खुला आकाश स्वाध्याय | खुला आकाश का स्वाध्याय | khula aakash swadhyay खुला आकाश स्वाध्याय
कृति
कृतिपत्रिका के प्रश्न 2 [अ] तथा प्रश्न 2 [आ] के लिए।
सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए:
प्रश्न 1. कृति पूर्ण कीजिए:
SOLUTION :
प्रश्न 2. निम्न अर्थ को स्पष्ट करने वाली पंक्तियाँ लिखिए:
a. संतों की सहनशीलता …………………………….
b. कपूत के कारण कुल की हानि …………………………….
SOLUTION :
a. खल के बचन संत सह जैसे।
b. कपूत के कारण कुल की हानि - जिमि कपूत के उपजे, कुल सदधर्म नसाहिं।।
प्रश्न 3. तालिका पूर्ण कीजिए:
SOLUTION :
इन्हें - यह कहा है
[i] नदी के जल का समुद्र में मिलना - ईश्वर को प्राप्त कर स्थिर हुआ जीव
[ii] सज्जनों के सद्गुण - तालाब में जल भरना
प्रश्न 4. जोड़ियाँ मिलाइए:
SOLUTION :
[i] नव पल्लव से भरा वृक्ष -साधक के मन का विवेक
[ii] उपकारी की संपत्ति -ससि संपन्न पृथ्वी
[iii] मेढक की ध्वनि -बटुक समुदाय द्वारा वेद-पाठ
[iv] कलियुग में धर्म का पलायन - चक्रवाक पक्षी का न दिखना कर जाना
प्रश्न 5. इनके लिए पद्यांश में प्रयुक्त शब्द:
4
SOLUTION :
प्रश्न 6. प्रस्तुत पद्यांश से अपनी पसंद की किन्हीं चार पंक्तियों का सरल अर्थ लिखिए।
उपयोजित लेखन
कहानी लेखन: ‘परहित सरिस धर्म नहिं भाई इस सुवचन पर आधारित कहानी लेखन कीजिए।
पद्यांश क्र.1
प्रश्न. निम्नलिखित पठित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:
कृति 1: [आकलन]
प्रश्न 1. आकृति पूर्ण कीजिए:
[i] मन डर रहा है इनका - [ ]
[ii] बिजली की तुलना की गई है इससे - [ ]
[iii] भूमि के पास आए बादल ऐसे लगते हैं - [ ]
[iv] विद्यार्थी जिसे पाने के लिए पढ़ाई करते हैं - [ ]
SOLUTION :
[i] मन डर रहा है इनका - [श्रीराम का]
[ii] बिजली की तुलना की गई है इससे [दुष्ट की प्रीति से]
[iii] भूमि के पास आए बादल ऐसे लगते हैं - [विद्वान की तरह]
[iv] विद्यार्थी जिसे पाने के लिए पढ़ाई करते हैं - [विद्या]
प्रश्न 2. आकृति पूर्ण कीजिए:
SOLUTION :
प्रश्न 3. जोड़ियाँ मिलाइए:
[i] दमकती बिजली - दुष्टों के वचन
[ii] भूमि पर गिरा पानी - राम का डरना
[iii] बूंदों का प्रहार - दुष्ट की मित्रता
[iv] बादलों की गर्जना - माया से लिपटा जीव
SOLUTION :
[i] दमकती बिजली - दुष्ट की मित्रता
[ii] भूमि पर गिरा पानी - माया से लिपटा जीव
[iii] बूंदों का प्रहार - दुष्टों के वचन
[iv] बादलों की गर्जना - राम का डरना
प्रश्न 4. आकृति पूर्ण कीजिए:
SOLUTION :
प्रश्न 5. निम्नलिखित अर्थ को स्पष्ट करने वाली पंक्तियाँ लिखिए:
[i] संतों की सहनशीलता।
[ii] जीव की निश्चिंतता।
[iii] रास्तों का अदृश्य हो जाना।
[iv] विद्वानों की विनम्रता
SOLUTION :
[i] खल के बचन संत सह जैसे।
[ii] होई अचल जिमि जिव हरि पाई।
[iii] हरित भूमि तृन संकुल, समुझि परहि नहिं पंथ।
[iv] जथा नवहिं बुध विद्या पाएँ।
कृति 2: [शब्द संपदा]
प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों के तत्सम रूप लिखिए:
[i] थिर - ………………………………………..
