बूढ़ी काकी स्वाध्याय | बूढ़ी काकी प्रश्न उत्तर | BUDHI KAKI swadhyay 10th hindi
कृति
[कृतिपत्रिका के प्रश्न 3 [अ] के लिए
प्रश्न 1. स्वभाव के आधार पर पात्र का नाम
१. क्रोधी ………………….
२. लालची ………………….
३. शरारती ………………….
४. स्नेहिल ………………….
Solutions :
स्वभाव के आधार पर पात्र का नाम
१. क्रोधी रूपा
२. लालची बुद्धिराम
३. शरारती दोनों लड़के
४. स्नेहिल लाड़ली
प्रश्न 2. कृति पूर्ण कीजिए:
उत्तर:
प्रश्न 3. बुद्धिराम का काकी के प्रति दुर्व्यवहार दर्शाने वाली चार बातें :
१] ………………….
४] ………………….
२] ………………….
४] ………………….
Solutions ::
[i] बूढ़ी काकी की संपत्ति अपने नाम लिखाते समय किए गए लंबे-चौड़े वादों को बुद्धिराम द्वारा न निभाना।
[i] बूढ़ी काकी को भरपेट भोजन न देना।
[iii] भोजन कर रहे मेहमानों के बीच रेंगती हुई बूढ़ी काकी के पहुँच जाने पर बुद्धिराम द्वारा निर्दयतापूर्वक पकड़कर उनकी कोठरी में ले जाकर पटक देना।
[iv] बूढ़ी काकी के व्यवहार से रुष्ट होने के कारण तिलक उत्सव में सभी मेहमानों और घरवालों के भोजन कर लेने के बाद भी बुद्धिराम द्वारा उन्हें खाने के लिए न पूछना।
प्रश्न 4. कारण लिखिए :
a. बूढ़ी काकी ने भतीजे के नाम सारी संपत्ति लिख दी _____________________
b. लाड़ली ने पूड़ियाँ छिपाकर रखीं _____________________
c. बुद्धिराम ने काकी को अँधेरी कोठरी में धम से पटक दिया _____________________
d. अंग्रेजी पढ़े नवयुवक उदासीन थे _____________________
Solutions :
a. बूढ़ी काकी के परिवार में अब एक भतीजे के सिवाय और कोई नहीं था, इसलिए उन्होंने भतीजे के नाम सारी संपत्ति लिख दी।
b. बुद्धिराम और रूपा दोनों ने ही बूढ़ी काकी को उनकी निर्लज्जता के लिए दंड देने का निश्चय कर लिया था। इसलिए बूढ़ी काकी को किसी ने नहीं पूछा।
c. बूढ़ी काकी रेंगती हुई भोजन कर रहे मेहमान मंडली के बीच पहुँच गई थी। इससे कई लोग चौंककर उठ खड़े हुए थे। बुद्धिराम को इससे गुस्सा आया और उसने काकी को वहाँ से उठाकर कोठरी में ले जाकर धम से पटक दिया।
d. अंग्रेजी पढ़े नवयुवक उदासीन थे, क्योंकि वे गँवार मंडली में बोलना अथवा सम्मिलित होना अपनी प्रतिष्ठा के प्रतिकूल समझते थे।
प्रश्न 5. सूचना के अनुसार शब्द में परिवर्तन कीजिए :
2
Solutions ::
अभिव्यक्ति
‘बुजुर्ग आदर-सम्मान के पात्र होते हैं, दया के नहीं इस सुवचन पर अपने विचार लिखिए।
Solutions ::
हमें यह बात याद रखनी चाहिए कि आज जो व्यक्ति बुजुर्ग है वह हमेशा बूढ़ा और असहाय नहीं था। वह भी पहले युवा था। उसने अपने परिवार का पालन-पोषण और उसकी देखरेख की थी। उसने तरह-तरह की समस्याओं का सामना किया था और उन्हें अपने तरीके से हल किया था। उसे जीवन जीने का अनुभव है। लेकिन वृद्ध हो जाने पर किसी-किसी परिवार में बुजुर्गों को किनारे कर दिया जाता है। उनकी सलाह या सुझाव को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता। इस तरह के व्यवहार से बुजुर्गों को अपने सम्मान पर ठेस लगती महसूस होती है।
किसी-किसी परिवार में तो बुजुर्गों के खाने-पीने की भी किसी को चिंता नहीं रहती। घर के लोग अपने में मगन रहते हैं और बुजुर्गों का कोई ख्याल नहीं रखता। बुजुर्गों को खाने-पीने के लिए उनका मुँह ताकना पड़ता है। हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि हम इन बुजुर्गों की संतान हैं। उनको पर्याप्त सम्मान देना और उनकी हर प्रकार से देखरेख करना हमारा फर्ज है। बुजुर्गों की प्रसन्नता और उनके आशीर्वाद से ही परिवार फूलता-फलता और खुशहाल रहता है। इसलिए बुजुर्गों को हमें सदा आदर-सम्मान देना चाहिए और उनकी देखरेख करनी चाहिए।
भाषा बिंदु
प्रश्न 1. निम्नलिखित क्रियाओं के प्रथम तथा द्वितीय प्रेरणार्थक रूप लिखिए :
मूल क्रिया प्रथम प्रेरणार्थक रूप द्वितीय प्रेरणार्थक रूप
भूलना ………………………. ……………………….
पीसना ………………………. ……………………….
माँगना ………………………. ……………………….
तोड़ना ………………………. ……………………….
बेचना ………………………. ……………………….
कहना ………………………. ……………………….
नहाना ………………………. ……………………….
