक क्रांति होने में देर नहीं लगेगी।
[iv] सामाजिक समता का प्रश्न अहिंसा के मार्ग से सुलझेगा।
Solutions : 
[i] सरल वाक्य
[ii] संयुक्त वाक्य
[iii] मिश्र वाक्य
[iv] सरल वाक्य।

प्रश्न 2. निम्नलिखित वाक्यों का दी गई सूचना के अनुसार अर्थ के आधार पर परिवर्तन कीजिए:
[i] गरीब भूख की लाचारी से श्रम करता है। [संदेहवाचक वाक्य]
[ii] अब राजप्रथा मिट गई। [आज्ञावाचक वाक्य]
Solutions : 
[i] शायद गरीब भूख की लाचारी से श्रम करता है।
[ii] अब’राजप्रथा मिटा दो। 11. वाक्य शुद्धिकरण:

प्रश्न 3. निम्नलिखित वाक्य शुद्ध करके वाक्य फिर से लिखिए:
[i] इस सम्बन्ध में कुछ भाई अमेरिका का उदाहरण पेस करते हैं।
[ii] वही आधार पे भारत को कल्याणकारी राज्य बनाने की बात चली है
Solutions : 
[i] इस संबंध में कुछ भाई अमेरिका का उदाहरण पेश करते हैं।
[ii] उसी आधार पर भारत को कल्याणकारी राज्य बनाने की बात चली है।

उपक्रम/कृति/परियोजना

पठनीय
महात्मा गांधी के श्रमप्रतिष्ठा और अहिंसा संबंधी विचार पढ़कर चर्चा कीजिए।

श्रवणीय
आर्थिक विषमता को दूर करने वाले उपायों के बारे में सुनकर कक्षा में सुनाइए।

संभाषणीय
‘वर्तमान युग में सभी बच्चों के लिए खेल-कूद और शिक्षा के समान अवसर प्राप्त हैं’ विषय पर चर्चा करते हुए अपना मत प्रस्तुत कीजिए।

श्रम साधना Summary in Hindi

विषय-प्रवेश : प्राचीन काल से आज तक सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्था में अनेक परिवर्तन हुए हैं। इसके साथ ही संपत्ति तथा उसके निर्माण में लगने वाली शक्तियों के बीच तरह-तरह की असमानताएँ भी रही हैं। श्रमजीवियों तथा व्यापारियों की आर्थिक स्थिति में जमीन-आसमान का अंतर रहा है। प्रस्तुत निबंध में लेखक ने मानवीय जीवन, संपत्ति, संपत्ति के स्वामित्व, मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकताओं तथा शारीरिक एवं बौद्धिक श्रम आदि का विस्तृत विवेचन किया है। प्रस्तुत वैचारिक निबंध में श्रम की प्रतिष्ठा स्थापित करते हुए सामाजिक एवं आर्थिक समानता पर बल दिया गया है।

श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay

जन्म ः १88२, अकासर(राजस्‍थान) 
मृत्‍यु ः १९55, जयपुर (राजस्‍थान) 
परिचय ः श्रीकृष्‍णदास जी १९२० में महात्‍मा गांधीजी के संपर्क में आए और देशसेवा के कार्य में जुट गए । आपको लोग सम्‍मान स्‍वरूप ‘तपोधन’ कहते थे ।
 प्रमुख कृतियाँ ः ‘स्‍वराज्‍य प्राप्ति मंे,’ ‘सुधारक मीराबाई’, ‘जीवन का तात्‍विक अधिष्‍ठान’ आदि । इसके अतिरिक्‍त अनेक पुस्‍तकों के संपादन में आपका सराहनीय योगदान रहा है। 