[ii] जथा - ………………………………………..
[iii] सदगुन - ………………………………………..
[iv] अघात - ………………………………………..
SOLUTION :
[i] थिर -स्थिर
[ii] जथा - यथा
[iii] सदगुन - सद्गुण
[iv] अघात - आघात।
प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए:
[i] जलनिधि = ……………………
[ii] गिरि = ……………………
[iii] नदी = ……………………
[iv] जल = ……………………
SOLUTION :
[i] जलनिधि = समुद्र
[ii] गिरि = पहाड़
[iii] नदी = सरिता
[iv] जल = पानी।
कृति 3: [सरल अर्थ]
प्रश्न. प्रस्तुत पद्यांश की प्रथम चार पंक्तियों का सरल अर्थ 25 से 30 शब्दों में लिखिए।
SOLUTION :
बादल आकाश में उमड़-घुमड़कर भयंकर गर्जना कर रहे हैं। श्रीराम जी कह रहे हैं कि ऐसे में सीता जी के बिना उनका मन भयभीत हो रहा है। बिजली आकाश में ऐसे चमक रही है, जैसे दुष्ट व्यक्ति की मित्रता स्थिर नहीं रहती । कभी वह बनी रहती है और कभी टूटने के कगार पर पहुँच जाती है। बादल धरती के नजदीक आकर बरस रहे हैं। उनका यह व्यवहार ठीक उसी प्रकार लगता है, जैसे विद्वान व्यक्ति विद्या पाकर विनम्र हो जाते हैं। बादल भी जल के भार से झुक गए हैं और पृथ्वी के नजदीक आकर अपने जल से प्राणियों को तृप्त कर रहे हैं। पहाड़ों पर वर्षा की बूदों की चोट पड़ रही है, पर पहाड़ चुपचाप शांत भाव से यह आघात उसी प्रकार सहते जा रहे हैं, जैसे संत लोग दुष्टों के कटुवचन सह लेते हैं और उस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं करते।
पदयांश क्र. 2
प्रश्न. निम्नलिखित पठित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:
कृति 1: [आका
प्रश्न 1. आकृति पूर्ण कीजिए:
14
SOLUTION :
प्रश्न 2. उत्तर लिखिए:
इनकी तुलना की गई है, इनसे -
[i] रात के अंधकार में जुगनू - [ ]
[ii] ससि [अनाज] से भरपूर घरती - [ ]
[iii] कृषि को निराने वाले किसान - [ ]
[iv] दिखाई न देने वाला चक्रवाक - [ ]
SOLUTION :
[i] रात के अंधकार में जुगनू - [घमंडियों के समाज से]
[ii] ससि [अनाज] से भरपूर धरती - [उपकारी की संपति से]
[iii] कृषि को निराने वाले किसान - [मोह-मद-मान त्यागने वाले विद्वान से]
[iv] दिखाई न देने वाला चक्रवाक - [कलियुग पाकर भाग जाने वाले धर्म से]
प्रश्न 3. निम्नलिखित शब्दों के लिए पद्यांश में प्रयुक्त शब्द खोजकर लिखिए:
[i] ग्रह - [ ]
[ii] पेड़ - [ ]
[iii] पत्ते - [ ]
[iv] उपग्रह - [ ]
[v] पौधा - [ ]
SOLUTION :
[i] ग्रह - [पतंग [सूर्य]]
[ii] पेड़ - [बिटप]
[iii] पत्ते - [पात]
[iv] उपग्रह - [महि]
[v] पौधा - [अर्क-जवास]
प्रश्न 4. तालिका पूर्ण कीजिए:
इन्हें - यह कहा है
[i] ………………….. - बटु समुदाय
[ii] [नव पल्लव वाले] वृक्ष - …………………..
[iii] [लुप्त हुई] धूल - …………………..