खेलना ………………………. ……………………….
खाना ………………………. ……………………….
फैलना ………………………. ……………………….
बैठना ………………………. ……………………….
लिखना ………………………. ……………………….
जुटना ………………………. ……………………….
दौड़ना ………………………. ……………………….
देखना ………………………. ……………………….
जीना ………………………. ……………………….
Solutions ::
प्रश्न 2. पठित पाठों से किन्हीं दस मूल क्रियाओं का चयन करके उनके प्रथम तथा द्वितीय प्रेरणार्थक रूप निम्न तालिका में लिखिए :
मूल क्रिया प्रथम प्रेरणार्थक रूप द्वितीय प्रेरणार्थक रूप
………………………. ………………………. ……………………….
………………………. ………………………. ……………………….
………………………. ………………………. ……………………….
………………………. ………………………. ……………………….
………………………. ………………………. ……………………….
………………………. ………………………. ……………………….
………………………. ………………………. ……………………….
………………………. ………………………. ……………………….
………………………. ………………………. ……………………….
………………………. ………………………. ……………………….
………………………. ………………………. ……………………….
………………………. ………………………. ……………………….
………………………. ………………………. ……………………….
………………………. ………………………. ……………………….
………………………. ………………………. ……………………….
………………………. ………………………. ……………………….
Solutions ::
उपयोजित लेखन
मेरा प्रिय वैज्ञानिक’ विषय पर निबंध लेखन कीजिए।
Solutions ::
यों तो दुनिया में एक-से-एक बड़े वैज्ञानिक हैं, पर मेरे प्रिय वैज्ञानिक तो सर जगदीशचंद्र बोस ही हैं। सर जगदीशचंद्र बोस की बात ही निराली है। उन्होंने यह सिद्ध करके बता दिया कि पेड़-पौधे भी हमारी तरह साँस लेते हैं और उन्हें पानी और भोजन की आवश्यकता होती है। उनमें भी जान होती है। यदि पेड़-पौधों को सताया या कष्ट दिया जाए, तो वे बीमार हो जाते हैं और उनकी प्रकृति के विरुद्ध उन्हें भोजन दिया जाए अथवा जहरीला रसायन दिया जाए, तो वे मर जाते हैं। वैसे पेड़-पौधों के संपर्क में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को मालूम होता है कि पेड़-पौधों को नुकसान पहुँचाने या विषैले पदार्थों के संपर्क में आने से वे क्षतिग्रस्त या मृत हो सकते हैं, पर इस बात को सिद्ध किया था सर जगदीशचंद्र बोस ने।
अपने शोध को सिद्ध करने के लिए उन्होंने खुद चुंबकीय क्रेश्कोग्राफ नामक यंत्र तैयार किया। उन्होंने इस यंत्र की सहायता से सब के सामने अपने प्रयोग से यह सिद्ध कर दिया कि पेड़-पौधों में जीवन होता है और प्राणियों की तरह उनमें भी विभिन्न क्रियाएँ होती हैं। इस प्रकार के सूक्ष्म रहस्य का उद्घाटन करने वाले वे पहले वैज्ञानिक थे। वे सच्चे अर्थों में एक महान वैज्ञानिक थे। ऐसे महान वैज्ञानिक पर हमें गर्व है।
गद्यांश क्र.1
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :
कृति 1 : [आकलन]
प्रश्न 1. आकृति पूर्ण कीजिए :
3
प्रश्न 2. Solutions :लिखिए :
[i] बूढ़ी काकी का शारीरिक स्वास्थ्य -
[ii] बूढ़ी काकी के परिवार में अब बचा एकमात्र सदस्य -
[iii] बुद्धिराम ने इस तरह लिखाई बूढ़ी काकी की संपत्ति -
[iv] बूढ़ी काकी के रोने का ढंग -
Solutions :
[i] बूढ़ी काकी के नेत्र, हाथ, पैर आदि सभी अंग जवाब दे चुके थे।
[ii] उनका भतीजा बुद्धिराम।
[iii] खूब लंबे-चौड़े वादे करके।
[iv] बूढ़ी काकी गला-फाड़कर रोती थीं।
प्रश्न 3. आकृति में दिए गए रिक्त स्थानों में Solutions :लिखकर आकृति पूर्ण कीजिए :
उत्तर:
कृति 2 : [स्वमत अभिव्यक्ति]
प्रश्न. बुढ़ापा बहुधा बचपन का पुनरागमन होता है’ इस विषय पर अपने विचार 25 से 30 शब्दों में व्यक्त कीजिए।
Solutions ::
कहते हैं, बुढ़ापा बचपन का ही एक रूप है। वृद्धावस्था : में मनुष्य की हरकतें बच्चों जैसी हो जाती हैं। इस अवस्था में मनुष्य के अंग-प्रत्यंग कमजोर हो जाते हैं और उन्हें बच्चों की तरह दूसरों का सहारा लेना पड़ता है। दिमाग कमजोर हो जाता है। दाँत गिर जाते हैं और मनुष्य का मुँह बच्चों की तरह पोपला हो जाता है। इतना ही नहीं, बच्चों की तरह ही वृद्धों को भी मान-अपमान की परवाह नहीं होती। जिस तरह लोग बच्चों की बातों पर ध्यान नहीं देते, उसी तरह वृद्धों की बातों पर भी कोई ध्यान नहीं देता। उनकी इच्छा-अनिच्छा का भी कोई महत्त्व नहीं होता। इस तरह वृद्धावस्था और बचपन की अधिकांश बातों में समानता होती है। इसलिए कहा जा सकता है कि बुढ़ापा बहुधा बचपन का पुनरागमन होता है।