श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay

गुलामी की प्रथा संसार भर में हजारों वर्षों तक चलती रही । उस लंबे अरसे में विद्‌वान तत्‍त्‍ववेत्‍ता और साधु-संतों के रहते हुए भी वह चलती रही। गुलाम लोग खुद भी मानते थे कि वह प्रथा उनके हित में है फिर मनुष्‍य का विवेक जागृत हुआ । अपने जैसे ही हाड़-मांॅस और दुख की भावना रखने वालाें को एक दूसरा बलवान मनुष्‍य गुलामी में जकड़ रखे, क्‍या यह बात न्यायोचित है, यह प्रश्न सामने आया । इसको हल करने के लिए आपस में युद्ध भी हुए । अंत में गुलामी की प्रथा मिटकर रही ।

 इसी प्रकार राजाओं की संस्‍था की बात है । जगत भर में हजारों वर्षों तक व्यक्‍तियों का, बादशाहों का राज्‍य चला पर अंत मंे ‘क्‍या किसी एक व्यक्‍ति को हजारों आदमियों को अपनी हुकूमत में रखने का अधिकार है,’ यह प्रश्न खड़ा हुआ । उसे हल करने के लिए अनेक घनघोर युद्ध हुए और सदियों तक कहीं-न-कहीं झगड़ा चलता रहा । असंख्य लोगों को यातनाएँ सहन करनी पड़ीं । अंत मंे राजप्रथा मिटकर रही और राजसत्‍ता प्रजा के हाथ में आई । हजारों वर्षों तक चलती हुई मान्यताएँ छोड़ देनी पड़ीं । ऐसी ही कुछ बातें संपत्‍ति के स्‍वामित्‍व के बारे में भी हैं । 

संपत्‍ति के स्‍वामित्‍व और उसके अधिकार की बात जानने के लिए यह समझना जरूरी है कि संपत्‍ति किसे कहते हैं और वह बनती कैसे है ? आम तौर से माना जाता है कि रुपया, नोट या सोना-चाँदी का सिक्‍का ही संपत्‍ति है, लेकिन यह ख्याल गलत है क्‍योंकि ये तो संपत्‍ति के माप-तौल के साधन मात्र हैं । संपत्‍ति तो वे ही चीजें हो सकती हैं जो किसी-न-किसी रूप में मनुष्‍य के उपयोग में आती हैं । उनमें से कुछ ऐसी हैं जिनके बिना मनुष्‍य जिंदा नहीं रह सकता एवं कुछ, सुख-सुविधा और आराम के लिए होती हैं । अन्न, वस्‍त्र और मकान मनुष्‍य की प्राथमिक आवश्यकताएँ हैं, जिनके बिना उसकी गुजर-बसर नहीं हो सकती ।

 इनके अलावा दूसरी अनेक चीजें हैं जिनके बिना मनुष्‍य रह सकता है । प्रश्न उठता है कि संपत्‍तिरूपी ये सब चीजें बनती कैसे हैं ? सृष्‍टि में जो नानाविध द्रव्य तथा प्राकृतिक साधन हैं, उनको लेकर मनुष्‍य शरीर श्रम करता है, तब यह काम की चीजें बनती हैं । अतः संपत्‍ति के मुख्य साधन दो हैं ः सृष्‍टि के द्रव्य और मनुष्‍य का शरीर श्रम । यंत्र से कुछ चीजें बनती दिखती हैं पर वे यंत्र भी शरीर श्रम से बनते हैं और उनको चलाने में भी 

प्रत्‍यक्ष या अप्रत्‍यक्ष शरीर श्रम की आवश्यकता होती है । केवल बौद्‌धिक श्रम से कोई उपयोग की चीज नहीं बन सकती अर्थात बिना शरीर श्रम के संपत्‍ति का निर्माण नहीं हो सकता । संपत्‍ति के स्‍वामित्‍व में शरीर श्रम करने वालों का स्‍थान क्‍याहै ? जो प्रत्‍यक्ष शरीर श्रम के काम करते हैं उन्हें तो गरीबी या कष्‍ट में ही अपना जीवन बिताना पड़ता है और उन्हीं के द्‌वारा उत्‍पादित संपत्‍ति दूसरे थोड़े से हाथों में ही इकट्ठी होती रहती है । श्रमजीवियों की बनाई हुई चीजें व्यापारियों या दूसरों के हाथों में जाकर उनके लेन-देन से कुछ लोग मालदार बन जाते हैं । 