[iv] ………………….. - ज्ञान उत्पन्न हुआ
SOLUTION :
इन्हे - यह कहा है
[i] दादुर - बटु समुदाय
[ii] [नव पल्लव वाले] वृक्ष - ज्ञान प्राप्त कर प्रफुल्लित होने वाला साधक
[iii] [लुप्त हुई] धूल - क्रोध के कारण लुप्त हुआ धर्म
[iv] [विषयों से विरक्त] मनुष्य - ज्ञान उत्पन्न हुआ।
प्रश्न 5. उत्तर लिखिए:
पद्यांश में आया -
[i] एक प्रसिद्ध धर्मग्रंथ - [ ]
[ii] चित्त का मनोविकार या उग्र भाव - [ ]
[iii] एक प्रसिद्ध पक्षी - [ ]
[iv] वह शब्द, जिसके दो अर्थ हैं, जिनमें से एक का अर्थ सूर्य है - [ ]
SOLUTION :
[i] एक प्रसिद्घ धर्मग्रंथ - [वेद]
[ii] चित्त का मनोविकार या उग्र भाव - [क्रोध]
[iii] एक प्रसिद्ध पक्षी - [चक्रवाक [चकवा]]
[iv] वह शब्द, जिसके दो अर्थ हैं, जिनमें से एक का अर्थ सूर्य है - [पतंग]
प्रश्न 6. निम्न अर्थ को स्पष्ट करने वाली पंक्तियाँ लिखिए:
[i] कुसंग से ज्ञान नष्ट होना और सुसंग से ज्ञान उत्पन्न होना। - [ ]
SOLUTION :
[i] कुसंग से ज्ञान नष्ट होना और सुसंग से ज्ञान उत्पन्न होना। - बिनसइ-उपजइ म्यान जिमि, पाइ कुसंग-सुसंग
कृति 2 : [शब्द संपदा]
प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों के अर्थ वाले शब्द पद्यांश से ढूँढ़कर लिखिए:
[i] हुए - ……………………….
[ii] जैसे - ……………………….
[iii] कहीं - ……………………….
[iv] की - ……………………….
SOLUTION :
[i] हुए - भए, भयऊ।
[ii] जैसे - जनु, जस।
[iii] कहीं - कतहुँ।
[iv] की - कै।
प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों के लिंग पहचानकर लिखिए:
[i] दादुर
[ii] धूरी [धूल]
[iii] धर्म
[iv] प्रजा
SOLUTION :
[i] दादुर - पुल्लिग
[ii] धूरी [धूल] - स्त्रीलिंग
[iii] धर्म - पुल्लिग
[iv] प्रजा - स्त्रीलिंग।
कृति 3 : [सरल अर्थ]
प्रश्न. उपर्युक्त पद्यांश की अंतिम चार पंक्तियों [दोहा] का सरल अर्थ 25 से 30 शब्दों में लिखिए।
SOLUTION :
कभी-कभी वायु बहुत तेज गति से चलने लगती है। इससे बादल यहाँ-वहाँ गायब हो जाते हैं। यह दृश्य उसी प्रकार लगता है जैसे परिवार में कुपुत्र के उत्पन्न होने से कुल के उत्तम धर्म [श्रेष्ठ आचरण] नष्ट हो जाते हैं। कभी [बादलों के कारण] दिन में घोर अंधकार छा जाता है और कभी सूर्य प्रकट हो जाता है। तब लगता है, जैसे बुरी संगति पाकर ज्ञान नष्ट हो गया हो और अच्छी संगति पाकर ज्ञान उत्पन्न हो गया हो।=
भाषा अध्ययन [व्याकरण]
प्रश्न. सूचनाओं के अनुसार कृतियों कीजिए :
1. शब्द भेद :
प्रश्न. अधोरेखांकित शब्दों के शब्दभेद पहचानकर लिखिए :
[i] भूमि परत भा ढाबर पानी।
[i] नव पल्लव भए बिटप अनेका।
SOLUTION :
[i] पानी-द्रव्यवाचक संज्ञा
[ii] नव-गुणवाचक विशेषण।
2. अव्यय:
प्रश्न. निम्नलिखित अव्ययों का अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए :
[i] नहीं
[i] इसलिए।
SOLUTION :
[i] जनक कॉलेज नहीं जाता।
[ii] बेचन बिजली का बिल अदा नहीं कर पाया, इसलिए बिजली आपूर्ति खंडित हो गई।
3. संधि :
प्रश्न. कृति पूर्ण कीजिए:
संधि शब्द - संधि विच्छेद - संधि भेद
…………………… - विद्या + अर्थी - ……………………
अथवा