गद्यांश क्र.2
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :
कृति 1 : [आकलन]
प्रश्न 1. संजाल पूर्ण कीजिए :
9
Solutions :
प्रश्न 2. आकृति पूर्ण कीजिए :
उत्तर:
प्रश्न 3. कारण लिखिए :
[i] उत्सव के दिन बूढ़ी काकी को अपनी स्थिति पर रोना आया, पर वे रो नहीं सकीं।
Solutions :
[i] उत्सव के दिन बूढ़ी काकी को अपनी स्थिति पर रोना आया, पर वे रो नहीं सकीं, क्योंकि उन्हें रूपा का डर था।
प्रश्न 4. त्तर लिखिए :
मुखराम के तिलक उत्सव की तैयारियाँ :
Solutions :
मुखराम के तिलक उत्सव की तैयारियाँ :
[i] पूड़ियाँ-कचौड़ियाँ निकल रही थीं।
[ii] एक बड़े हंडे में मसालेदार तरकारी पक रही थी।
कृति 2 : [स्वमत अभिव्यक्ति]
प्रश्न. ‘बुढ़ापा तृष्णा रोग का अंतिम समय है’ इस विषय पर अपने विचार 25 से 30 शब्दों में लिखिए।
Solutions ::
मनुष्य के जीवन की चार अवस्थाएँ होती हैं - बचपन, किशोरावस्था, युवावस्था और बुढ़ापा। अपने जीवन में मनुष्य की तरह-तरह की कामनाएँ होती हैं और उनकी पूर्ति करने का वह भरसक प्रयास करता है। बचपन से लेकर युवावस्था तक मनुष्य को अपनी कामनाओं की जल्द से जल्द पूरी होने की उतनी चिंता नहीं रहती, जितनी बुढ़ापे में। वृद्धावस्था में मनुष्य के जीवन के गिने-चुने वर्ष ही बचे होते हैं। इसलिए उसका प्रयास यह होता है कि अपने बचे-खुचे दिनों में वह अपनी सारी कामनाएं पूरी कर ले। ऐसे में उसे किसी भी तरह अपने उद्देश्य को पूरा कर लेना उचित जान पड़ता है। उसके लिए उसे बुरे-भले, मान-अपमान की परवाह नहीं होती। उसका लक्ष्य येनकेन प्रकारेण अपनी इच्छा पूरी करना होता है। इस प्रकार बुढ़ापा तृष्णा रोग का अंतिम समय है।
गद्यांश क्र.3
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:
कृति 1 : [आकलन]
प्रश्न 1.
Solutions :लिखिए :
15
Solutions ::
प्रश्न 2. आकृति पूर्ण कीजिए :
उत्तर :
कृति 2 : [स्वमत अभिव्यक्ति]
प्रश्न. ‘लड़कों का बूढों से स्वाभाविक विवेष होता ही है’ इस विषय पर अपने विचार 25 से 30 शब्दों में लिखिए।
Solutions ::
लड़कों और बूढ़ों के बीच पीढ़ियों का अंतर होता है। लड़कों और बूढ़ों में हर बात को लेकर अंतर होना स्वाभाविक है। अधिकांश बूढ़ों की आदत होती है कि वे हर बात को अपने ढंग से सोचते हैं। वे उसमें अपने जमाने की विचारधारा थोपने की कोशिश करते हैं। इसका कारण यह है कि किसी चीज के बारे में उनकी एक धारणा बनी होती हैं। हर बात को वे अपने पैमाने पर कसने की कोशिश करते हैं। जब कि नई पीढ़ी के लड़कों की सोच अलग ढंग की होती हैं। उन्हें पुराने दकियानूसी विचार पसंद नहीं आते। इसलिए बात-बात पर दोनों के विचारों में टकराव होता है। इस तरह लड़कों और बूढ़ों में स्वाभाविक विद्वेष होता है।
गद्यांश क्र. 4
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई । सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :
कृति 1 : [आकलन]
प्रश्न 1. संजाल पूर्ण कीजिए :
उत्तर:
प्रश्न 2. Solutions :लिखिए :
प्रश्न 3. कारण लिखिए :
[i] घरवालों ने भोजन किया, परंतु बूढ़ी काकी को किसी ने नहीं पूछा -
[ii] रात के ग्यारह बज गए थे। लाड़ली की आँखों में नींद न थी -
Solutions :
[i] लाड़ली उन पूड़ियों को बूढ़ी काकी के पास ले जाना चाहती थी, ताकि वे उन्हें खा सके।
[ii] बूढ़ी काकी को पूड़ियाँ खिलाने की खुशी लाड़ली को सोने न देती थी।
गद्यांश क्र.5
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :
कृति 1 : [आकलन]
प्रश्न 1. आकृति पूर्ण कीजिए :
Solutions ::
प्रश्न 2. कारण लिखिए :
[i] रूपा का हृदय सन्न हो गया -
[ii] रूपा बैठी स्वर्गीय दृश्य का आनंद लेने में निमग्न थी -
Solutions :
[i] रूपा का हृदय सन्न हो गया, क्योंकि उसने देखा कि बूढ़ी काकी पत्तलों पर से पूड़ियों के टुकड़े उठा-उठाकर खा रही हैं।
[ii] रूपा बैठी स्वर्गीय दृश्य का आनंद लेने में निमग्न थी, क्योंकि बूढ़ी काकी भोले बच्चों की तरह सब कुछ भूलकर बैठी हुई खाना खा रही थीं और उनके एक-एक रोएँ से सच्ची सदिच्छाएँ निकल रही थीं।