वर्षभर मेहनत कर किसान अन्न पैदा करता है लेकिन बहुत दफा तो उसकी खुद की आवश्यकताएँ भी पूरी नहीं होतीं पर वही अनाज व्यापारियों के पास जाकर उनको धनवान बनाता है। संपत्‍ति बनाते हैं मजदूर और धन इकटठा ् होता है उनके पास जो केवल व्यवस्‍था करते हैं, मजदूरी नहीं करते । जीवन निर्वाह या धन कमाने के लिए अनेक व्यवसाय चल रहे हैं । इनके मोटे तौर पर दो वर्गकिए जा सकते हैं । कुछ व्यवसाय एेसे हैं, जिनमें शरीर श्रम आवश्यक है और कुछ ऐसे हैं जो बुद्‌धि के बल पर चलाए जाते हैं । 

पहले प्रकार के व्यवसाय को हम श्रमजीवियों के व्यवसाय कहें और दूसरों को बुद्‌धिजीवियों के । राज-काज चलाने वाले मंत्री अादि तथा राज के कर्मचारी ऊँचे-ऊँचे पद से लेकर नीचे के क्‍लर्क तक, न्यायाधीश, वकील, डाॅक्‍टर, अध्यापक, व्यापारी आदि ऐसे हैं जो अपना भरण-पोषण बौद्‌धिक काम से करते हैं । शरीर श्रम से अपना निर्वाह करने वाले हैं- किसान, मजदूर, बढ़ई, राज, लुहार आदि । समाज के व्यवहार के लिए इन बुद्‌धिजीवियों और श्रमजीवियों, दोनों प्रकार के लोगों की जरूरत है पर सामाजिक दृष्‍टि से इन दोनों के व्यवसाय के मूल्‍यों में बहुत फर्कहै । बुद्‌धिजीवियांे का जीवन श्रमजीवियों पर आधारित है । 

ऐसा होते हुए भी दुर्भाग्‍य यह है कि श्रमजीवियों की मजदूरी एवं आमदनी कम है, समाज में उनकी प्रतिष्‍ठा नहीं और उनको अपना जीवन प्रायः कष्‍ट में ही बिताना पड़ता है । व्यापारी और उद्योगपतियों के लिए अर्थशास्‍त्र ने यह नियम बताया है कि खरीद सस्‍ती-से-सस्‍ती हो और बिक्री महँगी-से-महँगी । मुनाफे की कोई मर्यादा नहीं । जो कारखाना मजदूरों के शरीर श्रम के बिना चल ही नहीं सकता, उसके मजदूर को हजार-पाँच सौ मासिक से अधिक भले ही न मिले, पर व्यवस्‍थापकों और पूँजी लगाने वालों को हजारों-लाखों का मिलना गलत नहीं माना जाता ।

मनुष्‍य समाज में रहने से अर्थात समाज की कृपा से ही व्यवहार चलाने लायक बनता है । बालक प्राथमिक शाला से लेकर देश-विदेश के ऊँचे-से-ऊँचे महाविद्यालयों में सीखकर जो योग्‍यता प्राप्त करता है, वे शिक्षालय या तो सरकार द्‌वारा चलाए जाते हैं, जिनका खर्च आम जनता से टैक्‍स के रूप में वसूल किए हुए पैसे से चलता है या दानी लोगों की कृपा से । जो कुछ पढ़ने की फीस दी जाती है, वह तो खर्च के हिसाब से नगण्य है । उसको समाज का अधिक कृतज्ञ रहना चाहिए कि उस पैसे के बल पर वह विद्या पढ़कर योग्‍यता प्राप्त कर सका । इस सारी शिक्षा में जो कुछ ज्ञान मिलता है, वह भी हजारों वर्षों तक अनेक तपस्‍वियों ने मेहनत करके जो कण-कण संग्रहीत कर रखा है, उसी के बल पर मिलता है ।