जगन्नाथ - …………………… - ……………………
SOLUTION :
संधिशब्द - संधि विच्छेद - संधि भेद
विद्यार्थी - विद्या + अर्थी - स्वर संधि
अथवा
जगन्नाथ - जगत् + नाथ - व्यंजन संधि
4. सहायक क्रिया:
प्रश्न. निम्नलिखित वाक्यों में सहायक क्रिया पहचानकर उनका मूल रूप लिखिए:
[i] बादल पृथ्वी के नजदीक आकर बरस रहे हैं।
[ii] दुष्ट लोग थोड़ा धन पाकर भी इतराने लगते हैं।
SOLUTION :
सहायक क्रिया - मूल रूप
[i] रहे - रहना
[ii] लगने - लगना
5. प्रेरणार्थक क्रिया:
प्रश्न. निम्नलिखित क्रियाओं के प्रथम प्रेरणार्थक और द्वितीय प्रेरणार्थक रूप लिखिए:
[i] सहना
[ii] गिरना।
SOLUTION :
क्रिया - प्रथम प्रेरणार्थक रूप - द्वितीय प्रेरणार्थक रूप
[i] सहना - सहाना - सहवाना
[ii] गिरना - गिराना - गिरवाना
6. मुहावरे:
प्रश्न 1. निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए:
[i] आँखें फाड़कर देखना
[ii] रुआँसा होना।
SOLUTION :
[i] आँखें फाड़कर देखना।
अर्थ: आश्चर्य से देखना।
वाक्य: मनीष सर्कस के कलाकारों के करतब आँखें फाड़कर देख रहा था।
[ii] रुआँसा होना।
अर्थ: उदास होना।
वाक्य: मालिक की झिड़कियाँ खाकर नौकर रुआँसा हो गया।
प्रश्न 2. अधोरेखांकित वाक्यांश के लिए उचित मुहावरे का चयन कर वाक्य फिर से लिखिए: [हामी भरना, करवट बदलना]
आखिरकार रंजन ने शादी करने के लिए स्वीकृति दी।
SOLUTION :
आखिरकार रंजन ने शादी करने के लिए हामी भरी।
7. कारक:
प्रश्न. निम्नलिखित वाक्य में प्रयुक्त कारक पहचानकर उसका भेद लिखिए:
[i] छोटी-छोटी नदियाँ वर्षा के जल से भर जाती हैं।
[ii] नदी अपने किनारों को तोड़ती हुई आगे बढ़ जाती है।
SOLUTION :
[i] वर्षा के-संबंध कारक
[ii] किनारों को-कर्म कारक ।
8. विरामचिह्न:
प्रश्न. निम्नलिखित वाक्यों में यथास्थान उचित विरामचिह्न लगाकर वाक्य फिर से लिखिए:
[i] पृथ्वी घास से परिपूर्ण होकर हरी हो गई है जिससे रास्तों का पता नहीं चलता
[ii] हरी भरी फसलों से युक्त पृथ्वी कैसी लग रही है
SOLUTION :
[i] पृथ्वी घास से परिपूर्ण होकर हरी हो गई है, जिससे रास्तों का पता नहीं चलता।
[ii] हरी-भरी फसलों से युक्त पृथ्वी कैसी लग रही है?
9. काल परिवर्तन:
प्रश्न. निम्नलिखित वाक्यों का सूचना के अनुसार काल परिवर्तन कीजिए:
[i] प्रियाहीन मेरा मन डरता है। [पूर्ण वर्तमानकाल]
[ii] बादल पृथ्वी के नजदीक आकर बरस रहे हैं। [सामान्य भविष्यकाल]
SOLUTION :
[i] प्रियाहीन मेरा मन डरा है।
[ii] बादल पृथ्वी के नजदीक आकर बरसेंगे।
10. वाक्य भेद:
प्रश्न 1. निम्नलिखित वाक्यों का रचना के आधार पर भेद पहचानकर लिखिए:
[i] बादल गरज रहे हैं और बिजली चमक रही है।
[ii] अनेक वृक्षों में नई-नई कोंपलें आ गई हैं, जिससे वे हरे-भरे तथा सुशोभित हो गए हैं।
SOLUTION :
[i] संयुक्त वाक्य
[ii] मिश्र वाक्य।
प्रश्न 2. निम्नलिखित वाक्यों का अर्थ के आधार पर दी गई सूचना के अनुसार परिवर्तन कीजिए:
[i] कलियुग में धर्म पलायन कर जाता है। [प्रश्नवाचक वाक्य]
[ii] संत पुरुष दुष्टों के वचन सहते हैं। [निषेधवाचक वाक्य]
SOLUTION :
[i] क्या कलियुग में धर्म पलायन कर जाता है?