प्रश्न 3. रिश्ता पहचानिए :
[i] बूढ़ी काकी, रूपा की लगती हैं -
[ii] रूपा, बूढ़ी काकी की लगती हैं -
Solutions :
[i] बूढ़ी काकी, रूपा की लगती हैं - चचेरी सास।
[ii] रूपा, बूढ़ी काकी की लगती है - बहू।
कृति 2 : [स्वमत अभिव्यक्ति]
प्रश्न. शादी-ब्याह अथवा पारिवारिक समारोहों में प्रीतिभोज में अनाप-शनाप खर्च करना कितना उचित’ विषय पर अपने विचार 25 से 30 शब्दों में लिखिए।
Solutions ::
हमारे देश में शादी-ब्याह तथा छोटे-मोटे पारिवारिक समारोहों में प्रीतिभोज में लोगों को खिलाने-पिलाने की पुरानी परंपरा चली आ रही है। समर्थ व्यक्तियों को इस तरह का खर्च करना ज्यादा नहीं अखरता, पर आर्थिक दृष्टि से कमजोर लोगों के लिए इस तरह के ३ खर्च का भार उठाना मुश्किल होता है। पर सामाजिक बंधनों तथा अपने ३ नाम के लिए ऐसे समारोह आयोजित करना आज एक फैशन हो गया । हैं। यह फैशन दिनोदिन बढ़ता ही जा रहा है। कुछ लोग तो अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए कर्ज लेकर लोगों को बुलाकर खिलाते-पिलाते ३ हैं। बाद में यह कर्ज चुकाना उनके लिए समस्या बन जाता है और उन्हें अपनी जायदाद बक बेचनी पड़ जाती है। लोगों को इस तरह के उत्सवों में अनावश्यक रूप से पैसे उड़ाने से बाज आना चाहिए। इस तरह के उत्सवों-समारोहों में अनाप-शनाप खर्च करना अपने ऊपर एक तरह का आर्थिक बोझ लादना है, जिससे कोई लाभ नहीं होता।
उपक्रम/कृति/परियोजना
श्रवणीय
बड़ों से कोई ऐसी कहानी सुनिए जिसके आखिरी हिस्से में कठिन परिस्थितियों से जीतने का संदेश मिल रहा हो।
संभाषणीय
वृद्धाश्रम’ के बारे में जानकारी इकट्ठा करके चर्चा कीजिए।
लेखनीय
‘भारतीय कुटुंब व्यवस्था’ पर भाषण के मुद्दे लिखिए।
Solutions :
- भारतीय कुटुंब व्यवस्था के मुद्दे :
- कुटुंब किसे कहते हैं?
- प्राचीन भारतीय कुटुंब।
- आधुनिक कुटुंब।
- कुटुंब व्यवस्था में बदलाव के कारण।
- कुटुंब व्यवस्था के आधार।
- कुटुंब बनने-टूटने के कारण।
- कुटुंब की आवश्यकता।
- संयुक्त कुटुंब एवं एकल कुटुंब से लाभ-हानि।
- वसुधैव कुटुंबकम्।
पठनीय
‘चलती-फिरती पाठशाला’ उपक्रम के बारे में जानकारी इकट्ठी करके पढ़िए और सुनाइए।
बूढ़ी काकी Summary in Hindi
विषय - प्रवेश : ‘बूढ़ी काकी’ कथा उन दयनीय व्यक्तियों की व्यथा है, जिन्हें परिस्थितिवश मजबूरी में अपनी पूरी संपत्ति किसी अन्य व्यक्ति को सौंपनी पड़ती है और खुद उसकी दया पर जीना पड़ता है। बूढ़ी काकी अपने पति और जवान बेटों की मृत्यु के पश्चात अपने एकमात्र भतीजे बुद्धिराम के वादों पर विश्वास करके अपनी सारी संपत्ति उसके नाम लिख देती हैं। लेकिन थोड़े दिनों के बाद ही ऐसी स्थिति हो जाती है कि उसे पेट भर भोजन मिलना भी मुश्किल हो जाता है। एक बार तो बूढ़ी काकी के जीवन में ऐसी घटना घटती है, जिसके बारे में जानकर दिल दहल उठता है।
बुद्धिराम के बेटे के तिलक समारोह में सभी मेहमान और घर के सभी लोग भोजन कर सोने चले जाते हैं, पर बूढ़ी काकी को खाने के लिए कोई नहीं पूछता। भूख से व्याकुल बूढ़ी काकी रात के अंधेरे में कूड़े में फेंकी गई पत्तलों पर छूटे जूठन को बीन-बीनकर खाकर अपना पेट भरती हैं। बुद्धिराम की पत्नी रूपा यह दृश्य देखती है, तो उसकी रूह काँप उठती है और वह इस अधर्म के लिए ईश्वर से क्षमा करने की प्रार्थना करती है और बूढ़ी काकी को परोसकर भरपेट भोजन कराती है और उससे अपनी भूल के लिए बुरा न मानने के लिए कहती है।
बूढ़ी काकी मुहावरे - अर्थ
- सब्जबाग दिखाना - बड़े-बड़े झूठे वादे करना।
- गला फाड़ना - शोर करना, चिल्लाना।
- लाले पड़ना - किसी चीज के लिए तरसना।
- उबल पड़ना - क्रोधित होना।
- पानी उतर जाना - बेइज्जत होना।
- होंठ चाटना - कोई स्वादिष्ट पदार्थ अधिक खाने की इच्छा रखना।
- कलेजे में हूक सी उठना - मन में दुख होना।
- कलेजा पसीजना - दया आना।
- हृदय सन्न रह जाना - घोर आश्चर्य में डूब जाना।
- छाती पर सवार होना - सामने अड़े रहना।
- दम घुटना - हवा की कमी के कारण या गर्मी की अधिकता से साँस रुकना।
बूढ़ी काकी स्वाध्याय | बूढ़ी काकी प्रश्न उत्तर | BUDHI KAKI swadhyay 10th hindi
जन्म ः १88०, लमही (उ.प्र.)