 व्यापारी और उद्योगपति भी व्यापार की कला विद्यालयों से, अपने साथियों से एवं समाज से प्राप्त करते हैं । जब अपनी योग्‍यता प्राप्त करने में हमारा खुद का हिस्‍सा अल्‍पतम है और समाज की कृपा का अंश अत्‍यधिक तो हमें जो योग्‍यता प्राप्त हुई है उसका उपयोग समाज को अधिक-से-अधिक देना और उसके बदले में समाज से कम-से-कम लेना, यही न्याय तथा हमारा कर्तव्य माना जा सकता है । चल रहा है कुछ उल्‍टा ही । व्यक्‍ति समाज को कम-से-कम देने की इच्छा रखता है, समाज से अधिक-से-अधिक लेने का प्रयत्‍न करता है, कुछ भी न देना पड़े तो उसे रंज नहीं होता । यह गंभीर बुनियादी सवाल है कि क्‍या बुद्‌धि का उपयोग विषम व्यवस्‍था को कायम रखकर पैसे कमाने के लिए करना उचित है ? यह तो साफ दीखता है कि अार्थिक विषमता का एक मुख्य कारण बुद्‌धि का ऐसा उपयोग ही है । 

शोषण भी प्रायः उसी से होता है । समाज में जो अार्थिक और सामाजिक विषमताएँ चल रही हैं और जिससे शोषण, अशांति होती है, उसे मिटाने के लिए जगत में अनेक योजनाएँ अब तक सामने आईं और इनमें कुछ पर अमल भी हो रहा है । अहिंसा द्‌वारा यह जटिल प्रश्न हल करना हो तो गांधीजी ने इस आशय का सूत्र बताया, ‘‘पेट भरने के लिए हाथ-पैर और ज्ञान प्राप्त करने और ज्ञान देने के लिए बुद्‌धि । ऐसी व्यवस्‍था हो कि हर एक को चार घंटे शरीर श्रम करना पड़े और चार घंटे बौद्‌धिक काम करने का मौका मिले और चार घंटों के शरीर श्रम से इतना मिल जाए कि उसका निर्वाह चल सके ।’’ अभी समाज में यह चल रहा है कि बहुत से लोग अपनी आजीविका शरीर श्रम से चलाते हैं और थोड़े बौद्‌धिक श्रम से । जिनके पास संपत्‍ति अधिक है, वे आराम में रहते हैं । अनेक लोगों में श्रम करने की आदत भी नहीं है । 

इस दशा में उक्‍त नियम का अमल होना दूर की बात है फिर भी उसके पीछे जो तथ्‍य है, वह हमें स्‍वीकार करना चाहिए भले ही हमारी दुर्बलता के कारण हम उसे ठीक तरह से न निभा सकें क्‍योंकि आजीविका की साधन-सामग्री किसी-न-किसी के श्रम बिना हो ही नहीं सकती । इसलिए बिना शरीर श्रम किए उस सामग्री का उपयोग करने का न्यायोचित अधिकार हमें नहीं मिलता । अगर पैसे के बल पर हम सामग्री खरीदते हैं तो उस पैसे की जड़ भी अंत में श्रम ही है । धनिक लोग अपनी ज्‍यादा संपत्‍ति का उपयोग समाज के हित में ट्रस्‍टी के तौर पर करें । संपत्‍ति दान यज्ञ और भूदान यज्ञ का भी आखिर आशय क्‍याहै ? अपने पास आवश्यकता से जो कुछ अधिक है, उसपर हम अपना अधिकार न समझकर उसका उपयोग दूसरों के लिए करें । 