[ii] संत पुरुष दुष्टों के वचन नहीं सहते।
11. वाक्य शुद्धिकरण:
प्रश्न. निम्नलिखित वाक्य शुद्ध करके फिर से लिखिए:
[i] एक-एक करके सद्गुण सज्जन के पास चला आते है।
[ii] धूल खोजने पे भी कहीं नहीं मिलता है।
SOLUTION :
[i] एक-एक कर सद्गुण सज्जन के पास चले आते हैं।
[ii] धूल खोजने पर भी कहीं नहीं मिलती है।
उपयोजित लेखन
निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर 70 से 80 शब्दों में कहानी लिखकर उसे उचित शीर्षक दीजिए तथा सीख लिखिए:
एक महानुभाव की कल्पना - विश्वविद्यालय स्थापना का प्रण - दान से घन एकत्र करना - एक सेठ के पास जाना - सेठ का दिन भर बिठाए रखना - महानुभाव निराश - शाम को सात लाख रुपए का चेक पाना - आश्चर्य और खुशी।
SOLUTION :
बात आजादी मिलने के बहुत पहले की है। तब देश में उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों की पढ़ाई के लिए बहुत कम विश्वविद्यालय थे। विद्यार्थियों को दूर-दूर स्थानों पर जाकर शिक्षा प्राप्त करनी पड़ती थी और उन्हें वही टिककर पढ़ना पड़ता था। विद्यार्थियों की इस परेशानी को दर करने के लिए एक महानुभाव ने अपने शहर में विश्वविद्यालय स्थापित करने का प्रण किया।
इसके लिए उन्होंने सारे देश का दौरा किया और जहाँ से जो भी धन मिला, एकत्र किया। एक बार किसी व्यक्ति ने उन्हें बताया कि आप कलकत्ता के फलाँ सेठ के पास जाइए। वहाँ आपको अवश्य कुछ धन मिलेगा। वे पहुँच गए उनके पास। उन्होंने सेठ जी से अपना उद्देश्य बताया। सेठ जी ने उन्हें कुछ देर इंतजार करने के लिए कहा और वे अपने काम में लग गए। दोपहर से शाम हो गई। सेठ जी ने उन्हें नहीं बुलाया।
वे निराश हो गए थे। इतने में सेठ जी अपने केबिन से बाहर आए। वे सज्जन खड़े हो गए और बोले, “सेठ जी मुझे आज्ञा दीजिए, मैं चलूँ।” सेठ जी ने कहा, “बैठिए भाई, बैठिए! मैं आपका ही काम कर रहा था। ये लीजिए अपने परोपकार के काम में मेरा छोटा-सा सहयोग! इस समय मैं और कुछ नहीं दे पाऊँगा।” सेठ जी ने एक चेक उन सज्जन के हाथ में थमा दिया।
उन महाशय ने चेक पर नजर डाली- ‘सात लाख रुपए।’ उनके मुँह से निकला, “सेठ जी, मुझे तो लगा था, मुझे यहाँ से खाली हाथ जाना पड़ेगा, पर आपने तो…।” “बस… बस!” उन्होंने उन सज्जन की बात काटते हुए कहा, “आप परोपकार का काम कर रहे हैं, मुझसे जो बन पड़ा, मैंने भी सहयोग दे दिया।” इस धन से विश्वविद्यालय के कई काम पूरे हुए।
विश्वविद्यालय के निर्माण के लिए यह धन एकत्र करने वाले व्यक्ति थे महामना मदनमोहन मालवीय और उन्होंने जिस विश्वविद्यालय का निर्माण किया, वह था ‘बनारस हिंदू विश्वविद्यालय।
सीख: परोपकार सबसे बड़ा धर्म है।
बरषहिं जलद Summary in Hindi