मृत्यु ः १९३६, वाराणसी (उ.प्र.)
परिचय ः अप्रतिम कहानीकार एवं
उपन्यासकार प्रेमचंद का मूल नाम
धनपत राय था । बाल्यकाल से ही
आपने लेखन कार्य प्रारंभ कर दिया
था । आधुनिक हिंदी गद्य साहित्य में
आप कहानी के पितामह कहे जाते
हैं । आपकी कहानियों, उपन्यासों में
शोषित किसान, मजदूर, स्त्रियांे आदि
की समस्याओं का विस्तृत चित्रण
मिलता है ।
प्रमुख कृतियाँ ः ‘मानसरोवर भाग-१
से8’, ‘जंगल की कहानियाँ’ (कहानी
संग्रह), ‘गोदान’, ‘गबन’,
‘सेवासदन’, ‘करभ्म मिू ’, ‘कायाकल्प’
(उपन्यास), ‘प्म की रे वेदी’, ‘कर्बला’,
‘संग्राम’ (नाटक), ‘टॉल्स्टॉय की
कहानियाँ,‘आजाद कथा’, गाल्सवर्दी
के तीन नाटक-‘हड़ताल’, ‘न्याय’,
‘चाँदी की डिबिया’ (अनुवाद) ।
बूढ़ी काकी स्वाध्याय | बूढ़ी काकी प्रश्न उत्तर | BUDHI KAKI swadhyay 10th hindi
बुढ़ापा बहुधा बचपन का पुनरागमन हुआ करता है । बूढ़ी काकी में
जिह्वा स्वाद के सिवा और कोई चेष्टा शेष न थी और न अपने कष्टों की
ओर आकर्षित करने के लिए रोने के अतिरिक्त कोई दूसरा सहारा ही ।
समस्त इंद्रियाँ, नेत्र-हाथ और पैर जवाब दे चुके थे । पृथ्वी पर पड़ी रहतीं
और घरवाले कोई बात उनकी इच्छा के प्रतिकूल करते, भोजन का समय
टल जाता या उसका परिमाण पूर्ण न होता अथवा बाजार से कोई वस्तु
आती और न मिलती तो ये रोने लगती थीं ।
उनका रोना-सिसकना साधारण
रोना न था, वे गला फाड़-फाड़ कर रोती थीं ।
उनके पतिदेव को स्वर्ग सिधारे कालांतर हो चुका था । बेटे तरुण
हो-होकर चल बसे थे । अब एक भतीजे के सिवाय और कोई न
था । उसी भतीजे के नाम उन्होंने अपनी सारी संपत्ति लिख दी । लिखाते
समय भतीजे ने खूब लंबे-चौड़े वादे किए किंतु वे सब वादे केवल कुली
डिपो के दलालों के दिखाए हुए सब्जबाग थे । यद्यपि उस संपत्ति की
वार्षिक आय डेढ़-दो सौ रुपये से कम न थी तथापि बूढ़ी काकी को पेट भर
भोजन भी कठिनाई से मिलता था ।
इसमें उनके भतीजे पंडित बुद्धिराम का
अपराध था अथवा उनकी अद्र्धांगिनी श्रीमती रूपा का, इसका निर्णय
करना सहज नहीं । बुद्धिराम स्वभाव के सज्जन थे किंतु उसी समय तक
जबकि उनके कोष पर कोई आँच न आए । रूपा स्वभाव से तीव्र थी सही,
पर ईश्वर से डरती थी । अतएव बूढ़ी काकी को उसकी तीव्रता उतनी न
खलती थी जितनी बुद्धिराम की भलमनसाहत ।
बुद्धिराम को कभी-कभी अपने अत्याचार का खेद होता था ।
विचारते कि इसी संपत्ति के कारण मैं इस समय भलामानुष बना बैठा हूँ ।
लड़काें को बुड्ढों से स्वाभाविक विद्वेष होता ही है और फिर जब
माता- पिता का यह रंग देखते तो वे बूढ़ी काकी काे और सताया करते ।
कोई चुटकी काटकर भागता, कोई उनपर पानी की कुल्ली कर देता !