 यह भी बहस चलती है कि धनिकों के दान से सामाजिक उपयोग के अनेक बड़े-बड़े कार्यहोते हैं जैसे कि अस्‍पताल, विद्यालय आदि । अगर व्यक्‍तियों के पास संपत्‍ति इकटठी न ् हो तो समाज को ये लाभ कैसे मिलंेगे? वास्‍तव में जब संपत्‍ति थोड़े-से हाथों में बँधी न रहकर समाज में फैली रहेगी तो सहकार पद्धति से बड़े पैमाने पर ऐसे काम आसानी से चलने लगेंगे और उनका लाभ लेने वाले, याचक या दीन की तरह नहीं, सम्‍मानपूर्वक लाभ उठाएँगे । अर्थशास्‍त्री कहते हैं कि उत्‍पादन की प्रेणा के लिए व्यक्‍ति को स्‍वार्थ के लिए अवसर देने होंगे वरना देश में उत्‍पादन और संपत्‍ति नहीं बढ़ सकेगी, बचत भी नहीं होगी । अनुभव बताता है कि पूँजी, गरीबी या बेकारी की समस्‍या हल नहीं कर सकी है । 

नैतिक दृष्‍टि से भी स्‍वार्थवृत्‍ति का पोषण करना योग्‍य नहीं है । बहुत करके स्‍वार्थ का अर्थहोता है परार्थ की हानि । उसी में से स्‍पर्धा बढ़ती है, जिसके फलस्‍वरूप कुछ थोड़े से लोग ही लाभ उठा सकते हैं, बहुसंख्यकों को तो हानिही पहुँचती है । मानवोचित सहयोग की जगह जंगल का कानून या मत्‍स्‍य न्याय चलता है। आखिर यह देखना है कि समाज का कल्‍याण किस वृत्‍ति से होगा ? अगर समाज में स्‍वार्थ वृत्‍ति के लोग अधिक हों, तो क्‍या कल्‍याण की आशा रखी जा सकती है ? समाज तो परोपकार वृत्‍ति के बल पर ही ऊँचा उठ सकता है । संपत्‍ति बढ़ाने के लिए स्‍वार्थ का आधार दोषपूर्णहै । इस संबंध में कुछ भाई अमेरिका का उदाहरण पेश करते हैं ।

 कहते हैं कि जिनके पास संपत्‍ति इकटठी हुई ् है, उनपर कर लगाकर कल्‍याणकारी राज्‍य की स्‍थापना की जाए । उसी आधार पर भारत को कल्‍याणकारी (वेल्‍फेयर) राज्‍य बनाने की बात चली है । कल्‍याणकारी राज्‍य का अर्थ यह समझा जाता है कि सब तरह के दुर्बलों को राज्‍यसत्‍ता द्‌वारा मदद मिल अर्थात बड़े पैमाने पर कर वसूल करके उससे गरीबों को सहारा दिया जाए। भारत जैसे देश में क्‍या इस बात का बन पाना संभव है ? प्राथमिक आवश्यकताआंे के बारे में मनुष्‍य अपने पैरों पर खड़े रहने लायक हुए बिना स्‍वतंत्र नहीं रह सकता, किसी-न-किसी प्रकार उसे पराधीन रहना होगा। हमारी सामाजिक विचारधारा में एक बड़ा भारी दोष है । हम शरीर श्रम करना नहीं चाहते वरन उसे हीन दृष्‍टि से देखते हैं और जिनको शरीर श्रम करना पड़ता है, उन्हें समाज में हीन दर्जे का मानते हैं । 