विषय-प्रवेश : अवधी बोली में लिखा गया ‘रामचरितमानस’ विश्व के अमूल्य ग्रंथों में से एक है। प्रस्तुत काव्य खंड इसी ग्रंथ से लिया गया है। चौपाई और दोहों जैसे लोकप्रिय छंदों में प्रस्तुत इस काव्य खंड में तुलसीदासजी ने वर्षा ऋतु का सुंदर वर्णन किया है। इस काव्य खंड में उन्होंने वर्षा ऋतु से संबंधित विभिन्न वस्तुओं को जीवन से जोड़कर देखा है।
यह काव्य खंड सीता हरण के पश्चात का है। श्रीराम और लक्ष्मण जी सीता जी की खोज में वन में भटक रहे हैं। बरसात की ऋत आ चुकी है पर सीता जी का पता नहीं चल सका है। कवि ने इस काव्य खंड में श्रीराम के मन की व्याकुलता का चित्रण किया है।
बरषहिं जलद चौपाइयों और दोहों का सरल अर्थ
1. घन घमंड नभ …………………………… जिमि जिव हरि पाई।। [चौपाई]
कवि कहते हैं कि आकाश में बादल उमड़-घुमड़कर भयंकर गर्जना कर रहे हैं। [श्रीरामजी कह रहे हैं कि] प्रिया [सीता जी] के बिना मेरा मन डर रहा है। बिजली आकाश में ऐसे चमक रही है, जैसे दुष्ट व्यक्ति की मित्रता स्थिर नहीं रहती। यानी वह चमकती है और चमककर लुप्त हो जाती है।
बादल पृथ्वी के नजदीक आकर [नीचे उतरकर] बरस रहे हैं। ठीक उसी प्रकार जैसे विद्वान व्यक्ति विद्या प्राप्त कर विनम्र हो जाते हैं। बूंदों की चोट पहाड़ों पर पड़ रही है। पहाड़ बूंदों के प्रहार को इस प्रकार शांत भाव से सह रहे हैं, जैसे संत पुरुष दुष्टों के कटु वचनों को सह लेते हैं।
छोटी नदियाँ वर्षा के जल से भरकर अपने किनारों को तोड़ती हुई आगे बढ़ती जा रही हैं, जैसे मामूली धन पाकर भी दुष्ट लोग इतराने लगते हैं [यानी मर्यादा का त्याग कर देते हैं]। पृथ्वी पर गिरते ही पानी गँदला हो गया है, मानो प्राणी से माया लिपट गई हो।
वर्षा का पानी एकत्र होकर तालाबों में भर रहा है। जैसे एक-एक कर सद्गुण सज्जन व्यक्ति के पास चले आते हैं। नदी का पानी समुद्र में जाकर उसी प्रकार स्थिर हो जाता है जिस प्रकार जीव हरि [ईश्वर] को प्राप्त कर अचल [आवागमन से मुक्त] हो जाता है।
2. हरित भूमि …………………………… होहिं सद्ग्रंथ।। [दोहा]
पृथ्वी घास से परिपूर्ण होकर हरीभरी हो गई है, जिससे रास्तों का पता नहीं चलता है। यह दृश्य ऐसा लगता है, जैसे पाखंडी के पाखंड भरे मत के प्रचार से सद्ग्रंथ लुप्त हो जाते हैं।
3. दादुर धुनि चहुँ उपजे ग्याना।। [चौपाई]
कवि कहते हैं कि वर्षा काल में चारों दिशाओं में मेढकों की ध्वनि ऐसी [सुहावनी] लगती है मानो विद्यार्थियों का समूह वेद-पाठ कर रहा हो। अनेक वृक्षों में नई-नई कोंपलें आ गई हैं, जिससे वे ऐसे हरेभरे तथा सुशोभित हो गए हैं, जैसे साधना करने वाले किसी व्यक्ति का मन ज्ञान प्राप्त करने पर प्रफुल्लित हो जाता है।
[बरसात के दिनों में] मदार और जवासा के पौधे पत्तों से रहित हो गए हैं। उन्हें देखकर ऐसा लगता है मानो अच्छे शासक के राज्य में दुष्टों का धंधा जाता रहा हो [खत्म हो गया हो]। धूल खोजने पर भी कहीं नहीं मिलती है। जैसे क्रोध धर्म को दूर कर देता है, उसी तरह वर्षा ने धूल को नष्ट कर दिया है।