काकी चीख मारकर रोतीं । हाँ, काकी क्रोधातुर होकर बच्चों को गालियाँ
देने लगतीं तो रूपा घटनास्थल पर आ पहुँचती ।
इस भय से काकी अपनी
जिह्वा कृपाण का कदाचित ही प्रयोग करती थीं ।
संपूर्ण परिवार में यदि काकी से किसी को अनुराग था तो वह बुद्धिरामकी छोटी लड़की लाड़ली थी । लाड़ली अपने दोनों भाइयों के भय से अपने
हिस्से की मिठाई-चबैना बूढ़ी काकी के पास बैठकर खाया करती
थी । यही उसका रक्षागार था ।
रात का समय था । बुद्धिराम के द्वार पर शहनाई बज रही थी और
गाँव के बच्चों का झुंड विस्मयपूर्ण नेत्रों से गाने का रसास्वादन कर रहा
था । चारपाइयों पर मेहमान विश्राम कर रहे थे । दो-एक अंग्रेजी पढ़े हुए
नवयुवक इन व्यवहारों से उदासीन थे । वे इस गँवार मंडली में बोलना
अथवा सम्मिलित होना अपनी प्रतिष्ठा के प्रतिकूल समझते थे।
आज बुद्धिराम के बड़े लड़के मुखराम का तिलक आया था । यह
उसी का उत्सव था । घर के भीतर स्त्रियाँ गा रही थीं और रूपा मेहमानों के
लिए भोजन के प्रबंध में व्यस्त थी ।
भट्ठियों पर कड़ाह चढ़ रहे थे । एक में
पूड़ियाँ-कचौड़ियाँ निकल रही थीं, दूसरे में अन्य पकवान बन रहे थे । एक
बड़े हंडे में मसालेदार तरकारी पक रही थी । घी और मसाले की
क्षुधावर्धक सुगंध चारों ओर फैली हुई थी ।
बूढ़ी काकी अपनी कोठरी में शोकमय विचार की भाँति बैठी हुई
थीं । यह स्वाद मिश्रितसुगंध उन्हें बेचैन कर रही थी ।
‘आह ! कैसी सुगंध है ? अब मुझे कौन पूछता है? जब रोटियों ही के
लाले पड़े हैं तब ऐसे भाग्य कहाँ कि भरपूर पूड़ियाँ मिलें ?’ यह विचार कर
उन्हें रोना आया, कलेजे में हूक-सी उठने लगी परंतु रूपा के भय से उन्होंने
फिर मौन धारण कर लिया ।
फूल हम घर मंे भी सूँघ सकते हैं परंतु वाटिका में कुछ और बात होती
है ।
इस प्रकार निर्णय करके बूढ़ी काकी हाथों के बल सरकती हुई बड़ी
कठिनाई में चौखट से उतरीं और धीर-धीरे रेंगती हुई कड़ाह के पास आ
बैठीं।
रूपा उस समय कार्यभार से उद्विग्न हो रही थी । कभी इस कोठे में
जाती, कभी उस कोठे में, कभी कड़ाह के पास आती, कभी भंडार में जाती।
किसी ने बाहर से आकर कहा-‘महाराज ठंडाई माँग रहे हैं ।’ ठंडाई देने
लगी। आदमी ने आकर पूछा-‘अभी भोजन तैयार होने मंे कितना विलंब
है? जरा ढोल-मंजीरा उतार दो ।’ बेचारी अकेली स्त्री दौड़ते-दौड़ते
व्याकुल हो रही थी, झुँझलाती थी, कुढ़ती थी, परंतु क्रोध प्रकट करने का
अवसर न पाती थी । भय होता, कहीं पड़ोसिनें यह न कहने लगें कि इतने में
उबल पड़ीं । प्यास से स्वयं कंठ सूख रहा था । गरमी के मारे फुँकी जाती थी
परंतु इतना अवकाश भी नहीं था कि जरा पानी पी ले अथवा पंखा लेकर
झले । यह भी खटका था कि जरा आँख हटी और चीजों की लूट मची ।
इस अवस्था में उसने बूढ़ी काकी को कड़ाह के पास बैठा देखा तो जल गई ।
क्रोध न रुक सका । वह बूढ़ीे काकी पर झपटी और उन्हें दोनों हाथों से
झटककर बोली-‘‘ऐसे पेट में आग लगे, पेट है या भाड़ ? कोठरी में बैठते
हुए क्या दम घुटता था ? अभी मेहमानों ने नहीं खाया, भगवान को भोग
नहीं लगा, तब तक धैर्य न हो सका ? आकर छाती पर सवार हो गई। इतना
ठँूसती है न जाने कहाँ भस्म हो जाता है । भला चाहती हो तो जाकर कोठरी
में बैठो, जब घर के लोग खाने लगेंगे तब तुम्हें भी मिलेगा । तुम कोई देवी
नहीं हो कि चाहे किसी के मुँह में पानी न जाए, परंतु तुम्हारी पूजा पहले ही
हो जाए ।’’
बूढ़ी काकी अपनी कोठरी में जाकर पश्चात्ताप कर रही थीं कि मैं
कहाँ से कहाँ पहुँच गई । उन्हें रूपा पर क्रोध नहीं था । अपनी जल्दबाजी
पर दुख था । सच ही तो है जब तक मेहमान लोग भोजन कर न चुकेंगे,
घरवाले कैसे खाएँगे ! मुझसे इतनी देर भी न रहा गया ।
सबके सामने पानी
उतर गया । अब, जब तक कोई बुलाने न आएगा, नहीं जाऊँगी ।
मन-ही-मन इसी प्रकार का विचार कर वह बुलाने की प्रतीक्षा करने
लगीं । उन्हें एक-एक पल, एक-एक युग के समान मालूम होता था ।
धीरे-धीरे एक गीत गुनगुनाने लगीं । उन्हें मालूम हुआ कि मुझे गाते देर हो
गई । क्या इतनी देर तक लोग भोजन कर ही रहे होंगे । किसी की आवाज
नहीं सुनाई देती । अवश्य ही लोग खा-पीकर चले गए । मुझे कोई बुलाने
नहीं आया । रूपा चिढ़ गई है, क्या जाने न बुलाए । सोचती हो कि आप
ही आएँगी, वह कोई मेहमान तो नहीं जो उन्हें बुलाऊँ । बूढ़ी काकी चलने
के लिए तैयार हुईं । यह विश्वास कि एक मिनट में पूड़ियाँ और मसालेदार
तरकारियाँ सामने आएँगी, उनकी स्वादेद्रिंयों को गुदगुदाने लगा । उन्होंने
मन में तरह-तरह के मनसूबे बाँधे, पहले तरकारी से पूड़ियाँ खाऊँगी, फिर
दही और शक्कर से, कचौड़ियाँ रायते के साथ मजेदार मालूम होंगी ।
चाहे
कोई बुरा माने चाहे भला, मैं तो माँग-माँगकर खाऊँगी, लोग यही न कहेंगे
कि इन्हें विचार नहीं ? कहा करें, इतने दिन के बाद पूड़ियाँ मिल रही हैं तो
मुँह जूठा करके थोड़े ही उठ जाऊँगी !