अमीर या गरीब, कोई भी श्रम करना नहीं चाहता । धनिक अपने पैसे के बल से नौकरों द्‌वारा अपना काम चला लेता है । गरीब भूख की लाचारी से श्रम करता है । हमें यह वृत्‍ति बदलनी चाहिए । शरीर श्रम की केवल प्रतिष्‍ठा स्‍थापित कर संतोष नहीं मानना है । उसके लिए हमारे दिल में प्रीति होनी चाहिए । आज श्रमिक भी कर्तव्यपरायण नहीं रहा है । श्रम की प्रतिष्‍ठा बढ़ाना उसी के हाथ है । जिस श्रम में समाज को जिंदा रखने की क्षमता है, उस श्रम का सही मूल्‍य अगर श्रमिक जान लेगा तो देश में आर्थिक क्रांति होने में देर नहीं लगेगी । गांधीजी ने श्रम और श्रमिक की प्रतिष्‍ठा स्‍थापित करने के लिए ही रचनात्‍मक कार्यांे को लोक चेतना का माध्यम बनाया । उनकी मान्यता के अनुसार हरेक को नित्‍य उत्‍पादक श्रम करना ही चाहिए । यह उन्होंेने श्रम और श्रमिक की प्रतिष्‍ठा कायम करने के लिए किया । अब कुछ समय से जगत के सामने दया की जगह समता का विचार आया है । 

यह विषमता कैसे दूर हो ? कहीं-कहीं लोगों ने हिंसा का मार्ग ग्रहण किया उसमें अनेक बुराइयाँ निकलीं जो अब तक दूर नहीं हो सकी हैं। विषमता दूर करने में कानून भी कुछ मदद देता है परंतु कानून से मानवोचित गुणों का, सद्‌भावना का विकास नहीं हो सकता । महात्‍मा जी ने हमें जो अहिंसा की विचारधारा दी है, उसके प्रभाव का कुछ अनुभव भी हम कर चुके हैं । भारत की परंपरा का खयाल करते हुए यह संभव दीखता है कि विषमता का प्रश्न बहुत कुछ हद तक अहिंसा के इस मार्ग से हल हो सकना संभव है । इसमें धनिकों से पूरा सहयोग मिलना चाहिए। जैसे राजनीतिक स्‍वराज्‍य का प्रश्न काफी हद तक अहिंसा के मार्ग से सुलझा वैसे ही आर्थिक और सामाजिक समता का प्रश्न भी भारत मंे अहिंसा के मार्ग से सुलझेगा, ऐसी हम श्रद्धा रखें ।
 (‘राजनीति का विकल्‍प’ से)

श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay

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श्रम साधना स्वाध्याय | श्रम साधना का स्वाध्याय |  shram sadhana swadhyay

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Maharashtra State Board 10th Std Hindi Lokbharti Textbook Solutions
Chapter 1 भारत महिमा
Chapter 2 लक्ष्मी
Chapter 3 वाह रे! हम दर्द
Chapter 4 मन (पूरक पठन)
Chapter 5 गोवा : जैसा मैंने देखा
Chapter 6 गिरिधर नागर
Chapter 7 खुला आकाश (पूरक पठन)
Chapter 8 गजल
Chapter 9 रीढ़ की हड्डी
Chapter 10 ठेस (पूरक पठन)
Chapter 11 कृषक गान

Hindi Lokbharti 10th Textbook Solutions दूसरी इकाई

Chapter 1 बरषहिं जलद
Chapter 2 दो लघुकथाएँ (पूरक पठन)
Chapter 3 श्रम साधना
Chapter 4 छापा
Chapter 5 ईमानदारी की प्रतिमूर्ति
Chapter 6 हम उस धरती की संतति हैं (पूरक पठन)
Chapter 7 महिला आश्रम
Chapter 8 अपनी गंध नहीं बेचूँगा
Chapter 9 जब तक जिंदा रहूँ, लिखता रहूँ
Chapter 10 बूढ़ी काकी (पूरक पऊन)
Chapter 11 समता की ओर
पत्रलेखन (उपयोजित लेखन)
गद्‍य आकलन (उपयोजित लेखन)
वृत्तांत लेखन (उपयोजित लेखन)

कहानी लेखन (उपयोजित लेखन)
विज्ञापन लेखन (उपयोजित लेखन)
निबंध लेखन (उपयोजित लेखन)

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