अनाज से युक्त [लहलहाती हुई हरी-भरी खेती] पृथ्वी कुछ इस : प्रकार शोभायमान हो रही है, जैसे उपकार करने वाले व्यक्ति शोभायमान होते हैं। रात के अंधकार में जुगनू चारों ओर दिखाई दे रहे हैं। उन्हें देखकर ऐसा लगता है जैसे घमंडियों का समूह एकत्र हो गया है।
चतुर किसान अपनी फसलों की निराई कर रहे हैं। [अपनी फसल से घास-फूस निकालकर फेंक रहे हैं]। इसे देखकर ऐसा लगता है जैसे विद्वान लोग मोह, मद, माया का त्याग कर रहे हों।
बरसात के दिनों में चक्रवाक पक्षी कहीं नहीं दिखाई दे रहे हैं। इससे ऐसा लग रहा है जैसे कलियुग में धर्म पलायन कर गया हो।
यह पृथ्वी अनेक प्रकार के जीवों से भरी पड़ी है। यह उसी तरह शोभायमान हो रही है, जैसे अच्छे राजा के राज्य में प्रजा की वृद्धि [विकास] होती है।
यहाँ-वहाँ अनेक सही थककर इस तरह ठहरे हुए हैं, जैसे मनुष्य को ज्ञान प्राप्त होने पर इंद्रियाँ शिथिल हो जाती हैं और विषयों की ओर’ जाना छोड़ देती हैं।
4. कंबहुँ प्रबल …………………………… कुसंग-सुसंग।। [दोहा]
कभी-कभी वायु बहुत तेज गति से चलने लगती है। इससे बादल यहाँ-वहाँ गायब हो जाते हैं। यह दृश्य उसी प्रकार लगता है जैसे परिवार में कुपुत्र के उत्पन्न होने से कुल के उत्तम धर्म [श्रेष्ठ आचरण] नष्ट हो जाते हैं।
कभी [बादलों के कारण] दिन में घोर अंधकार छा जाता है और कभी सूर्य प्रकट हो जाता है। तब लगता है, जैसे बुरी संगति पाकर ज्ञान नष्ट हो गया हो और अच्छी संगति पाकर ज्ञान उत्पन्न हो गया हो।
खुला आकाश स्वाध्याय | खुला आकाश का स्वाध्याय | khula aakash swadhyay खुला आकाश स्वाध्याय
जन्म ः १5११, बाँदा (उ.प्र.)
मृत्यु ः १६२३, वाराणसी (उ. प्र.)
परिचय ः गोस्वामी तुलसीदास ने
अवधी भाषा में अनेक कालजयी
ग्रंथ लिखे हैं । आप प्रसिद्ध संत,
कवि, विद्वान और चिंतक थे।
गोस्वामी जी संस्कृत के
विद्वान थे । आपने जनभाषा
अवधी में रचनाएँ लिखीं । आज
से पाँच सौ वर्ष पूर्व जब प्रकाशन,
दूरदर्शन, रेडियो जैसी सुविधाएँ
नहीं थीं, ऐसे दौर में भी आपका
ग्रंथ ‘रामचरितमानस’ जन-जन
को कंठस्थ था । आपके द्वारा
रचित महाकाव्य ‘रामचरितमानस’
को विश्व के लोकप्रिय प्रथम सौ
महाकाव्यों में महत्त्वपूर्ण स्थान
प्राप्त है ।
प्रमुख कृतियाँ ः ‘रामचरितमानस’
(महाकाव्य), ‘कवितावली’,
‘विनय पत्रिका’, ‘गीतावली’,
‘दोहावली’, ‘हनुमान बाहुक’,
‘बरवै रामायण’, ‘जानकी मंगल’
आदि
खुला आकाश स्वाध्याय | खुला आकाश का स्वाध्याय | khula aakash swadhyay खुला आकाश स्वाध्याय
चौपाई
घन घमंड नभ गरजत घोरा । प्रिया हीन डरपत मन मोरा ।।
दामिनि दमक रहहिं घन माहीं । खल कै प्रीति जथा थिर नाहीं ।।