मेहमान मंडली अभी बैठी हुई थी । कोई खाकर उँगलियाँ चाटता था,
कोई तिरछे नेत्रों से देखता था कि और लोग अभी खा रहे हैं या नहीं। कोई
इस चिंता में था कि पत्तल पर पूड़ियाँ छूटी जाती हैं, किसी तरह इन्हें भीतर
रख लेता । कोई दही खाकर जीभ चटकारता था परंतु दूसरा दोना माँगते
संकोच करता था कि इतने में बूढ़ी काकी रेंगती हुई उनके बीच में जा
पहुँची। कई आदमी चौंककर उठ खड़े हुए । पुकारने लगे-‘‘अरे यह बुढ़िया कौन है ? यह कहाँ से आ गई ? देखाे किसी को छू न दे ।’’
पंडित बुद्धिराम काकी काे देखते ही क्रोध से तिलमिला गए ।
पूड़ियों का थाल लिए खड़े थे । थाल को जमीन पर पटक दिया और जिस
प्रकार निर्दयी महाजन अपने किसी बेईमान और भगोड़े कर्जदार को देखते
ही झपटकर उसका टेंटुआ पकड़ लेता है उसी तरह लपक उन्हें अँधेरी
कोठरी में धम से पटक दिया । आशा रूपी वाटिका लू के एक झोंके में
नष्ट-विनष्ट हो गई ।
मेहमानों ने भोजन किया । घरवालों ने भोजन किया परंतु बूढ़ी काकी
को किसी ने न पूछा । बुद्धिराम और रूपा दाेनों ही बूढ़ी काकी को उनकी
निर्लज्जता के लिए दंड देने का निश्चय कर चुके थे । उनके बुढ़ापे पर,
दीनता पर, हतज्ञान पर किसी को करुणा न आई थी, अकेली लाड़ली
उनके लिए कुढ़ रही थी ।
लाड़ली को काकी से अत्यंत प्रेम था । बेचारी भोली लड़की थी ।
बालविनोद और चंचलता की उसमें गंध तक न थी । दाेनों बार जब उसके
माता-पिता ने काकी को निर्दयता से घसीटा तो लाड़ली का हृदय ऐंठकर
रह गया । वह झँुझला रही थी कि यह लोग काकी को क्यों बहुत-सी
पूड़ियाँ नहीं दे देते । उसने अपने हिस्से की पूड़ियाँ बिलकुल न खाई थीं ।
अपनी गुड़ियों की पिटारी में बंद कर रखी थीं । उन पूड़ियों को काकी के
पास ले जाना चाहती थी । उसका हृदय अधीर हो रहा था । बूढ़ी काकी मेरी
बात सुनते ही उठ बैठेंगी, पूड़ियाँ देखकर कैसी प्रसन्न होंगी ! मुझे खूब प्यार
करेंगी ।
रात के ग्यारह बज गए थे । रूपा आँगन में पड़ी सो रही थी ।
लाड़ली
की आँखों में नींद न आती थी । काकी को पूड़ियाँ खिलाने की खुशी उसे
सोने न देती थी। उसने पूड़ियों की पिटारी सामने ही रखी थी । जब विश्वास
हो गया कि अम्मा सो रही हैं, तो अपनी पिटारी उठाई और बूढ़ी काकी की
कोठरी की ओर चली ।
सहसा कानों में आवाज आई-‘‘काकी, उठो मैं पूड़ियाँ लाई हूँ ।’’
काकी ने लाड़ली की बोली पहचानी। चटपट उठ बैठीं । दोनों हाथों से
लाड़ली को टटोला और उसे गाेद में बैठा लिया। लाड़ली ने पूड़ियाँ
निकालकर दीं ।
काकी ने पूछा-‘‘क्या तुम्हारी अम्मा ने दी हैं ?’’
लाड़ली ने कहा-‘‘नहीं, यह मेरे हिस्से की हैं ।’’
काकी पूड़ियों पर टूट पड़ीं । पाँच मिनट में पिटारी खाली हो गई।
लाड़ली ने पूछा-‘‘काकी, पेट भर गया ।’
जैसे थोड़ी-सी वर्षा, ठंडक के स्थान पर और भी गरमी पैदा कर देती
है, उसी भाँति इन थोड़ी पूड़ियों ने काकी की क्षुधा और इच्छा को और
उत्तेजित कर दिया था । बोली-‘‘नहीं बेटी, जाकर अम्मा से और माँग
लाओ ।’’
लाड़ली ने कहा-‘‘अम्मा सोती हैं, जगाऊँगी तो मारेंगी ।’’
काकी ने पिटारी को फिर टटोला । उसमें कुछ खुरचन गिरे थे । उन्हें
निकालकर वे खा गईं । बार-बार होंठ चाटती थीं, चटखारें भरती थीं ।
हृदय मसोस रहा था कि और पूड़ियाँ कैसे पाऊँ । संतोष सेतु जब टूट
जाता है तब इच्छा का बहाव अपरिमित हो जाता है । मतवालों को मद का
स्मरण करना उन्हें मदांध बनाता है । काकी का अधीर मन इच्छा के प्रबल
प्रवाह में बह गया । उचित और अनुचित का विचार जाता रहा । वे कुछ देर
तक उस इच्छा को रोकती रहीं सहसा लाड़ली से बोलीं-‘‘मेरा हाथ
पकड़कर वहाँ ले चलो जहाँ मेहमानों ने बैठकर भोजन किया है ।’
’
लाड़ली उनका अभिप्राय समझ न सकी । उसने काकी का हाथ
पकड़ा और ले जाकर जूठे पत्तलों के पास बैठा दिया । दीन, क्षुधातुर,
हतज्ञान बुढ़िया पत्तलों से पूड़ियों के टुकड़े चुन-चुनकर भक्षण करने लगी।
ओह दही कितना स्वादिष्ट था, कचौड़ियाँ कितनी सलोनी, खस्ता कितना
सुकोमल ! काकी बुद्धिहीन होते हुए भी इतना जानती थीं कि मैं वह काम
कर रही हूँ जो मुझे कदापि न करना चाहिए । मैं दूसरों की जूठी पत्तल चाट
रही हूँ । परंतु बुढ़ापा तृष्णा रोग का अंतिम समय है जब संपूर्ण इच्छाएँ एक
ही केंद्र पर आ लगती हैं । बूढ़ी काकी में यह केंद्र उनकी स्वादेंद्रियाँ थीं ।
ठीक उसी समय रूपा की आँखें खुलीं । उसे मालूम हुआ कि लाड़ली
मेरे पास नहीं है । वह चौंकी, चारपाई के इधर-उधर ताकने लगी कि कहीं
नीचे तो नहीं गिर पड़ी ।
उसे वहाँ न पाकर वह उठी तो क्या देखती है कि
लाड़ली जूठे पत्तलों के पास चुपचाप खड़ी है और बूढ़ी काकी पत्तलों पर
से पूड़ियों के टुकड़े उठा-उठाकर खा रही हैं । रूपा का हृदय सन्न हो गया।
परिवार का एक बुजुर्ग दूसरों की जूठी पत्तल टटोले, इससे अधिक शोकमय
दृश्य असंभव था । पूड़ियों के कुछ ग्रासों के लिए उसकी चचेरी सास ऐसा
पतित और निकृष्ट कर्म कर रही है । ऐसा प्रतीत होता मानो जमीन रुक गई,
आसमान चक्कर खा रहा है । संसार पर कोई आपत्ति आने वाली है । रूपा
को क्रोध न आया । शोक के सम्मुख क्रोध कहाँ ? करुणा और भय से
उसकी आँखें भर आईं ! इस अधर्म के पाप का भागी कौन है ? उसने सच्चे
हृदय से गगन मंडल की ओर हाथ उठाकर कहा, ‘‘परमात्मा, मेरे बच्चों पर
दया करो । इस अधर्म का दंड मुझे मत दो, नहीं तो मेरा सत्यानाश हो जाएगा ।’’
रूपा को अपनी स्वार्थपरता और अन्याय इस प्रकार प्रत्यक्ष रूप में
कभी न दीख पड़े थे । वह सोचने लगी-‘हाय ! कितनी निर्दयी हूँ । जिसकी
संपत्ति से मुझे दो सौ रुपया वार्षिक आय हो रही है, उसकी यह दुर्गति !
और मेरे कारण ! हे दयामय भगवान ! मुझसे बड़ी भारी चूक हुई है, मुझे
क्षमा करो ! आज मेरे बेटे का तिलक था । सैकड़ों मनुष्यों ने भोजन किया।
मैं उनके इशारों की दासी बनी रही । अपने नाम के लिए सैकड़ों रुपये व्यय
कर दिए परंतु जिसकी बदौलत हजारों रुपये खाए, उसे इस उत्सव में भी
भरपेट भोजन न दे सकी । केवल इसी कारण कि, वह वृद्धा असहाय है।’
रूपा ने दीया जलाया, अपने भंडार का द्वार खोला और एक थाली
में संपूर्ण सामग्रियाँ सजाकर बूढ़ी काकी की ओर चली ।
रूपा ने कंठावरुद्ध स्वर में कहा-‘‘काकी उठो, भोजन कर लो ।
मुझसे आज बड़ी भूल हुई, उसका बुरा न मानना । परमात्मा से प्रार्थना कर
दो कि वह मेरा अपराध क्षमा कर दें ।’’
भोले-भोले बच्चों की भाँति, जो मिठाइयाँ पाकर मार और
तिरस्कार सब भूल जाता है, बूढ़ी काकी वैसे ही सब भूलकर बैठी हुई खाना
खा रही थीं । उनके एक-एक रोएँ से सच्ची सदिच्छाएँ निकल रही थीं और
रूपा बैठी इस स्वर्गीय दृश्य का आनंद लेने में निमग्न थी।
बूढ़ी काकी स्वाध्याय | बूढ़ी काकी प्रश्न उत्तर | BUDHI KAKI swadhyay 10th hindi
- Balbharti Maharashtra State Board Class 10 Hindi Solutions Chapter 10 बूढ़ी काकी Notes, Textbook Exercise Important Questions, and Answers.
- Maharashtra State Board Class 10 Hindi Chapter 10 बूढ़ी काकी
- Hindi Lokbharti 10th Std Digest Chapter 10 बूढ़ी काकी Textbook Questions ands Answer
- budhi kaki swadhyay
- budhi kaki pdf