बरषहिं जलद भूमि निअराएँ । जथा नवहिं बुध विद्या पाएँ ।।
बूँद अघात सहहिं गिरि कैसे । खल के बचन संत सह जैसे ।।
छुद्र नदी भरि चली तोराई । जस थोरेहुँ धन खल इतराई ।।
भूमि परत भा ढाबर पानी । जनु जीवहिं माया लपटानी ।।
समिटि-समिटि जल भरहिं तलावा । जिमि सदगुन सज्जन पहिं आवा ।।
सरिता जल जलनिधि महुँ जाई । होई अचल जिमि जिव हरि पाई ।।
दोहा
हरित भूमि तृन संकुल, समुझि परहि नहिं पंथ ।
जिमि पाखंड बिबाद तें, लुप्त होहिं सदग्रंथ ।।
चौपाई
दादुर धुनि चहुँदिसा सुहाई । बेद पढ़हिं जनु बटु समुदाई ।।
नव पल्लव भए बिटप अनेका । साधक मन जस मिले बिबेका ।।
अर्क-जवास पात बिनु भयउ । जस सुराज खल उद्यम गयऊ ।।
खोजत कतहुॅं मिलइ नहिं धूरी । करइ क्रोध जिमि धरमहिं दूरी ।।
ससि संपन्न सोह महि कैसी । उपकारी कै संपति जैसी ।।
निसि तम घन खद्योत बिराजा । जनु दंभिन्ह कर मिला समाजा ।।
कृषी निरावहिं चतुर किसाना । जिमि बुध तजहिं मोह-मद-माना ।।
देखिअत चक्रबाक खग नाहीं । कलिहिं पाइ जिमि धर्म पराहीं ।।
विविध जंतु संकुल महि भ्राजा । प्रजा बाढ़ जिमि पाई सुराजा ।।
जहँ-तहँ रहे पथिक थकि नाना । जिमि इंद्रिय गन उपजे ग्याना ।।
दोहा
कबहुँप्रबल बह मारुत, जहँ-तहँ मेघ बिलाहिं ।
जिमि कपूत के उपजे, कुल सद्धर्म नसाहिं ।।
कबहुँदिवस महँ निबिड़ तम, कबहुँक प्रगट पतंग ।
बिनसइ-उपजइ ग्यान जिमि, पाइ कुसंग-सुसंग ।।
( ‘रामचरितमानस के किष्किंधा कांड’ से)
शब्द संसार
- शब्द संसार घोरा वि.(हिं.अवधी) = भयंकर
- डरपत क्रि.(हिं.अवधी) = डरना
- खल वि.(सं.) = दुष्ट
- जथा क्रि.वि. (हिं.अवधी) = यथा, जैसे
- थिर वि. (हिं.अवधी) = स्थिर
- नियराई क्रि. (हिं.अवधी) = नजदीक आना
- नवहिंक्रि.(हिं.अवधी) = झुकना
- बुध पुं.(सं.) = विद्वान
- तोराई क्रि. (हिं.अवधी) = तोड़कर
- ढाबर वि. (हिं.अवधी) = मटमैला
- लपटानी क्रि. (हिं.अवधी) = लिपटना
- जिमि क्रि.वि.(हिं.वि.) = जैसे
- बटु पुं.सं.(सं.) = बालक
- विटप पुं.सं.(सं.) = पेड़, वृक्ष
- अर्क पुं.सं.(सं.) = मदार (मंदार) का वृक्ष
- उद्यम पुं.सं.(सं.) = उद्योग
- कतहुँ-अव्यय.(हिं.अवधी) = कहीं
- सोह क्रि.(हिं.अवधी) = सुशोभित होना
- दंभिन्ह वि.(हिं.अवधी) = घमंडी
- निरावहिंक्रि.(हिं.अवधी) = निराना (खेती की प्रक्रिया)
- तजहिंक्रि. (हिं.अवधी) = त्यागना
- मद पुं.सं.(सं.) = घमंड
- चक्रबाक पुं.सं.(हिं.अवधी) = चक्रवाक पक्षी
- भ्राजा क्रि.(सं.) = शोभायमान होना
- मारुत पुं.सं.(सं.) = हवा
- नसाहिंक्रि.(हिं.अवधी) = नष्ट होना
- निबिड़ वि.(हिं.अवधी) = घोर, घना
- बिनसइ क्रि.(हिं.अवधी) = नष्ट होन
खुला आकाश स्वाध्याय | खुला आकाश का स्वाध्याय | khula aakash swadhyay खुला आकाश स्वाध्याय
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